Monday, 27 May 2013

क्‍या अपने आई तो रू पडे्,

‘‘वाह रे राजनिति  जब अपने पे आई तो पता चला कि हम भी उसी लाइन में खडे़ हैं जिसमें ओर लोग खडे़ होते हैं’’ ये यहां इस लिए कहा जा रहा है कि शनिवार को छतीसगढ में हुए नेता संघार को इस मीडिया रूपी अपवाद ने इसे इतना कवर किया कि इसमे नेता नहीं मरे, बल्कि ये लग रहा है कि कोई भागवान का पु़़त्र मर गया हो जिसके बारे में ये मीडिया उछल-उछल के अपना मत व्यक्त कर रही हो 
   ये वही मीडिया है जो आम आदमी के मरने पर कोइ प्रतिक्रिया तक नहीं देती लेकिन आज नेताओं के मरने पर इस मीडिया ने इसे राश्ट्रीय मुददा बना दिया ओर युपीए सरकार के माननीय घोसखोर मंत्रियों का तो तंता सा लग गया है जो उन नकसलियों को सजा के प्रावधान केा पारित करने में लग गए है उन से यहां ये पुंछना ही पड़ेगा कि जब कोई आम आदमी इन नकसलियों की भेंट चढ़ता है तो आप ही लोग कहते हैं कि ये आंतक रूकना बहुत मुष्किल है लेकिन अब क्या हुआ जो आप सब एक हो कर मांग कर रहे हो इन नकसलियों को सजा देने कि अब आप की जेड सुरक्षा कहां गई जिनका आप लोग दंभ भरते थे लेकिन आप देष के सबसे बड़े ओर षक्तिषाली लोग हो आप तो यमराज को अपनी जेब में रखते हो अब आप घबरा क्यों रहे हो इन नकसलियों से ।
   आप की सुरक्षा करते हुए इस रैली में कई लोग मारे गए है उनका भी तो आप ख्याल करो उनके बाारे में भी कुछ तो सोचो,वाह रे, बढ़ बोली मीडिया तूने अपना काम बखूबी निभाया है तुम तो सिर्फ इन नेताओं का ही ढोल बजे रहे हो तुमने उन लोगों के बारे में क्यों नहीं दिखाया, जो बेहगुनाह थें बस उनका कसुर ये था।  कि वो सिर्फ काग्रेस की परिर्वतन रैली में षामिल हुए थे उन लोगों के बारे में तो आप ने कुछ नहीं दिखाया बस इन घेांसखेार नेताओं से ही कमाई ज्यादा है तुम्हारी इसलिए चारों तरफ नेता ही नेता छा रहे है
   कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ के जावनों को गोलियों से छलनी कर दिया गया था। तब ये नेता उन्हें देखने तक नहीं गए और ये वही मीडिया है जिसने कुछ मिनट ही इस खबर को दिखया था और उन षहीदों की इस खबर को ठंडे बस्ते में डाल दिया था लेकिन नेतसओं की,ये खबर टीआरपी की खबर है इसे तो ये हर हाल में कवर करेंगे इसके लिए इन्हें नकसलियों से भी क्यों न भिड़ना पड़े कोई परवाह नहीं

Saturday, 25 May 2013

भारतीय प्रेस की अप्रकाशित सत्‍यकथा

भारतीय प्रेस के इतिहास के सबसे विचित्र तथ्‍यों  में से  एक यह है कि सिरामपोर मिशनरियों को उनके योगदान के लिए उचित श्रद्वाजलि नहीं दी गई, जिन्‍होंने भारतीय पत्रकारिता की न केवल नींव रखी बल्कि उनके पर्चों ने उसके विकास के मापदंड भी स्‍थापित किए ा 
                                                                                                     सुनिल के चटर्जी                                
                                                                      विलियम कैरी एंड सिरामपोर 1984


औपनिवेशिक निरंकुशता और स्‍वतंत्र प्रेस 

भारत में पहला समाचार पत्र, द बंगाल गैजेट, 1780 में जेम हिक्‍की  ने स्‍थापित किया था ा कई लोगों का मानना है कि प्रेस की स्‍वतंत्रता ब्रितानी जीवन का इतना सामान्‍य हिस्‍सा था कि अग्रेजी भाषा के साथ उसे तो भारत में आना ही था, अंग्रेज लोगों की भाषा की  तरह स्‍वाभाविक रूप में ा बेंगाल गैजेट यूरोपीय समुदाय के लिए था, लेकिन उसका पाठक वर्ग भारत में इसलिए  नहीं आया था कि वहां स्‍वतंत्रता की संस्‍थाओं को स्‍थापित करने के लिए संघर्ष करे ा वे केवल यहां पैसा बनाने आये थे-जल्‍द से जल्‍द और ज्‍यादा से ज्‍यादा- तरीके चाहे सही हो या गलत ा आजाद,खोजी प्रेस जो सार्वजनिक विवेक कर सेवा में लगी हो, उससे औसत युरोपीय के निजी मिशन को खतरा हो सकता था और खतरा हो सकता था वॉरेन हेस्टिंग्‍स के शैतानी अभियानों को भी ा

     सच्‍चाई तो यह है कि 1780 के दशक में जब भारत में स्‍वतंत्र प्रेस की स्‍थापना की सबसे पहली कोशिश की जा रही थी हेस्टिंग ने ही उसका दम घोंट दिया थाा होना तो यह चाहिए था कि भा‍रतीय लोग स्‍वतंत्र प्रेस की रक्षा करने के लिए खडे् होते ा आखिरकार यही तो एक  ऐसा औजार था जिसके  जरिये वे बंगाल पर शासन करने वाले सरकारी डाकुओं के गिरोह का प्रतिरोध कर सकने थे ा लेकिन,हमने प्रेस का समर्थन नहीं किया, क्‍योंकि भारतीय राजनीतिक परंपरा ने कभी शासकों पर स्‍वतंत्र संस्‍थागत नैतिक अवरोधों का विकास नहीं किया ा दैविक स्‍वीकृति प्राप्‍त हिंदू समाजिक व्‍यवस्‍था में, जहां वंशागत दार्शनिक और राजा(ब्राहामण और क्षत्रिय) सामाजिक वर्गीकरण में सबसे उपर होते है, सोशल इंजीनियरिंग की दूसरी प्रणालियों से अलग  नहीं था- अफलातून के रिपब्लिक से लेकर मार्क्‍स के कम्‍युनिज्‍म तक ा कोई भी व्‍यवस्‍था या प्रणाली जो यह दावा करती है कि आर्दश यूटोपियन या प्रवीण है वह साथ ऐसी संस्‍थांए विकसित नहीं कर सकती जिनका इरादा लगातार उनकी अप्रवीणता को उजागर करना हो ा आधुनिक प्रेस और उसका पुर्वज, यहूदी नबी, इस पूर्वधारणा की उपज थे ा कि अगर पाप की निशानदेही  न की जाए तो वह समस्‍त मानवीय प्रयासों को भ्रष्‍ट कर देता है, इसलिए हमारी संस्‍कृति के वे पहलू जो हमारे सार्वजनिक तौर पर जवाबदेह होना चाहिए, प्रेस जैसी संस्‍थाओं के प्रति जो कि सरकार के नियंत्रण  में न हो ा

     जो इलाके हमारे अपने महाराजाओं के अधिकार में थे वहां भी प्रेस जैसी कोइ चीज नहीं थी, बेंगाल गैजेट के बंद होन के 36 साल बाद  तक ब्रिटिश इंडिया में जो  भी पत्र-पत्रिकाएं छपीं वह मुख्‍यत व्‍यापारिक पर्चे ही थे जिनका उद्वेश्‍य बस युरोपीय जहाजों और खेप के आने की खबर भर देना था ा इनमें से कुछ पत्र 'घर' की संक्षिपत खबरें भी लाते थे

                                                    FORWARD PRESS MAGAZINE
                                                                                JANUARY 2012

Friday, 24 May 2013

संस्‍कृति

भारत ही दुनिया का एक ऐसा देश है जो संस्‍कृती औार अपनी पौराणिक कथाओं के लिए प्रसिद्व है लकिन ये विश्‍व के स्‍तर पर ही प्रसिद्वि पाए हुए है लेकिन भारत में क्‍या ये पौराणिक कथाए और यहां कि संस्‍कृती बची हुई है ये एक ऐसा प्रश्‍न है जो अपने आप में ही खास है खास इसलिए है क्‍योंकि  आज हमारी संस्‍कृती को बाहरी फैशन और ट्रैड डस रहा है आज के युवा इस ट्रैड को अपना रहे है और अपनी उस संस्‍कृती को भूले जा रहे है जो हमारी कभी पहचान हुआ करती थी लेकिन अब नई युवा पीढी् जो अपने आप को आधुनिक युग से अपने आप को जोडृकर चल रही है वो अपने  उन मूल पंरपराओं और उन दंत कथाओं को भूल गए हैं जिन्‍हें कभी उनकी दादी नानी सुनाया करती थी लेकिन अब जिन्‍दगी इस कदर बदल गई है कि युवा पीढी के पास अब समय ही नहीं बचा अपनी दादी नानी के उन कहानियों के लिए जिन्‍हें वे कभी बढे् चाव से अपने पोता पो‍ती को सुनाया करती थी आज के युवाओं का कहना है समय की यही मांग हैं कि हम अपने पुराने रीति रिवाजों को बदल कर नई चीजों को अपनी जिन्‍दगी में अपनाए ओर उनमें ही रमं जाए जो हमे आत्‍म संतुष्टि देगी और नए ज्ञान से जोडेगी लेकिन वे इस बात को नकारते दिखे जो हमारी संस्‍कृती के मूल में बसे हुए है जो हमारी संस्‍कृती का एक अलग मुल्‍य को प्रद्वशित करते है वो मुल्‍य है त्‍याग और आत्‍मीयता ा आज हर व्‍यक्ति अपने लिए ही जी रहा है उसे किसी दूसरे से कोई सारोकार नहीं वो मा्त्र अपना ओर अपनों के लिये ही सोचता है जो हमारे समाज के उस अंग को ढेंगा दिखाता है जिसे कभी वो अपना समझा करता था लेकिन इस भाग दौड् की इस दुनिया में वो अपने भारतीय संस्‍कृति को भूल गया है जिसने उसे मानव बनाया जिसने उसे खडा् होना सिखाया  उस मां को वो नकारता है कहता है कि मैं इस मां को छोड, दूसरी मां को अपनाउंगाा अर्थात दूसरे देश जा कर वही बस जाउंगाा उसी मां कि हर वो बात अपनाउगा जो वो मुझे वो सिखाएगी ा और भारत का युवा अच्‍छे मौके तलाशने के चक्‍कर में विदेशों को चले जा रहे है और वही पर बस  रहे है जो हमारी संस्‍कृती के लिए नकारात्‍मक पहलू है लेकिन कुछ युवा ऐसे भी है जो अपनी संस्‍कृति और अपनी पौराणिक कथाओं को देश विदेश में सुनाते है और उन्‍हें उन देशों के लोगों को अपनाने के लिये भी कहते है जिससे हमारी संस्‍कृति विदेशों में तो फल फूल रही है लेकिन जिस देश में वो जवान हुई उसी देश ने उसे बेगाना कर दियाा और इस देश का दुरभाग्‍य है जो अपने मुल्‍यों को बचा भी नहीं पा रहा
       इसलिए हम युवाओं को ये समझना होगा कि ये संस्‍कृति हमारी है और हम इसके ा इसको बचाने का जिम्‍मा हम युवाओं को ही लेना होगा तभी जाकर कहीं हम अपनी संस्‍कृति को बचा पांए

Thursday, 23 May 2013

दिल्‍ली का ट्रेफिक

दिल्‍ली की सड्को का हाल बेहाल है एक तरफ ट्रेफिक ने कर रखा कमाल है जहां देखो लंबी कतारो में असंख्‍य गाडिया् दिख जाती है मानेां कि दिल्‍ली गाडियों का शहर सा लगता है ऐसा लगता है कि यहां पर तो लोग रहते ही नहीं है बस गाड्यिां ही रहती हैं जिसके कारण से हमें तो ऐसा लगता है कि परिवार नियोजन से पहले गाड्यिों के नियोजन के बारे में दिल्‍ली सरकार को सोचना पडे्गा क्‍योंकि गाडी् बम्‍ब दिल्‍ली पर कभी भी फट सकता है जो होगा प्रदूषण के रूप में ओर शोर शराबे के रूप में ा जिसके दुरूपयोग इतने होंगे जितने हमने कभी सोचे न होगे ा 
   दिन का थका हारा श्रमिक जब अपने ऑफिस से घर को प्रस्‍थान करता है तो उसे जल्‍दी घर जाने की लगी होती है और दिल्‍ली में ट्रेफिक का हाल तो ऐसा है जैसे कोई मघुमक्‍खी का छता जिस तरह मघुमक्‍खी एक जगह इक्‍ठठी हो जाती है उसी तरह ट्रफिक भी एक जगह इक्‍ठठा हो जाता है और आम आदमी बहुत परेशान रहता है और उसके शेार शराबे से कईयों को तो चक्‍कर आ जाते है तो कई तो सरकार को कोसते हैं ओर तो ओर ट्रफिक पुलिस वालों को गाली बकते हैं 
   ये तो आम बात रही जिससे हर व्‍यक्ति को दो चार होना पड्ता है  लेकिन बात हो रही है ट्रेफिक की जो दिन पे दिन अपने पैर पसारता जा रहा है जो पर्यावरण वैज्ञानिको के लिए चिता का विषय है  लेकिन ये उन लोगों को चिता का विषय नहीं लगता जो अपने वाहन से चलते है वो तो मजे से एसी का मजा लेते है लेकिन उन्‍हे शायद लगता हो कि हमें भी देर हो रही है तो वो अपने निजी वाहन न निकालने की सोचते ा
  परंतु सच्‍च तो यही है कि आम हो या खा्स सभी को इस प्रदूषण ओर ट्रफिक से दो चार होना पड्ता है लेकिन इस प्रदूशण से बचने के उपाय कोई नहीं करता है दिल्‍ली सरकार ने 2004 में पैट्रोल और डिजल की गाड्यिा बंद कर दी थी और दिल्‍ली में भारी संख्‍या में पेड् लगवाए थे और सीएनजी का प्रयोग बढृवा दिया था लेकिन सीएनजी ही सबसे ज्‍यादा प्रदूषण का कारण बने हुए है जिसका विकल्‍प अभी तक नहीं मिल पाया है लेकिन ट्रेफिक का तो विकल्‍प हमारे पास है फिर हम उस विकल्‍प के बारे में सोचते भी नहीं है
    जल्‍दी के चक्‍कर में सारे नियम कानूनों को लांग जाते है ओर बाद में हम ही इसका शिकार बनते हैं  
हम लोग आडी् टेडी् गाडिृयों पार्क करते हैं जो ट्रेफिेक का कारण बनती हैं
हम लोगों को स्‍वंय ही सुधरना होगा तभी जाकर हम अपने समाज को सुधार पाएगे और इस ट्रफिक से निजात पाएगें

Wednesday, 22 May 2013

दलित शब्‍द,सच्ची कहानियों का संग्रह


दलित शब्‍द सच्ची कहानियों का संग्रह  है जो इस समाज की सच्ची कुठांओं, आडम्बरों को अपने में इस तरह पिरोए हुए है जैसे ‘‘धागों में मोतियों की लड़ी’’ ।
जो भारत वंष को कटोचता सा प्रतीत होता है इसकी उन तमाम गतिविधियों को रोकता प्रतीत होता है जो इस समाज की उन्नति और प्रगति के बीच का पत्थर हमेषा से ही बनता आया है इस भारत वर्श में दलित शब्द का अपना इतिहास रहा है जो भारत के धर्म की हमेशा से ही पोल खेालता नज़र आता है इस धर्म के आड़े आकर ही तो पंडाओं ने अपनी स्वार्थ सीधी को साधा है और जातियों में हमारे खुषहाल भारत को बांट दिया जो वर्तमान में हमारी खुषहाली में  ग्रहण लगा कर मानों की हमें चिड़ा रहा हो और कह रहा हो कि मैं ही वो राक्षस हूं जो तुम्हारी सुख शंति छीन
लुंगा । जो वर्तमान में उस सत्य को उज़ागर कर रहा है जो वर्ण सगंठित किए गए थे पंरतु आज वर्तमान भी उन्हें ढो रहा है
दलित शब्द ही वो विज्ञान है जिसने इस विष्व का सर्वप्रथम वैज्ञानिक पैदा किया और जरूरत मंदों को उनकी जरूरतों के हिसाब से मषीनरी को संग्रहित किया और उन चीजों का इस्तमाल भी जनता को सीखाया ।  पंरतु उस वैज्ञानिक को हीन भरी नज़रो से इस मनुवादियों ने देखा जिसका परिणाम रहा वर्णों की व्यवस्था । वर्णों की व्यवस्था से व्सथित सबसे पहला समाज,शुद्र समाज रहा जो वर्तमान में दलित शब्द से जाना जाता है 
   यही वो समाज है जो भारत वंष का मूल अधिकारी है जो अपने आप में एक सर्वगुण और सम्पन्न समाज है जो दूसरों के कार्यों को भी बढ़ी निर्भिगिता से निभाता है लेकिन यही समाज उपेक्षित होता है कहीं षिक्षा से तो कहीं अपने उन मूल अघिकारों से जिनका वो जन्म से ही अघिकारी है और उनके लिए वो इन मनोवादियों से हमेषा से लड़ता रहा है लेकिन मनुओं ने उसे ही इस समाज से बाहर कर दिया। इनके इतिहास को देखें तो इनके विरूद्व तमाम ऐसी कुरितियां पैदा कर दी गई जिनको वो आज ढो रहा है


Tuesday, 21 May 2013

देश का भविष्‍य सडको पर,


देश का भविष्‍य सडको पर,देखों कैसे रहा है फिर  
मासौमियत भरी आंखों से मांग रहा फिर अपना हक
खाने को रोटी दो रहने को दो मकान
पढने को किताबें दो खेलने को दो मैदान
एक आशियाना ऐसा दो जिसमें रह सके हम मेहफूस
न हम फिर फिरें हाथ में लटका कर कूडे का बोरा
मन में बोझ यहीं है हमारे 
कि हम भी होते किसी के दुलारे
एक अशियान ऐसा दो हमें 
जिसमें मां बाप हों हमारे
बडे भाई का मिले दुलार
और छोटे भाई को करे हम भी प्‍यार
लेकिन हॉय हमारी किस्‍मत
जिसने पैदा किया छोड उसी ने दिया 
अब न मिलेगे वो दोबारा
शायद हमारी किस्‍मत को है यही गवारा
बस अब इस झूठी सरकार से 
हमें क्‍या मिलेगा सहारा 
मासौम हमारी आंखे कर रही हैं इंतजार
कोई हो हमारा जिसका हम  मासौमों को हो सहारा
हॉय हमारी किस्‍मत जिसको नहीं मिल पा रहा 
अभी भी कोई किनारा
हम  भटक रहे हैं हाथों में अब भी लेकर बोरा 
 हॉय हमारी किस्‍मत,हॉय हमारी किस्‍मत
हॉय हमारी किस्‍मत

Monday, 20 May 2013

डीयू में चार साल का स्नातक कोर्स


डीयू में चार साल के स्नातक कोर्स को लागू न होने देने के समर्थन में उतरे सगठन ज्वाइंट एक्‍शन फार डेमोक्रेटिक एजूकेशन ने सोनिया गांधी के निवास स्थल 10 जनपथ पर अपनी एकजूटता का परिचय देते हुए विशाल प्रर्दशन किया, जिसकी अगुवाई डॉ उदित राज ने की

   दिल्ली युनिवर्सिटी में पिछले दिनों यूजीसी और एकेडमिक काउसिल एवं एक्जक्यूटिव कमेटी के द्वारा चार वर्षीय स्नातक कोर्स लागू किया गया। जो सही मयानों में उच्च वर्ग का कोर्स कहा जाये तो कोइ अतिष्योक्ति नहीं होगी। क्योंकि इस कोर्स के माध्यम से षिक्षा का व्यापार चर्म पर होगा
 इस कोर्स के अंतर्गत चार साल के पाठयक्रम में 11 फाउंडेषन कोर्स पढाये जाएगें जिसमें अग्रेजी और गणित का विषय अनिवार्य होगा ।

प्रो द्वारा दिए जांएगें अंक

   इस कोर्स को उतीर्ण करने के लिए प्राप्तांक 40 प्रतिषत है फाउडेषन कोर्स में 35 अंक लगातार प्रोजेक्ट आदि से दिए जाएगें, डिसिप्लिन-1 में 25 अंक अतिरिक्त, डिसिप्लिन-2 में 25 अंक इसी तरह दिए जाएगें और एप्लाइड कोर्स में भी शिक्षकों को लगातार मूल्यांकन के द्वारा अंक देने के अधिकार होगा
इस कोर्स की छात्रों के लिए हानियां
  छात्रों पर अतिरिक्त वितीय भार बढेगा,जो डिग्री उन्हें तीन वर्ष में प्राप्त होती थी अब वो चार वर्ष में प्राप्त होगी तो अन्य 600 विष्वविघालय में स्नाकोतर में कैसे प्रवेष लेगें ?11 फाउडेषन कोर्स के अतिरिक्त 18 विषय अतिरिक्त छात्रों को पढने पढेगे

शिक्षा का निजीकरण

यूपीए सरकार एक ओर तो देष को षिक्षित होने की बात कह रहीे हैं तो दूसरी तरफ ऐसी नीति का समर्थन कर रही है जिससे षिक्षा अमीरों तक ही सीमित रहेगी जिससे षिक्षा के निजीकरण को बढावा मिलेगा जिसमें गरीब छात्र षिक्षा लेने में असर्मथ होगे

इस प्रोग्राम के एक्जिट प्वांइट

 छात्र दो वर्ष के बाद डिप्लोमा की डिग्री लेकर छोड सकता हैं यदि किसी छात्र ने दो वर्ष तक इस कोर्स को खीच लिया तो तीसरे वर्ष में बैचलर की डिग्री लेकर छोड देगा सम्भवत कुछ ही छात्र होगे जो इस चार वर्षीय डिग्री को प्राप्त कर सकेगे । इस प्रकार से श्रेणी का विभाजन हो जाएगा, डिप्लोमा वाले छात्र चपरासी के लिए नियुक्त होगे बैचलर उससे कुछ उपर की पेास्ट पर नियुक्त होगें और चार वर्षीय डिग्री पाने वाले छात्र हुक्कमरान बनाए जाएगें

डॉ उदित राज ने कहा कि जो छात्र देहात और ग्रमीण क्षेत्रों से होगे वो हाईस्कूल में गणित व अग्रेजी मेहनत करके पास होता है। वो छात्र हाईस्कूल पास कर इन विषयों से  छुटकारा पाना चाहता है वही विषय इस कोर्स के माघ्यम से आगे जाकर उसे पढने पढेगे जिसके कारण काफी छात्र इस कोर्स को प्रथम वर्ष में ही छोड देगें या प्रवेष लेने की हिम्मत ही नहीं करेंगे है जो समाज की आने वाली भयावक तस्वीर उकेरता है
  जिसको हम लोग लागू नही होने देगें

Saturday, 18 May 2013

राम भरोसे जनता

क्‍या करें भईया राजनीति का चल रहा है पहिया
नेता कर रहे एक दूसरे के साथ ताता थाईया
ऐसी ही होती है रानीति मेरे भईया
 सकून न इनको बिल्‍कुल हैं 
ओर सांसों में इनके जीत का बिगुल है
खर्च करें पैसा जी भर के 
जनता मरे सो मरे,इनको क्‍या
इनको क्‍या उनके इस सरोकार से
बस वोटों के खातिर ,लुभा रहे हैं सबको
वादों के पुलिंदे बांध,कर रहे जनता को अंधा
ओर लकडी पकडे चल रहे हैं खुद
करेंगे भारत का उंचा झडा
 ये ही  राजनेता तंत्र है मेरे भाई 
या ये प्रजा तंत्र है
कुछ नहीं आता समझ
क्‍या इस देश का होगाा









Monday, 13 May 2013

वर्तमान में जी रहे हैं हम लोग या जी रहे हैं भूतकाल में, ये मैं इसलिए कह रहा हुं कि हम कौन सी दुनिया में जी रहे हैं ा आज पूरा विश्‍व नए-नए किर्तीमान स्‍थापित कर रहा है और हम भारतीय सिर्फ पूराने रीति-रिवाज और धर्म और जाति को ढो रहे है, हम उस पत्‍थर को पूज रहे है जो जडमत है ओर उसका हमारे समाज में इतना सम्‍मान, जो जीवित है भूख-प्‍यास से मरा जा रहा है उसकेा हम देखना भी नहीं चाहते ा जाति धर्म और सम्‍प्रदाय के नाम पर हम आपस में बट रहे है आखिर कौन सी दुनियां में जी रहे हैं
    निरजीवों पर तो तमाम पैसा खर्च कर रहें है लेकिन सजीव जो टकटकी लगाकर बैठे है उनको देख भी नहीं सकते हम, जो दो जून की रोटी के लिए हमेशा से मेहनत करता आ रहा है उसकी उस रोटी को छीनने के लिए हमेशा तैयार हैं हम, जिन बच्‍चों को पढना चाहिए उनसे उनकी पढाई का हक छीन रहे है हम, आखिर किस दुनियां में जी रहे है हम,बातें तो बहुत करते है कि हम अपने सामज के लिए यें करेगे वो करेगे लेकिन जात पूंछ कर हम, कर क्‍या रहें हैं ये ा
     ये समझना होगा हमें, उस जीवित प्राणी के बारे में, जो रोज मेहनत करता है ओर दो वक्‍त की रोटी का आशय ढूढता है, लाला-बनिया पहले हक मारा करते थे, लेकिन आज सब के सब भूखे बैठे हैं उनका हक मारने के लिए, ये कहां कि इंसानियत है, कभी उनको जाति में तुलते है तो कभी उनकी मजबूरी से, पर बात करते हम बराबरी की हैं ा  हमसे तो बढिया वो जानवर है जो बोल नहीं सकता, तो वो तोल भी नहीं सकत ालेकिन हम तो उस जानवर से भी नीचे गिर गए हैं  और कहते ह कि हमसे विद्ववान कोई नहीं, आखिर ये कैसे विद्ववान हैं हम, जो समाज को बराबरी की नजर से भी देखना पंसद नहीं करते, और दुनिया बदलने का दंभ भरते नहीं थकते हैं हम
     


11 मई 2013 को दिल्ली के हिन्दी भवन में आयोजित ‘‘आरक्षण बचाओ सम्मेलन’’ में आरक्षण संबघित, उन सभी बातों पर चर्चा हुई
जो पिछले दिनों आरक्षण में प्रमोषन बिल केा पास नहीं किए जाने पर कही गई, और आरक्षण खत्म करने की पुरजोर कोषिषें की गई।इस सम्मेलन मे भारत के कौने-कौने से आरक्षण बचाओ समीति के समर्थन में समर्थको की भीड़ जुटी जिसकी आरक्षण के प्रति अपनी ही अलग प्रतिक्रिया थी जो आरक्षण में प्रमोषन का आधार बनाकर उसे लागू करने की थी
    सम्मेलन का आरम्भ मुख्य अतिथी कांचा इल्लैहा समेत सभी उपस्थित मान्यगणों  के द्वारा डॉ भीम राव आम्बेडकर जी की तस्वीर पर माल्यार्पण करके किया गया
    कार्यक्रम में वक्तव्य का आरंभ करते हुए जानी-मानी मीडिया कर्मी बासा सिंह ने  मीडिया के तमाम उन मुददों को उठाया जहां दलितों के साथ नाइ्रसाफी  होती है उन्होेने कहा कि मीडिया में दलित समाज की एक ही खबर दिखाई जाती है। बलात्कार, उसमें से भी वो चुनाव करते है कि कौन सी खबर अच्छा व्यापार करेगी,लेकिन इसके उलट मनुवादी समाज की हर वो छोटी से छोटी खबर दिखाई जाती जो दिखाने लायक भी नहीं होती। उन्होने बताया कि वर्तमान में मीडिया मे ओबीसी,एसी,एसटी के लोग नगण्य है बल्कि मनुवादी समाज की दावेदारी अधिक है जो दलित समाज को हमेषा से उपेक्षित करते आया है
   प्रदेष के अध्यक्ष एम पी सिंह ने मनुवादी समाज को लताड़ते  हुए उसकी सभी वो कुटनीतियां गिनाई जिसके कारण भारत  वर्श के मूलनिवासी हमेषा उपेक्षित रहे उन्होंने कहा कि मनुवादियों ने यहां के मूलनिवासियों के दिलो दिमाग मे उस भगवान को बिठा दिया है जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है ओर जिसका साहार लेकर उसने हम मूलनिवासियों 9647 जातियो में विभाजित कर दिया। जो उसकी हमारे समाज को तोड़ने कि चाल थी और वह उसमें सफल भी हुआ जिसके कारण आज हम विभिन्न प्रकार की जातियों में बंट गए ओर हम अपने जैसे लोगों के साथ बैठना तक नहीं चाहते, लेकिन हमेें इन सबको बदलना होगा और सभी जातियों को साथ लेकर चलना होगा, तभी हम इस मनुवादी समाज से लड़ पाएगें
    डॉ एन सुकुमार ने दिल्ली युनिवर्सिटी में हो रहे एसी,एसटी,ओबीसी के छात्रों के साथ दुर्व्यवहार को अनुचित ठहराया और सभी को दिल्ली युनिवर्सिटी में हो रहीं इस बर्बता को रोकने के लिय एक होने को कहा उन्होने कहा कि दिल्ली युनिवर्सिटी में हमारे समाज के छात्रों की योग्यताओ पर सवाल उठाए जाते हैं जो इस मनुवादी समाज की चाल है जबतक हम इस मनुवादी समाज को ये नहीं चेताएंगे कि अब हम एक हो गए हैं तभी जाकर हमारे समाज के छात्रों और हमारे समाज के प्रति इनका नजरिया बदलेगा, उन्होने युवाओं से कहा कि वे आगे आए ओर इस आरक्षण बचाओं समिती से जुड़े।
    दिल्ली प्रदेष के अध्यक्ष अनिल गौतम ने कहा कि भारत कभी आजाद हुआ ही नहीं क्योंकि ये देष जातियों का गुलाम हमेषा से रहा है जब तक जाति का राज खत्म नहीं होगा तब तक ये देष आजाद नहीं होगा, उन्होने जातिगत आरक्षण की मांग नहीं बल्कि जमीनीगत आरक्षण की भी मांग की, उन्होने कहा कि  हमें हिस्सा चाहिए लेकिन नौकरियों में,राज सत्ता में, जमीन में, तभी तुम हमारा जातिगत आरक्षण छीन सकते हो, यदि तुम इन चीजों में  हमे हिस्सा नहीं दे सकते तो जातिगत आरक्षण हमसे नहीं छीन सकते उन्होने कहा कि उतर प्रदेष की तरह हर राज्य को आम्बेडकर के लिए कुछ न कुछ देना होगा, उन्होने मायावती की पं्रषसा करते हुए कहा कि उतर प्रदेष में आम्बेडकर के नाम पर 19 जिले बनाए गए हैं जो बहुत बढी उपल्बिधि है हमारे समाज के लिए।  
   युथ विंग के राश्ट्रीय अध्यक्ष डॉ रवि प्रकाष ने युवाओं को ललकारते हुए कहा कि हम युवाओं को एक होना होगा क्योंकि युवा षक्ति ही हमारे समाज में परिर्वतन ला सकती है जो हमारे समाज में बदलाव की हवा फेराएगी । उन्होने आरक्षण में रिर्जवेषन के मुददे को अपना मुददा कहा, कि हम युवाओं को  ही इस बिमारी को दूर करना होगा तभी जाकर हम लोग इस समाज में अपना अधिकार पाएगें। मनुवादी समाज में हर कदम पर हमारा मर्दन किया है हमारी बहन बेटियों के साथ कुर्कम किया, और हर कदम पर हमसे हमारा अधिकार छीनने की कोषिष की है जो हमारा जन्म सिद्व अधिकार है । उन्होने  कहा कि यदि हमसे आरक्षण में रिर्जवेषन छीना गया तो हम ये कतई बर्दाषत नहीं करेगें इसे पाने के लिए हमें चाहे अपने प्राणों की बलि तक देनी पड़े, हम वो भी देंगे । अतं में युवाओं को जाग्रत होने की बात  कही, कहा कि हम युवा ही अपना भाग्य बदलेगें।
    मुख्य वक्ता कांचा इल्लैहा ने आरक्षण मे प्रोमोषन का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा कि हम उस उपेक्षित समाज से हैं जो मनुवादियो की नजंर में किसी भी कैटगिरी में नहीें आता है लेकिन हमें अपने लिए स्वंय ही लड़ना होगा और आरक्षण में प्रमोषन लेना होगा। उन्होने स्वीकार किया कि मैं भी ओ,बी,सी समाज में आता हूं।लेकिन ओ,बी,सी समाज अपने आपको एसी,एसटी समाज से अलग मानता है लेकिन सच्चाई ये है कि वो भी उपेक्षित समाज है हमें इन तीनो समाज को एकत्र करना होगा तभी हम लोग आरक्षण में प्रमोषन लेने के हकदार बन पाएगें । उन्होने हिन्दू देवी देवताओं पर कटाक्ष करते हुए कहा कि ये सभी आंडबर है हमें इन से बचना होगा और अपने समाज को एकत्र करना होगा । तभी हम अपने आरक्षण को बचा पाएगें 



Wednesday, 8 May 2013

बेडियां


हम इंसान उन दूसरे जीवों से हटके, एक अलग ही कैटगीरी में आ जाते हैं सिर्फ अपने सोचने की और बोलने की शक्ति के कारण, क्‍योकि इस प्रक्रिती ने हमें हर वो चीज दी है जो ओर दूसरे जीवों से हमारी तुलना को अधिक महत्‍व वाली बना देती है लेकिन हम अपने इस सोचने ओर बोलने की इस अद्भभूत शक्ति का प्रयोग मात्र अपने हित हेतू करने का प्रयास करते हैं जो हमें हमारे समाज में हमें ही अलग कैटगीरी में खडा कर देता है जिसके कारण हम अपने जैसे दूसरे जीव के साथ सौतेला व्‍यवहार करना शरू कर देते है ये सिर्फ हम ओरों से आगे निकलने की होड में करते हैं कि हम अपने जैसे जीवों में सबसे आगे रहें ओर उसको अपने से आगे निकलने का मौका तक न दें, इन सबका संबंध हम कहीं न कहीं अपने उन पुराने ग्रथेां से जोड्र कर देखते है जो कि आज हमारी इस दशा के उत्‍तदायी है और उस मनुवादी व्‍यवस्‍था से ग्रसित हैं जिनका प्रभाव वर्तमान में हमें देखने को कहीं न कही तो मिल ही जाता है वो इस मनुवादी विचार धारा कि ही देन है  ि‍जिसके कारण हम  अलग थलग जातियों मे ब्ंट गए हैं ये मात्र स्‍वार्थ साधने हेतु बनाई व्‍यवस्‍था थी जिसको बढावा हम जैसे ही मानवों ने दिया जिसके कारण हमने वर्णो को बनाया जिसमें कुछ स्‍वार्थी लोगों ने व्‍यवसाय को आधार बना कर जाति का निर्माण किया और शुरू कर दिया वो घिनौना क्रत्‍य जिसमें ये मानव रूपी जीव बहना शुरू हो गया ओर अपनी इस कंलक कारणी व्‍यवस्‍था को आमली जामा पहनाना शुरू कर दिया और इसके बाद उन दुयम दर्जे के मानवो के साथ अभ्रद व्‍यवहार, पशुओं की तरह उन्‍हें रखना ओर उनको गंदे संदे बर्तनों में खाना देना ओर, उनकी अभिव्‍यक्ति को दबाना और उस इश्‍वर से दूर रखना जिसका नाम ले कर परम सुख् पा सके, उस  अभिव्‍यक्ति तक को झीन लिया,जो व्‍यवस्‍था समाज के पतन का कारण बनी ओर जिसके कारण हमने दुसरों तक को अपना ताज दे दिया और उन्‍हें राजा बना कर खुद पर राज करवाया ा जिसका फायदा उन हुकमरानों ने लगभग 800 वर्षो तक उठाया ा ओर हमें ये याद नहीं आने दिया कि हम भारत देश के मूलनिवासी है और हम उन विदेशियों को अपना हुकमरान समझने लगे थे लेकिन इस बीच ऐसे भी लोगों का जन्‍म हुआ जो इस व्‍यवस्‍था को बदलने के लिए  अपना सर्वस्‍व तक दाव पर लगा दिया, लेकिन बात वहीं की वहीं थी  इस वर्ण व्‍यवस्‍था से कैसे निकला जाए इस वर्ण व्‍यवस्‍था से निजात दिलाने के लिए  दुयम जाति में महामानवों का जन्‍म हुआ जिन्‍होने इस व्‍यवस्‍था को बदलने का भरसक प्रयास किया ा लेकिन इस व्‍यवस्‍था ने पैर जमा रखे थे ा उन महान पुरूषों के बलिदान के कारण हम अपना असमान देख पाए ओर 26 जनवरी 1947 को हमें आजादी मिली ा लेकिन जिस व्‍यवस्‍था के कारण हम 800 वर्षो तक दूसरो को अपना मालिक मानते रहें वो व्‍यवस्‍था आज वर्तमान में भी पैर पसारे अपना काम दर काम निकाल रही है, इतने बलिदानों के बाद भी इस व्‍यवस्‍था का बलिदान नहीं हो पाया  ा ये मनुवादी व्‍यवस्‍था आज भी जीवित है  जब तक हम इस मनुवादी व्‍यवस्‍था को नहीं बदलेगें तब तक हम इन गुलामी की बेडियों को नहीं तोड पाएगे

भारत में आरक्षण

भारतीय समाज के अतंर्गत दलित-पिछडा वर्ग बहुसंख्यक है लेकिन यह अभी भी अनेक प्रकार से दमित और शोषित है। 
18 वी शताब्दी में दलितों के लिये आवाज उठाने वाले नेता पैदा हुए जो स्वंय भी दलित समाज के थे और उन्होने ये प्रताड़ना झेली थी, 18 वीं शताब्दी के क्रांतिकारी सामाजिक चिंतक नेता ज्योतिबाफूले और बाद में डा भीमराव अम्बेडकर जी के नाम सामने आए। इन्हीं समाज सुधारकों के कारण ही आरक्षण शब्‍द को आजादी के बाद भारत में जगह मिली, जो वर्तमान में दलित-पिछडों के अधिकारों का पर्याय बन गया है जिसका सीधा लाभ दलित-ओबीसी समाज को हुआ।
1882 में हंटर आयोग की नियुक्ति हुई जिसमें महात्मा ज्योतिराबा फूले ने नि:शुल्‍क शिक्षा के साथ नौकरियों में भी आरक्षण की मांग की। उनकी इस मांग से राजनैतिक हलचल पैदा हुई और आरक्षण की मांग जोर पकड़ने लगी,क्योंकि अब सब को बराबरी का दर्जा देने का समय आ गया था।
1979 में शैक्षणिक और समाजिक रूप से पिछड़े दलित समुदायों का मूल्यांकन किया गया किन्‍तु इस वर्ग का सटीक आंकड़ा उनके पास था जिसमें 52 प्रतिशत आबादी का मूल्याकन 1930 की जनगणना के आकडों में किया गया। 1980 में एक रिपोर्ट पेश की गई जिसमें मौजूदा कोटा बदलकर 22 प्रतिशत से 49 प्रतिशत कर दिया गया

12 अगस्त 2005 उच्चतम न्यायलय ने पीए इमानदार और अन्य के मामले में 12 अगस्त 2005 को 7 जजों द्वारा सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए घोषित किया कि पेशावर राज्यों के कालेजों समेत सहायता प्राप्त कालेजों में अपनी आरक्षण नीति को गैर अल्पसंख्यक और अल्पसंख्यकों पर नहीं थोप सकते । 2005 में निजी शिक्षण संस्थानो में पिछड़े वर्गो और अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लिए आरक्षण अनिर्वाय कर दिया और 93 वां सवैधानिक संशोधन लाया गया जो 2005 में उच्च न्यायलय ने प्रभावी रूप से उलट दिया। 2006 में केन्द्रिय सरकार ने उच्‍च शैक्षणिक संस्थानो में पिछड़े वर्गो के लिये आरक्षण अनिवार्य कर दिया।
केन्द्र सरकार द्वारा उच्च शिक्षा संस्थानो में उपलब्ध सीटों में से 22.5 प्रतिशत अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है जिनमें से 15 प्रतिशत अनुसूचित जाति (दलित) के लिए ओर 7.5 प्रतिशत अनुसूचित जनजातियों (आदिवासी) के लिए आरक्षित की गई है इसके अलावा 27 प्रतिशत सीटे ओबीसी के छात्रों के लिए है जिनका कुल योग 49.5 फीसदी है।
कुल मिलाकर दलित व दबे समुदायों को आगे लाने में आरक्षण का विशेष महत्व है।


(Forward press Magazine)

Tuesday, 7 May 2013

वाह भारत सरकार वाह,

''सरकार ने रखा आम आदमी का ख्‍याल'' इस तरह के होर्डिग आपको दिल्‍ली में जगह-जगह देखने को  मिल जांएगे ओर उन होर्डिग में सरकार के द्वारा किए गए कामों का बखूबी बयान मिल जाएगा कि हमारे द्वारा सडको का निर्माण 2013 में इतना हुआ, 2002 में इतना थाा हमने अपने कोष से इतनी राशी का भुगतान कर के गैस सिलेडंर की सबसिडी खत्‍म करवाई ा  ये हमारी उपल्बिधी का एक नया आध्‍याय है ओर आगे भी हम इस तरह के काम करते रहेगे बस एक बार आप हमें वोट देने के लिए आ जाए ओर फिर दोबारा से इन कामों को शुरू करे          लेकिन इस सरकार ने इन हार्डिगों को मात्र अपने बायानगी के लिए प्रयोग किया है इसमें उसने अपनी उपलब्ध्‍ियां तो गिना दी है पर जो हकीकत है उसे बताना भूल गई है कि इस विकास में हमने कितना खाया  और कितना हमने अपने चाचा-ताउओं को ख्रिलाया कितने गरीबों से उनकी रोटी छीनी ओर कितनों को पानी पीकर सोने पर मजबूर किया ओर कितने गरीबो कि गरीबी का मजाक उडाया,कितने किसानो को मरने को मजबूर कियाा हमने राष्ट्रिय स्‍तर के प्रदर्शनों पर लाठी चलवाई ओर रार्ष्टिय कुकर्म को खुलकर के करवाया ओर उसके अपराधियों को पुलिस ओर सीबीआई के द्वारा  बचवाया ओर कानून के नाम पर हमने एक भी ऐसा कानून पास नहीं होने दिया जिससे हमारे इन संगे सबधियों को जेल जाना पडे ओर खुलकर देश कोद लुटा ओर लुटवाया ा इन कुछ बातों को ये देश की महा भ्रष्‍ट पार्टियां भूल गई है    जिनकी कमी इनके इन होर्डिग में साफ झलकती है जो आज इनके इन होर्डिग की कमियां आज देश का हर एक व्‍यक्ति जानता है वाह रे  भारत सरकार वाह  आज तुम पर हर वो नेता प्रसन्‍न होगा जिनको तुम लोगों के द्वारा बचाया गया होगा  ओर भारत का हर वो नागरिक  दुखी होगा जिनका तुमने शोषण किया है 

     ''वाह रे भारत सरकार वाह''        तुम्‍हारे क्‍या कहने          वाह युं ही गरीबो को चुसते रहो

वंशवाद से देश लूटा,

भारतीय राजनीति एक ऐसा पडाव जो किसी राजनेता का कैरियर  बना देती है, (बेशक घोटालों से ही सही) लेकिन ये सौ फीसदी सच है कि आज का आम आदमी राजनीति से दूर हैं क्‍योकि वो इस दलदल में जाना नहीं चाहताा इसलिए राजनीति का मापदंड बदल गया है जिसमें सिर्फ वंशवाद रह गया है जो अपने इस परिद्रश्‍य को सिर्फ अपनी बपौती समझ रहा है जो इस राजनीति को चलाने की और, इसमें पैंठ बनाने की निरंतर कोशिश में है लेकिन आम जन जो इस राज‍नीति को हर दिन गाली देता हैं वो ये नहीं सोचता कि, हम ही वो लोग हैं जिनके कारण ये राजनेता चुनकर इस राजनीति में आते हैं वो ये नहीं सोचते कि  इस राजनीति को बदलना है तो हमें एक ऐसी पार्टी का चुनाव करना होगा जो केवल देश ओर देश के बारे में सोचे ा        लेकिन भारत की जनता अच्‍छी पार्टी को चुनना ही नहीं चाहती है उन्‍हें  आज हर पार्टी में वो ही भ्रष्‍ट नेताओं कि छवी दिखती है जो  उन चंद पार्टीयों ने बनाई, जिसके कारण हमारे भारत को एक ऐसी  पार्टी जरूरत है जो एक अच्‍छी छवी वाली हो      लेकिन भारतीय राजनीति के मापदंड सिर्फ कुछ पार्टीयों में ही सिमटकर रह गए हैं जो राजनीति को अपने मापदंड के हिसाब से चलाते है जो वंशवाद फैलाने का काम कर रहे हैं यही कारण है कि हमारा देश इस वंशवाद के कारण लूट रहा है और वंशवादी लोग उसे दबाकर लूट रहे हैं ओर अपने चाचा ताउओं को भी इसमे शामिल कर हैं इसका हाल ही में उदाहरण पवन बंसल का भंजा है           

      अब हम लोगों को ही तय करना होगा कि किस  पार्टी को अपना किमती वोट देना है या इस वंशवाद से ग्रसित पार्टी को देना है या किसी नई पार्टी को इस बार मौका देना है

Monday, 6 May 2013

दिल्‍ली की बसों में दंबगई का आलम,

दंबगई का आलम है ये जो कि चारों तरफ से आफत का प्रतीक बन रहा है ,ये लाईने मेरी नहीं, बल्कि उन लोंगों की है जो बसों में रोजाना सफर के लिए जाने जाते हैं

    दिल्‍ली की बस सेवा ''डीटीसी' में रोजाना, दिल्‍ली के लाखों निवासी अपने गंतव्‍य पर जाने के लिये सुबह-सुबह अपने घर से निकलते हैं जिनका सफर इस सेवा में बहुत ही रोचक और कभी कभी तो बहुत ही कष्‍टकारी भी रहता है,दिल्‍ली की इस बस सेवा में जहां एक ओर गतंव्‍य पर जाने की होड् होती है तो दूसरी तरफ आपसी कहा सुनी का भी अपना एक अलग ही अंदाज होता है जो कभी कभी तो आपसी झगड्े का भी रूप ले लेता है

     कुछ दंबग लोग इस आपसी  कहा सुनी को, इतना बेबाक बना देते हैं जिसमे सामने वाला व्‍यक्ति इतना उत्‍तेजित हो जाता है कि आपसी छोटी सी नोंक झोंक खतरनाक लड्ाई का रूप ले लेती है जो कभी-कभी तो दूसरों के मजे का एक साधन बन जाती पर उस व्‍यक्ति के लिये वो जी का जन जाल बन जाती है जो उस समय उस लड्ाई  को लड् रहा होता है क्‍योंकि उसे पता होता है कि यदि अब में पीछे हटा तो मुझे सामने वाला ओर दबाएगा,इसलिए अपने आगे बढ्ते हुए कदम वो पीछे नहीं लेता ओर झगडे को ओर बढाने की कोशिश करने लगता है जिसका फायदा कुछ दंबग लोग उठाकर,आग में घी डालने वाला काम करते हैं जो मजे के साथ-साथ उस आदमी को जेल तक पंहुचा देती है जिसका परिणाम कभी-कभी सामने वाले की जान लेकर ही पूरा होता है 

     उन दंबग लोगों को ये नहीं पता होता कि वो जो कर रहे हैं कहीं न कहीं वो किसी के साथ न इनसाफी कर रहे हैं  अपने चंद समय के मनोरजंन के लिए वो किसी की जिन्‍दगी से खेलते हैं वहीं दूसरी ओर ऐसे भी लोग मिलते हैं जो इन सब का प्रतिरोध करते है और उन व्‍यक्तियों को समझाने का भरसक प्रयास करते जो इन मुर्ख लोगों के कारण आपस में भिड् बैठते हैं ये कोई संयोग नहीं होता अपितू उन दंबग लोगों कि जालसाझी होती है जो अपनी इस नीच कूटनीति को अपनी बयानगी समझते हैं, ओर वे लोग भी मुर्ख होते है जो इन नीचों की बातों में आकर आपस में लड् बैठते हैं उनको ये नहीं मालूम होता कि दो मिनट की कहासुनी कैद में तबदील हो जाती हैं

 ओर वे दंबग व्‍यक्ति इस लडाई का कारण बनते हैं वो अगले किसी स्‍टॉप पर उतर कर इन मुर्ख लोगों कि मुर्खता पर ठहाके मार कर हसते हुए अपने गंतव्‍य पर चले जाते हैं जो अपनी इस मुर्खता को अपना  कारनाम समझते हैं खेर इन लोगों को छोडिये समझना उन लोगों को चाहिए जो इन की बातों में आकर उत्‍तेजित हो जाते हैं ओर आपसी कलह बढा लेते हैं उन दंबगों का कुछ नहीं जाता लेकिन उन लोगों का तो बहुत कुछ चला जाता है जो आपस में भीड जाते हैं 

    इसलिए दोस्‍तों आप किसी की बातों में आकर झगडियेगा नहीं क्‍योंकि नुकसान आपका होगा,उस व्‍यक्ति का नहीं जो आपको आपस में लडवा रहा है 

    

     तो खुद भी सुरक्षित रहिये ओर दूसरों को भी सुरक्षित रखिये

Saturday, 4 May 2013

नन्‍ही सी कली

नन्‍हीं उगलियां, नन्‍हें पैर और छोटी सी काया की धनी तू बनी मेरे घर की लक्ष्‍मी, पर कहां था पत्‍ता मुझे की ये जालिम समाज तुझे बढा होते देख, तनी हुई नजरों से करेगा वार, ऐसे समाज से तुझे मैं कैसे बचाओं कि तेरे उपर किसी की नजर न जा पाए कैसे इस समाज के दरिदों से तेरी रक्षा करूं कि तू मुझे सम्‍मान की नजरों से देखे कैसे तू ही बता कैसे ा 



   ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो हर बाप के जहन में आकर उसकी रूह तक को कंपा देते हैं, इस समाज के उन गिद्ध चाल दरिदों की करतूतों को देख कर ओर सुनकर, हर बाप के दिल में ये सवाल आता है कि क्‍या लड्की को इस समाज की घोरती नजंरो से कैसे बचाओं ा 

      यही कुछ सवाल आज की हर उस नारी के अंदर डर व भय का कारण बन कर उनके नारीत्‍व को  
      अंदर ही अंदर झकझोर देता है कि यदि हम नारी  है तो इसमें हम क्‍यों दबे,आज नारी के उस अधिकार की सब मांग करते हैं जो उसका जन्‍म सिद्ध अधिकार है लेकिन उस ही नारी के साथ ऐसी दरिदंगी का, ये ममता से भरी प्रियागणी क्‍या मतलब निकालें, जो लोग कहते हैं कि  हम नारी के लिए अपनी जान तक लगा देगें वे ही उन को उस नजरों से देखते हैं जैसे कि वही सारी कायनात के मालिक हों ओर बातों के पुलिदों से अपने उस मकसद को पा लेते है जिनका नारी समाज आ्रग्रणी बनता है 
    अब यहां सवाल ये उठता है कि नारी समाज को जो सुरक्षित करने का दावा करता है वो ही उसका शोषक है तो ये नारी समाज कहां जाए, ये कुछ ऐसे प्रश्‍न है जिनका जबाव इस सरकार पर भी नहीं हैं  
    
तो इसका जबाव किस पर है अगर किसी के पास इसका जबाव हो तो मुझे बताइए ा

अखण्‍डता का प्रतीक बने

कभी आजादी मिली थी हमें, पर आज हम आजाद है कहां,पूर्व में राजा महाराजाओं के थे हम गुलाम, फिर हुए मुगलों के गुलाम, उसके बाद में हम रहे अंग्रेजों के गुलाम, पर आज हम आजाद हैं कहां। अब हम हैं इन नेताओं के गुलाम, जो अपनी तानाषाही उन राजा महाराजाओं की तरह कर रहे हैं जो पूर्व में हमने सहा है, ये अग्रजों की उस रणनीति केा कायम कर रहें है जिसके द्वारा उन्होने हमारे उपर पूरे 200 साल राज किया ओर हमें अपना गुलाम बनाए रखा हमने अपने समाज को इस गुलामी से दूर रखने की कोषिष तो बहुत की लेकिन इन्होने हमें उस कोषिष में नाकाम कर दिया ओर हम लोगों मे फूट डालकर हमारी जाति-पाति का उन्हाने भर पूर फायदा उठाया जो वर्तमान में भी हमारे सामने एक बहुत बढ़ी समस्या है जिसका फायदा वर्तमान में ये नेता लोग उठा रहे है हमें जाति धर्म और सम्प्रदायों में बांटकर, वर्तमान में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो इस कुकर्म से दो चार न हुआ हो, परंतु आज भी हम इस जाति पाति से बाहर नहीं निकल पाए हैं कुछ दबदबे वाले व्यक्ति अपना दबदबा बनाने के लिए हमारी इस लाईलाज बिमारी का फायदा उठाकर उसमें ओर भी इजाफ कर रहे हैं,पंरतू एक बात यहां पर सत्य हैं आज की युवा पीढ़ी इन बातों को समझ रही है ओर दबे स्वर में उनके ह्रद्रय में वो आग जल रही है जो कभी ज्योतिबा फूले जी और डॉ अम्बेडकर के ह्रद्रय में जल रही थी, बषर्ते यह आग हर युवा के ह्रद्रय में जल रही है या कुछ ही युवाओं के ह्रद्रय मंे जल रही है, वर्तमान के युवाओ के विचारों को सुनकर ओर उनके विचारों को परख कर लगता तो ऐसा है कि ये आग हर किसी के ह्रद्रय में जल रही है परंतु पुरानी पीढ़ी इस बात को पचा नहीं पा रही है ओर अपना दबदबा कायम करने के लिये भरसक प्रयास कर रही है लेकिन इस मुददे पर राजनैतिक पार्टीयां भरपूर हाथ सेक रही हैं ओर जाति-पाति के नाम पर हम लोगों में वो बीज बो रही है जिसकी फसल सालों से कुछ दंबग लोग काटते आ रहे 
लेकिन अब समय आ गया है कि हम इस कमजोरी का फायदा किसी भी राजनैतिक पार्टी ओर उन दंबगों को नहीं उठाने दें जिन्होने हमेषा हमारी जाति पाति और धर्म को आड़े लाकर हमेषा हम ललकारा है ओर हमें हमेषा आपस में लड़वाया है। हमें एक जुट होकर अपनी युवा षक्ति का प्रर्दषन करना होगा जो सही मायनों में हमारी एकता और अंखण्डता का प्रतीक बने।

सोहन सिंह