Saturday, 24 October 2015

धर्म और आस्‍था का नंगा नाच,

धार्मिक लोगों का एक सबसे बड़ा तर्क होता है कि समाज में नैतिकता बनाये रखने के लिए धर्मआवश्यक है, लेकिन यथार्थ इससे बिलकुल उल्टा है, धर्म कीउपस्तिथी समाज में अनैतिकता, अराजकता, बेईमानी और भ्रष्टाचार को सुनिश्चित करतीहै. 
         भारत से अधिक धार्मिक तथा ईश्वर की अवधारणा की सहज स्वीकृति वाला और कोई दूसरा देश नहीं मिला. वैसे भी आप देख सकते हैं कि कितने ही धर्म यहाँ विकसित हुए, अधिकाँश भगवान यहीं पैदा हुए, तीर्थ तथा मंदिर हर गली में यहाँ मिल जायेंगे.धर्म और ईश्वर का नाम लेकर छोटे मोटे पंडा पुजारी से लेकर अरबों का धंधा करने वालेबड़े बड़े गुरु, बाबा और बापू यहाँ आपको अपना साम्राज्य खड़ा किये आपको मिल जायेंगे.
कृपया विचार करें कि यदि धार्मिक आस्था और ईश्वरीय शक्ति में विश्वास ही नैतिकता कीगारन्टी होता तब तो अपने देश में हर तरफ शांति, सदाचार, भाईचारा, प्रेम और ईमानदारीदिखनी चाहिए थी, परन्तु जरा देखिये कि क्या दशा है आपके उस देश की जिसकी संस्कृतिधर्म और ईश्वरीय अवधारणा से ओतप्रोत है.
भ्रष्टाचार और बेईमानी तो ऐसा लगता है जैसे खून में मिल गई हो, आप नेताओं को कोसतेहैं क्या अफसर भ्रष्टाचारी नहीं होते या फिर उद्योगपति बहुत पाकसाफ हैं, क्या आमआदमी का इस भ्रष्टाचार को बढ़ने में कोई योगदान नहीं है? घर के बाहर सफर पर निकलोतो हर क्षण आपको सावधान रहना पड़ेगा कि कोई आपका सामान न पार कर दे, भीड़भाड़ वाली जगहजाने में हमेशा ये डर बना रहता है कि कोई पॉकेट ही न मार दे. कोई बिजनिस का नामलेकर आता है और आपको यह अहसास होता है कि ये व्यक्ति केवल इस जुगाड़ में है कि कैसेआपके जेब का पैसा उसकी जेब में आ जाये. मिलावटखोरों का यह हाल है कि कोई भी चीजआपको शुद्ध नहीं मिल सकती, यहाँ तक कि बच्चों के पीये जाने वाले दूध में भी यूरियाऔर केमिकल मिलाकर सिंथैटिक दूध बनाते और बेचते हैं, जिनसे कि कैंसर समेत न जाने कितनेगंभीर रोगों से वो बच्चा प्रभावित हो सकता है. उन्हें केवल अपनी जेबें भरने से मतलबहै, कोई और मरे तो मर जाए उन्हें क्या मतलब! धर्म की ही देन है अमानवीय जातिव्यवस्था जिसने एक अच्छे भले इन्सान को अछूत बना कर इंसानों के बीच में ही नफरत केबीज बो दिये.
रात के अँधेरे में तो बाहर निकलना आपके लिए ही खतरनाक है फिर आप अपनी जवान बहन बेटीको तो निकलने ही न देंगे क्योंकि पता नहीं किस मोड़ पर कौन सा दरिंदा उसे नोचने के लिएतैयार बैठा हो. अरे बाहर की बात तो छोड़ दो लगभग रोज ही आप अख़बारों में पढ़ सकते होकि किस तरह बाप, भाई, चाचा, ससुर, और यहाँ तक कि दादा ने भी अपने ही घर की लड़कियोंऔर औरतों से अपनी हवस पूरी करी. अधिकाँश पारिवारिक मामलों को तो वहीँ के वहीँ बदनामीके डर से दबा दिया जाता है, परन्तु कभीकभार अति हो जाने पर ऐसे मामले सामने आतेहैं जैसे कि ताजा घटना में एक बाप को गिरफ्तार तब किया गया जबकि उसकी शादीशुदा बेटीके मायके आने पर उसने अपनी 4 साल की नातिन से भी बलात्कार का प्रयास किया तो बच्चीकी माँ से नहीं रहा गया और उसने अपने बाप के खिलाफ बहनों से मिलकर रिपोर्ट करी किपिछले बीस साल से मेरे बाप ने मुझ समेत मेरी पाँच बहनों से बलात्कार किया और अबमेरी बेटी से करना चाहता था, बाप ने अपना जुर्म कुबूल भी कर लिया. यहाँ एक साल कीदुधमुही बच्ची से लेकर अस्सी साल की बुढ़िया तक से बलात्कार के मामले अकसर प्रकाशमें आते हैं. एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में 93% बलात्कार परिवार अथवा निकट रिश्तेदारया परिचित के द्वारा किये जाते हैं. क्या गाँव और कस्बे, क्या शहर और महानगर एक सी ही दृष्टि है औरत केलिए, 10 से 12 साल की बच्चियों का अपहरणकरके बेच दिया जाता है,वेश्यालयोंको और वेश्यावृत्ति कराई जाती है उनसे. क्योंहोता है ऐसा? जाहिर है कि समाज में कुछ लोग ऐसे भीमौजूद हैं जो कि औरत से नहीं बच्चियों के साथ सेक्स करके अपनी हवस पूरा करना चाहतेहैं. डिमांड है तभी तो सप्लाई हो रही है, क्या लगता है आपको, जो लोग पैसा खर्च करके छोटी बच्चियोंके साथ सेक्स करते हैं,वोजब अपने आस पड़ौस या परिवार में खेलती खिलखिलाती छोटी बच्चियां देखते होंगे तो क्यायही नहीं सोचते होंगे कि कैसे इस नन्हे से फूल को मसल दें? 5 से 10 साल की बच्चियों के साथ बलात्कार कीघटनाएँ तो आमतौर पर रोज ही सुनाई देने लगी हैं, हमारा देश बाल वेश्यावृत्ति के लिएबदनाम हो चुका है.
बलात्कार भारत में सबसेतेजी के साथ बढ़ता हुआ अपराध है| 1971 से लेकर 2011 तक 40वर्षों में बलात्कार की घटनाओं में 792 % की वृद्धी हुई.
बताइये कहाँ है नैतिकता और चरित्र! आपके देश में पिछले दस साल में 60 लाख बच्चियोंको केवल इसलिए मार दिया गया क्योंकि वो लड़की थी. अब तो अल्ट्रासाउंड से बच्चे कालिंग गर्भ में ही मालूम पड़ जाता है परन्तु पहले तो क्या आज भी गांवों में लड़कीहोने पर खाट के पाए से दबाकर मार दी जाती है. यही वो देश है जहाँ जहाँ मन्दिरोंमें देवदासी बनाकर धर्म के नाम पर वेश्यावृत्ति होती रही.
 गुरु और स्वामी लोग आश्रमों और मठों में स्त्रियों के साथ बलात्कार करते हैंऔर साध्वी तथा शिष्या बनाकर सालों साल महिलाओं का शारीरिक शोषण करते हैं, ये तथाकथित साधू संत और बाबा लोग शादी नहीं करते, क्योंकि कि इनको कोई एक औरत थोड़ी न चाहिए, बल्कि पूरा हरम होना चाहिए और रोज बदल बदल के चाहिएऔर यही लोग अपने आपको ब्रह्मचारी दिखाते हैं. कितने आश्रम और मठ तो वेश्यावृत्ति के अड्डे बन चुके हैं, ये लोग अपने यहाँ आने वाले भक्तों को भी लडकियों कीसप्लाई करते हैं, यहाँ वृन्दावन के आश्रमों में तो पुलिस ने छापा मार कर वेश्याओंको भी पकड़ा था.
फ़ोर्ब्सके अनुसार, हमारा महान भारत, उन पांच देशों की सूची में आ गया है जो कि औरत के लिएखतरनाक हैं, और आपकी श्रेणी के चार पड़ौसी हैं सोमालिया, पाकिस्तान, कोंगो और अफगानिस्तान. इतिहाससाक्षी है कि आपकी महान संस्कृति में ही पति के मर जाने पर सती होने के नाम पर औरतको आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया जाता था और आज दहेज़ न मिलने पर औरत को जिन्दाजला दिया जाता है. सरकारी रिपोर्ट कहती है कि भारत में 70% महिलाएं घरोंमें मारपीट का शिकार होती है और दोगले धार्मिक लोग कहते हैं कि हमारे धर्म में तो स्त्रीकी पूजा होती है.
ऊपर से लेकर नीचे तक हर तरफ जितना दुराचार, अनाचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचार, अपराधऔर बेईमानी हमारे देश और समाज में देखने को मिलती है उतनी गन्दगी मैंने अन्य देशोंमें नहीं देखी. हाँ यह जरुर कह सकते हो आप कि पाकिस्तान, बांग्लादेश या कोंगो जैसीजगह मैं नहीं गया हूँ और न ही उनसे तुलना करने की इच्छा है. कितनी जगह तो मैंनेखुद देखा है कि लोग घरों में ताला तक नहीं लगाते. पाश्चात्य यूरोपियन देशों में मैंनेकभी नहीं देखा कि किसी सरकारी काम को कराने के लिए या पुलिस इत्यादि को किसी आमनागरिक ने एक पैसे की भी रिश्वत दी हो. आमतौर पर आदमी ईमानदार होता है और उस परविश्वास किया जा सकता है. आपकी जवान बहन बेटी सुरक्षित महसूस करते हुए अकेली, दिनहो या रात कभी भी ट्रेन में, बस में या पैदल सफर कर सकती है. और इन देशों में धर्मका प्रभाव बिलकुल नहीं या न के बराबर है. ईश्वरीय सत्ता में लोगों को न तो विश्वासहै और न ही कोई रूचि. हो सकता है कि गणनायें देखने पर आपको ऐसा लगे कि उस देश केनिवासी किसी एक धर्म (क्रिश्चियनिटी) के अनुयायी हों, तो उसका कारण यह है कि किसी फॉर्मइत्यादि के धर्म वाले खाने में वो क्रिश्चियनिटी लिख देते हैं परन्तु न तो उन्हेंकोई विश्वास है और न ही कोई आस्था. उनसे अगर पूछो आप कि कभी चर्च गए हो तो कहेंगेकि जिन्दगी में एक बार शादी के दिन गया था और कितने तो यह भी कहेंगे कि मैंने तोशादी भी कोर्ट में ही करी. मैं स्वयं कितने ही ऐसे चर्चों में लन्दन और जर्मनी मेंगया हूँ जोकि लोगों के न आने और इनकम न होने की वजह से बंद हो गए
भाड़े पर उठ गये और बिकने को तैयार हैं और कई जगह तोरेस्टोरेंट और नाईट क्लब तक खुल गए. कहने का मतलब यह है कि लोगों की धर्म और आस्तिकतामें कोई रूचि नहीं है और न ही वो इस पर अपना समय और ऊर्जा नष्ट करते हैं. तभी आपदेख लीजिये वो विकसित हैं, सम्पन्न हैं और हमसे अधिक ईमानदार भी हैं. हमेशा ही यहदेखने में आया है कि गरीब और अशिक्षित देशों, समाजों में ही धर्म और आस्तिकता काबाहुल्य होता है. उसका स्पष्ट कारण यह है कि इन लोगों को धर्म और ईश्वर के नाम पर बरगलानाआसान है.
अब जरा यह समझिये कि धर्म और अपराध का क्या रिश्ता है: असल में बुरा काम करने परभी बुरा महसूस न हो इसके लिये लोग धर्म का सहारा लेते हैं. वर्तमान में ही नहीं बल्किहम अपने बचपन से ही न जाने ऐसी कितनी सत्यकथाएँ सुनते आ रहे हैं कि फलाना डकैत बहुतबड़ा देवी भक्त होता था और अपनी लूट का 25% मंदिर में दान कर देता था, और तो और हमारेधार्मिक शहर वृन्दावन में तो ऐसी सत्यकथाएं भी प्रचलित हैं कि अपराधी पहले हीईश्वर से कान्ट्रेक्ट कर लेते थे कि यदि मुझे लूट में सफलता मिली तो आधा माल ईश्वरको अर्पित कर दुंगा और ईश्वर की कृपा से वो सफल भी होते थे. आधुनिक युग की बात करेंतो हम कितने ही भ्रष्टाचारी नेताओं जगनमोहन रेड्डी से लेकर येदुरप्पा तक जो सार्वजनिकजीवन में बहुत धार्मिक पूजापाठ वाले, मंदिरों में करोड़ों का सोना चढाने वाले अपराधीहोते हैं और जेल भी जाते हैं. इसका कारण यह है कि धर्म यह शिक्षा देता है कि तुमकितना भी पाप करो परन्तु उनसे मुक्ति मिल जायेगी यदि ये पूजा कर लो, गंगा नहा लो,तीर्थ कर लो, दान दे दो आदि आदि. कितना ही बड़ा अपराध क्यों न किया हो सभी का प्रायश्चित्तसंभव है. केदारनाथ में वो तीर्थयात्री जो जलप्रलय से बच गए वो लाशों पर से गहने औररुपये लूटते पाए गए.
कैसे कह सकते हैं कि धर्म नैतिकता लाता है! मैंने तो उस स्थान पर उन लोगों को जादानैतिक पाया है जहाँ धर्म का प्रभाव नहीं है और लोगों को ईश्वरीय सत्ता में कोईविश्वास या आस्था नहीं है. प्रमाण हमारे आपके सभी के सामने है और हम खुद इसे अनुभवकर सकते हैं, परन्तु उनका कुछ नहीं किया जा सकता जो इस सच्चाई को समझना ही न चाहतेहों. बात वही है जो सोया हो उसे तो आप जगा सकते हो परन्तु उसे कैसे जगाओगे जो केवलसोने का अभिनय कर रहा हो, और ये तो हम सभी जानते ही हैं कि धर्म से बड़ा नाटक और कहींभी नहीं है. सच्ची बात तो ये है कि चोरी न करना
, इमानदारी और प्रेम से रहना और झूठ न बोलने जैसी नैतिकशिक्षाओं के लिए किसी भी धर्म की जरुरत नहीं है और इसके अलावा धर्म में जो बाकीबचा वो तो हम आप सभी जानते हैं कि निरा पाखण्ड ही है.
                                                                                       

Friday, 16 October 2015

आरक्षण खत्‍म करना राजनीतिकरण का हिस्‍सा

कुछ बडे समाचार पत्रों मे आरक्षण को लेकर हो रही बहस में कहीं आरक्षण काे बचाने का मुददा नहीं दिखाई दे रहा है बल्कि आरक्षण खत्‍म करने का मुददा दिखाइ दे रहा है और बडे-बडे नामी-ग्रमी लेखक बडे-बडें समाचार पत्रों के लिए लिख रहें हैें कि आरक्षण बंद होंना चाहिए । मुझे तो लगता है आरक्षण की जगह उन्‍हें ब्ंद होना चााहिए जो अरक्षण विरोधी बीजेपी का साथ दे रहे हैं जो अपनी बडी हेंडिगों में आरक्षण को मिटाने की बात कहने से भी गूरेज नहीे कर रहे है लगता यों है कि ये लेखक कहीं न कहीें बीजेपी के चटे बटे हैं जो बीजेपी के कहने पर आरक्षण मिटाने की बात कर रहें है लेकिन इन्‍हें शायद निम्‍न जाति वालों कि परिस्थितियों के बारे में पता नही क्‍यों कि ये कभी गांव देहात मे नहीं गए इन्‍हें अपने बडे-बडे आलीशान बंगलों में बैठ कर आरक्षण की बात करने के पैसे मिल रहे हैं जो आरक्षण की बात को लेकर इतनी चिंतित है जितने कभी न हुए होंगे
लेकिन इन्‍हें निम्‍न जाति वालों को मिल रहे आरक्षण को देख बहुत जलन हो रही है इन्‍हें शायद ये तक पता नहीं कि आज भी गांव देहात में 70 प्रतिशत लोग निम्‍न वर्ग से हैं जिन्‍हें आज भी अपने मंदिरों, घरों और पास तक नहीं बैठने दिया जाता है और शिक्षा लेने की बात तो दूर तक दिखाई ही नहीं देती आज भी 30 प्रतिशत लेाग 70 प्रतिशत लोगों पर काबिज है फिर भी उन्‍हीं की तरफदारी आज की मीडिया और सरकार कर रही है आरक्षण्‍ा हटाने की बात कह कर ।
वो नौकरियों में आरक्षण की बात कहते है लेकिन आरक्षित नौकरियों आरक्षित बर्ग को नहीं मिलती बल्कि उनकी नौकरियों पर उच्‍च वर्ग कुडली मार लेता है क्‍योंकि अधिकतर ऑफिस और संस्‍थाओं मे उंच्‍ची पोस्‍टों पर उंच वर्ग के लोग काबिज है जो अपने आगे आरक्षित वर्ग की श्रेणी से आये व्‍यक्ति को काम नहीं करने देते और उसका निरंतर दमन करते है जो बहुत निदनीय है यदि ऐसे में आरक्षण खत्‍म कर दिया जाए तो जो निम्‍न बर्ग के लोग है उन्‍हें नाैकरी तो दूर उन्‍हें उच्‍च्‍ा वर्ग , उंच्‍च शिक्षा के काबिल भी नहीं समझेगा औरर इतिहास फिर दाेबारा दोहराया जायेगो जो कभी महात्‍मा फूले और डा भीम राव अम्‍बेडकर ने मिटाने की कोशिश की थाी आरक्षण खत्‍म होतेे ही वहीं दिन फिर से लौट आयेंगे जो कभी निम्‍न वर्ग के लोगों ने भुगते थे ।

सविंधान सभा में आरक्षण पर, डॉ. अम्बेडकर का जबाब..

आज हम बात कर रहे है, भारतीय प्रारूप संविधान कि धारा 10 है, जिसमें कि अनुसूचित जाति, जनजाति को नौकरियो में आरक्षण का प्रावधान है ।
       आरक्षण की इस लडाई में जब भारत के संविधान का निर्माण हो रहा था, तब सभा में एक वोट की कमी से आरक्षण प्रस्ताव पारित नही हो सका, तब डां. अम्बेडकर के सामने एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई कि, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति को आरक्षण कैसे दिया जाए । इस कानूनी लडाई को जीतने के लिए उन्होने नये ढंग से इसकी शुरूआत की ।
       इसके लिए उन्होने अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति शब्द के स्थान पर पिछडा वर्ग शब्द का उपयोग किया, जिसका अनेक सदस्‍यों ने विरोध किया । इस आरक्षण का प्रावधान करने में कई उपसमितिया बनाई गई, जिसमें एक सलाहकार समिति भी थी ।
       संविधान सभा में आरक्षण पर बहस में शामिल होते हुए प्रोफेसर के.टी. शाह ने कहा की नौकरिया में यदि आरक्षण नही होगा, तो भर्ती करने वाले अफसर अपने इच्छानुसार पक्षपात करेगा, ऐसी स्थिति में अफसर योग्यता नही देखता है । वह केवल स्वार्थ देखता है ।
       श्री चन्द्रिकाराम ने कहा कि सदस्यगण आप सभी जानते है कि आरक्षण का मुदा सलाहकार कमेटी में विचार किया गया था, किन्तु वह एक वोट की कमी के कारण रद्द हो गया, अन्यथा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान कानूनी बाध्यता के अन्तर्गत आ जाता, सेठ दामोदर स्वरूप के विरोध पर उन्होने कहा की, वह चाहते है कि जनसंख्या के सभी समुदायो का प्रतिनिधित्व होना चाहिए, वही इस धारा में पिछडा वर्ग की भलाई के प्रावधान पर क्यो आपत्ति कर रहे है । श्री मुन्नीस्वामी पिछले ने कहा की अनुसूचित जाति लोगो का मामला साम्प्रदायिकता के आधार पर नही देखा जाना चाहिए ।
       श्री सान्तनू कुमार दास ने कहा की अनुसूचित जाति के लोग परीक्षा में बैठते है, उनका नाम सूची मे आ जाता है, लेकिन जब पदों पर नियुक्ति का समय आता है, तो उनकी नियुक्ति नही होती है, उन्होने कहा कि ऐसा इसलिए होता है कि, उच्चवर्ग के लोग जो नियुक्त होते है, उनकी जबर्दस्त सिफारिश होती है, जो उनकी नियुक्ति में सहायक होती है, ऐसी स्थिति में लोक सेवा आयोग का बना रहने का हमारे लिए अर्थ नही है ।
       सेठ दामोदर स्वरूप जो कि समाजवादी थे, उन्होने आरक्षण का बहुत विरोध किया, और कहा है कि, पिछडे वर्ग के लिए सेवाओं में आरक्षण का अर्थ दक्षता और अच्छी सरकार को नकारना है । उन्होने यह भी कहा कि इसे लोक सेवा आयोग के फैसले पर छोड देना चाहिए ।
       श्री एच.जे. खाण्डेकर ने कहा कि अनुसूचित जाति के लोग अच्छी योग्यता होने के बावजूद नियुक्ति के अच्छे अवसर नही पाते है और उनके साथ जातिगत आधार पर भेदभाव किया जाता है ।
       अन्त मे बहस पर जवाब देते हुए डॉ. अम्बेडकर ने कहा की मेरे मित्र श्री टी.टी. कृष्णामाचारी ने, प्रारूप समिति पर ताना मारा है कि, सम्भवतः प्रारूप समिति अपने कुछ सदस्यो का स्वार्थ देखती रही है, इसलिए संविधान बनाने के बजाए, वकीलों के वैभव की कोई चीज बना दी है । वास्तव में, श्री टी.टी. कृष्णामाचारी से पूछना चाहूंगा कि, क्या वे उदाहरण देकर बता सकते है कि, दुनिया के संविधानो मे से कौनसा संविधान वकीलो के लिए वैभव की बात नही रहा है, विशेष रूप से मै, उनसे पूछता हूं कि, अमेरिका, कनाडा और अन्य देशों के संविधान की रखी विशाल रिपोर्ट मे से मुझको कोई उदाहरण दे ।
       डॉं. अम्बेडकर ने धारा 10 की उपधारा (3) में बैकवर्ड शब्द का प्रयोग पर कहा कि, इसके आयात, महत्व व अनिवार्यता को समझने के लिए, मै, इसे कुछ सामान्य बातो से शुरूआत करूंगा, ताकि सदस्यगण समझ सके । प्रथम सभी नागरिको के लिए सेवा के समान अवसर होने चाहिए, प्रत्येक व्यक्ति जो निश्चित पद के योग्य है, उसको आवेदन पत्र देने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, जिससे यह तय हो कि, वह किसी पद के योग्य है या नही । जहा तक सरकारी नौकरियो का सम्बन्ध है, सभी नागरिक यदि वे योग्य है, तो उनको समानता के स्तर पर रखा जाना चाहिए ।
       दूसरा दृष्टिकोण है, जो हम रखते है, मै जोर देकर कहता हूं, कि यह एक अच्छा सिद्धान्त है कि, अवसर की समानता होनी चाहिए, उसी समय यह भी, प्रावधान होना चाहिए, कि कुछ समुदायो को शासन मे स्थान देना है, जिनको अब तक प्रशासन से बाहर रखा गया है । जैसा मैने प्रारूप समिति के तीनो विचारो को सामने रखकर सूत्र तैयार किया है । प्रथम सबको अवसर उपलब्ध होंगे, इसका उन निश्चित समुदायो के लिए आरक्षण होगा जिनको प्रशासन मे अब तक उचित स्थान नहीं मिला है । उदाहरण के लिए किसी समुदाय का आरक्षण कुछ पदो का 70 प्रतिशत कर दिया जाए और 30 प्रतिशत गेर आरक्षित छोड दिया जाए क्या कोई कह सकता है कि, सामान्य प्रतियोगिता के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण है । ऐसी स्थिति में यह पहले सिद्धान्त समान अवसर होगे के दृष्टिकोण से उचित नही है । इसलिए जो पद आरक्षित होने है, यदि धारा 10 उपधारा (1) के साथ आरक्षण को मजबूत रखना है तो उसकी सीमा अल्पसंख्यक होनी चाहिए ।
       यदि आदरणीय सदस्य यह समझते है कि, दो बातो को सुरक्षित रखना, सबको अवसर की समानता का सिद्धान्त और साथ ही उन समुदायो की मांग, की राज्य मे भी उचित प्रतिनिधित्व देना, पूरी करने के लिए, मुझे विश्वास है कि, जब तक आप बैकवर्ड की तरह उचित शब्द प्रयोग नही करते, तब आरक्षण का प्रावधान, नियम को खा जाएगा । नियम में से कुछ नही बचेगा ।
       मेरा विचार है कि, मै यह कह सकता हूं कि, यह न्याय पक्ष का समर्थन है, कि प्रारूप समिति ने बैकवर्ड शब्द को रखने की जिम्मेदारी, मैने अपने कन्धो पर ली थी, मै स्वीकार करता हूँ कि, संविधान सभा ने मूलरूप में जो मौलिक अधिकार पारित किए है, उनमें यह नही है, मै समझता हॅूं कि, बैकवर्ड शब्द रखने का समर्थन न्याय पक्ष से काफी है ।
       धारा 10 संशोधन पारित होकर संविधान का भाग बन गया, जिसका नतिजा आज सरकारी नौकरियो में दलित आदिवासियो, पिछडो का प्रतिनिधित्व विद्यमान है और देश विकास की और अग्रसर है, यह है डॉं. अम्बेडकर की महानता ।
       इतनी सारी विभिन्नता जाति, रंग, वेशभूषा, भाषा, खान-पान, होने के बावजूद भी आज, भारत का अस्तित्व इस दुनिया में अखण्ड रूप से विद्यमान है, तो मूल से भारतीय संविधान की लोकतांत्रिक, सेकुलरिज्म, प्रतिनिधित्व के भावना के कारण, जो इस देश को एक जुट बनाये रखती है । यह किसी चमत्कार से कम नही ह ै। जो डॉ. अम्बेडकर की इस देश को अनमोल भेट है और यही उनकी विरासत है । जय भीम
                                                साभार -रैगर जटिया समाज सेवा संस्था, पाली (राज.)

राजनीत में सब जायज है

राजनीत में सब जायज माना जाता है आरोप प्रत्‍यारोप के सफल तीर भी चलते है , रस्‍सा कसी के पल भी होते है , गिरेवान पकड कर धमकाना और धमकी से बस न चले तो अंधेरे में खडे होकर गुंडो से पीटवाना और बाद में कह देना कि ये तो विपक्ष ने किया है ।
     एक दूसरे पर घिनौने आरोप प्रत्‍यारोप , राजनीति में आम आदमी को मुहरा बना कर जाति वादी के माप दंडों को समाज मे डेगूं की बीमारी की तरह तेजी से फैलाना और फिर कहना कि ये तो हमें नीचा दिखाने की विपक्ष की चाल है
      आदम आदमी को फाईलों के चक्‍कर में उलझााकर सालों साल दर दर की ठाेकरें खिलाना और छोटे कर्मचारियों से पेैसे वसूल करा कर बडे अधिकार को देना और उनसे अपना हिस्‍सा मांग कर, फिर उसी अधिकारी को वो काम करने के लिए कहना यदि वो अधिकारी फसता है तो उसे डरा धमका के अपना पला झडना अगर अधिकारी न डरे तो उसे मौत के घाट उतरवाकर उसके घर वालों को  कुछ राशि देकर उन्‍हें पालने का प्रलोभन भर देना और यदि वो न माने इस राशि से तो उन की भरी बाजार अपने गुडों से कहकर बेज्‍जती कराना
        इन सब बातों के लिए आज की राजनीति जानी जाती है जो अपने सगों को भी नही बकसती नहीं हैं और उसके लिए उनको उसका कत्‍ल ही क्‍यों न कराना पडे । ये है  राजनीति आज की जिसको जनता पंसद ही नहीं करती ।
    क्‍योंकि राजनीत कुछ गंदे नेताओं न गंदी कर दी है जो अपने राजनीति के कैरियर को चलाने के लिए इन सब हत्‍थ कंडों को अपनाते हुए हिचकते भीनहीं है और बेकौफ अपने काम को अंजाम देते है जैसे वो ही इस देश के कर्णधार हो गए हों ।

भारतीय एकता और अंखण्डहता के लिए राजनितीकरण दुखद,

जो राष्टहहित की बातें करते है वहीं आज राष्ट  में शांति को भंग करने की राजनैतिक बिसातें बिछा रहें है जो भारतीय जनमानस के साथ इसे खेल समझकर खेल रहें हैं वो शायद ये नहीं जानते की जो चिंगारी देता है वही सबसे पहले उस चिंगारी से प्रभावित होता है इसके उपरांत भी राजनैतिक बिसातें बिछाना चाह रहें और जो भारतीय समाज और भारतीय एकता और अंखण्डहता के लिए दुखद है लेकिन सबसे बडा दखद कारण है हमारे अपने लोग, जो राजनैतिक लाभ पाने को लिए हम हिन्दूस्तानियों को सौहार्द्र से दूर रख, अपनी झोली में रानैतिक लाभ लेना चाहतें हैं जिनमें बडे-बडे नामीग्रामी लोग और नेता भी एकछत्र , इस सौहार्द्र को छिन-भिन्न करना चाहतें हैं जिसमें वो कुछ हद तक सफल भी हो गए हैं लेकिन जनमानस इन बातों को समझता है और आज का युवा शिक्षित है वो नहीं चाहता की हमारी संस्क ति,  सौहार्द्र , भाई चारा मात्र चाटुकारिता के लिए टूट जाऐं जिसमें लाभ कम और हानि अधिक होगी ।
      इसलिए जो हमारी अखंडता और भाई चारें में दरार डालना चाहते है शायद यह उन्हें नहीं पता की भारतीय समाज उनकी इन नीच और गिरी हुइ बिसतों को जानता है और स्वंय ही तुम लोगों का स्वामी है । फिर भी तुम राजनैतिक रोटियां सेकने से बाज नहीं आ रहे ।
       इन सब में हम मीडिया वाले भी चाटुकारिता से बाज  नहीं आना चाहते, फिर भी हमें समझना होगा ही हम भारतीय राजनिती के चौथे स्तंरभ है जो अशोक स्त भ के समान भारतीय समाज में माना जाता है इसलिए हम चाटुकारिता न कर सत्य का पक्ष समाज के सामने रखें नाकि नेताओं की चाटुकारिताओं का पक्ष ।
जनमत को न उकसाओ नहीं तो सैलाब आ जायेंगा ,
चाटुकारिता से कुछ हासिल न होगा ।
हाथों में दंराति और बैंत आ जाऐगा ,
खंड-खंड बंट जायेंगा मेरा हिन्दुेस्तानन ,
जिसकी शान में आंतक का फरमान आ जाऐगा ,
जनमत को न उकसाओ नहीं तो सैलाब आ जाएगा
सोहन सिंह-

Friday, 18 September 2015

आज भी कई राज्‍यों में लोग RTI के महत्‍व को नहीं जानते

देश के कई राज्‍यों में घोटालों की जांच होती है कि  नहीं, उसका ब्यौरा 10 वर्ष पहले किसी के पास नहीं होता था लेकिन जब से आरटीआई एक्ट 2005 संपूर्ण देश में लागू हुआ है तब से कई बड़े -बड़े घोटालों का परदाफाश हुआ है जिनमें कई घोटाले बाजों को सज्जा व जुर्माना हुआ लेकिन कुछ ऐसे प्रदेश भी हैं जहां लोगों के बीच आरटीआई की कोई पहचान नहीं है। वहां लोग सरकारी व्यवस्था के अधीन होकर, जैसा वो कहते हैं वैसा ही वो मान लेते है न उन्होने किसी सरकारी कार्य भार की तयशुदा स्किमों से लेना-देना होता है न ही किसी सरकारी
कार्य भार की उपयुक्त जानकारी से ।
जिसमें होता  ये है सरकारी बाबू अपने काम से जी चुराते है जो काम 2 दिन का होता है उसमें 10 दिन व्यस्तता के दिखाते है और नए प्रौजेट की भी खबर को आम जनमानस तक नहीं पंहुचाते जिससे आम जनमानस को पता ही नहीं होता कि हमारे क्षे़त्र में हो रहे कार्य केे लिए सरकार ने कितनी रकम मुहैया कराई है, कितनी रकम का खर्च हमारे क्षेत्र में है और कितनी रकम बची हैं जो अब भी हमारे सरकारी खजाने में संगठित है उसका उपयोग संबंधित कार्यालय कहां करेगा, कैसे करेगा, और कब करेगा , करेगा भी तो वह संबंधित कार्यालय उस काम को कब तक पूर्ण करेगा जिसमें रकम का भार है ।
कुछ ऐसे ही प्रष्नों का उत्तर आरटीआई एक्ट 2005 से सर्वसमाज में सर्वजनिक होते हैं जिनको जानने का अघिकार भारत के हर प्रदेश, शहर, क्षेत्र और वहां रहने व बसने वाले हर नागरिक को है जो भारत में रहता है लेकिन कुछ राज्य आज भी ऐसे हैं जहां लोगों को आरटीआई का मतलब पता नहीं है वहां सरकारी तंत्र की भरपूर मनमानी के चलते पिछडे हुए हैं जो भारत जैसे विकासषील देष की सूरत को बिगाडते हैं जिनको जानना लोकतंत्र में अहम है आरटीआई लोकतंत्र का ऐसा हत्यार है जो कभी भी खाली नहीं जाता । इसे जन-जन तक पंहुचाने की जरूरत है जो कई नाट्य संस्थान नुकड नाटकों से देष के कौने-कौने में प्रचार कर रहे हैं

Thursday, 17 September 2015

भारत के विभिन्‍न खडों में विभिन्‍न-विभिन्‍न प्रकार की जलवायु

भारत के विभिन्‍न खडों में विभिन्‍न-विभिन्‍न प्रकार की जलवायु पायी जाती है जो अगल-अलग प्रकार की फसल के लिए अच्‍छी होती है  आईये आज हम उन भारत के उन खडों की जलवायु का परिचय आपको बताते है जो शायद ही अापको पता हो --

हिमालय खण्ड
इस खण्ड में जम्मू-कश्मीरहिमाचल प्रदेशकुमायूंहिमालय एवं पर्वतपदीय खण्डपश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग ज़िलाअसमहिमाचल प्रदेश एवं अरूणाचल प्रदेश सम्मिलित हैं। यहाँ वर्षा 125 से 250 सेण्टीमीटर होती है। कृषि एवं बसाव की द्रष्टि से अधिकांश पर्वतीय क्षेत्र नगण्य महत्व के हैं। प्रदेश के 7 प्रतिशत भाग पर कृषि की जाती है। गेहूँमक्का, वकहीटचावलआलू आदि मुख्य फ़सले है। रसदार फलविशेष रूप से पैदा किये जाते हैं।
पूर्वी एवं आर्द्र तटीय खण्ड
उत्तर-पूर्वी एवं मध्य प्राय:द्वीपीय पठारमणिपुरमिजोरमखासी, गारो, जयन्तियामिकिर पहाडि़याँ, उत्तरी कछारनागालैण्ड से लेकर मध्यवर्ती मध्य प्रदेश तक इस खण्ड की इकाइयाँ हैं। इसमे गंगा का डेल्टा, असम का मैदानी भाग एवं सम्पूर्ण तटीय भाग सम्मिलित है। यहाँ वर्षा 100 से 125 सेण्टीमीटर होती है। फ़सलों के लिए सामान्यतः सिंचाई की आवश्यकता नहीं रहती। चावल इस खण्ड की मुख्य फ़सल है। चाय, जूट, गन्ना, गेहूँ, तिलहन, चना, गरम मसाले, नारियल, ताड़, रबड़केला, कटहल आदि अन्य फ़सलें महत्त्वपूर्ण हैं।
अर्द्ध-आर्द्र प्रदेश
इस खण्ड में ऊपरी और मध्य गंगा के मैदान, (गंगा-यमुना के दोआबतराई, दक्षिणी गंगा का मैदानउत्तर प्रदेश के पूर्वी ज़िले तथा चम्पारन ज़िला) पश्चिमी बिहार, प्राय:द्वीपीय भारत में बुंदेलखंड से लगाकर, पूर्वी तटीय प्रदेशमालवा, दक्षिण-पूर्वी महाराष्ट्र, उत्तरी तथा दक्षिणी तेलंगानाकर्नाटकतमिलनाडु, वर्धा नदी का बेसिन, ऊपरी तापी नदी की घाटी, मालनाद एवं मैदानी क्षेत्रआन्ध्र प्रदेश का अधिकांश तट,कृष्णा-गोदावरी का डेल्टा, तमिलनाडु तट आदि इकाइयाँ इसमें सम्मिलित की गयी हैं। यहाँ वर्षा 75 से 100 सेण्टीमीटर होती है। सिंचाई की सुविधा मिल जाने पर कृषि क्षेत्र का तेजी से विस्तार होने लगता है। तटीय भागों एवं गंगा के मैदान में 70 प्रतिशत भूमि पर कृषि की जाती है।गन्नाचावलगेहूँजूटमक्कामूंगफलीकपासतिलहन एवं तम्बाकू यहाँ की मुख्य फ़सलें है।
शुष्क खण्ड
इस खण्ड के अन्तर्गत पंजाब और हरियाणा का मैदान ,पश्चिमी उत्तर प्रदेशराजस्थान का मरुस्थल, गुजरात का सौराष्ट्र एवं कच्छ प्रायद्वीप, पश्चिमी घाट का पूर्वी वृष्टिछाया का संकरा प्रदेश (नर्मदा-तापी का दोआब, ऊपरी गोदावरीतुंगभद्रा, भीमा एवं कृष्णा नदियों के बेसीन और रॉयल-सीमा के पठार) सम्मिलित है। यहाँ पर वर्षा 75 सेण्टीमीटर से कम होती है। प्रायः सर्वत्र ही जल का अभाव रहता है। केवल सिंचित भागों मे ही दो फ़सलें सम्भव हैं। अतः यहाँ ज्वारबाजरा, मोटे अनाजचनातिलहन एवं जल मिलने पर गेहूँ, कपास, मूंगफली, मक्का, मटर, मसाले, दालें आदि मुख्यतः पैदा किए जाते हैं।

जलवायु की दृष्टि से भारत के प्रदेश ----

शीतोष्ण हिमालय प्रदेश

इस प्रदेश को दो उप-विभागों में विभाजित किया गया है- (क) पूर्वी हिमालय प्रदेश, जिसके अन्तर्गत अरुणाचल प्रदेश का पहाड़ी भाग, ऊपरीअसम, सिक्किम और भूटान सम्मिलित हैं। यहाँ 250 सेण्टीमीटर से अधिक वर्षा होने से सघन वन पाये जाते हैं। यहाँ मुख्यतः चाय  चावलपैदा किये जाते हैं। (ब) पश्चिमी हिमाचल प्रदेश, इसके अन्तर्गत कुमायूं, गढ़वाल, शिमला की पहाडि़याँ, जम्मू-कश्मीर एवं हिमालय प्रदेश शामिल है। यहाँ की जलवयु प्रायः अर्धशुष्क है। उत्तरी भागों में सर्दियों में वर्षा अथवा हिमपात होता है। यहाँ पर सेब, नाशपाती, चेरी, शफ्तालू, बादाम, अंगूर आदि फल विशेष रूप से पैदा किये जाते हैं। आलू, मक्का और चावल अन्य फ़सलें हैं। भेंड़, बकरी पालन यहाँ का मुख्य अथवा सहायक व्यवसाय है। इससे ऊन तथा मांस प्राप्त होता है। शहद प्राप्ति हेतु मधुमक्खी पालन भी किया जाता है। अब यहाँ विकसित एवं सिंचित कृषि की जाती है।

उत्तरी शुष्क अथवा गेहूँ प्रदेश

इस प्रदेश में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरी गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान एवं मध्य प्रदेश सम्मिलित हैं। यहाँ वर्षा 75 से.मी. से कम होती है। मरुस्थलीय भागों में वर्षा 20 से.मी. से भी कम होती है। मिट्टी मे बालू एवं कांप विशेष रूप से पायी जाती हैं। सभी स्थानों पर सिंचाई की सहायता से गेहूँ  चावल पैदा किया जाता है। यह भारत का प्रमुख गेहूँ प्रदेश है। कपास, जौ, चना, मक्का, ज्वार-बाजरा अन्य सहायक फ़सलें हैं। घोड़े, ऊँट, भेड़-बकरियां एवं गाय-बैल यहाँ के प्रमुख पशु हैं। यहाँ उत्तम नस्ल की गाय, बैल, मुर्रा नस्ल की भैंसें, घोड़े एवं भेड़ें पाली जाती हैं। भूसा हरी चरी तथा उन्नत पशु आहार दुधारू पशुओं को खिलाया जाता है।

पूर्वी तर अथवा चावल प्रदेश

इसके अन्तर्गत असम, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तराखण्ड, पूर्वी आन्ध्र प्रदेश, पूर्वी तमिलनाडु पूर्वी मध्य प्रदेश मुख्यतः आते हैं। यहाँ पर वर्षा 150 से.मी. अथवा इससे अधिक होती है। कांप मिट्टी अधिक पायी जाती है। यहाँ की मुख्य फ़सल धान है। अन्य फ़सलों में गन्ना, जूट एवं चाय स्थानीय रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण है। चारे के अन्तर्गत बहुत ही कम क्षे़त्र है। अत: यहाँ के पशु जैसे- भैंसे आदि निकृष्ट श्रेणी के होते हैं।

पश्चिमी तर अथवा मालावार प्रदेश

मुम्बई से कन्याकुमारी तक यह मेखला पायी जाती है। केरल, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र के तटीय भागों में वर्षा 250 से.मी. अथवा इससे अधिक होती है। यहाँ अधिकांशतः लैटेराइट मिट्टी पायी जाती है। यहाँ पर बागानी फ़सलें अधिक पैदा की जाती हैं, जिनमें नारियल, काजू, कहवा,चाय, अन्नानास, टेपियोक, सुपारी, गरम मसाले तथा रबड़ आदि मुख्य हैं। चावल यहाँ का मुख्य खाद्यान्न है।

मोटे अनाज वाला प्रदेश

इस प्रदेश के अन्तर्गत दक्षिणी उत्तर प्रदेश, दक्षिणी गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश, पूर्वी महाराष्ट्र तथा अधिकांश कर्नाटक सम्मिलित है। यहाँ वर्षा 50 से.मी. से 75 से.मी. ही होती है, क्योकि यह प्रदेश अधिकांशतः वृष्टि छाया क्षेत्रों में आते हैं। यहाँ लावा की काली मिट्टी, लैटेराइट, कहीं-कहीं कांप मिट्टी पायी जाती है। यहाँ मुख्यत: कपास, मूंगफली, चावल, गन्ना, ज्वार, बाजरा, रागी, रेंडी दालें आदि विशेष रूप से पैदा की जाती हैं। इस प्रदेश में भेड़ें अधिक पायी जाती हैं। इनसे मिलने वाली ऊन प्रायः घटिया किस्म की होती है। अब शहतूत की सहायता से रेशम की फार्मिंग का भी विकास हो रहा है।
इस वर्गीकरण को भौगोलिक पर्यावरण, स्थानीय संसाधन स्वरूप, जनसमस्या प्रारूप एवं कृषि रचित गवेषणा की दृष्टि से विशेष मान्यता नहीं मिल सकी। क्योंकि मात्र वर्षा तथा तापमान और उसके भूमि से रासायनिक सम्बन्ध को ही मोटे तौर पर ध्यान में रखा गया है। जबकिभारत जैसे विशाल देश एवं बृहत सांस्कृतिक समस्या वाले अतिप्राचीन कृषि प्रधान देश के लिए ऐसा उचित नहीं है। अत: ऐसा वर्गीकरण अधूरा एवं अनपेक्षित भी है।
जलवायु और क्षेत्र की दृष्टि से फसलों का विभाजन 


चावल प्रधान क्षेत्र
इस क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र की घाटी, पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पूर्वी मध्य प्रदेशछत्तीसगढ़उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश तथा समुद्र तटीय भाग आदि सम्मिलित हैं, परन्तु मिट्टी तथा वर्षा की मात्रा मे विभिन्नता के कारण इसमें अनेक फ़सलों का संयोग दिखाई पड़ता है, जिसमें निम्नलिखित प्रमुख हैं-
धान-जूट क्षेत्र - यह क्षेत्र पश्चिम बंगाल से उड़ीसा तक प्रसारित है, जहाँ का औसततापमान 24° तथा औसत वार्षिक वर्षा 120 से.मी. से अधिक है। इस क्षेत्र में कृषिकृत भूमि के 80 प्रतिशत में चावल की कृषि की जाती है। चावल की प्रायः दो फ़सलें उगाईं जाती हैं तथा उसकी कृषि जूट के साथ अदल-बदल कर ली जाती है। मुख्य डेल्टाई प्रदेशों में जूट की प्रधानता है। 
चावल-जूट-चाय क्षेत्र - ब्रह्मपुत्र की घाटी की भूमि एवं जलवायु तथा पश्चिम बंगाल की भूमि और जलवायु में प्रायः साम्य मिलता है, अतः चावल एवं जूट का संयोग मिलना स्वाभाविक है, लेकिन निकटवर्ती ढालों पर चाय के बागान मिलते हैं। अतः चावल-जूट-चाय मुख्य शम्य संयोग है। त्रिपुरा के पूर्वी पर्वतीय ढालों पर भी इसी प्रकार का संयोग मिलता है।
चावल-मक्का-गेहूँ-गन्ना क्षेत्र -मध्य गंगा के मैदान उत्तरी बिहार तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में पश्चिम बंगाल की अपेक्षा कम वर्षा (औसत वार्षिक वर्षा 100 से.मी.) होती है। फलतः चावल मुख्य खाद्यान्न तो है, रबी की खेती भी अच्छी होती है। रबी की फ़सलों में जौ, खरीफ की फ़सलों में मक्का और गन्ना अधिक उगाया जाता है। इधर कुछ वर्षों से जौ की कृषि कम होने लगी है तथा किसान अधिक उपज प्राप्त करने के लिए नए गेहूँ की खेती अधिक करने लगे हैं।
'चावल-गेहूँ-चना क्षेत्र - उत्तरी बिहार मैदान के दक्षिण के क्षेत्रों में भूमि ऊंची तथा पठारी है, जिसकी वजह से गन्ना तथा मक्का की कृषि कम होती है। खरीफ की फ़सलों में चावल तथा रबी की फ़सलों में चना अधिक उगाया जाता है।
चावल-तिलहन क्षेत्र - झारखण्ड, पश्चिमी उड़ीसा तथा पूर्वी मध्य प्रदेश विशेषकर छत्तीसगढ़ के पठार में वर्षा का औसत 120 से.मी. है। भूमि पठारी तथा अपेक्षाकृत कम उपजाऊ है। सिंचाई के साधनों की कमी है। अतः खरीफ मे चावल की कृषि मुख्य होती है तथा रबी की फ़सलों में तिलहन अधिक बोया जाता है। जिन क्षेत्रों में सिंचन सुविधाएँ सुलभ नहीं है तथा भूमि का ढाल अधिक है, ज्वार, बाजरा तथा अन्य मोटे अनाज उगाये जाते हैं। झारखण्ड के पठारी भागों में चावल, तिलहन, मक्का तथा मोटे अनाजों का संयोग प्रायः देखने को मिलता है। पर चावल, तिलहन की खेती देखने का संयोग इस सम्पूर्ण प्रदेश में पाया जाता है।
चावल-तम्बाकू क्षेत्र - गोदावरी एवं कृष्णा के डेल्टा तथा आस-पास के क्षेत्रों में चावल मुख्य फ़सल है, पर तम्बाकू के उत्पादन में भी इस क्षेत्र की विशेषता है। इसमें गुन्टूर, पश्चिमी गोदावरी, पूर्वी गोदावरी जनपद तथा आस-पास के क्षेत्र शामिल हैं।
चावल-मूंगफली क्षेत्र - इन फ़सलों का संयोग तमिलनाडु तट पर अर्काटतिरुचिरापल्ली, पुडुचेरी में वर्षा की अधिकता तथा भूमि की उपयुक्तता के कारण मिलता है।
चावल-कपास क्षेत्र - पूर्वी समुद्र तट के धुर दक्षिणी भाग में चावल के साथ कपास का संयोग भूमि की विशेषता के कारण देखने को मिलता है।
चावल-मसाला क्षेत्र - दक्षिण-पश्चिमी समुद्र तट, जिसके अंतर्गत केरल का लगभग सम्पूर्ण समुद्र तट सम्मिलित हैनारियल के उत्पादन में अपना विशेष स्थान रखता है। चावल मुख्य खाद्यान्न है तथा मसाले भी अधिक उत्पन्न होते होते हैं।
चावल-ज्वार-बाजरा-तिलहन क्षेत्र - कर्नाटक के पठारी भागों में जलवृष्टि अधिक होने के कारण चावल की कृषि की प्रधानता है। ज्वार,बाजरा का भी उत्पादन होता है। तिलहन इस क्षेत्र की विशेषता है।
चावल-रागी क्षेत्र - पश्चिमी समुद्र तटीय भागों में उत्तर प्रदेश में दादरा से प्रारम्भ होकर दक्षिण में केरल की सीमा तक चावल की एक संकरी पेटी मिलती है, जहाँ चावल की मुख्य फ़सल है। अन्य फ़सलों में रागी महत्त्वपूर्ण है।
चावल-कपास-तम्बाकू क्षेत्र - गुजरात में खम्भात की खाड़ी के क्षेत्र में वर्षा की प्रचुरता के कारण खरीफ की फ़सलों में चावल मुख्यतः उगाया जाता है। काली मिट्टी के क्षेत्र में कपास तथा तम्बाकू विशेष रूप से उत्पादित की जाती है। अतः इस क्षेत्र में इन तीनों फ़सलों का मुख्य संयोग दिखाई पड़ता है।
गेहूँ प्रधान क्षेत्र
इस क्षेत्र के अन्तर्गत ऊपरी गंगा तथा सतलुज के मैदान, दक्षिण-पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा पूर्वी राजस्थान के क्षेत्र सम्मिलित हैं। अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा इसका विस्तार कम है। भारत में गेहूँ का उत्पादन सिंचाई द्वारा किया जाता है। पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में नहरों तथा नलकूपों द्वारा सिंचित क्षेत्र में गेहूँ की कृषि अधिक होती है। पश्चिमी मध्य प्रदेश में काली मिट्टी के मिश्रण के कारण नमीं बनी रहती है, जिससे सिंचाई बिना ही काम चल जाता है। पर चम्बल आदि नदी घाटी परियोजनाओं द्वारा अब सिंचाई के साधनों में वृद्धि हो गई है। लेकिन सम्पूर्ण गेहूँ प्रधान क्षेत्रों की भौगोलिक परिस्थितियाँ समान नहीं हैं। फलतः यहाँ निम्नांकित शस्य-संयोजन क्षेत्र मिलते हैं, मिलते है
गेहूँ-चावल-गन्ना क्षेत्र - इस क्षेत्र में ऊपरी गंगा के मैदान का दाब क्षेत्ररूहेलखण्ड तथाअवध के मैदान सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र का औसत तापमान 26° तथा वार्षिक वर्षा 100 से.मी. से कम है, लेकिन नहरों और नलकूपों द्वारा सिंचाई का अच्छा प्रबन्ध हैं। अतः गेहूँ मुख्य खाद्यान्नों में है। सिंचाई और उर्वरक के बल पर साधारण रूप में खरीफ में चावल तथा उन्हीं खेती में रबी में गेहूँ उत्पन्न किया जाता है। गन्ना मुख्य मुद्रादायिनी फ़सल है, जो इस क्षेत्र में सर्वत्र उगायी जाती है। अवध के मैदान में चना भी काफ़ी उत्पन्न होता है।
गेहू-चना-मक्का-धान-कपास क्षेत्र - पंजाब के मैदानी भाग में सिंचाई की सुविधा के कारण यह देश का एक प्रधान गेहूँ उत्पादक क्षेत्र हो गया है। चावल, मक्का तथा गन्ना की भी उत्तम खेती होती है। यह भारत का एक प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्र भी है।
गेहूँ-ज्वार-बाजरा-मक्का-चना क्षेत्र - इस क्षेत्र में यमुना के उत्तर प्रदेश का पठारी भाग तथा मध्य प्रदेश का उत्तरी पठारी भाग सम्मिलित है, जहाँ सिंचाई की सुविधा बहुत कम है। कुछ विशेष स्थलों पर नदियों की घाटियों में ही सिंचाई का प्रबन्ध हो सका है। अतः वर्षा ऋतु में ही कृषि विशेष रूप से की जाती है, जिसमें ज्वार, बाजरा, मक्का आदि बोई जाती हैं। रबी की फ़सलों में सिंचाई की सुविधा के मुख्य क्षेत्रों में गेहूँ की कृषि की जाती है। कुछ क्षेत्रों में चना उत्पादित किया जाता है, जिसके लिये अपेक्षाकृत कम सिंचाई की आवश्यकता होती है।
गेहूँ-चना-तिलहन-ज्वार-बाजरा क्षेत्र - इस क्षेत्र में मध्य प्रदेश का पश्चिमी भाग (चम्बल तथा सोन के बीच का क्षेत्र) पड़ता है, जहाँ की भूमि ऊंची-नीची एवं पहाड़ी है। सिंचन सुविधा कुछ विशेष स्थलों पर ही सीमित है। नदियों की घाटी तथा मैदानी भाग में गेहूँ की अच्छी फ़सल होती है। कुछ स्थलों पर ज्वार-बाजरा बोया जाता है। तिलहन तथा चना की भी कृषि की जाती है।
ज्वार-बाजरा क्षेत्र
यह क्षेत्र उत्तर में पंजाब की दक्षिणी सीमा से लेकर तमिलनाडु तक विस्तृत है। इसमें राजस्थानगुजरातमहाराष्ट्रकर्नाटक, तमिलनाडु राज्य तथा उनसे संलग्न प्रदेश सम्मिलित हैं, भूमि तथा वर्षा की विषमता के कारण यहाँ निम्नांकित शम्य-संयोग मिलता है-
ज्वार-बाजरा-गेहूँ-तिलहन-चना क्षेत्र - यह क्षेत्र देश का सबसे अधिक शुष्क प्रदेश है। यहाँ 40 सेमी से कम वर्षा प्राप्त होती है तथा बलुई मिट्टी पाई जाती है। फलतः ज्वार, बाजरा मुख्य फ़सलें हैं। सिंचित क्षेत्र में गेहूँ उत्पन्न किया जाता है। सरसों (तिलहन) तथा चना की भी कृषि की जाती है।
ज्वार-बाजरा-मूंगफली-कपास क्षेत्र - यह क्षेत्र गुजरात के पश्चिमी भाग (काठियावाड़) में प्रसरित है, जहाँ वार्षिक वर्षा लगभग 100 से.मी. प्राप्त होती है। भूमि कुछ बलुई है तथा लावा के भग्नावशेष भी मिलते हैं, अतः यहाँ का भौगोलिक परिवेश पूर्वी महाराष्ट्र से मिलता-जुलता है। ज्वार, बाजरा, मूंगफली तथा कपास यहाँ की मुख्य फ़सलें हैं। मूंगफली की कृषि के लिए यह क्षेत्र विशेष महत्व रखता है।
बाजरा-गेहूँ-कपास-मूगफली क्षेत्र - इन फ़सलों का संयोग काली मिट्टी के प्रदेश के पश्चिमी भाग, पश्चिमी महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक के पठारी भाग में मिलता है। बाजरा एवं गेहूँ मुख्य खाद्यान्न हैं। कपास एवं मूंगफली मुद्रादायिनी फ़सलें हैं। तम्बाकू भी इस क्षेत्र में अधिक उत्पादित होती है।
ज्वार-बाजरा-मूंगफली-कपास क्षेत्र - इस क्षेत्र में महाराष्ट्र तथा कर्नाटक के पूर्वी भाग तथाआन्ध्र प्रदेश के पश्चिमी भाग सम्मिलित हैं। अधिकांश भाग में वर्षा की न्यूनता है, जिससे ज्वार मुख्य फ़सल है। बाजरा का द्वितीय स्थान आता है। कपास और मूंगफली मुद्रादायिनी फ़सलें हैं। भूमि अपेक्षाकृत कम उपजाऊ होने के कारण कपास की फ़सल उतनी अच्छी नहीं होती, जितनी पश्चिमी पठारी भाग में, परन्तु मूंगफली के लिये उपयुक्त वातावरण रहता है।
ज्वार-चावल-रागी-मूंगफली क्षेत्र - तमिलनाडु के दक्षिणी पठारी भागों पर भूमि कम उपजाऊ होने तथा वर्षा की न्यूनता के कारण ज्वार और रागी मुख्य खाद्यान्न हैं।
कहवा-चाय क्षेत्र - कर्नाटक के पश्चिमी भाग में वर्षा की अधिकता के कारण कहवा तथा चाय के बागान अधिक मिलते हैं।
चाय-कहवा-रबर-मसाले के क्षेत्र - केरल राज्य के पठारी भागों पर चाय एवं कहवा के अतिरिक्त यहाँ पर रबर एवं मसालों का भी अच्छा संयोग मिलता है।
चाय क्षेत्र - असम के उत्तर पूर्वी भाग में चाय के अधिकांश बागान मिलते हैं।