धार्मिक लोगों का एक सबसे बड़ा तर्क होता है कि समाज में नैतिकता बनाये रखने के लिए धर्मआवश्यक है, लेकिन यथार्थ इससे बिलकुल उल्टा है, धर्म कीउपस्तिथी समाज में अनैतिकता, अराजकता, बेईमानी और भ्रष्टाचार को सुनिश्चित करतीहै.
भारत से अधिक धार्मिक तथा ईश्वर की अवधारणा की सहज स्वीकृति वाला और कोई दूसरा देश नहीं मिला. वैसे भी आप देख सकते हैं कि कितने ही धर्म यहाँ विकसित हुए, अधिकाँश भगवान यहीं पैदा हुए, तीर्थ तथा मंदिर हर गली में यहाँ मिल जायेंगे.धर्म और ईश्वर का नाम लेकर छोटे मोटे पंडा पुजारी से लेकर अरबों का धंधा करने वालेबड़े बड़े गुरु, बाबा और बापू यहाँ आपको अपना साम्राज्य खड़ा किये आपको मिल जायेंगे.
कृपया विचार करें कि यदि धार्मिक आस्था और ईश्वरीय शक्ति में विश्वास ही नैतिकता कीगारन्टी होता तब तो अपने देश में हर तरफ शांति, सदाचार, भाईचारा, प्रेम और ईमानदारीदिखनी चाहिए थी, परन्तु जरा देखिये कि क्या दशा है आपके उस देश की जिसकी संस्कृतिधर्म और ईश्वरीय अवधारणा से ओतप्रोत है.
भ्रष्टाचार और बेईमानी तो ऐसा लगता है जैसे खून में मिल गई हो, आप नेताओं को कोसतेहैं क्या अफसर भ्रष्टाचारी नहीं होते या फिर उद्योगपति बहुत पाकसाफ हैं, क्या आमआदमी का इस भ्रष्टाचार को बढ़ने में कोई योगदान नहीं है? घर के बाहर सफर पर निकलोतो हर क्षण आपको सावधान रहना पड़ेगा कि कोई आपका सामान न पार कर दे, भीड़भाड़ वाली जगहजाने में हमेशा ये डर बना रहता है कि कोई पॉकेट ही न मार दे. कोई बिजनिस का नामलेकर आता है और आपको यह अहसास होता है कि ये व्यक्ति केवल इस जुगाड़ में है कि कैसेआपके जेब का पैसा उसकी जेब में आ जाये. मिलावटखोरों का यह हाल है कि कोई भी चीजआपको शुद्ध नहीं मिल सकती, यहाँ तक कि बच्चों के पीये जाने वाले दूध में भी यूरियाऔर केमिकल मिलाकर सिंथैटिक दूध बनाते और बेचते हैं, जिनसे कि कैंसर समेत न जाने कितनेगंभीर रोगों से वो बच्चा प्रभावित हो सकता है. उन्हें केवल अपनी जेबें भरने से मतलबहै, कोई और मरे तो मर जाए उन्हें क्या मतलब! धर्म की ही देन है अमानवीय जातिव्यवस्था जिसने एक अच्छे भले इन्सान को अछूत बना कर इंसानों के बीच में ही नफरत केबीज बो दिये.
रात के अँधेरे में तो बाहर निकलना आपके लिए ही खतरनाक है फिर आप अपनी जवान बहन बेटीको तो निकलने ही न देंगे क्योंकि पता नहीं किस मोड़ पर कौन सा दरिंदा उसे नोचने के लिएतैयार बैठा हो. अरे बाहर की बात तो छोड़ दो लगभग रोज ही आप अख़बारों में पढ़ सकते होकि किस तरह बाप, भाई, चाचा, ससुर, और यहाँ तक कि दादा ने भी अपने ही घर की लड़कियोंऔर औरतों से अपनी हवस पूरी करी. अधिकाँश पारिवारिक मामलों को तो वहीँ के वहीँ बदनामीके डर से दबा दिया जाता है, परन्तु कभीकभार अति हो जाने पर ऐसे मामले सामने आतेहैं जैसे कि ताजा घटना में एक बाप को गिरफ्तार तब किया गया जबकि उसकी शादीशुदा बेटीके मायके आने पर उसने अपनी 4 साल की नातिन से भी बलात्कार का प्रयास किया तो बच्चीकी माँ से नहीं रहा गया और उसने अपने बाप के खिलाफ बहनों से मिलकर रिपोर्ट करी किपिछले बीस साल से मेरे बाप ने मुझ समेत मेरी पाँच बहनों से बलात्कार किया और अबमेरी बेटी से करना चाहता था, बाप ने अपना जुर्म कुबूल भी कर लिया. यहाँ एक साल कीदुधमुही बच्ची से लेकर अस्सी साल की बुढ़िया तक से बलात्कार के मामले अकसर प्रकाशमें आते हैं. एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में 93% बलात्कार परिवार अथवा निकट रिश्तेदारया परिचित के द्वारा किये जाते हैं. क्या गाँव और कस्बे, क्या शहर और महानगर एक सी ही दृष्टि है औरत केलिए, 10 से 12 साल की बच्चियों का अपहरणकरके बेच दिया जाता है,वेश्यालयोंको और वेश्यावृत्ति कराई जाती है उनसे. क्योंहोता है ऐसा? जाहिर है कि समाज में कुछ लोग ऐसे भीमौजूद हैं जो कि औरत से नहीं बच्चियों के साथ सेक्स करके अपनी हवस पूरा करना चाहतेहैं. डिमांड है तभी तो सप्लाई हो रही है, क्या लगता है आपको, जो लोग पैसा खर्च करके छोटी बच्चियोंके साथ सेक्स करते हैं,वोजब अपने आस पड़ौस या परिवार में खेलती खिलखिलाती छोटी बच्चियां देखते होंगे तो क्यायही नहीं सोचते होंगे कि कैसे इस नन्हे से फूल को मसल दें? 5 से 10 साल की बच्चियों के साथ बलात्कार कीघटनाएँ तो आमतौर पर रोज ही सुनाई देने लगी हैं, हमारा देश बाल वेश्यावृत्ति के लिएबदनाम हो चुका है.
बलात्कार भारत में सबसेतेजी के साथ बढ़ता हुआ अपराध है| 1971 से लेकर 2011 तक 40वर्षों में बलात्कार की घटनाओं में 792 % की वृद्धी हुई.कृपया विचार करें कि यदि धार्मिक आस्था और ईश्वरीय शक्ति में विश्वास ही नैतिकता कीगारन्टी होता तब तो अपने देश में हर तरफ शांति, सदाचार, भाईचारा, प्रेम और ईमानदारीदिखनी चाहिए थी, परन्तु जरा देखिये कि क्या दशा है आपके उस देश की जिसकी संस्कृतिधर्म और ईश्वरीय अवधारणा से ओतप्रोत है.
भ्रष्टाचार और बेईमानी तो ऐसा लगता है जैसे खून में मिल गई हो, आप नेताओं को कोसतेहैं क्या अफसर भ्रष्टाचारी नहीं होते या फिर उद्योगपति बहुत पाकसाफ हैं, क्या आमआदमी का इस भ्रष्टाचार को बढ़ने में कोई योगदान नहीं है? घर के बाहर सफर पर निकलोतो हर क्षण आपको सावधान रहना पड़ेगा कि कोई आपका सामान न पार कर दे, भीड़भाड़ वाली जगहजाने में हमेशा ये डर बना रहता है कि कोई पॉकेट ही न मार दे. कोई बिजनिस का नामलेकर आता है और आपको यह अहसास होता है कि ये व्यक्ति केवल इस जुगाड़ में है कि कैसेआपके जेब का पैसा उसकी जेब में आ जाये. मिलावटखोरों का यह हाल है कि कोई भी चीजआपको शुद्ध नहीं मिल सकती, यहाँ तक कि बच्चों के पीये जाने वाले दूध में भी यूरियाऔर केमिकल मिलाकर सिंथैटिक दूध बनाते और बेचते हैं, जिनसे कि कैंसर समेत न जाने कितनेगंभीर रोगों से वो बच्चा प्रभावित हो सकता है. उन्हें केवल अपनी जेबें भरने से मतलबहै, कोई और मरे तो मर जाए उन्हें क्या मतलब! धर्म की ही देन है अमानवीय जातिव्यवस्था जिसने एक अच्छे भले इन्सान को अछूत बना कर इंसानों के बीच में ही नफरत केबीज बो दिये.
रात के अँधेरे में तो बाहर निकलना आपके लिए ही खतरनाक है फिर आप अपनी जवान बहन बेटीको तो निकलने ही न देंगे क्योंकि पता नहीं किस मोड़ पर कौन सा दरिंदा उसे नोचने के लिएतैयार बैठा हो. अरे बाहर की बात तो छोड़ दो लगभग रोज ही आप अख़बारों में पढ़ सकते होकि किस तरह बाप, भाई, चाचा, ससुर, और यहाँ तक कि दादा ने भी अपने ही घर की लड़कियोंऔर औरतों से अपनी हवस पूरी करी. अधिकाँश पारिवारिक मामलों को तो वहीँ के वहीँ बदनामीके डर से दबा दिया जाता है, परन्तु कभीकभार अति हो जाने पर ऐसे मामले सामने आतेहैं जैसे कि ताजा घटना में एक बाप को गिरफ्तार तब किया गया जबकि उसकी शादीशुदा बेटीके मायके आने पर उसने अपनी 4 साल की नातिन से भी बलात्कार का प्रयास किया तो बच्चीकी माँ से नहीं रहा गया और उसने अपने बाप के खिलाफ बहनों से मिलकर रिपोर्ट करी किपिछले बीस साल से मेरे बाप ने मुझ समेत मेरी पाँच बहनों से बलात्कार किया और अबमेरी बेटी से करना चाहता था, बाप ने अपना जुर्म कुबूल भी कर लिया. यहाँ एक साल कीदुधमुही बच्ची से लेकर अस्सी साल की बुढ़िया तक से बलात्कार के मामले अकसर प्रकाशमें आते हैं. एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में 93% बलात्कार परिवार अथवा निकट रिश्तेदारया परिचित के द्वारा किये जाते हैं. क्या गाँव और कस्बे, क्या शहर और महानगर एक सी ही दृष्टि है औरत केलिए, 10 से 12 साल की बच्चियों का अपहरणकरके बेच दिया जाता है,वेश्यालयोंको और वेश्यावृत्ति कराई जाती है उनसे. क्योंहोता है ऐसा? जाहिर है कि समाज में कुछ लोग ऐसे भीमौजूद हैं जो कि औरत से नहीं बच्चियों के साथ सेक्स करके अपनी हवस पूरा करना चाहतेहैं. डिमांड है तभी तो सप्लाई हो रही है, क्या लगता है आपको, जो लोग पैसा खर्च करके छोटी बच्चियोंके साथ सेक्स करते हैं,वोजब अपने आस पड़ौस या परिवार में खेलती खिलखिलाती छोटी बच्चियां देखते होंगे तो क्यायही नहीं सोचते होंगे कि कैसे इस नन्हे से फूल को मसल दें? 5 से 10 साल की बच्चियों के साथ बलात्कार कीघटनाएँ तो आमतौर पर रोज ही सुनाई देने लगी हैं, हमारा देश बाल वेश्यावृत्ति के लिएबदनाम हो चुका है.
बताइये कहाँ है नैतिकता और चरित्र! आपके देश में पिछले दस साल में 60 लाख बच्चियोंको केवल इसलिए मार दिया गया क्योंकि वो लड़की थी. अब तो अल्ट्रासाउंड से बच्चे कालिंग गर्भ में ही मालूम पड़ जाता है परन्तु पहले तो क्या आज भी गांवों में लड़कीहोने पर खाट के पाए से दबाकर मार दी जाती है. यही वो देश है जहाँ जहाँ मन्दिरोंमें देवदासी बनाकर धर्म के नाम पर वेश्यावृत्ति होती रही. गुरु और स्वामी लोग आश्रमों और मठों में स्त्रियों के साथ बलात्कार करते हैंऔर साध्वी तथा शिष्या बनाकर सालों साल महिलाओं का शारीरिक शोषण करते हैं, ये तथाकथित साधू संत और बाबा लोग शादी नहीं करते, क्योंकि कि इनको कोई एक औरत थोड़ी न चाहिए, बल्कि पूरा हरम होना चाहिए और रोज बदल बदल के चाहिएऔर यही लोग अपने आपको ब्रह्मचारी दिखाते हैं. कितने आश्रम और मठ तो वेश्यावृत्ति के अड्डे बन चुके हैं, ये लोग अपने यहाँ आने वाले भक्तों को भी लडकियों कीसप्लाई करते हैं, यहाँ वृन्दावन के आश्रमों में तो पुलिस ने छापा मार कर वेश्याओंको भी पकड़ा था.
फ़ोर्ब्सके अनुसार, हमारा महान भारत, उन पांच देशों की सूची में आ गया है जो कि औरत के लिएखतरनाक हैं, और आपकी श्रेणी के चार पड़ौसी हैं सोमालिया, पाकिस्तान, कोंगो और अफगानिस्तान. इतिहाससाक्षी है कि आपकी महान संस्कृति में ही पति के मर जाने पर सती होने के नाम पर औरतको आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया जाता था और आज दहेज़ न मिलने पर औरत को जिन्दाजला दिया जाता है. सरकारी रिपोर्ट कहती है कि भारत में 70% महिलाएं घरोंमें मारपीट का शिकार होती है और दोगले धार्मिक लोग कहते हैं कि हमारे धर्म में तो स्त्रीकी पूजा होती है.
ऊपर से लेकर नीचे तक हर तरफ जितना दुराचार, अनाचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचार, अपराधऔर बेईमानी हमारे देश और समाज में देखने को मिलती है उतनी गन्दगी मैंने अन्य देशोंमें नहीं देखी. हाँ यह जरुर कह सकते हो आप कि पाकिस्तान, बांग्लादेश या कोंगो जैसीजगह मैं नहीं गया हूँ और न ही उनसे तुलना करने की इच्छा है. कितनी जगह तो मैंनेखुद देखा है कि लोग घरों में ताला तक नहीं लगाते. पाश्चात्य यूरोपियन देशों में मैंनेकभी नहीं देखा कि किसी सरकारी काम को कराने के लिए या पुलिस इत्यादि को किसी आमनागरिक ने एक पैसे की भी रिश्वत दी हो. आमतौर पर आदमी ईमानदार होता है और उस परविश्वास किया जा सकता है. आपकी जवान बहन बेटी सुरक्षित महसूस करते हुए अकेली, दिनहो या रात कभी भी ट्रेन में, बस में या पैदल सफर कर सकती है. और इन देशों में धर्मका प्रभाव बिलकुल नहीं या न के बराबर है. ईश्वरीय सत्ता में लोगों को न तो विश्वासहै और न ही कोई रूचि. हो सकता है कि गणनायें देखने पर आपको ऐसा लगे कि उस देश केनिवासी किसी एक धर्म (क्रिश्चियनिटी) के अनुयायी हों, तो उसका कारण यह है कि किसी फॉर्मइत्यादि के धर्म वाले खाने में वो क्रिश्चियनिटी लिख देते हैं परन्तु न तो उन्हेंकोई विश्वास है और न ही कोई आस्था. उनसे अगर पूछो आप कि कभी चर्च गए हो तो कहेंगेकि जिन्दगी में एक बार शादी के दिन गया था और कितने तो यह भी कहेंगे कि मैंने तोशादी भी कोर्ट में ही करी. मैं स्वयं कितने ही ऐसे चर्चों में लन्दन और जर्मनी मेंगया हूँ जोकि लोगों के न आने और इनकम न होने की वजह से बंद हो गए, भाड़े पर उठ गये और बिकने को तैयार हैं और कई जगह तोरेस्टोरेंट और नाईट क्लब तक खुल गए. कहने का मतलब यह है कि लोगों की धर्म और आस्तिकतामें कोई रूचि नहीं है और न ही वो इस पर अपना समय और ऊर्जा नष्ट करते हैं. तभी आपदेख लीजिये वो विकसित हैं, सम्पन्न हैं और हमसे अधिक ईमानदार भी हैं. हमेशा ही यहदेखने में आया है कि गरीब और अशिक्षित देशों, समाजों में ही धर्म और आस्तिकता काबाहुल्य होता है. उसका स्पष्ट कारण यह है कि इन लोगों को धर्म और ईश्वर के नाम पर बरगलानाआसान है.
अब जरा यह समझिये कि धर्म और अपराध का क्या रिश्ता है: असल में बुरा काम करने परभी बुरा महसूस न हो इसके लिये लोग धर्म का सहारा लेते हैं. वर्तमान में ही नहीं बल्किहम अपने बचपन से ही न जाने ऐसी कितनी सत्यकथाएँ सुनते आ रहे हैं कि फलाना डकैत बहुतबड़ा देवी भक्त होता था और अपनी लूट का 25% मंदिर में दान कर देता था, और तो और हमारेधार्मिक शहर वृन्दावन में तो ऐसी सत्यकथाएं भी प्रचलित हैं कि अपराधी पहले हीईश्वर से कान्ट्रेक्ट कर लेते थे कि यदि मुझे लूट में सफलता मिली तो आधा माल ईश्वरको अर्पित कर दुंगा और ईश्वर की कृपा से वो सफल भी होते थे. आधुनिक युग की बात करेंतो हम कितने ही भ्रष्टाचारी नेताओं जगनमोहन रेड्डी से लेकर येदुरप्पा तक जो सार्वजनिकजीवन में बहुत धार्मिक पूजापाठ वाले, मंदिरों में करोड़ों का सोना चढाने वाले अपराधीहोते हैं और जेल भी जाते हैं. इसका कारण यह है कि धर्म यह शिक्षा देता है कि तुमकितना भी पाप करो परन्तु उनसे मुक्ति मिल जायेगी यदि ये पूजा कर लो, गंगा नहा लो,तीर्थ कर लो, दान दे दो आदि आदि. कितना ही बड़ा अपराध क्यों न किया हो सभी का प्रायश्चित्तसंभव है. केदारनाथ में वो तीर्थयात्री जो जलप्रलय से बच गए वो लाशों पर से गहने औररुपये लूटते पाए गए.
कैसे कह सकते हैं कि धर्म नैतिकता लाता है! मैंने तो उस स्थान पर उन लोगों को जादानैतिक पाया है जहाँ धर्म का प्रभाव नहीं है और लोगों को ईश्वरीय सत्ता में कोईविश्वास या आस्था नहीं है. प्रमाण हमारे आपके सभी के सामने है और हम खुद इसे अनुभवकर सकते हैं, परन्तु उनका कुछ नहीं किया जा सकता जो इस सच्चाई को समझना ही न चाहतेहों. बात वही है जो सोया हो उसे तो आप जगा सकते हो परन्तु उसे कैसे जगाओगे जो केवलसोने का अभिनय कर रहा हो, और ये तो हम सभी जानते ही हैं कि धर्म से बड़ा नाटक और कहींभी नहीं है. सच्ची बात तो ये है कि चोरी न करना, इमानदारी और प्रेम से रहना और झूठ न बोलने जैसी नैतिकशिक्षाओं के लिए किसी भी धर्म की जरुरत नहीं है और इसके अलावा धर्म में जो बाकीबचा वो तो हम आप सभी जानते हैं कि निरा पाखण्ड ही है.