कार्य भार की उपयुक्त जानकारी से ।
जिसमें होता ये है सरकारी बाबू अपने काम से जी चुराते है जो काम 2 दिन का होता है उसमें 10 दिन व्यस्तता के दिखाते है और नए प्रौजेट की भी खबर को आम जनमानस तक नहीं पंहुचाते जिससे आम जनमानस को पता ही नहीं होता कि हमारे क्षे़त्र में हो रहे कार्य केे लिए सरकार ने कितनी रकम मुहैया कराई है, कितनी रकम का खर्च हमारे क्षेत्र में है और कितनी रकम बची हैं जो अब भी हमारे सरकारी खजाने में संगठित है उसका उपयोग संबंधित कार्यालय कहां करेगा, कैसे करेगा, और कब करेगा , करेगा भी तो वह संबंधित कार्यालय उस काम को कब तक पूर्ण करेगा जिसमें रकम का भार है ।
कुछ ऐसे ही प्रष्नों का उत्तर आरटीआई एक्ट 2005 से सर्वसमाज में सर्वजनिक होते हैं जिनको जानने का अघिकार भारत के हर प्रदेश, शहर, क्षेत्र और वहां रहने व बसने वाले हर नागरिक को है जो भारत में रहता है लेकिन कुछ राज्य आज भी ऐसे हैं जहां लोगों को आरटीआई का मतलब पता नहीं है वहां सरकारी तंत्र की भरपूर मनमानी के चलते पिछडे हुए हैं जो भारत जैसे विकासषील देष की सूरत को बिगाडते हैं जिनको जानना लोकतंत्र में अहम है आरटीआई लोकतंत्र का ऐसा हत्यार है जो कभी भी खाली नहीं जाता । इसे जन-जन तक पंहुचाने की जरूरत है जो कई नाट्य संस्थान नुकड नाटकों से देष के कौने-कौने में प्रचार कर रहे हैं