Saturday, 24 October 2015

धर्म और आस्‍था का नंगा नाच,

धार्मिक लोगों का एक सबसे बड़ा तर्क होता है कि समाज में नैतिकता बनाये रखने के लिए धर्मआवश्यक है, लेकिन यथार्थ इससे बिलकुल उल्टा है, धर्म कीउपस्तिथी समाज में अनैतिकता, अराजकता, बेईमानी और भ्रष्टाचार को सुनिश्चित करतीहै. 
         भारत से अधिक धार्मिक तथा ईश्वर की अवधारणा की सहज स्वीकृति वाला और कोई दूसरा देश नहीं मिला. वैसे भी आप देख सकते हैं कि कितने ही धर्म यहाँ विकसित हुए, अधिकाँश भगवान यहीं पैदा हुए, तीर्थ तथा मंदिर हर गली में यहाँ मिल जायेंगे.धर्म और ईश्वर का नाम लेकर छोटे मोटे पंडा पुजारी से लेकर अरबों का धंधा करने वालेबड़े बड़े गुरु, बाबा और बापू यहाँ आपको अपना साम्राज्य खड़ा किये आपको मिल जायेंगे.
कृपया विचार करें कि यदि धार्मिक आस्था और ईश्वरीय शक्ति में विश्वास ही नैतिकता कीगारन्टी होता तब तो अपने देश में हर तरफ शांति, सदाचार, भाईचारा, प्रेम और ईमानदारीदिखनी चाहिए थी, परन्तु जरा देखिये कि क्या दशा है आपके उस देश की जिसकी संस्कृतिधर्म और ईश्वरीय अवधारणा से ओतप्रोत है.
भ्रष्टाचार और बेईमानी तो ऐसा लगता है जैसे खून में मिल गई हो, आप नेताओं को कोसतेहैं क्या अफसर भ्रष्टाचारी नहीं होते या फिर उद्योगपति बहुत पाकसाफ हैं, क्या आमआदमी का इस भ्रष्टाचार को बढ़ने में कोई योगदान नहीं है? घर के बाहर सफर पर निकलोतो हर क्षण आपको सावधान रहना पड़ेगा कि कोई आपका सामान न पार कर दे, भीड़भाड़ वाली जगहजाने में हमेशा ये डर बना रहता है कि कोई पॉकेट ही न मार दे. कोई बिजनिस का नामलेकर आता है और आपको यह अहसास होता है कि ये व्यक्ति केवल इस जुगाड़ में है कि कैसेआपके जेब का पैसा उसकी जेब में आ जाये. मिलावटखोरों का यह हाल है कि कोई भी चीजआपको शुद्ध नहीं मिल सकती, यहाँ तक कि बच्चों के पीये जाने वाले दूध में भी यूरियाऔर केमिकल मिलाकर सिंथैटिक दूध बनाते और बेचते हैं, जिनसे कि कैंसर समेत न जाने कितनेगंभीर रोगों से वो बच्चा प्रभावित हो सकता है. उन्हें केवल अपनी जेबें भरने से मतलबहै, कोई और मरे तो मर जाए उन्हें क्या मतलब! धर्म की ही देन है अमानवीय जातिव्यवस्था जिसने एक अच्छे भले इन्सान को अछूत बना कर इंसानों के बीच में ही नफरत केबीज बो दिये.
रात के अँधेरे में तो बाहर निकलना आपके लिए ही खतरनाक है फिर आप अपनी जवान बहन बेटीको तो निकलने ही न देंगे क्योंकि पता नहीं किस मोड़ पर कौन सा दरिंदा उसे नोचने के लिएतैयार बैठा हो. अरे बाहर की बात तो छोड़ दो लगभग रोज ही आप अख़बारों में पढ़ सकते होकि किस तरह बाप, भाई, चाचा, ससुर, और यहाँ तक कि दादा ने भी अपने ही घर की लड़कियोंऔर औरतों से अपनी हवस पूरी करी. अधिकाँश पारिवारिक मामलों को तो वहीँ के वहीँ बदनामीके डर से दबा दिया जाता है, परन्तु कभीकभार अति हो जाने पर ऐसे मामले सामने आतेहैं जैसे कि ताजा घटना में एक बाप को गिरफ्तार तब किया गया जबकि उसकी शादीशुदा बेटीके मायके आने पर उसने अपनी 4 साल की नातिन से भी बलात्कार का प्रयास किया तो बच्चीकी माँ से नहीं रहा गया और उसने अपने बाप के खिलाफ बहनों से मिलकर रिपोर्ट करी किपिछले बीस साल से मेरे बाप ने मुझ समेत मेरी पाँच बहनों से बलात्कार किया और अबमेरी बेटी से करना चाहता था, बाप ने अपना जुर्म कुबूल भी कर लिया. यहाँ एक साल कीदुधमुही बच्ची से लेकर अस्सी साल की बुढ़िया तक से बलात्कार के मामले अकसर प्रकाशमें आते हैं. एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में 93% बलात्कार परिवार अथवा निकट रिश्तेदारया परिचित के द्वारा किये जाते हैं. क्या गाँव और कस्बे, क्या शहर और महानगर एक सी ही दृष्टि है औरत केलिए, 10 से 12 साल की बच्चियों का अपहरणकरके बेच दिया जाता है,वेश्यालयोंको और वेश्यावृत्ति कराई जाती है उनसे. क्योंहोता है ऐसा? जाहिर है कि समाज में कुछ लोग ऐसे भीमौजूद हैं जो कि औरत से नहीं बच्चियों के साथ सेक्स करके अपनी हवस पूरा करना चाहतेहैं. डिमांड है तभी तो सप्लाई हो रही है, क्या लगता है आपको, जो लोग पैसा खर्च करके छोटी बच्चियोंके साथ सेक्स करते हैं,वोजब अपने आस पड़ौस या परिवार में खेलती खिलखिलाती छोटी बच्चियां देखते होंगे तो क्यायही नहीं सोचते होंगे कि कैसे इस नन्हे से फूल को मसल दें? 5 से 10 साल की बच्चियों के साथ बलात्कार कीघटनाएँ तो आमतौर पर रोज ही सुनाई देने लगी हैं, हमारा देश बाल वेश्यावृत्ति के लिएबदनाम हो चुका है.
बलात्कार भारत में सबसेतेजी के साथ बढ़ता हुआ अपराध है| 1971 से लेकर 2011 तक 40वर्षों में बलात्कार की घटनाओं में 792 % की वृद्धी हुई.
बताइये कहाँ है नैतिकता और चरित्र! आपके देश में पिछले दस साल में 60 लाख बच्चियोंको केवल इसलिए मार दिया गया क्योंकि वो लड़की थी. अब तो अल्ट्रासाउंड से बच्चे कालिंग गर्भ में ही मालूम पड़ जाता है परन्तु पहले तो क्या आज भी गांवों में लड़कीहोने पर खाट के पाए से दबाकर मार दी जाती है. यही वो देश है जहाँ जहाँ मन्दिरोंमें देवदासी बनाकर धर्म के नाम पर वेश्यावृत्ति होती रही.
 गुरु और स्वामी लोग आश्रमों और मठों में स्त्रियों के साथ बलात्कार करते हैंऔर साध्वी तथा शिष्या बनाकर सालों साल महिलाओं का शारीरिक शोषण करते हैं, ये तथाकथित साधू संत और बाबा लोग शादी नहीं करते, क्योंकि कि इनको कोई एक औरत थोड़ी न चाहिए, बल्कि पूरा हरम होना चाहिए और रोज बदल बदल के चाहिएऔर यही लोग अपने आपको ब्रह्मचारी दिखाते हैं. कितने आश्रम और मठ तो वेश्यावृत्ति के अड्डे बन चुके हैं, ये लोग अपने यहाँ आने वाले भक्तों को भी लडकियों कीसप्लाई करते हैं, यहाँ वृन्दावन के आश्रमों में तो पुलिस ने छापा मार कर वेश्याओंको भी पकड़ा था.
फ़ोर्ब्सके अनुसार, हमारा महान भारत, उन पांच देशों की सूची में आ गया है जो कि औरत के लिएखतरनाक हैं, और आपकी श्रेणी के चार पड़ौसी हैं सोमालिया, पाकिस्तान, कोंगो और अफगानिस्तान. इतिहाससाक्षी है कि आपकी महान संस्कृति में ही पति के मर जाने पर सती होने के नाम पर औरतको आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया जाता था और आज दहेज़ न मिलने पर औरत को जिन्दाजला दिया जाता है. सरकारी रिपोर्ट कहती है कि भारत में 70% महिलाएं घरोंमें मारपीट का शिकार होती है और दोगले धार्मिक लोग कहते हैं कि हमारे धर्म में तो स्त्रीकी पूजा होती है.
ऊपर से लेकर नीचे तक हर तरफ जितना दुराचार, अनाचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचार, अपराधऔर बेईमानी हमारे देश और समाज में देखने को मिलती है उतनी गन्दगी मैंने अन्य देशोंमें नहीं देखी. हाँ यह जरुर कह सकते हो आप कि पाकिस्तान, बांग्लादेश या कोंगो जैसीजगह मैं नहीं गया हूँ और न ही उनसे तुलना करने की इच्छा है. कितनी जगह तो मैंनेखुद देखा है कि लोग घरों में ताला तक नहीं लगाते. पाश्चात्य यूरोपियन देशों में मैंनेकभी नहीं देखा कि किसी सरकारी काम को कराने के लिए या पुलिस इत्यादि को किसी आमनागरिक ने एक पैसे की भी रिश्वत दी हो. आमतौर पर आदमी ईमानदार होता है और उस परविश्वास किया जा सकता है. आपकी जवान बहन बेटी सुरक्षित महसूस करते हुए अकेली, दिनहो या रात कभी भी ट्रेन में, बस में या पैदल सफर कर सकती है. और इन देशों में धर्मका प्रभाव बिलकुल नहीं या न के बराबर है. ईश्वरीय सत्ता में लोगों को न तो विश्वासहै और न ही कोई रूचि. हो सकता है कि गणनायें देखने पर आपको ऐसा लगे कि उस देश केनिवासी किसी एक धर्म (क्रिश्चियनिटी) के अनुयायी हों, तो उसका कारण यह है कि किसी फॉर्मइत्यादि के धर्म वाले खाने में वो क्रिश्चियनिटी लिख देते हैं परन्तु न तो उन्हेंकोई विश्वास है और न ही कोई आस्था. उनसे अगर पूछो आप कि कभी चर्च गए हो तो कहेंगेकि जिन्दगी में एक बार शादी के दिन गया था और कितने तो यह भी कहेंगे कि मैंने तोशादी भी कोर्ट में ही करी. मैं स्वयं कितने ही ऐसे चर्चों में लन्दन और जर्मनी मेंगया हूँ जोकि लोगों के न आने और इनकम न होने की वजह से बंद हो गए
भाड़े पर उठ गये और बिकने को तैयार हैं और कई जगह तोरेस्टोरेंट और नाईट क्लब तक खुल गए. कहने का मतलब यह है कि लोगों की धर्म और आस्तिकतामें कोई रूचि नहीं है और न ही वो इस पर अपना समय और ऊर्जा नष्ट करते हैं. तभी आपदेख लीजिये वो विकसित हैं, सम्पन्न हैं और हमसे अधिक ईमानदार भी हैं. हमेशा ही यहदेखने में आया है कि गरीब और अशिक्षित देशों, समाजों में ही धर्म और आस्तिकता काबाहुल्य होता है. उसका स्पष्ट कारण यह है कि इन लोगों को धर्म और ईश्वर के नाम पर बरगलानाआसान है.
अब जरा यह समझिये कि धर्म और अपराध का क्या रिश्ता है: असल में बुरा काम करने परभी बुरा महसूस न हो इसके लिये लोग धर्म का सहारा लेते हैं. वर्तमान में ही नहीं बल्किहम अपने बचपन से ही न जाने ऐसी कितनी सत्यकथाएँ सुनते आ रहे हैं कि फलाना डकैत बहुतबड़ा देवी भक्त होता था और अपनी लूट का 25% मंदिर में दान कर देता था, और तो और हमारेधार्मिक शहर वृन्दावन में तो ऐसी सत्यकथाएं भी प्रचलित हैं कि अपराधी पहले हीईश्वर से कान्ट्रेक्ट कर लेते थे कि यदि मुझे लूट में सफलता मिली तो आधा माल ईश्वरको अर्पित कर दुंगा और ईश्वर की कृपा से वो सफल भी होते थे. आधुनिक युग की बात करेंतो हम कितने ही भ्रष्टाचारी नेताओं जगनमोहन रेड्डी से लेकर येदुरप्पा तक जो सार्वजनिकजीवन में बहुत धार्मिक पूजापाठ वाले, मंदिरों में करोड़ों का सोना चढाने वाले अपराधीहोते हैं और जेल भी जाते हैं. इसका कारण यह है कि धर्म यह शिक्षा देता है कि तुमकितना भी पाप करो परन्तु उनसे मुक्ति मिल जायेगी यदि ये पूजा कर लो, गंगा नहा लो,तीर्थ कर लो, दान दे दो आदि आदि. कितना ही बड़ा अपराध क्यों न किया हो सभी का प्रायश्चित्तसंभव है. केदारनाथ में वो तीर्थयात्री जो जलप्रलय से बच गए वो लाशों पर से गहने औररुपये लूटते पाए गए.
कैसे कह सकते हैं कि धर्म नैतिकता लाता है! मैंने तो उस स्थान पर उन लोगों को जादानैतिक पाया है जहाँ धर्म का प्रभाव नहीं है और लोगों को ईश्वरीय सत्ता में कोईविश्वास या आस्था नहीं है. प्रमाण हमारे आपके सभी के सामने है और हम खुद इसे अनुभवकर सकते हैं, परन्तु उनका कुछ नहीं किया जा सकता जो इस सच्चाई को समझना ही न चाहतेहों. बात वही है जो सोया हो उसे तो आप जगा सकते हो परन्तु उसे कैसे जगाओगे जो केवलसोने का अभिनय कर रहा हो, और ये तो हम सभी जानते ही हैं कि धर्म से बड़ा नाटक और कहींभी नहीं है. सच्ची बात तो ये है कि चोरी न करना
, इमानदारी और प्रेम से रहना और झूठ न बोलने जैसी नैतिकशिक्षाओं के लिए किसी भी धर्म की जरुरत नहीं है और इसके अलावा धर्म में जो बाकीबचा वो तो हम आप सभी जानते हैं कि निरा पाखण्ड ही है.
                                                                                       

Friday, 16 October 2015

आरक्षण खत्‍म करना राजनीतिकरण का हिस्‍सा

कुछ बडे समाचार पत्रों मे आरक्षण को लेकर हो रही बहस में कहीं आरक्षण काे बचाने का मुददा नहीं दिखाई दे रहा है बल्कि आरक्षण खत्‍म करने का मुददा दिखाइ दे रहा है और बडे-बडे नामी-ग्रमी लेखक बडे-बडें समाचार पत्रों के लिए लिख रहें हैें कि आरक्षण बंद होंना चाहिए । मुझे तो लगता है आरक्षण की जगह उन्‍हें ब्ंद होना चााहिए जो अरक्षण विरोधी बीजेपी का साथ दे रहे हैं जो अपनी बडी हेंडिगों में आरक्षण को मिटाने की बात कहने से भी गूरेज नहीे कर रहे है लगता यों है कि ये लेखक कहीं न कहीें बीजेपी के चटे बटे हैं जो बीजेपी के कहने पर आरक्षण मिटाने की बात कर रहें है लेकिन इन्‍हें शायद निम्‍न जाति वालों कि परिस्थितियों के बारे में पता नही क्‍यों कि ये कभी गांव देहात मे नहीं गए इन्‍हें अपने बडे-बडे आलीशान बंगलों में बैठ कर आरक्षण की बात करने के पैसे मिल रहे हैं जो आरक्षण की बात को लेकर इतनी चिंतित है जितने कभी न हुए होंगे
लेकिन इन्‍हें निम्‍न जाति वालों को मिल रहे आरक्षण को देख बहुत जलन हो रही है इन्‍हें शायद ये तक पता नहीं कि आज भी गांव देहात में 70 प्रतिशत लोग निम्‍न वर्ग से हैं जिन्‍हें आज भी अपने मंदिरों, घरों और पास तक नहीं बैठने दिया जाता है और शिक्षा लेने की बात तो दूर तक दिखाई ही नहीं देती आज भी 30 प्रतिशत लेाग 70 प्रतिशत लोगों पर काबिज है फिर भी उन्‍हीं की तरफदारी आज की मीडिया और सरकार कर रही है आरक्षण्‍ा हटाने की बात कह कर ।
वो नौकरियों में आरक्षण की बात कहते है लेकिन आरक्षित नौकरियों आरक्षित बर्ग को नहीं मिलती बल्कि उनकी नौकरियों पर उच्‍च वर्ग कुडली मार लेता है क्‍योंकि अधिकतर ऑफिस और संस्‍थाओं मे उंच्‍ची पोस्‍टों पर उंच वर्ग के लोग काबिज है जो अपने आगे आरक्षित वर्ग की श्रेणी से आये व्‍यक्ति को काम नहीं करने देते और उसका निरंतर दमन करते है जो बहुत निदनीय है यदि ऐसे में आरक्षण खत्‍म कर दिया जाए तो जो निम्‍न बर्ग के लोग है उन्‍हें नाैकरी तो दूर उन्‍हें उच्‍च्‍ा वर्ग , उंच्‍च शिक्षा के काबिल भी नहीं समझेगा औरर इतिहास फिर दाेबारा दोहराया जायेगो जो कभी महात्‍मा फूले और डा भीम राव अम्‍बेडकर ने मिटाने की कोशिश की थाी आरक्षण खत्‍म होतेे ही वहीं दिन फिर से लौट आयेंगे जो कभी निम्‍न वर्ग के लोगों ने भुगते थे ।

सविंधान सभा में आरक्षण पर, डॉ. अम्बेडकर का जबाब..

आज हम बात कर रहे है, भारतीय प्रारूप संविधान कि धारा 10 है, जिसमें कि अनुसूचित जाति, जनजाति को नौकरियो में आरक्षण का प्रावधान है ।
       आरक्षण की इस लडाई में जब भारत के संविधान का निर्माण हो रहा था, तब सभा में एक वोट की कमी से आरक्षण प्रस्ताव पारित नही हो सका, तब डां. अम्बेडकर के सामने एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई कि, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति को आरक्षण कैसे दिया जाए । इस कानूनी लडाई को जीतने के लिए उन्होने नये ढंग से इसकी शुरूआत की ।
       इसके लिए उन्होने अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति शब्द के स्थान पर पिछडा वर्ग शब्द का उपयोग किया, जिसका अनेक सदस्‍यों ने विरोध किया । इस आरक्षण का प्रावधान करने में कई उपसमितिया बनाई गई, जिसमें एक सलाहकार समिति भी थी ।
       संविधान सभा में आरक्षण पर बहस में शामिल होते हुए प्रोफेसर के.टी. शाह ने कहा की नौकरिया में यदि आरक्षण नही होगा, तो भर्ती करने वाले अफसर अपने इच्छानुसार पक्षपात करेगा, ऐसी स्थिति में अफसर योग्यता नही देखता है । वह केवल स्वार्थ देखता है ।
       श्री चन्द्रिकाराम ने कहा कि सदस्यगण आप सभी जानते है कि आरक्षण का मुदा सलाहकार कमेटी में विचार किया गया था, किन्तु वह एक वोट की कमी के कारण रद्द हो गया, अन्यथा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान कानूनी बाध्यता के अन्तर्गत आ जाता, सेठ दामोदर स्वरूप के विरोध पर उन्होने कहा की, वह चाहते है कि जनसंख्या के सभी समुदायो का प्रतिनिधित्व होना चाहिए, वही इस धारा में पिछडा वर्ग की भलाई के प्रावधान पर क्यो आपत्ति कर रहे है । श्री मुन्नीस्वामी पिछले ने कहा की अनुसूचित जाति लोगो का मामला साम्प्रदायिकता के आधार पर नही देखा जाना चाहिए ।
       श्री सान्तनू कुमार दास ने कहा की अनुसूचित जाति के लोग परीक्षा में बैठते है, उनका नाम सूची मे आ जाता है, लेकिन जब पदों पर नियुक्ति का समय आता है, तो उनकी नियुक्ति नही होती है, उन्होने कहा कि ऐसा इसलिए होता है कि, उच्चवर्ग के लोग जो नियुक्त होते है, उनकी जबर्दस्त सिफारिश होती है, जो उनकी नियुक्ति में सहायक होती है, ऐसी स्थिति में लोक सेवा आयोग का बना रहने का हमारे लिए अर्थ नही है ।
       सेठ दामोदर स्वरूप जो कि समाजवादी थे, उन्होने आरक्षण का बहुत विरोध किया, और कहा है कि, पिछडे वर्ग के लिए सेवाओं में आरक्षण का अर्थ दक्षता और अच्छी सरकार को नकारना है । उन्होने यह भी कहा कि इसे लोक सेवा आयोग के फैसले पर छोड देना चाहिए ।
       श्री एच.जे. खाण्डेकर ने कहा कि अनुसूचित जाति के लोग अच्छी योग्यता होने के बावजूद नियुक्ति के अच्छे अवसर नही पाते है और उनके साथ जातिगत आधार पर भेदभाव किया जाता है ।
       अन्त मे बहस पर जवाब देते हुए डॉ. अम्बेडकर ने कहा की मेरे मित्र श्री टी.टी. कृष्णामाचारी ने, प्रारूप समिति पर ताना मारा है कि, सम्भवतः प्रारूप समिति अपने कुछ सदस्यो का स्वार्थ देखती रही है, इसलिए संविधान बनाने के बजाए, वकीलों के वैभव की कोई चीज बना दी है । वास्तव में, श्री टी.टी. कृष्णामाचारी से पूछना चाहूंगा कि, क्या वे उदाहरण देकर बता सकते है कि, दुनिया के संविधानो मे से कौनसा संविधान वकीलो के लिए वैभव की बात नही रहा है, विशेष रूप से मै, उनसे पूछता हूं कि, अमेरिका, कनाडा और अन्य देशों के संविधान की रखी विशाल रिपोर्ट मे से मुझको कोई उदाहरण दे ।
       डॉं. अम्बेडकर ने धारा 10 की उपधारा (3) में बैकवर्ड शब्द का प्रयोग पर कहा कि, इसके आयात, महत्व व अनिवार्यता को समझने के लिए, मै, इसे कुछ सामान्य बातो से शुरूआत करूंगा, ताकि सदस्यगण समझ सके । प्रथम सभी नागरिको के लिए सेवा के समान अवसर होने चाहिए, प्रत्येक व्यक्ति जो निश्चित पद के योग्य है, उसको आवेदन पत्र देने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, जिससे यह तय हो कि, वह किसी पद के योग्य है या नही । जहा तक सरकारी नौकरियो का सम्बन्ध है, सभी नागरिक यदि वे योग्य है, तो उनको समानता के स्तर पर रखा जाना चाहिए ।
       दूसरा दृष्टिकोण है, जो हम रखते है, मै जोर देकर कहता हूं, कि यह एक अच्छा सिद्धान्त है कि, अवसर की समानता होनी चाहिए, उसी समय यह भी, प्रावधान होना चाहिए, कि कुछ समुदायो को शासन मे स्थान देना है, जिनको अब तक प्रशासन से बाहर रखा गया है । जैसा मैने प्रारूप समिति के तीनो विचारो को सामने रखकर सूत्र तैयार किया है । प्रथम सबको अवसर उपलब्ध होंगे, इसका उन निश्चित समुदायो के लिए आरक्षण होगा जिनको प्रशासन मे अब तक उचित स्थान नहीं मिला है । उदाहरण के लिए किसी समुदाय का आरक्षण कुछ पदो का 70 प्रतिशत कर दिया जाए और 30 प्रतिशत गेर आरक्षित छोड दिया जाए क्या कोई कह सकता है कि, सामान्य प्रतियोगिता के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण है । ऐसी स्थिति में यह पहले सिद्धान्त समान अवसर होगे के दृष्टिकोण से उचित नही है । इसलिए जो पद आरक्षित होने है, यदि धारा 10 उपधारा (1) के साथ आरक्षण को मजबूत रखना है तो उसकी सीमा अल्पसंख्यक होनी चाहिए ।
       यदि आदरणीय सदस्य यह समझते है कि, दो बातो को सुरक्षित रखना, सबको अवसर की समानता का सिद्धान्त और साथ ही उन समुदायो की मांग, की राज्य मे भी उचित प्रतिनिधित्व देना, पूरी करने के लिए, मुझे विश्वास है कि, जब तक आप बैकवर्ड की तरह उचित शब्द प्रयोग नही करते, तब आरक्षण का प्रावधान, नियम को खा जाएगा । नियम में से कुछ नही बचेगा ।
       मेरा विचार है कि, मै यह कह सकता हूं कि, यह न्याय पक्ष का समर्थन है, कि प्रारूप समिति ने बैकवर्ड शब्द को रखने की जिम्मेदारी, मैने अपने कन्धो पर ली थी, मै स्वीकार करता हूँ कि, संविधान सभा ने मूलरूप में जो मौलिक अधिकार पारित किए है, उनमें यह नही है, मै समझता हॅूं कि, बैकवर्ड शब्द रखने का समर्थन न्याय पक्ष से काफी है ।
       धारा 10 संशोधन पारित होकर संविधान का भाग बन गया, जिसका नतिजा आज सरकारी नौकरियो में दलित आदिवासियो, पिछडो का प्रतिनिधित्व विद्यमान है और देश विकास की और अग्रसर है, यह है डॉं. अम्बेडकर की महानता ।
       इतनी सारी विभिन्नता जाति, रंग, वेशभूषा, भाषा, खान-पान, होने के बावजूद भी आज, भारत का अस्तित्व इस दुनिया में अखण्ड रूप से विद्यमान है, तो मूल से भारतीय संविधान की लोकतांत्रिक, सेकुलरिज्म, प्रतिनिधित्व के भावना के कारण, जो इस देश को एक जुट बनाये रखती है । यह किसी चमत्कार से कम नही ह ै। जो डॉ. अम्बेडकर की इस देश को अनमोल भेट है और यही उनकी विरासत है । जय भीम
                                                साभार -रैगर जटिया समाज सेवा संस्था, पाली (राज.)

राजनीत में सब जायज है

राजनीत में सब जायज माना जाता है आरोप प्रत्‍यारोप के सफल तीर भी चलते है , रस्‍सा कसी के पल भी होते है , गिरेवान पकड कर धमकाना और धमकी से बस न चले तो अंधेरे में खडे होकर गुंडो से पीटवाना और बाद में कह देना कि ये तो विपक्ष ने किया है ।
     एक दूसरे पर घिनौने आरोप प्रत्‍यारोप , राजनीति में आम आदमी को मुहरा बना कर जाति वादी के माप दंडों को समाज मे डेगूं की बीमारी की तरह तेजी से फैलाना और फिर कहना कि ये तो हमें नीचा दिखाने की विपक्ष की चाल है
      आदम आदमी को फाईलों के चक्‍कर में उलझााकर सालों साल दर दर की ठाेकरें खिलाना और छोटे कर्मचारियों से पेैसे वसूल करा कर बडे अधिकार को देना और उनसे अपना हिस्‍सा मांग कर, फिर उसी अधिकारी को वो काम करने के लिए कहना यदि वो अधिकारी फसता है तो उसे डरा धमका के अपना पला झडना अगर अधिकारी न डरे तो उसे मौत के घाट उतरवाकर उसके घर वालों को  कुछ राशि देकर उन्‍हें पालने का प्रलोभन भर देना और यदि वो न माने इस राशि से तो उन की भरी बाजार अपने गुडों से कहकर बेज्‍जती कराना
        इन सब बातों के लिए आज की राजनीति जानी जाती है जो अपने सगों को भी नही बकसती नहीं हैं और उसके लिए उनको उसका कत्‍ल ही क्‍यों न कराना पडे । ये है  राजनीति आज की जिसको जनता पंसद ही नहीं करती ।
    क्‍योंकि राजनीत कुछ गंदे नेताओं न गंदी कर दी है जो अपने राजनीति के कैरियर को चलाने के लिए इन सब हत्‍थ कंडों को अपनाते हुए हिचकते भीनहीं है और बेकौफ अपने काम को अंजाम देते है जैसे वो ही इस देश के कर्णधार हो गए हों ।

भारतीय एकता और अंखण्डहता के लिए राजनितीकरण दुखद,

जो राष्टहहित की बातें करते है वहीं आज राष्ट  में शांति को भंग करने की राजनैतिक बिसातें बिछा रहें है जो भारतीय जनमानस के साथ इसे खेल समझकर खेल रहें हैं वो शायद ये नहीं जानते की जो चिंगारी देता है वही सबसे पहले उस चिंगारी से प्रभावित होता है इसके उपरांत भी राजनैतिक बिसातें बिछाना चाह रहें और जो भारतीय समाज और भारतीय एकता और अंखण्डहता के लिए दुखद है लेकिन सबसे बडा दखद कारण है हमारे अपने लोग, जो राजनैतिक लाभ पाने को लिए हम हिन्दूस्तानियों को सौहार्द्र से दूर रख, अपनी झोली में रानैतिक लाभ लेना चाहतें हैं जिनमें बडे-बडे नामीग्रामी लोग और नेता भी एकछत्र , इस सौहार्द्र को छिन-भिन्न करना चाहतें हैं जिसमें वो कुछ हद तक सफल भी हो गए हैं लेकिन जनमानस इन बातों को समझता है और आज का युवा शिक्षित है वो नहीं चाहता की हमारी संस्क ति,  सौहार्द्र , भाई चारा मात्र चाटुकारिता के लिए टूट जाऐं जिसमें लाभ कम और हानि अधिक होगी ।
      इसलिए जो हमारी अखंडता और भाई चारें में दरार डालना चाहते है शायद यह उन्हें नहीं पता की भारतीय समाज उनकी इन नीच और गिरी हुइ बिसतों को जानता है और स्वंय ही तुम लोगों का स्वामी है । फिर भी तुम राजनैतिक रोटियां सेकने से बाज नहीं आ रहे ।
       इन सब में हम मीडिया वाले भी चाटुकारिता से बाज  नहीं आना चाहते, फिर भी हमें समझना होगा ही हम भारतीय राजनिती के चौथे स्तंरभ है जो अशोक स्त भ के समान भारतीय समाज में माना जाता है इसलिए हम चाटुकारिता न कर सत्य का पक्ष समाज के सामने रखें नाकि नेताओं की चाटुकारिताओं का पक्ष ।
जनमत को न उकसाओ नहीं तो सैलाब आ जायेंगा ,
चाटुकारिता से कुछ हासिल न होगा ।
हाथों में दंराति और बैंत आ जाऐगा ,
खंड-खंड बंट जायेंगा मेरा हिन्दुेस्तानन ,
जिसकी शान में आंतक का फरमान आ जाऐगा ,
जनमत को न उकसाओ नहीं तो सैलाब आ जाएगा
सोहन सिंह-