Wednesday, 29 November 2017

बाजार और वस्तु मूल्यः- एक नजर उपभोक्ता की


क्या है बाजार ?
बाजार वह व्यवस्था जहां वस्तु को खरीदा व बेचा जाता है और उपभोक्ता और निर्माता में सीधा संवाद स्थापित करके बाजारी अर्थव्यवस्था को सुचारू बनाया जाता है जहां पर उवभोक्ता को भगवान माना जाता है और उसकी उपयोगी हर वस्तु को वहां पर उसके लिए रखा जाता है जिसे वह क्रय करना चाहता है जिससे निर्माता और उपभोक्ता मे सीधे तौर पर व्यवहार बनाता है जिसके फलस्वरूप उपभोक्ता की संतुष्टि को ध्यान में रख कर वस्तु को क्रय किया जाता है।
बाजार विभाजन
बाजार में उपभोक्ताओं की एक सामान मांग रखने वाले समूह को विभाजित करने की प्रक्रिया को बाजार विभाजन कहते है आसान शब्दों में कहें तो उपभोक्ताओं की मांगो के अनुसार किये गए विभाजन को बाजार विभाजन कहा जाता है जिसके अंतगर्त उपभोक्ता को अपनी मांग के अनुसार बाजार से वस्तु का क्रय करके संतुष्ठि प्राप्त होती हैं।
अलग- अलग कार्यक्लापों में बंटा उपभोक्ता बाजार
भौगोलिक दृष्टि से देखें तो बाजार निर्माता, बाजार को अपनी इच्छा अनुसार विभाजित कर सकता है जिसमें राष्ट्र ,राज्य, देश ,शहर और मौसम आदि सम्मिलित हो सकते हैं। भौगोलिक विभाजन, जनसंख्या और भौगोलिक दृष्टि दोनों की सूचना रखता जिसके कारण वह कंपनी की रुपरेखा अच्छी कर सकें। उदाहरण के तौर पर बारिश के मौसम में निर्माता बारिश से बचने के लिए छाता बेचता है और सर्दी के मौसम में ऊनी कपड़े बेचता है जिसकारण से वह किसी भी मौसम में अपनी पकड़ बाजार में बनाए रखता है चाहे वह सर्दी हो या गर्मी हो वह दोनों मौसमों के हिसाब से वस्तु को बेचता है। हर राज्य का रहन सहन अलग होता है इसलिए उत्पादक को उपभोक्ता की रूचि और राज्य की भौगोलिक दृष्टि को समझते हुए और उनकी जरुरतों को नजर में रखते हुए ही वस्तु को बेचना चाहिए।
उनके कुछ इस प्रकार के भौगोलिक दृष्टिकोण हैं
देश- भारत, श्री लंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, अमेरिका, यूरोप, चीन इत्यादि।                  
प्रदेश क्षेत्र- उतर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम                                                
शहर के आकार- बड़ा शहर (जनसंख्या चालीस लाख से भी ज्यादा), मध्यम शहर (दस लाख से ज्यादा पर 40 लाख से कम), छोटा शहर (पाँच लाख से ज्यादा )                                          
घनत्व- शहर, गावँ, उपनगर                                                          
जलवायु- उतरी, दक्षिणी
जनसंख्या के आधार पर विभाजन 
बाजार का विभाजन जनसंख्या के आधार पर किया जा सकता है जिसमें उम्र, पेशा, पढ़ाई, लिंग आदि, महत्व रखते हैं जिसके लिए हमारे देश से उच्च उदाहरण किसी और देश का नहीं हो सकता क्योंकि हमारा देश युवाओं का देश कहलाता है जिसमें औसतन उम्र 16 से 60 के बीच की ही पाई जाती हैं जिसके कारण बाजार का विभाजन भी 16 से 60 के युवा ग्राहकों के समूह को मद्दे नजर रख कर ही किया जाता है ताकि उत्पादक अपने उत्पादों को ज्यादा से ज्यादा मात्रा में जनमानस तक पहुंचा सकें।

जिनको हम कुछ निम्न श्रेणियों में बांट सकते हैं जो इस प्रकार हैंः-
उम्र- 6 वर्ष से नीचे, 6 से 11 वर्ष, 12 से 19 वर्ष, 20 से 34 वर्ष, 35 से 49 वर्ष, 50 से 64 वर्ष और 65 वर्ष से ऊपर।
लिंग- पुरुष, स्त्री
परिवार के सदस्य- एक से दो, तीन से चार, या पाँच से अधिक।
परिवार जीवन चक्र- जवान, अकेला, शादीशुदा, शादीशुदा पर कोई बच्चे नहीं, शादीशुदा और बच्चे इत्यादि।
आमदनी- वंचित रहने वाले (90,000 रुपये से कम),चाहत रखने वाले (90,000 से 2 लाख) जिज्ञासा रखने वाले (21 लाख से 91 लाख) भारत से बाहर रहने वाले (10 लाख से ऊपर)
मनोविज्ञान विभाजन 
उपभोक्ता  की सोच पर निर्भर करने वाले विभाजन को मनोविज्ञान विभाजन कहा जा सकता है जिसमें उपभोक्ता की पसंद ना पसंद एक दूसरे से अलग होती है जिसके रहते बाजार में ग्राहक अपनी पसंद की वस्तु को ही क्रय करता है जो सही मायने में उपभोक्ता की रूचि वाली होती है और एक ही समय में दो उपभोक्ता एक समान वस्तु का क्रय नहीं करते बल्कि दो अलग-अलग वस्तु का क्रय एक ही समय में अपनी रूचि के हिसाब से करते हैं जिनमें खाने की वस्तु से लेकर पहनने के कपड़े तक हो सकते हैं जो उनकी मनो स्थिति को स्पष्ट करते हैं कि वह किस वस्तु को अपने लिए अच्छा समझते हैं और किसको छोड़ देते हैं जिससे उपभोक्ता की मनोस्थिति का पता विक्रेता को हो जाता है और उसकी रूचि की वस्तु को बाजार में भारी मात्रा में उपलब्ध करता है और मुनाफा कमाता है।
व्यवहार/ उपयोग वर्गीकरण - बाजार का वर्गीकरण इस आधार पर किया जा सकता है कि उपभोक्ता किसी उत्पाद विशेष का उपयोग कितनी बार या कितनी भारी मात्रा में करते हैं। जिससे उसका व्यवहार और उसके द्वारा उपयोग की गई वस्तु का वर्गीकरण किया जा सकता है। जिनको हम निम्न श्रेणी में बांट सकते हैं जो इस प्रकार हैः-
अवसर- नियमित अवसर, खास अवसर, अवकाश अवसर, ऋतुनिष्ट अवसर।
लाभ- गुण, सेवा, किफायती, सुविधा, गति इत्यादि।
प्रयोगकर्ता दर- कम प्रयोगकर्ता, मध्य प्रयोगकर्ता, मजबूत प्रयोगकर्ता।
प्रयोगकर्ता स्तर- कोई प्रयोगकर्ता नहीं,पुरानेप्रयोगकर्ता,सामर्थ्य प्रयोगकर्ता।
वफादारी स्तर- कुछ भी नहीं,माध्यम स्तर,मजबूत स्तर और पूर्णतया।
ज्ञात स्तर- बेखबर,अवगत,सूचित,रूचि रखनेवाले,इच्छा करनेवाले,खरीदने का इरादा रखनेवाले।
उत्पाद की ओर रवैया- उत्साहयुक्त,सकारात्मक,नकारात्मक,जैसे तैसे, शत्रुतापूर्ण।

लाभ से विभाजन 
उपभोक्ता या ग्राहकों के लाभ के अनुसार भी विभाजन किया जा सकता है, उपभोक्ता की वजह से ही व्यापारी बाजार में अपना गुजारा कर रहे है अगर ग्राहकों को लाभ नहीं होता तो वो विभाजन ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाता कंपनियां ग्राहकों को सिर्फ कम दाम पर उत्पाद देकर ही नहीं बल्कि उन्हें ग्राहकों के घर तक पहुंचाकर भी उससे लाभ कमा सकती हंै।
सांस्कृतिक विभाजन 
ग्राहकों को उनकी सांस्कृति में विभाजित करना ही सांस्कृतिक विभाजन कहलाता है, सांस्कृति एक विरासत के तौर पर कार्य करती है जिससे उपभोक्ता का लगाव जुड़ा होता है जिसके चलते उसके व्यवहार का पता लगाया जा सकता है, जब निर्माता को ग्राहकों की सांस्कृतिक सोच और लगाव को परख लेता है तो वह उसी हिसाब और उसकी रूचि को ध्यान में रख कर बाजार को सजाता है उदाहरण के लिए दिपावली के अवसर पर उपभोक्ता को सजावट और मिठाईयों की खरीदारी ही करनी होता है तो निर्माता बाजार में उसी त्यौहार के हिसाब से समान रखता है जिससे उपभोक्ता को वह संतुष्ट कर सके और अपनी बाजार में पेंठ भी कायम कर सके  और वह अपना उत्पादन जारी कर रख सकता है संस्कृति विभाजन से निर्माता अपना संदेश उपभोक्ता तक उन तक सही से पहुँचाने में सफल रहता हैं।
बाजार विभाजन के लाभ,
जब निर्माता लाभ कमाने को बाजार मे उतरता है तो उसे बाजार में उपभोक्ता की रूचि के हिसाब से बाजार में वस्तुएं रखनी होती है वस्तुओ की मांग कितनी और कहाँ पर उसे विक्रय करना है का पता रहता है तो निर्माता उस हिसाब से अपनी विनिर्माण की विधि बदल देता है और जिन वस्तुओ की उपभोक्ता को मांग हैं वह सिर्फ उन्हीं वस्तुओं को बाजार में स्थान देगा जिससे की उसे ज्यादा लाभ हो सके और उपभोक्ता को उसकी रूचि के हिसाब से वस्तु मिल सके ।
विशेषज्ञता 
विशेषज्ञता से तात्पर्य यह कि  निर्माता जब बाजार में उतरता है तो वह अपनी विनिर्माण वस्तुओ की मांगो के हिसाब से उन्हें भारी मात्रा में खरीदता है या बनाता है/बनवाता है जिसमें वह उच्चलाभ के लिए वस्तुओं में नई तकनीकी का इस्तेमाल करके उनकी खूबियों को बढ़ा देता है जिससे होता यह है कि उपभोक्ता उसी वस्तु को खरीदता है जो और से अलग दिखती है। यदि हम किफायती निर्माता कि बात करें तो वह विभाजित समूह के ग्राहकों की मांगो के अनुसार ही उत्पाद करता है जिससे वह  वस्तुओं को किफायती दाम में बना सकता है इससे उपभोक्तो  को कम लागत में अच्छी वस्तुऐं क्रय करने को मिल जाती है। ज्यादा लाभ कमाने के लिए निर्माता मांगो के अनुसार अपनी वस्तुओ का उत्पादन करता है तो वो अन्य खर्चे बचा पाता है और उस बचत को किसी और उपयोग में लाता हैं जिससे उसे और अधिक लाभ प्राप्त होता है जिसमें उसकी समझ और उसकी विशेषज्ञता का भी पता लगता है कि निर्मात बाजार मांग को लेकर क्या सोचता है।
संसाधनों का उपभोक्ता को नजर में बनाए रख कर किया गया उपयोग
बाजार में निर्माता संसाधनों को उपभोक्ता की रूचि के हिसाब से उन वस्तुओ की मांगो का उत्पादन करता है जिसके लिए वह  कच्चा माल भी उसी  हिसाब से खरीदता है, क्योंकि कच्चा माल उपभोक्ता की रूचि को ध्यान में रखकर खरीदा जाता है जिससे उपभोक्ता की मांग को पूरा किया जा सके और निर्माता का उसके सामान और उपभोक्ता की रूचि बाजार में बनी रहे जिससे की निर्माता उस कच्चे माल को उसकी सर्वश्रेष्ठ श्रेणी का उपयोग कर सकेे ।
लक्ष्य निर्धारण
लक्ष्य निर्धारण का सीधे तौर पर आशय है कि उपभोक्ता को केन्द्र बिन्दू में रखा जाए जिससे की बाजार विभाजन का सही तरीके से निर्धारण किया जाए तब बाजार को उत्पाद के जरूरत के अनुसार बांट दिया जाता है उसके तद्उपरान्त ही लक्षित किया जाता है इसी प्रक्रिया को ही लक्ष्य निर्धारण कहा जाता है दसरे शब्दों में कहें तो  विभाजित समूह के ग्राहकों को एक या एक से अधिक क्षत्रों के खंडो में आकर्षण और मूल्यांकन से दर्ज करने की विधि को लक्ष्य निर्धारण कहा जाता है।
उपभोक्ता के लिए बाजार के विभाजन
1. बाजार का आकार
निम्न बातों को ध्यान में रखें तो बाजार का आकार भी उपभोक्ताओं के लिए बहुत ही आवश्यक होता है जिससे उपभोक्ता और निर्माता दोनों ही प्रभावित होते हैं जो स्वाभाविक भी है क्योंकि किसी बाजार की भव्यता और उपभोक्ताओं की उपस्थिति उसके आकार के माध्यम से ही मापी जाती है कि बाजार कितना फल सकता है और कितना उपभोक्ता को संतुष्ट कर सकता है जिसमें उसकी आवश्यकता के हिसाब से कितने वस्तुओं को निर्मात विक्रय के लिए रखता है जिससे की बाजार का आर्कषण उपभोक्ता के निगाहों में बना रहता है जोकि बाजार की उपलब्धि स्पष्ट दिखाता है।
2. विकास दर में बाजार 
बाजार में उसके विकास की खासी अहमियत होती है क्योंकि बाजार की विकास दर ही उपभोक्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करती है यदि बाजार की विकास दर सही नहीं है तो निर्माता परेशान रहता है जिससे होता यह कि वह उपभोक्ता की संतुष्टि के हिसाब से वस्तुओं का क्रय नहीं कर पाता जो एक हिसाब से नाहि उपभोक्ता के लिए सही है और नहीं ही निर्माता के लिए ही सही है इसलिए बाजार की विकास दर का मानक उपभोक्ता को ही माना जाता है यदि बाजार सुचारू रूप से अपनी विकास दर पर चल रहा है तो बाजार के खर्चे में कमी आएगी जिससे की उसकी विकास दर बढ़ेगी। जिसका सीधा लाभा उपभोक्ता और निर्माता को ही होगा।
3. बाजार में प्रतियोगिता
बाजार की प्रतियोगिता उसकी कार्य शैली को दर्शती है जिसमें निर्माता लाभ प्राप्त करने हेतु अपनी रणनितियों को एक निरंतर समय पर बदलता रहता है जिससे की उसको लाभ हो और उसके द्वारा उपभोक्ता को भी लाभ हो लेकिन इस में अपवाद की गुंजाईश भी अधिक हो जाती है जिसमें प्रतियोगिता के लिए निर्माता आपस में भिड़ जाते है जिनका लाभ उपभोक्ता को ही होता है ।
4. वर्तमान में उपभोक्ता की बाजार में उपलब्ध अच्छे समान के प्रति वफादारी
वर्तमान समय में बाजारों के अंतर्गत उपभोक्ता अच्छे समान के लिए भटकता है उसे अच्छा और उच्च गुणवता वाला समान उपलब्ध हो जाता है तो उसको वह ब्रांड किसी भी कीमत में चाहिए होता है जिसके लिए वह अच्छी किमत भी देने को तैयार हो जाता है जिसमें निर्माता का खर्च कम हो जाता है और समान को की उच्चता बढ़ जाती है और उपभोक्ता की वफारदारी भी उस समाने के लिए बढ़ जाती है जिससे बाजार में समान की वेल्यू बढ़ जाती है।
लक्ष्यों निर्धारण के साथ बाजार के नैतिक विकल्प 
बाजार हमारे समाज की बहुत बड़ी और विचारशील व्यवस्था है जिसके अतंगर्त नैतिक विकल्प का भी दायरा होना सुनिश्चित है जिसके माध्यम से लक्ष्य चयन होना अनिवार्य होना चाहिए इसमें कोई भी अनुचित साधन नहीं अपनाना चाहिए जिससे की समाज को नुकसान हो।
उदाहरण के विज्ञापन में बच्चों से संबंधित उत्पाद में बच्चों को एक शक्तिशाली या शक्तिमान होने का दावा नहीं करना चाहिए क्योंकि कई सूरतों मंे बच्चों पर इस विज्ञापन को बुरा प्रभाव भी हो सकता है और बच्चा उसकी नकल भी उतार सकता है जो उसके लिए हानिकारक साबित हो सकता है। इसलिए विज्ञापन के लिए नैतिक विकल्प को ध्यान में रखकर ही लक्ष्य निर्धारण करना आवश्यक है।
विभाजन का परस्पर सबंध 
हर कंपनी के अपने बिक्री बल होते हैं और वो उनके लिए एक निश्चित लागत लेकर चलती है वो अपने निर्माण समाग्री में कई और उत्पादको को जोड़ने की क्षमता रखती है जिसके फलस्वरूप वह अपनी निजी निश्चित लागत को कम कर सके।
कंपनी के उद्देशय और संसाधन 

कंपनी अपने क्षेत्र में उपभोक्ताओं का ध्यान रखती है और बेहतर संसाधनों के माध्यम से उच्चतम क्वालिटी के मूल्य की उपभोक्ता को देने की कोशिश करती है जिसमें उसमें संसाधनों की कमी न मात्र होती है जिससे वह ज्यादा लाभ कमा सकती और बाजार में अपनी स्थिति भी मजबूत कर सकती है जिसके चलते उसे आगे चलकर लाभ को कमा सकती है और अपनी पकड़ कर भी बाजार पर मजबूत कर सकती है।
लक्ष्य निर्धारित बाजार की रणनीतियां
किसी भी व्यक्ति विशेष या वस्तु विशेष के लिए लक्ष्य रखना अत्यन्त आवश्यक होता है यदि हम बाजार की बात करें तो बाजार की रणनितियां मात्र लाभ को ध्यान में रख कर बनाई जाती हैं लक्ष्य भी लाभ को ध्यान में लेकर किया जाता है जिसमें बाजार को किसी एक क्षेत्र में विभाजित किया रहता है जिसमें उत्पादक हर प्रकार की वस्तु को लेकर चलता है जिससे वह उपभोक्ता को बाजार में आसानी से खींच सके और अपनी वस्तु के माध्यम से अत्याधिक लाभ ले सके जिसमें उत्पादक को किसी और क्षेत्र/बाजार/ खंड की विशेष रचना नहीं करनी होती और वह उस एक क्षेत्र के माध्यम से उपभोक्ताओं में अपनी पकड़ बना कर अपना लक्ष्य साधता है।
चयन करने की क्षमता
कंपनी अपने द्वारा निर्धारित प्रत्येक खंडो/बाजारों  में अलग से व्यापार के लिए बाजारों के प्रभाव को उपयुक्त रूप से चयन करती हैै जिससे उपयुक्त खंड या बाजार कंपनी का लक्ष्य उसकी वस्तु को उपभोग करने के लिए उपभोक्ता को अपना लक्ष्य बनातें है जिससे यह बाजार थोड़ा मंहगा होता है  क्योंकि इस क्रम में उत्पादतक को उपभोक्ता की पसंद पर काम करने का मौका नहीं मिलता जिससे की उत्पादतक को उसकी पंसद का पता नहीं रहता।
संपूर्ण बाजारी आवरण 
संपूर्ण बाजारी आवरण एक ऐसी प्रक्रिया जिसमंे हर उत्पाद के लिए अलग अलग खंड दिये होते हैं जिसमें उपभोक्ता को अपने हिसाब से जरूरतमंद चीजों को खरीदने की आजादी होती है जिसमें उपभोक्ता को एक अधिक गुणवता वाली वस्तु का चयन करने की आजादी होती है जिसमें बाजार का स्वरूप उपभोक्ता की जरूरती समानों से भरा होता है जिसे वो इस व्यवस्था के माध्यम से आसानी से प्राप्त करते हैं।
वस्तु विशेषज्ञता 
इस प्रक्रिया के अंतगर्त निर्माता बाजार में अलग अलग खंडों को विभाजित कर एक जैसा ही उत्पाद बेचते है जिसमें उत्पादक एक ही तरह की सोच विचार रखने वाले उपभोक्ताओं को अपना लक्ष्य बनाता है जिसके कारण से यह और बाजारों से सस्ता होता है।
बाजार विशेषज्ञता 
इस प्रक्रिया के अंतर्गत उपभोक्ताओं को ध्यान में न रखकर बाजार में हो रहे उत्पादन को ध्यान में रखा जाता है जिसमें अलग अलग खंड बना दिये जाते हैं और उनके माध्यम से ही उपभोक्ता को लक्ष्य किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप बाजार का स्वरूप निखरता है और हर प्रकार की वस्तु की उपलब्धता उपभोक्ता को स्वंय ही आर्कषित करती है जो बाजार को एक नई परिभाषा देती नजर आती है।
लक्षित बाजार को चयन करने की रणनीति
इस रणनीति के अंतगर्त बाजार के उस दृष्टिकोण को देखा जाता है जिसमे बाजार एक समूह के रूप में हो जिसके अंतगर्त बिना किसी विभाजन रणनिति को केवल उत्पादक इस्तमाल कर सकता है  जिसके अंतगर्त छोटा बाजार आता और उसके उत्पादक भी बहुत कम होते हैं और उपभोक्ता ज्यादा होते हैं। जिसमें की उपभोक्ता को चयन का अधिकार न मात्र ही होता है और उत्पादक अपनी मनमानी भी कर सकता है क्योंकि उपभोक्ता के पास और कोई विकल्प नहीं है।
एक लक्ष्य पर ही ध्यान केंद्रित करना 
इस लक्ष्य को ध्यान करने से तात्र्पय यह ही कि बाजार की सर्वोच्च इकाई के चयन करने पर ध्यान केंद्रित करना। जहाँ पर खरीदारी के प्रयास ही किये जाते हैं जिसमें कंपनी एक क्षेत्र या खंड को समझने में ध्यान देती है जिसमें उत्पादक सिर्फ उस एक विशेष क्षेत्र की मांगों और जरुरतो को जानने में ज्यादा ध्यान देता है जिसमें उसे अत्यधिक उपभोक्ता प्राप्त हो सकें और उनमें वह अपनी सफल रणनीतियांे से अपनी पेंठ बना सकें।
अत्याधिक क्षेत्र लक्ष्य निर्धारण
इस लक्ष्य निर्धारण का प्रयोग तब किया जाता है जब दो या दो से अधिक अच्छी कंपनियां या बाजार हों जिसमें उनके विकास के लिए अलग अलग रणनीतियां बनाई जाती है जिससे की अत्याधिक उपभोक्ताओं द्वारा लाभ लिया जा सके उन्हें उनके मुताबिक बाजार में वस्तु उपलब्ध कराई जा सके जिससे की निर्माता को लाभ हो और बाजारी पृष्ठभूमि निखरे।

बाजार की कमजोरियां
छोटी-छोटी कंपनियां अपने व्यापार को लेकर बहुत सारा पैसा खर्च करती हैं और लगातार प्राथमिक अनुसधांन कराती रहती हैं जिससे की वह जान सके कि बाजार में उपभोक्ता किस समाना के लिए ज्यादा सोचता है और किस उत्पाद को ज्यादा क्रय करता है जिसके लिए वह कंपनी अनुसंधान एजेंसी को किराए पर लेेती जिसके लिए वह लाखों रूपये खर्च कर देती है।
लक्षित बाजार उपभोक्ता को पहचानने में समय लेता है जिसके लिए उसे अनुसंधान और विश्लेषण के जैसी प्रक्रिया का सहारा लेना होता है मिले डेटा माध्यम से उपभोक्ता रूचि को समझते हुए विज्ञापन बनाता है जो अत्याधिक मंहगा होता है।
जब उत्पादकर्Ÿाा अपने उत्पाद को बाजार में उपभोक्ताओं की मांगो और जरूरतों के हिसाब से बांटता है जिसमें वह उन्ही उपभोक्ताओं को ध्यान में रखता है जो उसके उत्पाद की मांग रखते हैं जिसके लिए वह बाकि के बचे उपभोक्ताओं को नजरअंदाज कर देता है।
बाजार में चल रही छोटी-छोटी कंपनियां उस समूह को अपना लक्ष्य बनाती है जिनका संख्या बल ज्यादा हो और कम पढ़े-लिखे हों और कौन किस वस्तु को कितना पसंद कर रहा हैं और किस वस्तु को ज्यादा महत्व दे रहा है इस आधार पर उनकी सेवन की जांच करके एक सूची तैयार करती हैं जिसके माध्यम से वह उसी वस्तु को बाजार में उनके लिए उपलब्ध करा सकें।
मूल्य निर्धारण क्या है
मूल्य निर्धारण एक ऐसी प्रक्रिया है जो वस्तुओं या सेवाओं की अंतिम या अस्थायी बिक्री मूल्य निर्धारित करने और श्रेणि तैयार करने से संबंधित है। मूल्य निर्धारण किसी व्यवसाय के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य होता है। जब उत्पाद में निर्भय होकर निर्णय किए जा रहे हों तो उद्यम रणनीतिक स्तर पर निर्णय करता है कि वह उस उत्पाद के जिसे वो बाजार में उपभोक्ताओं के उतारना चाहता है मूल्य को उच्च या कम रखे। मूल्य निर्धारण की रणनीतियों का मूल्यांकन करने की इस प्रक्रिया में अक्सर व्यवसायियों को बहुत परेशानियां उठानी पड़ती हैं। जिसमें वे लाभ की आशा में कीमत बहुत कम नहीं करना चाहते जिसमें उन्हें डर रहता है कि यदि वे कीमत बहुत अधिक रखेंगे तो उपभोक्ता उनके प्रतिद्वंद्वियों के पास चले जाएंगे। एक ऐसी कीमत का निर्धारण मुश्किल हो सकता है जो कि उपभोक्ताओं और आपके लिए बिल्कुल सही रहे। लेकिन यह आपके व्यवसाय की सफलता के लिए एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली कदम है।
निर्धारण प्रक्रिया की स्थिति 
बाजार में स्पष्टता होनी चाहिए कि वस्तुए बाजार में उपस्थित उपभोक्ता को पंसद आएगी या नहीं। वस्तु के उत्पाद की विशेषता का एक मापदंड मापा होना चाहिए जिससे कि वह उत्पाद के आंतरिक विशेषता को अंकित करें जो उपभोक्ता को सुनिश्चित करे।
बाजार के अंतगर्त उपभोक्ता द्वारा खरीद को नजर में रख कर यह जानकारी एकत्रित करें कि प्रत्येक वस्तु उत्पाद पर वह क्या सोच रखते हैं उनकी पसंद क्या है़ ? इन कुछ प्रश्नों को आधार बनाकर उपभोक्ता के विचारों को जाने।
उत्पाद को उपभोक्ता तक पंहुचाने के लिए उत्पाद का स्थान निर्धारण आवश्यक है जिससे की उपभोक्ता वस्तु उपभोग के लिए उस स्थान पर आसानी से विचर सके।
विशेषता और वस्तुआंे का मिश्रण बाजार को उपभोक्ता के लिए अत्याधिक रोचक बना देता है इसलिए उत्पाद वस्तुओं की विशेषता और मिश्रण का खास ध्यान रखें जिससे उपभोक्ता को एक वस्तु के अलग अलग मिश्रण मिल सकंे।
बाजार की दृष्टि से वस्तु का मूल्य निर्धारण 
मूल्य निर्धारण का सीधा संबंध बाजार में वस्तु के उत्पादन पर निभर्र करता है कि क्या उत्पाद किया जा रहा है जिसमे कंपनी किसी वस्तु का एक मुल्य निर्धारित कर बाजार में उतार कर मुनाफा कमाती है जिसके क्रमशः तीन घटक लाभ कमाने हेतू उपयोगी सिद्ध होते हैं 1. बाजार 2. निर्माण लागत 3. प्रतियोगिता । मूल्य निर्धारण अर्थशास्त्र के नजरिये से आर्थिकी के विŸाीय माॅडलिंग का मौलिक तत्व है जो कंपनी के लिए आय पैदा करते हैं जो खरीद और बिक्री आदेशों पर कीमतें लागू करने की हस्तचालित या स्वचालित प्रक्रिया है, जो कुछ कारकों पर आधारित है 1.निश्चित राशि, 2. माल की मात्रा, 3. प्रोत्साहन या बिक्री अभियान, 4.विशिष्ट विक्रेता बोली, 5. लदान और चलान की तारीख जिसमें आदेश, संयोजन, स्वचालित प्रणाली और अनुरक्षण की आवयकता होती है जो मूल्य निर्धारण में हुई गलतियों को कम करती है जिसे उपभोक्ता तभी खरीदता है जब उत्पादक गुणवता वाला हो और जिसमें उसकी खरीद की इच्छा साफ झलकती हो और उस उत्पाद खरीदने की उसमें क्षमता मौजूद हो। यही कारण बाजार में मूल्य निर्धारण को अति महत्वपूर्ण बना देता है।
उत्पादन की क्षमता द्वारा मूल्य निर्धारण
मूल्य-निर्धारण, विचार-विमर्श ही पहला कदम है, जिसके अंतगर्त सेवा या उत्पाद के लिए क्या कीमत ली जाए यह प्रश्न उठता, जिसमें विक्रेता द्वारा यह प्रश्न अनिवार्य होता है कि ग्राहकों को विक्रेता द्वारा प्रदान किए जा रहे उत्पादों, सेवाओं और अन्य अप्रत्यक्ष चीजें उपभोक्ता के लिए क्या मूल्य रखती हैं। जिसका उत्पादन एक निश्चित मात्रा में बाजार में आया है क्या कीमत रखी जाए जिससे की उपभोक्ता उत्पाद की ओर आकर्षित हो और ज्यादा से ज्यादा लाभ उत्पन्न हो।
मूल्य-निर्धारण के कई प्रश्न जो बहुत जरूरी होते हैं
1. हम लाभ अधिकतमकरण मूल्य-निर्धारण का उपयोग करते हैं?
2. मूल्य कैसे निर्धारित किए जाए ?
3. क्या लागत-लाभ मूल्य-निर्धारण, मांग आधारित या मूल्य आधारित मूल्य-निर्धारण, प्रतिलाभ दर मूल्य-निर्धारण, या प्रतिस्पर्धी अभिसूचक है ?
4. क्या एक मूल्य-निर्धारण हो या एक से अधिक ?
5. क्या विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में कीमतें परिवर्तित होनी चाहिए, जो धरातल मूल्य-निर्धारण के रूप में संदर्भित होता हों ?
6. क्या मात्रा छूट दी जानी चाहिए ?
7. प्रतियोगियों द्वारा क्या कीमतें लगाई जा रही हैं?
8. जब आप उच्च मूल्य-निर्धारण की रणनीति का उपयोग करते हैं तो प्रवेश मूल्य-निर्धारण रणनीति क्या होगी ?
9. मूल्य द्वारा किसी छवि को उभारना चाहते हैं?
10. क्या मनोवैज्ञानिक मूल्य-निर्धारण का प्रयोग हो सकता है ?
11. ग्राहक संवेदनशीलता के लिए मूल्य स्टीकर और लोच के मुद्दे कितने महत्वपूर्ण हैं ?
12. क्या वास्तविक समय के अंतगर्त मूल्य-निर्धारण का प्रयोेग किया जा सकता ह ै?
13. क्या कीमत पक्षपात या आय प्रबंधन समुचित है ?
14. क्या उत्पाद तालिका के लिए पहले से ही मूल्य अंक मौजूद हैं ?
15. क्या खुदरा मूल्य के रख-रखाव, मूल्य सांठ-गांठ, या कीमत पक्षपात पर कानूनी प्रतिबंध मौजूद किये जाएं ?
16. क्या अंतरण मूल्य-निर्धारण का लिहाज किया जाना चाहिए ?
17. हम मूल्य निर्धारण में कितने लचीले हो सकते हैं ?
भली प्रकार से चयनित कीमत 
जितना ग्राहक भुगतान करने के लिए तैयार हैं। आर्थिक संदर्भ में, यह वही मूल्य है जो उपभोक्ता के अधिकांश अधिशेष को निर्माता को अंतरित करता है। एक अच्छा मूल्य-निर्धारण वह होगा जो एक मूल्य तल (जिसके नीचे संगठन को हानि हो सकती है) और मूल्य सीमा (मूल्य जिसके परे संगठन बिना मांग की स्थिति का अनुभव करे) के बीच संतुलन स्थापित करता है।
वस्तु कीमत क्या होनी चाहिए
इसके तीन कार्यों द्वारा कीमत चयनित की गई।
1. कंपनी के वित्तीय लक्ष्यों की प्राप्ति कितनी हो।
2. बाजार की वास्तविकताओं को उपभोक्ताओं को नजर में रखकर तय करना।
3. उत्पाद की गई वस्तु के पक्ष को व्यापार मिश्रण में अन्य उत्पादों के साथ सुसंगत किया जा सकता है।
4. कीमतें प्रयुक्त वितरण चैनल के प्रकार, प्रयुक्त प्रोत्साहनों के प्रकार और उत्पाद की गुणवत्ता से प्रभावित होती है
5. किसी विक्रय की जाने वाली वस्तु का उत्पादन महंगा हो, तो उसकी कीमत उपभोता की अपेक्षा से ऊंची होंगी और उत्पाद व्यापक विज्ञापन और प्रचार अभियानों द्वारा समर्थित होगा।
6. उत्पाद की गुणवत्ता, वितरकों द्वारा ऊर्जावान विक्रय प्रयास के लिए कम कीमत एक व्यवहार्य विकल्प हो सकता है
7. विक्रेता के पक्ष में देखें तो एक प्रभावी कीमत वह कीमत है जो अधिकतम कीमत के बहुत निकट हो।
माल का मूल्य निर्धारण
सामान्यत विभिन्न माल के संबंध में केंद्रीय उत्पाद शुल्क उसके मूल्य आधार पर होता है अर्थात शुल्क का निर्धारण उस माल के निर्धारण योग्य मूल्य के प्रतिशत के रूप में किया जाता है इसलिए यह पता लगाना महत्वपूर्ण हो जाता है कि माल के मूल्य का निर्धारण कैसे किया जाए। माल का मूल्य निर्धारण केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिनियम, 1944 के अनुसार निम्नलिखित तीन आधारों पर किया जा सकता है
1. क्रय-विक्रय मूल्य - क्रय विक्रय की प्रक्रिय मूल्य निर्धारण का आम तरीका है। अधिकतर उत्पादों में उसको बेचने के लिए कुछ शुल्क रखा जाता है जो वस्तु के वास्तविक मूल्य (कीमत) के भुगतान के रूप में जाता है तब जब इसे खरीददार को बेचा जाएगा। इसका अर्थ है कि राशि जिसमें  व्यापार के लिए  विक्रेता और क्रेता के बीच समव्यवहार में लेनदेन किया जाता है, वह उस वस्तु का निर्धारित योग्य मूल्य हो जाता है। ऐसे मामले में लेन देन मूल्य के लिए निर्धारण के प्रयोजन से कुछ अनिवार्य अपेक्षाएं पूरी की जाती हैं। यदि उपर्युक्त अपेक्षाओं में से किसी एक की पूर्ति नहीं की जाती है तो लेन देन मूल्य निर्धारणीय मूल्य नहीं होगा और ऐसे मामलें में मूल्य इस प्रयोजन के लिए अधिसूचित मूल्य निर्धारण नियमों के अंतर्गत निर्धारित किया जाएगा।
2. शुल्क मूल्य - केंद्र सरकार किसी वस्तु का शुल्क मूल्य का निर्धारण अधिसूचना के द्वारा कर सकती है। निर्धारित किए गए प्रशुल्क मूल्य पर शुल्क देय होता है।
3. खुदरा विक्रय मूल्य- केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिनियम 1944 के निबंधनों में मूल्य अधिकतम खुदरा कीमत पर आधारित होता है। यह अधिसूचित वस्तुओं के लिए प्रयोज्य है। इस संबंध में जारी अधिसूचना शुल्क की राशि के निर्धारण के लिए निर्धारणीय मूल्य के लिए अनुमत होने वाली छूट की सीमा विनिर्दिष्ट करती है। केंद्र सरकार ऐसे माल को निविर्दिष्ट कर सकती है जिनके संबंध में मूल्य छूट को घटाकर माल पर घोषित खुदरा बिक्री कीमत मानी जाएगी। ये प्रावधान उन माल के लिए प्रयोज्य है जिनके संबंध में पैकेज पर खुदरा विक्रय कीमत की घोषणा करने की आवश्यकता है। यह तोल और माप अधिनियम, 1976 या उसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अधीन आता है।
वस्तु का प्रभावी मूल्य
वस्तु के प्रभावी मूल्य के अंतगर्त कंपनी को छूट, प्रचार और अन्य प्रोत्साहन राशि के लेखांकन के बाद हासिल हुए मूल्य को ही वस्तु का प्रभावी मूल्य कहते हैं जिसमें वस्तु की छूट उसके प्रचार और उसके बेचने हेतू प्रोत्साहित धन का लेखा जोखा होता है।
वस्तु की मूल्य व्यवस्था
मूल्य व्यवस्था विक्रेता सभी उत्पाद के लिए सीमित संख्या में कीमतों का इस्तेमाल करता है। यह परंपरा पुरानी दुकानों पर शुरू की गई थी जहां हर चीज का दाम 5 या 10 सेंट होता था। इसके पीछे तर्क यह है कि ये राशियां संभावित उपभोक्तओं द्वारा उत्पादों के संपूर्ण रेंज के लिए उपयुक्त मूल्य अंकों के रूप में देखी जाती हैं। जिससे की वस्तु की स्थिति का आकलन उपभोक्ता के पक्ष में बैठे।
हानि अगुआ
एक हानि अगुआ वह उत्पाद है जिसकी कीमत उसके परिचालन मार्जिन से नीचे निर्धारित की गई होती है। जिसमें उस उत्पाद के विक्रय पर नुक्सान परिणत होता है जिसको मध्य नजर रखते हुए उत्पादक के निम्न दाम के उत्पाद उपभोक्ताओं/ग्राहकों को दुकान की ओर आकर्षित करेगा और उनमें से कुछ उपभोक्ता अन्य, उच्च मार्जिन वाली वस्तुएं खरीदेंगे।
प्रवर्तन मूल्य-निर्धारण
प्रवर्तन मूल्य-निर्धारण उस उदाहरण को संदर्भित करता है जहां मूल्य-निर्धारण विपणन मिश्रण का प्रमुख तत्व है।
मूल्य-गुणवत्ता संबंध
मूल्य-गुणवत्ता उपभोक्ताओं की उस धारणा को दिखाती हैं जिसमें वस्तु के दाम उसकी अच्छी गुणवत्ता के संकेत हैं। जिसमें विश्वास उन जटिल उत्पादों के लिए ज्यादा होता हैं जिनका परीक्षण मुश्किल है जब तक कि उनको इस्तमाल में न लाया गया हो। उत्पाद में जितनी विशिष्टताएं होंगी  उतना ही अधिक उपभोक्ता उसके मूल्य पर निर्भर रहेगा और वे अधिक मूल्य/प्रीमियम आदि का भुगतान करने के लिए तैयार रहेगा।
मांग आधारित मूल्य-निर्धारण
मांग आधारित मूल्य निर्धारण ऐसी पद्धति है जिसमें उपभोक्ता की मांग, आधारित माने गए मूल्य पर ही खरीदारी करती है। जिसका केन्द्र बिन्दु उच्च कीमत, कीमत पक्षपात और आय प्रबंधन, मूल्य अंक, मनोवैज्ञानिक मूल्य-निर्धारण, बंडल मूल्य-निर्धारण, प्रवेश मूल्य-निर्धारण, मूल्य व्यवस्था, मूल्य-आधारित मूल्य-निर्धारण, भू और प्रीमियम मूल्य-निर्धारण, मूल्य-निर्धारण आदि घटक हैं जो लागत, बाजार, प्रतियोगिता, बाजार स्थिति, उत्पाद की गुणवत्ता के मध्य नजर उसकी मांग को बढ़ाते हैं।
बहुआयामी मूल्य-निर्धारण
इस निर्धारण के अंतगर्त एक से अधिक संख्याओं के उपयोग द्वारा उत्पाद या सेवा का मूल्य-निर्धारण किया जाता है। इसकी कीमत के अंतगर्त एकल मौद्रिक राशि शामिल नहीं होती। बल्कि विभिन्न आयाम शामिल होते हैं (जैसे, मासिक भुगतान, भुगतानों की संख्या और तत्काल भुगतान)।  अनुसंधान ने दर्शाया है कि यह अभ्यास उपभोक्ताओं की मूल्य संबंधी जानकारी को समझने और संसाधित करने की क्षमता को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित कर सकता है जिसके अंतगर्त मूल्य भी प्रभावित होगा।
मूल्य संवेदनशीलता के सिद्धांत
1. संदर्भ मूल्य प्रभाव- किसी उत्पाद के लिए क्रेता की मूल्य संवेदनशीलता वस्तु के विकल्पों की तुलना में उत्पाद की कीमत को ऊपर बढ़ाती है। बोधगम्य विकल्प खरीदार के द्वारा अवसर, तथा अन्य कारकों के कारण बदल सकते हैं।
2. कठिन तुलना प्रभाव- उपभोक्ता को बाजार में कोई ऐसी वस्तु खरीदनी हो जो ब्रेडीड होती है तो उसकी कीमत कुछ भी हो लेने के लिए तैयार रहते हें लेकिन एक से अधिक ब्रेंड बाजार में हों तो उपभोक्ता को कई और विकल्प मिल जाते हैं जिसमें उन्हें तुलना करना कठिन हो जाता है जिसको कठिन तुलना प्रभाव भी कहते है जिसके चलते उपोक्ता हमेशा दोराहे पर रहता है कि क्या खरीदों और क्या छोड़ों।
3. अंतरण लागत प्रभाव- आपूर्तिकर्ताओं को बदलने के लिए खरीदार द्वारा जितना अधिक उत्पाद विशिष्ट निवेश करना पड़े, खरीदार कीमत के प्रति उतना ही कम संवेदनशील हो जाता है जब उसे विकल्पों में से चयन करना हो
4. मूल्य-गुणवत्ता प्रभाव- खरीदार कीमत के प्रति कम संवेदनशील होते हैं जब ऊंचे दाम उच्च गुणवत्ता का संकेत देते हैं। जिन उत्पादों के लिए यह प्रभाव विशेष रूप से प्रासंगिक है, उनमें शामिल हैं। छवि उत्पाद, विशेष उत्पाद और गुणवत्ता के लिए कम से कम संकेत सहित उत्पाद।
5. व्यय प्रभाव- खरीदार कीमत के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं जब खरीदार की उपलब्ध आय या बजट का अधिक प्रतिशत व्यय करना हो।
6. अंत लाभ प्रभाव- यह प्रभाव उस संबंध को संदर्भित करता है जो किसी खरीद का समग्र लाभ के साथ हो और दो भागों में विभाजित किया जाता है व्युत्पन्न मांग में खरीदार अंतिम लाभ की कीमत के प्रति जितना अधिक संवेदनशील होते हैं, उतना ही ज्यादा वे उन उत्पादों की कीमत के प्रति होंगे जिसका इस लाभ में योगदान है। मूल्य अनुपात लागत किसी विशिष्ट घटक के लिए हिसाब में लिए गए अंतिम लाभ की लागत के कुल प्रतिशत को संदर्भित करता है जो अंतिम लाभ उत्पन्न करने में मदद करें। अंतिम लाभ की कुल लागत का जितना कम किसी घटक का अंश होगा, खरीदार घटक की कीमत के प्रति उतना ही कम संवेदनशील होंगे।
7. साझा लागत- प्रभाव खरीदी मूल्य का जितना कम अंश खरीदार को अपने लिए चुकाना पड़े, वे कीमतों के प्रति उतना ही कम संवेदनशील होंगे।
8. निष्पक्षता प्रभाव- खरीदार किसी उत्पाद की कीमत के प्रति उतना ही अधिक संवेदनशील होंगे, जब खरीदी के संदर्भ में मूल्य उनके द्वारा उचित या तर्कसंगत मानी गई सीमा से अधिक हो।
9. फ्रेमिंग प्रभाव- खरीदार कीमतों के प्रति उस समय अधिक संवेदनशील हो जाते हैं जब वे कीमत को पूर्वनिश्चित लाभ की अपेक्षा हानि मानें और मूल्य संवेदनशीलता अधिक होगी जब कीमत बंडल के हिस्से के रूप में नहीं, बल्कि अलग से चुकाई जाए।
आॅन लाईन बाजार
आॅन लाईन बाजार की परिभाषा आज हमारे समाज की एक हक्कीत हैं जो पिछले कुछ वर्षों में उभर कर सामने आई है जिसमें घर बैठकर तरह तरह के समान, वस्तु, खाने की चीजें आदि हम बड़ी आसानी से खरीद सकते हैं जिन्हें हम बिगेर बाजार जाए घर पर मंगा सकते हैं और उनका इस्तेमाल कर सकते है भारत में ऑनलाइन शॉपिंग का ट्रेंड बड़े जोरो शोरो से चल रहा है। टोपी से लेकर पैरो की जुराबों तक, छोटे से फोन से लेकर बड़े से मकान तक सब कुछ बिक रहा है हमारी युवा पीढ़ी तो सबकुछ ऑनलाइन ही खरीदारी कर रही है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की स्कीम डिजिटल इंडिया से जहां आम जनता को एक नया प्लेटफार्म मिला है वही दूसरी और जनता ने भी इसे स्वीकार किया है जिससे आने वाले समय में ऑनलाइन काम-काज में बढ़ोतरी होगी और जो वर्तमान में देखने को मिल भी रहा है जिसके कारण आॅफ लाईन बाजारों पर संकट के बादल छाने लगे हैं जो स्वाभाविक भी है।
भारत विश्व पटल पर बहुत बड़ा बाजार है जिसमें अथाह संभावनाएं व्यापारियों को दिखती हंै जिसके कारण ऑनलाइन खरीद-फरोख्त में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है जिसके कारण बाजार में अब चोरी की और नकली वस्तुओं की भी भरमार होने लगी।  भारत में आॅनलाइन खरीद-फरोख्त का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन इसका लाभ उपभोक्ता को न होकर उत्पादककर्ता उठा रहे हैं। कुछ लोग और कंपनियां उपभोक्ताओं से सीधे तौर पर धोखा कर रही हैं। कारोबार बढ़ने के लिए कंपनियां बाजार में  क्रमशः नकली वस्तुओं के लेन-देन को बढ़ावा दे रही हैं नकली व चोरी की वस्तुएं बेचने वालों ने ऑनलाइन बाजार को अपने मुनाफे का नया रास्ता बना लिया है। जिससे वो आॅनलाईन बाजार के सहारे ऐसी वस्तुएं बेचते हैं जिन्हें लाखों ग्राहक इस्तेमाल करते हैं एक ठोस कानून का अभाव ही ऑनलाइन कारोबार में उपभोक्ताओं को अवैध व्यापार का शिकार बना रहा है
आॅन लाईन ठगी से बचने के लिए कानून की मांग
भारतीय बाजार पृष्ठ भूमि को यदि हम स्थल स्तर पर देखें तो उपभोक्ता मोल भाव करके और वस्तु को परख के विक्रेता से उसके मूल्य की मांग करता है जिसमें भी विक्रेता कही न कहीं उसे ठग ही लेता है इसी प्रकार से वर्तमान में आॅन बाजार की स्थिति भी समकक्ष उससे भी खराब है जिसमें उपभोक्ता समान मात्र वेवसाईट पर ही पंसद करता है जिसमें न उसे मोल भाव की ही इजााजत होती है और न ही समान को परख ही सकता है जिसमें उपभोक्ता हर बार ठगा जाता है जिसके लिए रिटेलर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (आरएआई) अब ऑनलाइन बाजार में नकली वस्तुओं की लेन-देन में वृद्धि के मुद्दे पर भी सक्रिय हुई। लेकिन कोई  कानून न होने के अभाव में ई-कॉमर्स कंपनियां नकली वस्तुओं की बिक्री की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती हैं वह कहते हैं, 70 फीसदी उनभोक्ता विक्रेता के तौर पर इन कंपनियों के नाम ही जानते हैं। लेकिन यह कंपनियां सामान नकली होने की सूरत में उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेतीं। इसका खामियाजा मात्र उपभोक्ताआंे को ही उठाना पड़ता है।
पिछले कुछ सालों में भारत में इंटरनेट का खूब प्रसार हुआ है। बड़े शहरों से लेकर छोटे-छोटे गांवों तक हर जगह लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं और लाभान्वित हो रहे हैं जिसके कारण इंटरनेट के इस्तेमाल के साथ ऑनलाइन शॉपिंग भी खूब बढ़ी है और लोग बाजार में जाने की बजाय ऑनलाइन सामान खरीदने में दिलचस्पी ले रहे हैं। इसकी दो वजह हैं एक तो ऑनलाइन सामान में छूट ज्यादा मिलती है और दूसरा समय की बचत होती है। भारत में ऑनलाइन खरीदारी तो जोर-शोर से की जा रही है लेकिन इस बीच ऑनलाइन चोरी भी खूब बढ़ी है जिसके शिकार कई लोग हुए हैं। इसके बावजूद भी कईयों को लाभ और हानि भी उठानी पड़ी है ई-कॉमर्स साइटों पर जालसाजी कई स्तरों पर होती है। ट्रांजेक्शन से डिलिवरी तक लोग ठगे जाते हैं। चूंकि लोगों को ऑनलाइन ट्रांजेक्शन व सामान के खरीद फरोख्त की कम जानकारी होती है। इसलिए कई लोग तो आवाज ही नहीं उठाते। ऑनलाइन खरीदारी के लाभ व हानि और जालसाज कंपनियों से कैसे बचें, आइए जानते हैं।
ऑनलाइन शॉपिंग के लिए पांच बातें याद रखना जरूरी - 
इंटरनेट से ऑनलाइन शॉपिंग करने से पहले हमे ये पता होना जरुरी है की ऑनलाइन शॉपिंग करने के लिए हमारे पास क्या क्या होना चााहिए।                                                
1. कंप्यूटर, टेबलेट, मोबाइल। (आपके पास जो भी हो )                                    
2. ईमेल आईडी (ऑनलाइन शॉपिंग वाली साइट पर साइन उप करने के लिए)                  
3. मनी-पैसा (सामान खरीदने के लिए)                                                  
4. क्रेडिट कार्ड-डेबिट कार्ड (भुगतान करने के लिए)                                        
5. पता (एड्रेस) (सामान रिसीव करने के लिए )
ऑनलाइन शॉपिंग के लाभ -
सुविधा 
ऑनलाइन शॉपिंग कही भी किसी भी वक्त की जा सकती है। ऑनलाइन शॉपिंग बस कुछ ही मिनट में हो जाती है। ऑनलाइन शॉपिंग करने के लिए न हमें कही लाइन मे खड़ा होना पड़ता है और न ही हमें ज्यादा समय लगता है हम आसानी से अपने लिए शॉपिंग कर सकते है।
बेहतर कीमतें 
ऑनलाइन शॉपिंग में प्रोडक्ट की कीमत काफी अच्छी और कम होती है। कई ऑनलाइन दूकानें  डिस्काउंट कूपन भी देती है।
पैसे की बचत                                                                          
जब हम किसी दुकान से सामान खरीदेंगे तो जाहिर है कि दुकानदार भी उस सामान पर हमसे 10-20 रुपए का मुनाफा कमाएगा। ऑनलाइन शॉपिंग करने से दुकानदार का बेनिफिट काम हो जाता है और कंपनी सीधे तौर पर सामान हमारे घर भेज देती है ।
अच्छा और सस्ता सामान 
बाजार में दुकानदार कई बार हमे नकली सामान दे देते हंै। ऑनलाइन शॉपिंग करने से  हमे ओरिजिनल सामान ही मिलेगा अगर समान असली न हुआ तो हम उस पर कानूनी कार्यवाही भी कर सकते हैं ।
30 दिन तक सामान वापिस करने की सुविधा 
ऑनलाइन सामान खरीदने के बाद अगर आपको वो सामान पसंद न आये तो आप उसे 30 दिन से पहले वापिस भी कर सकते हैं । जबकि दुकान से खरीदा हुआ सामान दुकानदार वापिस नहीं करता है।
पेमेंट सामान घर पहुंचने के बाद होता है
जब आप ऑनलाइन शॉपिंग करते हो तो आपको उसका पेमेंट सामान घर आने के बाद में करना होता है । इससे आप अपने सामान को अच्छी तरह चेक करने का मौका भी मिल जाता है ।
पूरा सामान एक आर्डर से 
बाजार में हमे एक एक सामान के लिए के दुकानों पर जाना पड़ता है पर ऑनलाइन शॉपिंग से हम सारा सामान घर बैठे माँगा सकते है ।
महंगा सामान होने का डर समाप्त
बाजार में हमे डर रहता है की कही कोई हमे कोई सस्ता सामान महंगा नहीं दे दे । पर ऑनलाइन सामान खरीदने पर ये डर नहीं रहता । क्योंकि हमारे सामान की जिम्मेदारी सीधा कंपनी की होती है न कि दुकानदार की और जो कंपनी सबसे सबसे सस्ता दे हम उसे सेलेक्ट कर सकते है
ज्यादा किस्म के सामान उपलब्ध 
ऑनलाइन शॉपिंग में कई सारे किस्म के सामान और कई सारे ब्रांड्स होते है। हम कोई भी प्रोडक्ट जो हमें पसंद आए उन्हें सेलेक्ट कर सकते है।
मूल्य की तुलना 
ऑनलाइन शॉपिंग में हर एक सामान को दूसरे सामान से आसानी से कंपेयर कर सकते है और प्रोडक्ट के कीमत की तुलना भी दूसरे प्रोडक्ट से कर सकते है। और ऑनलाइन शॉपिंग के जरिये हम अपने दोस्तों और रिश्तेदारो को आसानी से गिफ्ट भेज सकते है।
ऑनलाइन शॉपिंग के नुकसान - 
खुद ढंग से प्रोडक्ट को देख नही पाते
अगर आप उन लोगो में से है जो प्रोडक्ट को अच्छे से देख कर और छू कर प्रोडक्ट खरीदते है तो आप ऐसा ऑनलाइन शॉपिंग में नही कर सकते है।
प्रोडक्ट आने में समय लगता है 
अगर आप कोई भी प्रोडक्ट दुकान से लेते है तो आपको कोई प्रोडक्ट उसी वक्त मिल जाता है और आप उसका इस्तेमाल उसी समय से करने लग  जाते है लेकिन ऑनलाइन शॉपिंग में प्रोडक्ट लेने के बाद आपको उसका इंतजार करना पड़ता है।  प्रोडक्ट कम से कम 2 से 3 दिन में आता है और कभी-कभी प्रोडक्ट पहुचने में उससे भी ज्यादा समय लग जाता है।
प्रोडक्ट वापस करना महंगा हो सकता है 
कई सारे रिटेलर शिपिंग की कीमत वापस नही करते है और कई रिटेलर प्रोडक्ट एक्सचेंज करने की ज्यादा कीमत लेते है।
किसी अज्ञात विक्रेता से लेनदेन 
ऑनलाइन शॉपिंग करते समय अगर आपके प्रोडक्ट में कोई भी दिक्कत आई तो अज्ञात विक्रेता जिनसे आप पहली बार ऑनलाइन शॉपिंग कर रहे है वो आपकी मदद करेंगे या नही आपको नही पता होता है।
कीमत में शिपिंग चार्जेज जुड़े है या नही देख लें
ऑनलाइन शॉपिंग करते समय जब भी कोई प्रोडक्ट आप आर्डर करते है तो उसकी पूरी कीमत देख लें की आपको उस प्रोडक्ट के कितनी कीमत देनी है और उसमे शिपिंग चार्जेज देने है या नही यह भी देख लें।
रहना है सावधान-
इंटरनेट सिक्यूरिटी कर होना जरूरी
इंटरनेट पर खरीदारी करते वक्त इंटरनेट सिक्युरिटी बेहद जरूरी है। जब आप इंटरनेट पर खरीदारी कर रहे हों तो किसी भरोसे वाली साइट पर ही खरीदारी करें। क्योंकि अगर आप किसी अनजान साइट पर लाॅगइन करते हैं तो हो सकता है कि आपके एकाउंट के रूपए अगले कुछ घंटों में सफाचट हो जाएं। चूंकि वह अनजान साइट है ऐसे में आप क्लेम का अधिकार भी खो देंगे। याद रखें कि अगर आप ऑनलाइन लाॅगइन करते हैं तो अपने क्रेडिट कार्ड व नेटबैंकिंग का पासवर्ड समय-समय पर बदलते रहें जिससे आप ठगी से बचे रहंे।
कहीं आपने ऑनलाइन नकली सामान तो नहीं खरीद लिया 
ई-कॉमर्स पोर्टल में कई हजार वेंडर्स (सामान बेचने वाले) होते हैं जो अपने प्रोडक्ट को बेचते हैं। ऐसे में अगर आप किसी ब्रांड वाली वस्तु को सस्ते दामों में खरीद रहे हैं तो उसे पूरी तरह से जांच परख लें। चूंकि ऑनलाइन कई महंगे ब्रांडेड प्रोडक्ट को सस्ते दामों में बेचने वाली बात सामने आती है। कई बार ई-कॉमर्स साइटें नकली माल को उपभोक्ता को पकड़ा देती हैं। इसलिए वस्तु को खरीदने के पहले किसी दूसरी वेबसाइट में उसका रेट देखें और उसके बाद खरीदने का फैसला करें।
कंपनी की शर्तों को जाने
ई-कॉमर्स साइट 500 से ज्यादा खरीदारी पर डिलिवरी को फ्री रखती हैं जिसे उपभोक्ता एक बड़ी सुविधा के रूप में देखता है। लेकिन कभी कभार फ्री डिलिवरी के साथ शर्तें भी लिखी रहती हैं, जिसे उपभोक्ता अहमियत नही देते और उसको पढ़ते भी नहीं है। जिसके कारण उपभोक्ता को अनजाने में अतिरिक्त पैसे चुकाने पड़ते हैं। चूंकि उपभोक्ता को लुभाने के लिए ये चार्ज शुरू में नहीं बताए जाते। साथ ही यह भी देख लें कि कंपनी वॉरंटी दे रही है कि नहीं, अधिकतर मौकों पर ई-कॉमर्स साइटों में खूब धांधली देखने को मिलती है।


डिलिवरी के वक्त रखें खुद को सावधान 
पिछले दिनों बातें निकलकर सामने आई थीं कि लोगों ने ऑनलाइन लैपटॉप ऑर्डर किया और जब उन्होंने घर में जाकर पैकेट खोला तो उसमें दो बड़े बड़े पत्थर निकले। वहीं एक व्यक्ति ने ऑनलाइन जूते ऑर्डर किए थे जब उसने पैकेट खोला तो पता चला कि जूतो के सोल में मिट्टी लगी थी, मतलब जूते पहले इस्तेमाल किए जा चुके थे। इसके लिए यह ध्यान रखें जब डिलिवरी बॉय आपका सामान देने आए तो उसे तुरंत जाने ना दें बल्कि उसके सामने ही सामान का पैकेट खोलें और जांचे। अगर आपको कोई गड़बड़ी मालूम पड़ती हैं तो डिलिवरी बॉय के सामने ही उस सामान का स्नैपशॉट ले और वीडियो बनाएंे। ऐसे में जब आप सामान का क्लेम करेंगे तो आपके केस को मजबूती मिलेगी और आप केस जल्दी जीत सकेंगे।
शरीरिक नुकसान भी होता है आॅन लाईन शाॅपिंग से-
सिरदर्द की समस्या
ऑनलाइन शॉपिंग करना जितना सुगम और आसान प्रतीत होता है उतना ही ये हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक भी साबित हो रहा है। एक रिसर्च के अनुसार ऑनलाइन शॉपिंग करने वाले लोगों में अक्सर सिर दर्द और डिप्रेशन का रोग पाया जाता है। ऑनलाइन शॉपिंग करते वक्त जब किसी इंसान को कोई सामान इतना पसंद आ जाता है कि उसकी तुलना में उन्हें कुछ अच्छा नहीं लगता और बाद में वो देखते हैं कि ये ड्रेस उनके बजट से बाहर है या आउट ऑफ स्टॉक है तो वो लोग काफी हद तक परेशान होने लगते हैं। परेशानी का ये स्तर कई बार इतना बढ़ जाता है कि सीधा हमारे स्वास्थ्य पर हावी होने लगता है।
अच्छा सामान दिमाग पर हावी होने लगता
कई मामले ऐसे भी सामने आए हैं जिसमें लोग अपनी मनपसंदीदा ड्रेस, जूलरी या फिर किसी अन्य सामान को किसी कारण वश ना खरीद पाने का अफसोस कई दिनों तक मनाते हैं। इस चीज का हमारे दिमाग पर उस वक्त ज्यादा असर पड़ता है जब हम सोते हैं। रातभर जब सपने में हमें वही चीज दिखाई देती है और सुबह उठकर हम उसे अपने पास नहीं देखते तो दिमाग की मांसपेशियों पर काफी असर पड़ता है। जिससे सिर दर्द और डिप्रेशन का खतरा शुरू हो जाता है।
डिप्रेशन में आ जाना
इसी तरह से कई बार हम ऑनलाइन शॉपिंग करते वक्त धोखाधड़ी का शिकार भी हो जाते हैं। तमाम प्रयासों के बावजूद जब हमारा पैसा या सामान हमें नहीं मिल पाता तो उस स्थिति में डिप्रेशन में जाने का ज्यादा खतरा बढ़ जाता है। क्योंकि जब किसी इंसान का मेहनत का पैसा बिना किसी वजह से व्यर्थ होता है तो दिल और दिमाग दोनों पर गहरी चोट लगती है।
बीपी बढ़ना 
ऑनलाइन शॉपिंग से शरीर में बीपी के स्तर में उतार-चढ़ाव होना, नींद ना आना, बेचेनी होना और सिर भारी होना जैसे लक्षण देखे जाते हैं। कई बार तो ऐसे हादसो से निकलने के लिए इंसान खुद को ही नुकसान पहुंचा लेता है। इसलिए जब भी ऑनलाइन शॉपिंग करें सोच समझ कर और शांतिपूर्वक करें।
                                                                                           -सोहन सिंह

उपभोक्ता जागरूक हो रहा है कुछ उदाहरणों के साथ।


आज भारतीय उपभोक्ताओं की कई ब्रांडों तक पहुंच कायम है जिसका कारण बाहरी कंपनियां हैं। जो भारत में पेंठ बना रही हैं ये कंपनियां भारतीय बाजार को लाभार्थ के अनुरूप मानकर अपने लिए बाजारिक पृष्ठ भूमि बनाने में कामयाब हुई हैं जिसमें त्वरित इस्तेमाल होने वाली वस्तु हो या अधिक दिनों तक चलने वाला सामान हो या फिर सेवा क्षेत्र हो, सब में पर्याप्त उपलब्धता ही इन कंपनियों का उद्देश्य है और ये कंपनियां उपभोक्ता को विविध प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं में से किसी एक को चुनने का अवसर देती हैंै। लेकिन सवाल यह है कि वो क्या चुने और चुनने के उपरान्त उपभोक्ता को उसकी किमत चुकाने में कुछ ज्यादा तो नहीं देने पड़ रहा। जिसके कारण आज के परिदृश्य में उपभोक्ता संरक्षण जरूरी हो गया है जिसके लिए उपभोक्ता को जागरूक बनाना बहुत आवश्यक है या फिर उपभोक्ता को संप्रुभता के बारे में  बताना बहुत जरूरी हो गया है।
महत्वपूर्ण है उपभोक्ता कल्याण 
बाजार के अतंगर्त उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता फैलान और विकास का प्रयास करना कुछ हद तक मील के पत्थर के समान था जिसका प्रयास उपभोक्ता को जागरूक करके ही सफल होगा। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था उसका बाजार ही होता है जो उपभोक्ता के द्वारा ही चलन में आता है लकिन उपभोक्ताओं का अधिकतम शोषण बाजार में ही होता है। और कुछ उपभोक्ताओं को ये तक नहीं पता होता कि उनके पास ठगी से बचने के लिए मौलिक अधिकार उपलब्ध हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 इन्हीं अधिकारों को लेकर बनाया गया कानून है जिसमें उपभोक्ता के साथ ठगी न हो और बाजार में ब्रिकी के लिए लाई गई वस्तु की किमत उपभोक्ता के अधीन रहे। जिसके कारण 1986 उपभोक्ताओं के लिए ऐतिहासिक वर्ष रहा और उसके बाद से उपभोक्ता संरक्षण भारत में गति पकड़ने लगा था। 1991 के आने तक भारत में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण ने भारतीय उपभोक्ताओं को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण उत्पाद पाने का अवसर प्रदान किया। जिसके चलते हमारी सरकार ने हमारे अपने उद्योग जगत को सुरक्षा प्रदान करने के लिए बाहरी कंपनियों पर रूक लगा दी और उनकी प्रतिस्पर्धा की दावेदारी भी खत्म हो गई। जिसके कारण भारतीय बाजार में ऐसी स्थिति पैदा होना स्वाभाविक था जहां उपभोक्ता के पास बहुत कम विकल्प बचे थे और गुणवत्ता की दृष्टि से भारतीय बाजार के उत्पाद बहुत ही घटिया किस्म के थे। एक कार खरीदने के लिए बहुत पहले बुकिंग करनी पड़ती थी और केवल दो ब्रांड उपलब्ध थे। किसी को भी उपभोक्ता के हितों की परवाह नहीं थी और हमारे उद्योग को संरक्षण देना ही उनका प्रथम उद्देश्य था। जिसके कारण उपभोक्ता को ध्यान में रखते हुए अधिनियम 1986 के कानून को लागू किया गया और इस कानून के अंतगर्त ही उपभोक्ता को संतुष्टि और उपभोक्ता संरक्षण दिया गया। जिसके कारण उपभोक्ता के लिए उपभोग के मौलिक सिद्वान्त बढ़े जिनको उपभोक्ता की नजर में सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक प्रणाली का अपरिहार्य हिस्सा समझा जाने लगा, जहां दो पक्षों क्रेता और विक्रेता के बीच विनिमय का तीसरे पक्ष समाज था जिस पर असर हुआ। बड़े पैमाने पर उत्पादन एवं बिक्री में बिक्रीकर लाभ पाने के लिए विनिर्माताओं एवं डीलरों को उपभोक्ताओं का शोषण करने का अवसर भी प्रदान हुआ जिसमें खराब सामान, सेवाओं में कमी, जाली और नकली ब्रांड, गुमराह करने वाले विज्ञापन जैसी बातें निकलकर समाने आई जो भोले-भाले उपभोक्ता को अक्सर इनके शिकार बनाती थी जिसका निराकरण अधिनियम 1986 में किया गया।
कौन है उपभोक्ता 
राया, वजनी, मिलावटी और गरीब गुणवत्ता की वस्तुओं की बिक्री, झूठे विज्ञापन आदि देकर उपभोक्ताओं को गुमराह करने के तहत शोषण करते रेहते हैं। इस तरह के धोखे से खुद को बचाने के लिए, उपभोक्ता को चैकस रेहने की आवश्यकता है। इस तरह से, उपभोक्ता जागरूकता का मतलब है की उपभोक्ता अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता रखते है।
भारत की अर्थव्यवस्था में बाजार का अधिक महत्व है क्योंकि बाजार के द्वारा ही अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है और अर्थव्यवस्था के द्वारा आम उपभोक्ता को मजबूती मिलती है जिसके माध्यम से बाउपभोक्ता वह व्यक्ति हैं जो उपयोग करने के हेतु कुछ निश्चित वस्तुओं या सेवाओं का कुछ भुगतान कर खरीदता हैं। दूसरे शब्दों में, तकनीकी परिभाषा के अनुसार, उपभोक्ता में तीन तत्वों का समावेश होना आवश्यक है, जिसमें से एक की भी अनुपस्थिति व्यक्ति को उपभोक्ता के वर्ग से अलग कर सकती है। पहला, एक उपभोक्ता को एक खरीददार होना आवश्यक है, दूसरे माध्यम से देखें तो वस्तु या सेवा प्राप्त करना उसे उपभोक्ता वर्ग में शामिल नहीं करता जैसेकि, वस्तु विनिमय प्रणाली के तहत वस्तु प्राप्त करने वाला व्यक्ति उपभोक्ता नहीं होता। दूसरा, वस्तु या सेवा की प्राप्ति का निर्धारण तब माना जाएगा जब उपभोक्ता के द्वारा क्रय द्वारा वह निर्धारित किया गया हो। जैसे, उपहार या किसी वसियत के द्वारा बिना किसी निर्धारण की वस्तु या सेवा प्राप्त करना व्यक्ति को उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं रखता है। तीसरी, वस्तु या सेवा की खरीद उपभोक्ता द्वारा प्रत्यक्ष उपभोग के लिए आवश्यक है। जैसे कि, किसी व्यक्ति द्वारा किसी वस्तु को पुनः बेचने या किसी वाणिजियक उद्देश्य, जैसे पुनर्निर्माण या पुनर्चक्रण आदि के उद्देश्य से किसी निश्चित वस्तु या सेवा खरीदने से उसे उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 ने व्यक्तिगत तथा किसी खास व्यक्ति विशेष के परिप्रेक्ष्य में उपभोक्ता के बारे में एक विशेष अवधारणा को स्पष्ट करता है। इस अधिनियम के धारा 2(1)(घ) में कहा गया है कि उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो वस्तु या सेवा को अपने मुनाफे और फायदे के लिए खरीदता है या किराए पर लेता है या प्राप्त करता है जिसका मूल्य वह या तो अदा करे या चुकाने का वचन दे या उसका थोड़ा बहुत भुगतान करे या किसी अन्य तरीके के तहत भुगतान करे। यह अधिनियम उन लोगों को उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं रखता है जो वस्तु या सेवाओं की प्राप्ति किसी व्यापारिक उद्देश्य के लिए करते हैं। व्यापारिक उद्देश्य को इसमे शामिल नहीं किया गया है, यह सब जानते हंै कि भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग छोटे-छोटे दुकानों जैसे खुदरा विक्रेता, विनिर्माण इकाई आदि द्वारा स्वरोजगार के तहत अपनी कमाई करता है इसके लिए वे बड़े-बड़े व्यापारियों या उत्पादकों से वस्तु या सेवाएं खरीदते हैं। लेकिन उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंदर इस तरह के व्यवसाय को शामिल नही किया गया है जिस कारण से बड़ी संख्या में लोगों को बाजार के सिद्धांतहीन एवं लालची बड़े-बड़े व्यवसायियों के सामने इन्हें लाचार बना देते हैं और यह इस अधिनियम के सुचारू रूप से चलने नही देते और बाधाएं उत्पन्न करते हंै।
एक उपभोक्ता के रूप में अपने अधिकारों के किसी व्यक्ति, समझ उपलब्ध उत्पादों और सेवाओं के विपणन किया जा रहा है और एक उपभोक्ता के रूप में अपने अधिकारों के किसी व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है। इस अवधारणा की चार श्रेणियों के सहित सुरक्षा, पसंद, जानकारी, और सुना जाने का अधिकार शामिल है। उपभोक्ता अधिकारों की घोषणा सबसे पहले अमेरिका में 1962 में स्थापित की गयी थी। उपभोक्ता जागरूकता के कार्यकर्ता राल्फ नादेर है। उन्हे उपभोग तथा आंदोलन के पिता के रूप में संदर्भित किया जाता है। पूंजीवाद और वैश्वीकरण के इस युग में, अपने लाभ को अधिकतम करना प्रत्येक निर्माता का मुख्य उद्देश्य है। हर संभव तरह से यह निर्माता अपने उत्पादों की बिक्री को बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। इसलिए, अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये वे उपभोक्ता के हित को भूल जाते है और अपने उदाहरण के लिए ज्यादा किजार मजबूत बनता है। लेकिन वर्तमान समय में बाजारवाद के साथ वस्तुओं क्रय विक्रय भी अधिक बढ़ गया है नई नई कंपनियां उपभोक्ता को ध्यान में रखते हुए वस्तुओं और सेवाओं को ला रही हैं जिसका उपयोग उपभोक्ता क्रय करके करता हैं जिसमें उपभोक्ता के साथ धोखा धड़ी और शोषण भी किया जाता है और उपभोक्ता स्वंय को ठगा सा महसूस करता है। चाहे वो किराने की दुकान हो या कोई आधुनिक जनरल स्टोर या इंटरनेट की दुनिया हो, शैक्षिण संस्थान हो, बाजार से अधिक दाम पर खरीद हो या घटिया किस्म का माल, मिलावट से लेकर जमाखोरी तक की बेवजह के चक्कर में फंस कर उपभोक्ता का शोषण किया जाता है।  हर जगह उपभोक्ता को ही काटा जाता है। जिसके लिए कुछ बातांे का ध्यान रखना अतिआवश्यक है।
 खरीदारी करते समय रखें इन बातों का ध्यान।
1. मूल्य - किसी उत्पाद पर अधिकतम खुदरा मूल्य (एम.आर.पी.) अंकित होता है, उस वस्तु का वह अधिकतम विक्रय मूल्य होता है. उस मूल्य पर उपभोक्ता द्वारा मोलभाव किया जा सकता है तथा इस एमआरपी पर विक्रेता निर्माता द्वारा बढ़ी हुई कीमत का कोई स्टीकर लगाने की अनुमति नहीं है. केवल घटी हुई कीमत का स्टीकर विक्रेता द्वारा उसी स्थिति में लगाया जा सकता है, जबकि पहले से अंकित मूल्य स्पष्ट रूप से दिखाई दे और अधिक मूल्य प्राप्त करने का विक्रेता को कोई अधिकार नहीं है. कुछ विक्रेताओं द्वारा एमआरपी को काट दिया जाता है. ऐसे में उत्पाद पर यदि कंपनी का दूरभाष नंबर हो तो उस पर काॅल करके सही मूल्य की पुष्टि की जा सकती है.
2. भार - किसी पैकेट पर भार को नेट वेट (शुद्ध भार) के रूप में अंकित किया जाता है. अतः पैकिंग का वजन वस्तु के वजन में सम्मिलित नहीं किया जा सकता। मिठाई के साथ डिब्बा नहीं तुलवाना चाहिए। डिब्बे के भार के बराबर अतिरिक्त मिठाई प्राप्त करने का उपभोक्ता को अधिकार है.
3. गारंटी-वारंटी - किसी वस्तु की गारंटी अथवा वारंटी दी जाती है. आमतौर पर गारंटी और वारंटी एक जैसे लगते हैं किंतु गारंटी में वस्तु के खराब होने पर उस बदल दिया जाता है तथा वारंटी में वस्तु के खराब होने पर बदला नहीं जाता बल्कि खराब वस्तु को निःशुल्क ठीक किया जाता है अर्थात् उक्त वस्तु की मरम्मत की जाती है.
4. उत्पादक-वितरक - बाजार में उपलब्ध उत्पादों में कई उत्पाद ऐसे हैं, जिनमें उस वस्तु का उत्पादक अथवा निर्माता कंपनी का नाम होता है खरीददारी करने से पूर्व वस्तु पर अंकित उत्पादक एवं वितरक का पूरा नाम व पता देख लेना चाहिए आधा-अधूरा नाम, पता छपा होने पर वस्तु को खरीदना  नहीं चाहिए ऐसे उत्पादों का नकली होने का अंदेशा बना रहता है।
5. प्रमाणित बांट-माप - खुले पदार्थों को बांट-माप निरीक्षक द्वारा प्रमाणित बांट और तराजू से ही तुलनावा चाहिए शंका होने पर जिला उद्योग स्थित केन्द्र बांट-माप निरीक्षक से शिकायत की जा सकती हैं.
6. रसीद - किसी वस्तु खरीद की उचित रसीद प्राप्त करने का उपभोक्ता का अधिकार एवं दायित्व है. अतः इस बारे में की गई लापरवाही भारी पड़ती है. अतः क्रय की गई वस्तु की रसीद अवश्य प्राप्त करें।
7. विज्ञापन - वर्तमान युग विज्ञापन का युग है किंतु विज्ञापन में वस्तु अथवा सेवा की गुणवत्ता का बखान बढ़ा-चढ़ाकर किया जाता है. अतः विज्ञापनों को आधार मानकर किसी उत्पाद को न खरीदें, बल्कि उत्पाद की गुणवत्ता को जांच-परखकर पूर्ण संतुष्टि के बाद ही क्रय किया जाना चाहिए।
8. प्रमाणीकरण - खरीददारी करते वक्त ऐसे उत्पादों को प्राथमिकता देें, जो भारतीय मानक ब्यूरो के आई.एस.आई., कृषि एवं विपणन निदेषालय के एगमार्क, ऊर्जा कार्यकुशलता ब्यूरो के स्टार मार्क सहित विभिन्न प्रकार के उत्पादों हेतु निर्धारित मानकों एवं आई.एस.ओ प्रमाणित कंपनियों के उत्पाद हों।
मार्केट के अलावा भी उपभोक्ता को बैंकिंग, जिम, शैक्षिक संस्थानों में भी ठगा जाता है उनके बारे में नीचे विवरण दिया गया है।
जिम करते वक्त रखें इन बातों का ध्यान
एक्सरसाइज मशीन अगर लंबे समय से खराब है और आपको परेशानी हो रही है। मशीनों के मामले में लगातार शिकायत करने के बावजूद अगर कोई सुधार नजर न आ रहा हो। आपके तयशुदा समय में बिना आपकी इजाजत के छेड़छाड़ की जा रही हो। फिटनेस ट्रेनर का व्यवहार परेशान कर रहा हो या उसे बदलने की गुजारिश पर मालिक ध्यान नहीं दे रहा हो। जरूरत से ज्यादा भीड़ आप अपने वक्त में महसूस करने लगे हों। आपका जिम जरूरत से ज्यादा कमर्शियल एक्टिविटीज करवा रहा हो, जिससे माहौल की गंभीरता भी खत्म हो रही हो। शाॅवर के लिए जरूरी चीजें नहीं मिल पा रही हों या वहां भी हाइजीन एक समस्या बन गई हो। आपके लाॅकर से कोई चीज गायब हो गई हो और जिम एडमिन की तरफ से सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं किए गए हों।
फीस भरने के बाद भी जिम समय नही बिता पा रहे हो। वापस मांगने पर आपके पैसे वापस नहीं किए जा रहे हांे। इन सब बातों का निराकरण उपभोक्ता फोरम में किया जाता है। फोरम अच्छे से जानता है कि यह लड़ाई किस पक्ष के लिए मुश्किल है, ऐसे में फोरम हर संभव मदद फरियादी को मुहैया करवा ही देता है। सेवा में कमी का मामला हो या गुणवत्ता में कमी का... फोरम की शरण में जाना कभी भी अफसोस का कारण नहीं बनता।
बैंक में चेक जमा करते समय हस्ताक्षर की हुई रसीद अवश्य लें। जमाकर्ता को चेक के पीछे अपना नाम, खाता संख्या, शाखा का नाम तथा बैंक का नाम अवश्य लिख देना चाहिए। चेक के रिक्त स्थान पर लकीर खींच दे ताकि कोई अनाधिकृत व्यक्ति अतिरिक्त संख्या या नाम न जोड़ दें। कार्ड व चेक बुक एक साथ न रखें। खाली चेक पर हस्ताक्षर करके न रखें। यदि एटीएम कार्ड धारक हैं तो किसी अन्य व्यक्ति को अपना कार्ड न दें तथा उसे पिन, पासवर्ड या अन्य सुरक्षा जानकारी न दें। पिन, पासवर्ड या अन्य सुरक्षा जानकारी को लिखकर कार्ड के साथ न रखें। यदि डाक के माध्यम से आप चेक भेज रहे हैं तो जिस व्यक्ति को चेक भुगतान किया जाना है, उसका नाम स्पष्ट अक्षरों में लिखें ताकि धोखाधड़ी को रोका जा सके।
शैक्षणिक संस्थान में नामांकन से पूर्व करें ये काम
जब आप को किसी शैक्षणिक संस्थान में दाखिला लेना हो तो नामांकन से पूर्व उसके बारे में पूरी जानकारी हासिल कर लें। सबसे पहले इस बात की जानकारी करें कि उस संस्थान को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग या एआईसीटीई जैसी निकायों द्वारा मान्यता दी गयी है या नहीं। इसके अलावा यह जानकारी करें कि उस संस्थान के पास पूर्णकालिक योग्यता प्राप्त शिक्षक मौजूद हैं या नहीं। यदि कोई संस्थान नामांकन के समय किए गए अपने वायदे के अनुरूप शैक्षणिक सेवाएँ नहीं प्रदान करता है या कोई गैर कानूनी काम करता है तो इस बात की शिकायत उपभोक्ता न्यायालयों में दर्ज कराई जा सकती है। शैक्षणिक संस्थानों के मान्यता आदि के बारे में जानकारी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की वेबसाइट से प्राप्त की जा सकती है।
यदि आप अपने क्रेडिट कार्ड की पिन बदलते हैं तो नया पिन सावधानी पूर्वक चुनें।
अपना पिन, पासवर्ड तथा अन्य सुरक्षा जानकारी याद कर लें यदि आप को पिन, पासवर्ड या अन्य कोई सुरक्षा जानकारी लिखित रूप में मिलती है तो उसे तुरंत याद करें तथा उस कागज को नष्ट कर दें, ताकि किसी प्रकार की धोखाधड़ी न हो सके।
कार्ड व बैंक के रसीदों को सुरक्षित रखें।
यदि चेक बुक, पास बुक या एटीएम कार्ड खो जाता है या चोरी हो जाता है या किसी और को आपकी पिन या अन्य सुरक्षा जानकारी पता लग जाती है तो तुरंत संबंधित बैंक को इसकी सूचना दें ताकि इसके दुरूपयोग को रोका जा सके। खोने की जानकारी बैंक द्वारा उपलब्ध कराये गये टोल फ्री नं0 पर फोन करके दी जा सकती है। बाद में लिखित रूप में भी बैंक को इस बात की सूचना देनी चाहिए।
चिकित्सा सेवाएँ लेते समय
जिस डॉक्टर से इलाज कराने जा रहे हैं, उसकी योग्यता एवं कौशल के बारे में पूरी जानकारी कर लें। दवाओं के नाम सदैव चिकित्सक के लेटरहेड पर ही लिखवाएँ। दवाईयाँ भरोसेमंद तथा लाईसेंस प्राप्त दवा विक्रेता से ही खरीदें। दवा को सूखी, और ठंडी जगह पर रखें तथा इस बात का ध्यान रखें कि उस पर धूप या गर्मी का प्रभाव न पड़े, क्योंकि ऐसा होने से दवाईयाँ खराब हो सकती हैं।
नकली दवाओं से सावधान रहें।
दवाईयाँ खरीदते समय उसकी एक्सपायरी डेट तथा बैच नम्बर या लॉट नम्बर अवश्य देखें। किसी प्रकार की कमी या शिकायत होने पर जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी या मीडिया को संपर्क किया जा सकता है।
रोगियों को प्राप्त अधिकार
रोगियों को कानून द्वारा निम्नलिखित अधिकार प्रदान किए गए हैं जाँच रिपोर्ट की प्रति पाने का अधिकार। अस्पताल से छुट्टी के प्रमाण-पत्र पाने का अधिकार।
पेट्रोल, रसोई गैस प्राप्त करते समय
पेट्रोल भराते एवं रसोई गैस प्राप्त करते समय निम्नलिखित बातों के प्रति आश्वस्त हो लें- पेट्रोल टैंक से सही पेट्रोल के लिए गुणवत्तायुक्त 5 लीटर के डिब्बे में पेट्रोल लें। ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आप को सही मात्रा में पेट्रोल प्राप्त हो रहा है। जब रसोई गैस सिलेण्डर लेते हैं तो उसका वजन अवश्य करा लें। सही वजन का सिलेण्डर न होने पर संबंधित विभाग या अधिकारियों से शिकायत की जा सकती है।
आप अपनी शिकायत पेट्रोल पम्प मालिक या रसोई गैस के वितरक से भी कर सकते हैं।
एल.पी.जी. सिलेण्डर पर उसके प्रयोग की अन्तिम तिथि अंकित होती है। उदाहरण के लिए यदि उस पर ए-09 लिखा है तो इसका मतलब उस सिलेंडर के उपभोग की तिथि अगस्त, 2009 में समाप्त हो चुकी है। इसलिए यह अवश्य देखें कि जो सिलेण्डर आप प्रयोग करने जा रहे हैं कहीं उस सिलेण्डर के प्रयोग करने की तिथि समाप्त तो नहीं हो गयी है।
उपभोक्ता एक ऐसी इकाई है जो यदि बाजार में न उतरे तो बड़े-बड़े व्यापार , काॅर्पोरेट आॅफिस पर ताले लग जाएंगे। लेकिन उपभोक्ता फोरम आदलत के माध्यम से इन सब समस्याओं का निराकरण कुछ हद तक कर दिया गया है कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं जिसमें उपभोक्ता के लिए उपभोक्ता फर्म ने फैसले सुनाए हैं जिनमें उनका शोषण किया गया था।
50000 रू. तक का देना पड़ा हर्जाना।
शादी के दिन दो इंच छोटा लहंगा पहनने को मजबूर दुल्हन ने ब्राइडल फैशन डिजाइन स्टूडियो को आठ साल तक कोर्ट के चक्कर कटवाए। मामला दिल्ली के चांदनी चैक का है. यहां की एक लड़की ने अपनी शादी में पहनने के लिए एक ब्राइडल डिजाइन नामक स्टूडियो से 64 हजार रुपए का लहंगा पसंद किया था। शादी से पहले ट्रायल लेने जाने पर लहंगा पैरों से लगभग 2 इंच ऊपर उठा हुआ था। स्टूडियो वालों ने वादा किया कि वे शादी के दिन लहंगा एकदम ठीक करके भिजवा देंगे। शादी के रोज यानी 13 जुलाई, 2008 को जब दुल्हन लहंगा पहना तो उसने देखा कि लहंगा तब भी उतना ही छोटा था जितना कि पसंद करते वक्त था। सारे गहने और मेकअप भी लहंगे को ध्यान में रखकर लिए गए थे और मजबूरी मे  दुल्हन ने पैरों से ऊपर ऊठा हुआ लहंगा पहनकर ही शादी की रस्में पूरी कीं। शादी के रोज तो दुल्हन वैसे ही सबकी नजरों का केंद्र होती है लेकिन ये दुल्हन अपने छोटे लहंगे के कारण आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी। शादी के बाद युवती दोबारा स्टूडियो गई शादी के दिन न सही लेकिन बाद में किसी खास मौके पर लहंगा पहना जा सके इसलिए उसने स्टूडियो से लहंगा सुधारने की मांग की. स्टूडियो वालों ने शादी जैसे मौके पर दुल्हन को लहंगे को खराब करने के लिए माफी तो नहीं मांगी, उल्टे उससे लहंगा सुधारने के पैसे अलग से लिए। स्टूडियो की लापरवाही पर लड़की और उसके पति की नाराजगी भड़क उठी. उन्होंने उपभोक्ता फोरम में शिकायत कर दी। पूरे आठ साल तक चले केस के बाद दिल्ली राज्य उपभोक्ता फोरम के न्यायिक सदस्य एन.पी. कौशिक की पीठ ने कारोबारी मैसर्स रूप श्रृंगार को आदेश दिया कि वह पीड़ित पक्ष को लहंगे की राशि के साथ 50,000 रुपए का जुर्माना अलग से दे क्योंकि उसे इतने बड़े दिन लहंगे की वजह से शर्मिंदा होना पड़ा।
उपभोक्ता फर्म ने छात्र के पक्ष में सुनाया था फैसला, 25 अगस्त अमर उजाला न्यूज
शिक्षा प्रणाली में लगातार हो रही खामियों और मानमानियां हर विद्यार्थी के अभिभावक, को परेशान कर रहीं हैं लेकिन यह परेशानी प्राइवेट  एजुकेशनल इस्टीटयूटों के ज्यादतियों के कारण ज्यादा होती हैं जिसमें मनमानी तरीकांे से विद्यार्थी के अभिवाहकों से जबरन वसूली की जाती है, ऐसे ही एक केस में कानपुर की जिला उपभोक्ता फर्म ने एजुकेशनल इस्टीट्यूट के खिलाफ फैसले में पीड़ित अभिवाहक शिव महेंन्द्र को अग्रवाल इस्टीट्यूट आॅफ इंजिनयरिंग एंड टेक्नाॅलजी नारमऊ, कानपुर के प्रबंधन के खिलाफ मुकदमें में छात्र अशीष सिंह को इस्टीट्यूट के ठगी के खिलाफ 27 हजार 640 रू वजिफे के, काशन मनी 5000 रू और बुक बैंक के 3 हजार रू लौटाने का आदेश सुनाया है जिसके चलते छात्र आशीष सिंह के साथ हुई शिक्षा में बेइमानी के खिलाफ पूरा न्याय मिला।
31000 का जुर्माना लगाया उपभोक्ता फाॅर्म ने, 17 मई हिन्दूस्तान टाईम्स
उपभोक्ता फोरम, दुमका ने एक फैसला को सुनाते हुए टाटा मोटर्स मार्केटिंग एंड कस्टमर सपोर्ट को 30 हजार रुपए एवं वाद खर्च के रूप में 1 हजार रुपए अतिरिक्त भुगतान करने का निर्देश दिया था।
टीन बाजार के विष्णु चैरसिया नामक युवक ने क्लासिक मोटर्स से 2012 में सूमो गोल्ड गाड़ी खरीदी थी। उस वक्त एक्सचेंज ऑफर में विशेष छूट भी दी गई थी। इसके तहत जब उन्होंने अपनी इंडिका कार एक्सचेंज की तो 40 हजार रुपये की विशेष छुट देने का आश्वासन दिया गया और जिसके तहत उन्हें 10 हजार रुपये भी दिए गये, लेकिन बाकी के 30 हजार रुपये का उन्हें भुगतान नहीं किया जा रहा था। जिससे परेशान होकर विष्णु ने उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराई।
फोरम ने  11 दिसंबर 2015 को एक्सचेंज ऑफर के बचे 30 हजार रुपये भुगतान करने को कहा था। आदेश का पालन नहीं होने पर विष्णु ने फिर फीर से शिकायत दर्ज कराई जिसके बाद विपक्ष उपस्थित हुआ और न्यायालय के सख्त आदेश पर 31000 का जुर्माना क्लासिक मोटर्स पर लगाया गया जिसमे चेक के द्वारा रकम देनी पड़ी। फोरम के अध्यक्ष रामनरेश मिश्रा एवं सदस्य डा.बबीता अग्रवाल ने विष्णु को यह चेक प्रदान किया जो वाकई में ही उपभोक्ता को के ज्ञान और हौसले को प्र्रदर्शित करता था

उपभोक्ता फोरम ने 25 रूपये के लिए लगाया जुर्माना, अमर उजाला,
शहर कोतवाली क्षेत्र के एलवल मुहल्ला निवासी राघवेंद्र प्रताप सिंह ने उपभोक्ता फोरम में अर्जी दाखिल कर बताया था कि पांच अक्तूबर, 2014 को उनके मोबाइल फोन पर बीएसएनएल की तरफ से एसएमएस आया कि 550 रुपये के टॉपअप पर 575 रुपये का टॉक वैल्यू मिलेगा। उन्होंने 550 रुपये का टॉपअप कराया लेकिन 25 रुपये ऑफर की धनराशि नहीं मिली। कस्टमर केयर ने बताया कि दो-तीन दिन बाद 25 रुपये की टॉक वैल्यू उपलब्ध करा दी जाएगी। उसके बाद भी उपभोक्ता को ऑफर की धनराशि नहीं मिली। विभागीय अधिकारियों की उदासीनता पर राघवेंद्र ने उपभोक्ता फोरम में वाद दाखिल कर दिया। फोरम ने उपभोक्ता के आरोपों को सही पाया और बीएसएलएन के महाप्रबंधक को क्षतिपूर्ति के संबंध में आदेश जारी किया। ऑफर के अनुसार 25 रुपये अतिरिक्त टॉक वैल्यू न देने के मामले में उपभोक्ता फोरम ने बुधवार को आदेश दिया कि बीएसएनएल चार हजार रुपये क्षतिपूर्ति याचिकाकर्ता को दें। उपभोक्ता को 25 रुपये का अतिरिक्त टॉक वैल्यू भी देने का निर्देश दिया गया था।
जिम में धोखाधड़ी के खिलाफ जिला उपभोक्ता फर्म ने सुनाया फैसला, नई दुनिया न्यूज पोर्टल।
तंदुरुस्ती के लिए हम जिम जाना पसंद करते हंै अगर जिम वाला हमारे साथ धोखा करे तो हमारा तन और मन दोनांे उत्पीड़न होता है। हाल ही में जिम से जुड़े दो मामले ऐसे हुए जो हमें अपने अधिकारों के प्रति जागरुक करते हैं।
केस 1 - दिल्ली के इस मामले में (देल्ही स्टेट कन्ज्यूमर कमीशन) ने दो उपभोक्ताओं को राहत देते हुए, फिटनेस क्लब को दो लाख रुपए अदा करने का फैसला सुनाया है। इन्हें शिकायत थी कि उनका क्लब उन्हें ट्रेडमिल पर मनचाहा वक्त बिताने नहीं देता। कमीशन ने माना कि एक बार इस तरह किसी को भी ट्रेडमिल के उपयोग से एक समय बाद वंचित नहीं किया जा सकता।
केस 2 - एर्नाकुलम के इस मामले में एक पोस्टग्रेजुएट स्टूडेंट को फोरम ने उनके जमा किए पूरे पैसे वापस दिलवाए। इस स्टूडेंट ने 31584 रुपए एक फिटनेस सेंटर में जमा करवाए थे। फोरम ने इस पर 12 फीसद के हिसाब से ब्याज भी दिलवाया था। दरअसल फीस जमा करने के बाद ये स्टूडेंट एक भी दिन जिम नहीं जा पाई थीं क्योंकि उनका एडमिशन दूसरे शहर के एक कोर्स में हो गया था।
इन सब के बावजूद भी भारत में एक वर्ग ऐसा भी है जो आज भी ठगा जाता है जिम, शैक्षणिक संस्थान, बैंक, चिकित्सालय से लेकर बाजारों में खरीददारी तक वो विक्रेता के द्वारा ठगा जाता है, जिसको ये पता तक नहीं है कि एक उपभोक्ता होने के नाते उसके क्या अधिकार है। उन्हें ठगी से बचने के लिए किन-किन बातों से सावधान रहना चाहिए। ऐसी कुछ ठगी से बचाने के लिए नीचे कुछ बातें दी गई हैं जिन्हें अपनाकर ठगी से बचा जा सकता है।
बीमा लेते वक्त अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में ये ध्यान रखें। साभार-(उपभोक्ता शिक्षा बेवसाइट)
आज कल बाजार में बहुत सी जीवन बीमा पोलिस चल रही कोई दावा करता है कि जिन्दगी भर साथ देगंे और कोई जिन्दगी के साथ भी और जिन्दगी के बाद भी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि हजारों बीमा पोलिसियों में से कौन सी पोलिस लें जिसमें हम ठगे नहीं, एक जागरूक उपभोक्ता के रूप में,हम आपको बताने जा रहे की आप किस तरह  पॉलिसी कवरेज और दावों के बारे में अपने कर्तव्यों व अधिकारों के प्रति जागरूक रहें और उनके प्रति आपके क्या कर्तव्य हैं जिन्हें निभाने से आप कभी भी बीमा कंपनियों के झांसे में नहीं आऐंगे।

कर्तव्यः जब आप कोई पॉलिसी खरीदें। 
प्रस्ताव फार्म अपने आप सही रूप में व सत्यतापूर्वक भरें, यह बीमा संविदा का आधार होता है
कोई कॉलम खाली न छोड़ें, कोरे प्रस्ताव फार्म पर हस्ताक्षर न करें
इस दस्तावेज में दी गई समस्त सूचनाओं के लिए आप ही जिम्मेदार होंगे क्योंकि इस पर आपके हस्ताक्षर होते हैं। आप जो जोखिम कवर कराना चाहते हैं, उनके बारे में पूरी जानकारी प्रकट करें
पॉलिसी की अवधि को अपनी जरूरत के अनुसार चुनें
प्रीमियम की वही धनराशि चुनें, जिसका भुगतान करने में समर्थ हों
एकल प्रीमियम या नियमित प्रीमियम में से चुनें
आपकी प्रीमियम भुगतान आवृत्ति, जैसे कि वार्षिक, अर्द्धवार्षिक, त्रैमासिक या मासिक चुनें
अपनी सुविधा, सुरक्षा और रिकार्ड के लिए आपके प्रीमियम का इलेक्ट्रॉनिक भुगतान (ईसीएस) का विकल्प चुनें
आपकी पॉलिसी के तहत नामांकन पंजीकरण सुनिश्चित करें। नामिती का नाम सही रूप में लिखें
जब आप पॉलिसी खरीद लें
एक बार प्रस्ताव जमा हो जाने के बाद, आपको 15 दिनों में बीमा कंपनी से प्रत्युत्तर की अपेक्षा करनी चाहिए
अगर ऐसा नहीं होता है तो मामले को लिखित में उठाएँ
यदि कोई अतिरिक्त दस्तावेज मांगे जाएँ, तो तत्काल उपलब्ध कराएँ
बीमा कंपनी द्वारा प्रस्ताव स्वीकृत हो जाने के बाद, आपके पास पॉलिसी बॉन्ड एक उचित समय-सीमा के अंदर पहुंचना चाहिए
यदि ऐसा नहीं होता है तो बीमा कंपनी से संपर्क करें
पॉलिसी बॉन्ड प्राप्त हो जाने पर, इसकी जाँच करें कि पॉलिसी वही है जो आप चाहते थे
पॉलिसी की सभी शर्तें पूरी तरह पढ़ें और सुनिश्चित करें कि ये वही हैं जो मध्यस्थ बीमा कंपनी के अधिकारी द्वारा बिक्री के समय आपको बताई गई थीं
कोई संदेह होने पर, स्पष्टीकरण के लिए मध्यस्थ बीमा कंपनी के अधिकारी से तत्काल संपर्क करें
आवश्यक हो तो बीमा कंपनी से सीधे संपर्क करें
पॉलिसी का रखरखाव करनाः
अपने प्रीमियम का भुगतान नियमित रूप से देय तिथियों पर छूट अवधि के अंदर करें
प्रीमियम नोटिस की प्रतीक्षा न करें। यह केवल शिष्टाचारवश भेजा जाता है। पॉलिसी व्यपगत (लैप्स) होने से या अन्य दण्डों से बचाव के लिए प्रीमियम समय पर जमा करना आपका कर्तव्य है
आपके मध्यस्थ या किसी और के द्वारा आपसे चैक प्राप्त करने की प्रतीक्षा न करें। प्रीमियम का समय पर भुगतान करने की व्यवस्था स्वयं करें
यदि पते में कोई परिवर्तन हो, तो कृपया बीमा कंपनी को तत्काल सूचित करें
नामांकनः
पॉलिसी जारी हो जाने के बाद, आप निम्न के द्वारा नामांकन में परिवर्तन कर सकते हैं।
नामांकन में परिवर्तन की सूचना देकर, तथा
इसे बीमा कंपनी को भेजें, ताकि वे इसे अपने रिकॉर्ड में पंजीकृत कर सकें।
यदि नामिती, अवयस्क है, तो नामिती की अवयस्कता अवधि के दौरान किसी दावे का भुगतान प्राप्त करने के लिए कोई प्रतिनिधि नियुक्त करें
नियुक्त व्यक्ति के रूप में कार्य करने हेतु सहमति दर्शाने के लिए नियुक्त व्यक्ति द्वारा पृष्ठांकन पर हस्ताक्षर कराएँ
यदि आपकी पॉलिसी व्यपगत (लैप्स) हो जाएः
यदि आप समय पर प्रीमियम का भुगतान करने में विफल हो जाएँ, तो आपकी पॉलिसी व्यपगत (लैप्स) हो सकती है। इसे पुनः चालू (पुनर्जीवित) कराने के लिए बीमा कंपनी से संपर्क करें।
यदि आपकी पॉलिसी गुम हो जाएः
यदि आपका पॉलिसी बॉन्ड गुम हो जाए, तो इसकी रिपोर्ट बीमा कंपनी को तत्काल करें
औपचारिकताएँ पूरी करके एक डुप्लिकेट पॉलिसी प्राप्त करें
डुप्लिकेट पॉलिसी में मूल पॉलिसी बॉन्ड के समान ही अधिकार होते हैं
दावे के समयः
बीमा कंपनी की ओर से सभी अपेक्षाओं का पालन करें
जहाँ भी अपेक्षित हो, बीमाकर्ता द्वारा तृतीय पक्षों के विरूद्ध अभियोजन में या दावों की वसूली में बीमाकर्ता का सहयोग करना चाहिए
अधिकारः
आपको निम्न अधिकार प्राप्त हैं
पॉलिसी दस्तावेज प्राप्ति तिथि से 15 दिनों के अंदर जीवन बीमा पॉलिसी निरस्त करना, यदि आप पॉलिसी में किन्हीं नियमों या शर्तों के प्रति असहमत हैं
आप ऐसा कर सकते हैं।
आपत्ति के कारण का उल्लेख करते हुए पॉलिसी वापस करना
आप अदा किए गए प्रीमियम का रिफंड पाने के अधिकारी हैं
कवर की गई अवधि के लिए आनुपातिक जोखिम प्रीमियम, तथा बीमाकर्ता द्वारा चिकित्सा जाँच एवं स्टाम्प ड्यिूटी प्रभारों पर वहन किए गए खर्चों की कटौती कर ली जाएगी
इसके अलावा, यदि यह एक यूनिट लिंक्ड बीमा पॉलिसी (यूलिप) है, तो बीमाकर्ता, निरस्तीकरण तिथि को यूनिटों की कीमत पर उन्हें पुनः खरीद सकता है

यूलिप (यूनिट लिंक्ड इन्श्योरंेस प्लान)
निवेश करने वालों के लिये यूलिप एक पसन्दीदा शब्द है। यूलिप प्रणाली में निवेश करना बहुत अच्छा और लोचशील माना जाता है जो निवेश हेतू एक बेहतर नजरिया प्रदान करता है यूलिप इन्श्योरेंस के अंतगर्त एक ऐसी प्रणाली है जिसमें आप लम्बी अवधि तक निवेशित रह सकते हैं जिसकी अवधि 10 से 20 वर्ष भी हो सकती है। यदि आप कम समय के लिये इसमें निवेश करना चाहते हैं तो किसी बेहतर सलाहकार से  सलाह लेकर ही निवेश करना उचित रहे  गा।
यूलिप और म्यूच्यूअल फंड में क्या अंतर है
न्स्प्च् में आप जो भी प्रीमियम देते हैं उस में से कुछ हिस्सा इन्शुरन्स के अधिभार के लिए भी काट लिया जाता है। यूलिप और म्यूचल फंड में बाकी सब समान होते हुए भी यूलिप में निवेश के लिए बेहतर प्रणाली है जिसमें अधिभारों में कमी के कारण । थ्डब् फंड मेनेजमेंट चार्ज (कोष प्रबंधन अधिभार) आमतौर पर यूलिप में 1.5ः (किसी कम्पनी में यह 0.8ः तक कम होता है) जबकी म्यूचल फंड में आमतौर पर थ्डब् 2.5ः के आसपास होता है। जिस वजह से लम्बी अवधि में जब आपका फंड बहुत बड़ा हो जाता है तो 1ः का अंतर भी बहुत मायने रखता है जिसके कारण यूलिप के पहले पहल होने वाली खर्चों की भी आपूर्ती संभव हो जाती है।
यूलिप प्राणाली को आसान बनाने के लिए कुछ अधिकार प्राप्त हैं ।
आपको आंशिक आहरण का अधिकार है
आपको फंडों में अदला-बदली (स्विच) करने का अधिकार है
आप, पॉलिसी आरंभ होने की तिथि से लॉक-इन अवधि के पश्चात पॉलिसी समर्पित कर सकते हैं
जीवन बीमा पॉलिसी के तहत नामिती नियुक्त आवंटी को मृत्यु दावा राशि पाने का अधिकार है
आप पॉलिसी में निम्न जैसे परिवर्तनों की मांग कर सकते हैंरू
प्रीमियम भुगतान का स्वरूप
पॉलिसी की अवधि
परिपक्वता राशि में बढ़ोत्तरी, तथा
प्रीमियम रिडायरेक्शन
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (1986) 
धारा 1: संक्षिप्त नाम, विस्तार, प्रारम्भ और लागू होना-
भारतीय संसद द्वारा विनियमित इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 है, जिसकी अधिकारिकता जम्मू-कश्मीर को छोड़ कर समस्त भारतवर्ष है। केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित तिथि के उपंरात यथा उपरोक्त यह अधिनियम सम्पूर्ण भारत वर्ष में प्रभावी है।
धारा 2: परिभाषाएं- अधिनियम के अन्तर्गत निम्नवत परिभाषाएं उल्लेखित है ।
1 समुचित प्रयोगशाला से अभिप्राय केन्द्रीय सरकार अथवा राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला से है। 2 शाखा कार्यालय का तात्पर्य विपरीत पक्ष द्वारा शाखा के रूप में वर्णित संस्थान से है।          
3 परिवादी से तात्पर्य उपभोक्ता अथवा केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार से अभिप्रेत तथा समान हित वाले बहुसंख्यक उपभोक्ताओं में से एक या अधिक उपभोक्तागण से है। उपभोक्ता की मृत्यु की दशा में उसका कानूनी शिकायत करने व कोई अनुतोष प्राप्त करने की दृष्टि से लिखित में प्रस्तुत किया गया शिकायती पत्र, जो निम्नलिखित से सम्बधित होगा ।
(अ) जब किसी व्यापारी अथवा सेवा प्रदाता द्वारा अनुचित व्यापारिक व्यवहार किया गया हो।            
(ब) क्रय किये गये अथवा क्रय के लिए सहमत माल में त्रुटियां आना।                        
(स) क्रय किये गये पदार्थ अथवा भाड़े पर लिये गई सेवाओं में किसी प्रकार की कमी।          
(द) किसी व्यापारी अथवा सेवा प्रदाता द्वारा माल या सेवाओं में अधिक कीमत ली गई हो।        
(ध) किसी भी माल अथवा पदार्थ का निर्धारित मानक के उल्लघंन की स्थिति में तथा जीवन और सुरक्षा के लिए परिसंकट में होने की स्थिति में जो जीवन और सुरक्षा के लिए हानिकारक है।
5. उपभोक्ता से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जिसने किसी भी वस्तु पदार्थ तथा सेवा को प्राप्त करने के लिए भुगतान किया हो अथवा अशतः भुगतान किया हो या भुगतान करने का वचन दिया हो। उपभोक्ता का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से भी है, जो सेवाओं का भाडे़ पर लेता है या उपयोग करता है। प्रतिबंध यह हैं कि वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए सेवाऐं लेनेवाला व्यक्ति उपभोक्ता की श्रेणी में नही आता है। किन्तु स्वनियोजन द्वारा अपनी जीविका उपार्जन के प्रयोजनों के लिए ली गई सेवाऐं अथवा क्रय कि गई वस्तुएं इससे भिन्न समझी जायेंगी।                 6 त्रुटि से तात्पर्य गुणवत्ता, मात्र माप-तोल, शुद्धता अथवा मानक आदि में कोई दोष, कमी अथवा अपूर्णता आना है।                                                                    
7 जिला पीठ से तात्पर्य जिला उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय से है।                            
8 सहकारी सोसायटी से तात्पर्य सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1860 के अधीन रजिस्टर्ड संस्था है।  
9 सेवा से तात्पर्य प्रयोगकर्ता को उपलब्ध कराई गई सेवा तथा सुविधाओं का प्रबध्ंा भी है। भुगतान करने पर प्राप्त होती है। किन्तु इसके अन्तर्गत निशुल्क अथवा व्यक्तिगत सेवाऐं नही आती।              
10 अनुचित व्यापारिक व्यवहार किसी माल की बिक्री, प्रयोग या आपूर्ति अथवा सेवाओं को प्रदान करने में अनुचित आचरण एवं व्यवहार से है।
धारा 3- अधिनियम का किसी अन्य विधि के अल्पीकरण में न होना, तात्पर्य यह है इस अधिनियम की व्यवस्था वर्तमान में अन्य विधि की व्यवस्थाओं की अतिरिक्त व्यवस्था के रूप में होगें अर्थात सम्बंधित अधिनियमों में अनुुतोष उपलब्ध होने की स्थिति में भी इस अधिनियम की व्यवस्थाओं का उपयोग किया जा सकता है।
धारा 4- केन्द्रीय उपभोक्ता परिषद का गठन, अधिनियम की व्यवस्था के अनुसार उपभोक्ता मामलों के मंत्री की अध्यक्षता में एक केन्द्रीय परिषद का गठन किया जायेगा जिसमें सरकारी व गैर सरकारी सदस्य प्रतिनिधि होगें।
धारा 5- केन्द्रीय परिषद की प्रक्रिया, केन्द्रीय परिषद की बैठक वर्ष में कम से कम एक बार अवश्य होगी तथा अध्यक्ष के विवेकानुसार बैठक निर्धारित स्थान व समय पर निश्चित किये गये एजेंडे पर होगी।
धारा 6- केन्द्रीय परिषद के उद्धेश्य।                                                  
(क) जीवन एवं सम्पति को हानि पहुँचाने वाले माल, पदार्थ एवं सेवाओं से सम्बंधित अधिकारों के प्रति सुरक्षा। (ख) उपभोक्ताओं को पदार्थ की गुणवत्ता, मात्र, शुद्धता, मानक एवं मूल्य के प्रति संरक्षण सुनिश्चित करना तथा अनुचित व्यापारिक व्यवहार से सुरक्षा।                                        
(ग) प्रतियोगी मूल्यों पर वस्तुओं को उपलब्ध कराने की व्यवस्था।                            
(घ) उचित फोरम पर उपभोक्ताओं के हितों का सरंक्षण।                                      
(च) अनुचित व्यापारिक व्यवहार एवं उपभोक्ताओं के उत्पीडन से सम्बंधित प्रतितोष दिलाना।
धारा 7- राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद रू प्रत्येक राज्य में उपभोक्ता मामलों के मंत्री की अध्यक्षता में एक राज्य कांउसिल का गठन किया जायेगा जिसमें परिषद राज्य सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार वर्ष में कम से कम दो बार अवश्य बैठक करेगी।
धारा 8- राज्य परिषद के उद्धेश्य - उपरोक्तलिखित केन्द्रीय परिषद की भांति राज्य परिषद का उद्धेश्य भी राज्य के क्षेत्र में उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण करना होगा।
धारा 8(1) - प्रत्येक जनपद में जिला कलेक्ट्रर की अध्यक्षता में परिषद का गठन राज्य सरकार द्वारा किया जायेगा जिसमें अन्य सरकारी एवं गैर सरकारी सदस्य होंगे तथा परिषद की बैठक राज्य सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार होगी।
धारा 8(2) - जिला उपभोक्ता परिषद के उद्धेश्य, केन्द्रीय एवं राज्य परिषद की भांति जनपद की सीमा क्षेत्र में उपभोक्ताओं के हितो का सरंक्षण, इस परिषद द्वारा सुनिश्ंिचत किया जायेगा।
धारा 9- जिला उपभोक्ता फोरम का गठन प्रत्येक जनपद में राज्य सरकार द्वारा एक या अधिक जिला फोरम का गठन किया जायेगा।
धारा 10- जिला फोरम का स्वरूप, प्रत्येक जनपद में जिला जज की योग्यता रखने वाले व्यक्ति की अध्यक्षता में जिला फोरम का गठन किया जायेगा जिनमें अन्य दो सदस्य होगें और उनमें से एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य होगा। प्रत्येक सदस्य की नियुक्ति अध्यक्ष सहित पाँच वर्ष की अवधि के लिए की जायेगी।
धारा 11- जिला फोरम की अधिकारिता अधिनियम की व्यवस्था के अनुसार जिला फोरम की जनपदीय सीमा अधिकारिता के अन्तर्गत उपभोक्ता द्वारा निम्न स्थितियों में शिकायत दर्ज कराई जा सकेगी-
(अ) विपक्षी अथवा विपक्षीगण शिकायत दर्ज कराने के समय उक्त जिला फोरम के सीमा क्षेत्र में निवास करते हों, उनका कार्यालय व्यापारिक संस्थान हो अथवा उसकी शाखा हो।                    
(ब) जहां पर एक से अधिक विपक्षी हो वहां पर उनमें से कोई एक उपरोक्तानुसार स्थित हो।    
(स) पूर्ण रूप अथवा आंशिक रूप से कार्य का कारण उत्पन्न होता हो।
यह उल्लेखनीय है कि शिकायतकर्ता के निवास स्थान के आधार पर अधिकारिकता नही बनती है और इस सम्बंध में कोई भ्रम नही रहना चाहिए।
धारा 12- शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया किसी भी उपभोक्ता अथवा पंजीकृत उपभोक्ता संगठन द्वारा अथवा जहां पर अनेकों उपभोक्ताओं का समान हित सम्बद्ध हों, एक या एक से अधिक उपभोक्ता द्वारा अथवा केन्द्रीय एवं राज्य सरकार द्वारा शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। शिकायत के साथ शुल्क की राशि क्रमशः एक लाख पर सौ रूपये, पांच लाख तक की राशि पर दो सौ रूपये, दस लाख तक की धनराशि पर चार सौ रूपये तथा बीस लाख रूपये तक की धनराशि पर पांच सौ रूपये का बैंक ड्रा्ट अथवा पोस्टल आर्डर द्वारा जो अध्यक्ष जिला फोरम के नाम देय होगा, जमा करानी होगी। शिकायत सादे कागज पर विपक्षी गण के नाम व पते सहित शिकायत का विवरण देते हुए जो अनुतोष मांगा गया है उसके उल्लेख के साथ सम्बंधित साक्ष्य की फोटो प्रतियां संलग्न करके तीन प्रतियों में जिला फोरम में प्रस्तुत की जानी चाहिए। शिकायत के लिए वकील की अनिर्वायता नही है और शिकायत स्वयं अथवा अपने प्रतिनिधि द्वारा दर्ज कराई जा सकती है। प्रारम्भ में शिकायत को सुनवाई हेतु स्वीकार करने पर विचार किया जा सकेगा और 21 दिन की अवधि में इस सम्बधं में आदेश पारित किये जायेगें। कोई भी शिकायत बिना शिकायतकर्ता को सुनें अस्वीकृत नही की जायेगी।
धारा 13- शिकायत दर्ज होने के उपरांत की प्रक्रिया, शिकायत प्राप्त होने पर विपक्षी को शिकायत की प्रति भेजते हुए एक माह की अवधि में अपना उत्तर प्रस्तुत करने के निर्देश दिये जायेगें। इस अवधि में केेवल 15 दिन की सीमा और बढ़ाई जा सकेगीं। दोनों पक्षों को सुनवाई का समुचित अवसर देने के उपरांत जिला फोरम द्वारा शिकायत का निस्तारण यथासम्भव तीन माह की अवधि में किया जायेगा। यदि शिकायत के आधार पर किसी वस्तु पदार्थ या माल के तकनीकी अथवा लेबोरट्री परीक्षण की आवश्यकता अनुभव होती है तो सम्बंधित मान्यता प्राप्त लेबोरट्री को सम्बंधित वस्तु पदार्थ भेजा जायेगा ऐसे मामलों में शिकायत का निस्तारण पांच महिने की अवधि में होगा तथा सामान्यतः शिकायत का निस्तारण तीन महिने में किये जाने की अधिनियम में व्यवस्था है।
भारत सरकार द्वारा तीस मई 2005 को निर्गत विनियमों के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि शिकायतों की सुनवाई में सामान्यतः स्थगन न दिया जाये तथा केवल अति आवश्यक मामलों में यदि स्थगन देना पडे तो द्वितीय पक्ष को व्यय के रूप में कम से कम 500 रू. की धनराशि प्रति स्थगन दिलाने की अपेक्षा की गई है। इस प्रकार उपभोक्ता शिकायतों के त्वरित निस्तांरण के प्रति पर्याप्त बल दिया गया है।
धारा 14- इस धारा के अन्तर्गत जिला फोरम के निर्णय के स्वरूप एवं विवरण की व्याख्या की गई है। जिसके द्वारा त्रुटियों के निवारण, माल को बदलने, मूल्य की वापसी तथा क्षतिपूर्ति के भुगतान का विवरण दर्शाया गया है।
धारा 15- जिला फोरम के आदेश की तिथि से एक माह की अवधि में राज्य आयोग में प्रभावित पक्ष द्वारा अपील की जा सकेगी किन्तु आदेशित धनराशि का 50 प्रतिशत अथवा 25000/- की धनराशि जो भी कम हो जमा करनी होगी।
धारा 16- राज्य आयोगपीठ का गठन किया जा सकेगा जिसके अध्यक्ष उच्च न्यायालय सेवानिवृत्त जज होगें।
धारा 17- राज्य की सीमा की अधिकारिता के अन्तर्गत एक करोड़ की धनराशि तक की शिकायतें राज्य आयोग के समक्ष दर्ज कराई जा सकेगी।
धारा 18- राज्य आयोग द्वारा जिला फोरम की भांति, वादों का निस्तारण यथाविधि किया जायेगा।
धारा 19- राज्य आयोग द्वारा पारित आदेश के विरूद्ध अपील एक माह की अवधि में कि जा सकेगी किन्तु आदेशित धनराशि का 50 प्रतिशत भाग अथवा 35000/- जो भी कम हो, जमा करनी होगी।
धारा 20- राष्ट्रीय आयोगपीठ का गठन किया जायेगा, जिसके अध्यक्ष उच्च्तम न्यायालय के सेवानिर्वत्त न्यायाधीश होगें।
धारा 21- राष्ट्रीय आयोग की अधिकारिकता एक करोड़ से अधिक धनराशि की शिकायत होगी।
धारा 22- राज्य आयोग की भांति राष्ट्रीय आयोग की वादों निस्तारण की प्रक्रिया होगी। उपभोक्ता अदालतों के अध्यक्ष के अनुपस्थिति में वरिष्ठ सदस्य पीठ की अध्यक्षता का कार्य करेगें।
धारा 23- राष्ट्रीय आयोग के आदेश के विरूद्ध एक माह की अवधि में उच्चतम न्यायालय में अपील कि जा सकेगी किन्तु आदेशित धनराशि का 50 प्रतिशत अथवा 50000/- जो भी कम हो जमा कराने होगें।
धारा 24- अपील न होने की स्थिति में पारित आदेश अन्तिम होगा। कार्य के कारण प्रारम्भ होने के समय से दो वर्ष की अवधि में शिकायत दर्ज कराये जाने की समय सीमा निर्धारित है।
धारा 25- उपभोक्ता अदालत द्वारा पारित आदेश अनुपालन कराने की व्यवस्था,                  
(अ) अन्तरित आदेशों के अनुपालन न होने पर सम्पति कुर्क किये जाने की व्यवस्था।            
(ब) आदेशित धनराशि की वसूली भू राजस्व की वसूली की भांति जिला कलेक्ट्रर द्वारा कराई जा सकेगी
धारा 26- भ्रामक व झूठे तथ्यों पर आधारित शिकायतों के प्रति दस हजार रू. तक के अर्थदण्ड की व्यवस्था।
धारा 27- उपभोक्ता अदालतों के आदेशों के अनुपालन न करने पर एक माह से तीन वर्ष तक की अवधि के कारावास की व्यवस्था अथवा 2000 से 10000 तक के आर्थिक दंड की व्यवस्था है।
धारा 27(2) - उपरोक्त के प्रति अपील एक माह की अवधि में केवल राज्य आयोग, राष्ट्रीय एवं सुप्रीम कोर्ट में की जा सकेगी।
धारा 28 - फोरम व उपभोक्ता न्यायालय किसी भी न्यायिक प्रक्रिया कि भांति व्यक्तिगत दायित्व से मुक्त होगा और जिला फोरम, राज्य आयोग एवं राष्ट्रीय आयोग के सदस्य के विरूद्ध निर्णय सम्बंधी किसी भी कार्य एवं कृत्य के प्रति किसी प्रकार की वैधानिक कार्यवाही अथवा वाद दायर करना धारा 28 - फोरम व उपभोक्ता न्यायालय किसी भी न्यायिक प्रक्रिया कि भांति व्यक्तिगत दायित्व से मुक्त होगा और जिला फोरम, राज्य आयोग एवं राष्ट्रीय आयोग के सदस्य के विरद्ध निर्णय सम्बंधी किसी भी कार्य एवं कृत्य के प्रति किसी प्रकार की वैधानिक कार्यवाही अथवा वाद दायर करना वर्जित होगा।
धारा 29ः प्रश्नगत अधिनियम में प्रकियाओं के क्रियान्वन में आने वाली कठिनाइयोें को केन्द्रीय सरकार द्वारा दूर किया जा सकेगा।
धारा 30: केन्द्रीय सरकार एवं राज्य सरकारें अधिनियम से सम्बंधित विनियमों का गठन अधिसूचना द्वारा कर सकेगें।
धारा 30(3)- राष्ट्रीय आयोग केन्द्रीय सरकार की अनुमति से प्रश्नगत से सम्बंधित विनियमों का गठन अधिसूचना द्वारा कर सकेगा।
धारा 31 इस अधिनियम से सम्बंधित नियम एवं विनियमों को संसद के समक्ष विचारार्थ रखा जायेगा।
उपभोक्ता अधिकार सरंक्षण के कुछ और कानून
उपभोक्ता के साथ ही स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठन, केंद्र या राज्य सरकार, एक या एक से अधिक उपभोक्ता कार्यवाही कर सकते हैं।

भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम-1885,
पोस्ट आॅफिस अधिनियम 1898,
उपभोक्ता सिविल न्यायालय से संबंधित भारतीय वस्तु विक्रय अधिनियम 1930,
कृषि एवं विपणन निदेशालय भारत सरकार से संबंधित कृषि उत्पाद
ड्रग्स नियंत्रण प्रशासन एमआरटीपी आयोग-उपभोक्ता सिविल कोर्ट से संबंधित ड्रग एण्ड कास्मोटिक अधिनियम-1940,
मोनापालीज एण्ड रेस्ट्रेक्टिव ट्रेड प्रेक्टिसेज अधिनियम-1969,
प्राइज चिट एण्ड मनी सर्कुलेशन स्कीम्स (बैनिंग) अधिनियम-1970
उपभोक्ता सिविल न्यायालय से संबंधित भारतीय मानक संस्थान (प्रमाण पत्र) अधिनियम-1952,
खाद्य पदार्थ मिलावट रोधी अधिनियम-1954,
जीवन बीमा अधिनियम-1956,
ट्रेड एण्ड मर्केन्डाइज माक्र्स अधिनियम-1958,
हायर परचेज अधिनियम-1972,
चिट फण्ड अधिनियम-1982,
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,
रेलवे अधिनियम-1982
इंफार्मेशन एंड टेक्नोलोजी अधिनियम-2000,
विद्युत तार केवल्स-उपकरण एवं एसेसरीज (गुणवत्ता नियंत्रण) अधिनियम-1993,
भारतीय विद्युत अधिनियम-2003,
ड्रग निरीक्षक-उपभोक्ता-सिविल अदालत से संबंधित द ड्रग एण्ड मैजिक रेमिडीज अधिनियम-1954,
खाद्य एवं आपूर्ति से संबंधित आवश्यक वस्तु अधिनियम-1955,
स्टेंडर्डस ऑफ वेट एण्ड मेजर्स (पैकेज्ड कमोडिटी रूल्स)-1977,
स्टैंडर्ड ऑफ वेट एण्ड मेजर्स (इंफोर्समेंट अधिनियम-1985,
प्रिवेंशन आॅफ ब्लैक मार्केटिंग एण्ड मेंटीनेंस आफॅ सप्लाइज इसेंशियल कमोडिटीज एक्ट-1980,
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड केंद्र सरकार से संबंधित जल (संरक्षण तथा प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम-1976,
वायु (संरक्षण तथा प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम-1981,
भारतीय मानक ब्यूरो-सिविल उपभोक्ता न्यायालय से संबंधित घरेलू विद्युत उपकरण (गुणववत्ता नियंत्रण) आदेश-1981,
भारतीय मानक ब्यूरो से संबंधित भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम-1986,
उपभोक्ता न्यायालय से संबंधित उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,
पर्यावरण मंत्रायल-राज्य व केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड से संबंधित पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986
भारतीय मानक ब्यूरो-सिविल-उपभोक्ता न्यायालय से संबंधित विद्युत उपकरण (गुणववत्ता नियंत्रण) आदेश
                                                                                                                -सोहन सिंह







Tuesday, 10 October 2017

दिपावली पर क्यों है हल्ला ?

दिपावली हमारा पौराणिक त्यौहार है और इस त्यौहार पर घर सजाए जाते हैं दीप जलाए जाते हैं नए कपड़े पहने जाते हैं और खूब मिठाईयां भी खाई जाती हैं जिसके साथ अपनी खुशी का इजहार पटाखे फोड़ कर किया जाता है जो स्वाभाविक भी है क्योंकि हिन्दुओं के दो त्यौहार (होली और दिपावली) ही तो ऐसे हैं जिसे वो पूरे दिल से मनाते हैं जिसको लेकर मानव संस्थान तरह तरह शोध करते हैं और रंगों से होली खेलने पर फिर दिवाली पर पटाखे फोड़ने पर प्रतिबंध की बात कहकर अपनी पीठ थपथपाते हैं लेकिन कोई भी इस ओर नहीं सोचना चाहता है आखिरकार कमी कहां हैं जिसके कारण हम अपने प्रमुख त्यौहारों को प्रतिबंधित करने से भी नहीं डरते।
वैसे प्रदूषण का मुद्या कई बार एन.जी.टी की तरफ से उठाया जाता रहा है लेकिन सबसे ज्यादा शोर दिपावली के आस पास ही होता है क्योंकि दिपावली से बहुत प्रदूषण होता है ये बात भी सत्य है कि दिपावली से प्रदूषण तो होता है लेकिन यह बात भी सत्य है प्रदूषण की वजह हमारी दिपावली नहीं है वो मात्र छोटा सा माध्यम है जिसके चलते प्रदूषण का सारा का सारा ठीकरा दिपावली पर फोड़ दिया जाता है जो कहीं तक ठीक प्रतीत होता है लेकिन असल वजह की ओर प्रदूषण संस्थान निगाह नहीं रखते ।
प्रदूषण की मार भारत में चरणबद्व तरीके से साल दर साल बड़ी है जिसकी असल वजह है निरंतर पेड़ों को काटना, गाड़ीयों का बढ़ना और लगातार बढ़ रही जनसंख्या और उनको रोजगार देने हेतु बढ़ रही प्रदूषित निकाय वाली फेक्ट्रियां जो लगातार प्रतिबंध के बावजूद भी प्रदूषण का स्तर बढ़ा रही हैं जिनके चलते आज स्वांश संबधित बिमारियां होती जा रहीं हैं और श्वांस घात, बेहरापन जैसी बीमारियांे की भी संभावनाएं तेजी से बढ़ी हैं यदि प्रदूषण रोकने के लिए कोई कार्य किया जाए तो सबसे पहले रफतार पर प्रतिबंध लगाना पड़ेगा जिससे की सारे मसले सुलझ जाएं।
परंतु इन सबके तद्उपरांत भी इस कार्य को न तो सरकारें करने में रूचि लेती दिख रही हैं और न ही जनता को इस में कोई रूचि ही दिखती है लेकिन महत्वपूर्ण त्यौहारों के सामने आने पर सभी संस्थाएं, लोग इनमें रूचि लेने लगते हैं लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं की दिपावली के शुभ अवसर पर प्रदूषण की मार कई गुणा कर बढ़ जाती है जिससे आम जनता से लेकर खास जनता तक को परेशानियों को झेलना पड़ता है जो वाकैई में एक पर्यावरण के लिए जहरीला दंश है जिसके चलते समाज में पर्यावरण संरक्षण के कई प्रोग्राम भी चलते रहते हैं जिनकी कार्य शैली और कथनी में जमीन आसमान का अंतर दिखता है जो एक विशेष मौके पर ही आता है
-Sohan Singh