चुनावी उठा पटक और उनसे जुडी बातें और वायदे .. सयासी दंगल के जुमले होते हैं, इसका उदाहरण पिछले हुए चुनाव को मध्य नज़र रखते हुए भी दिया जा सकता है.. जिनमे दिल्ली की सत्ता पलट देने वाली पार्टी (आम आदमी) और भारत पर 70 वर्ष राज करने वाली काँग्रेस और 8-9 वर्ष राज करने वाली भाजपा भी है, यदि स्थानीय पार्टियों की बात करें तो, सपा, बसपा, टी.एम.सी, जनता दल, इत्यादि पार्टियां भी इस समूह में शामिल हैं,
बरहाल 2017 के चुनाव का पहर, जोरों से हो रहा छीटाकशी मे भी कोई कमी कही कमी नही आई, वही वायदे और वही इरादे साफ़तौर से देखे जा सकते है पार्टियों के जिनकी कथनी और करनी में कोई भी अंतर नही है, भाषणो को जुमला और जुमलो को भाषण कहा जा रहा है, नोटबंदी के बाद भी चुनावों में , नोट से वोट खरीदते नेता मिल जायेगे, शराब परोसी, कवाब परोसी प्रत्यक्ष प्रमाण है , रिश्वत दे वोट ले का दौर चर्म पर है, नोटो के लिये वोट का महत्व नकारा जा रहा है जनता मूर्ख और और मूक प्रतीत हो रही है, जब चाहे तब नेता जनता को पलडे में तोल सकते, सबका साथ सबका विकास का नारा खोता सा प्रतीत हो रहा है, सरगर्मीयों के बाज़ार मिडिया खूब बेच रही हैजिनका उद्देश्य मात्र पैसा उगाना सा प्रतीत होता...'जिससे ज्यादा मिले उसकी चले' सा प्रतीत होता, प्रशासन और चुनाव आयोग की अवहेलना सर चढ कर हो रही ही है इन खामियों के बावजूद भी 2017 में 5 प्रदेशों को सरकारें मिलने वाली हैं, अब देखना ये होगा कि इनकी ईमानदारी , निष्ठा और सत्यता कब तक प्रमाणित रहती है...
- सोहन सिंह
Tuesday, 31 January 2017
2017 का सियासी दंगल
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