Tuesday, 10 October 2017

दिपावली पर क्यों है हल्ला ?

दिपावली हमारा पौराणिक त्यौहार है और इस त्यौहार पर घर सजाए जाते हैं दीप जलाए जाते हैं नए कपड़े पहने जाते हैं और खूब मिठाईयां भी खाई जाती हैं जिसके साथ अपनी खुशी का इजहार पटाखे फोड़ कर किया जाता है जो स्वाभाविक भी है क्योंकि हिन्दुओं के दो त्यौहार (होली और दिपावली) ही तो ऐसे हैं जिसे वो पूरे दिल से मनाते हैं जिसको लेकर मानव संस्थान तरह तरह शोध करते हैं और रंगों से होली खेलने पर फिर दिवाली पर पटाखे फोड़ने पर प्रतिबंध की बात कहकर अपनी पीठ थपथपाते हैं लेकिन कोई भी इस ओर नहीं सोचना चाहता है आखिरकार कमी कहां हैं जिसके कारण हम अपने प्रमुख त्यौहारों को प्रतिबंधित करने से भी नहीं डरते।
वैसे प्रदूषण का मुद्या कई बार एन.जी.टी की तरफ से उठाया जाता रहा है लेकिन सबसे ज्यादा शोर दिपावली के आस पास ही होता है क्योंकि दिपावली से बहुत प्रदूषण होता है ये बात भी सत्य है कि दिपावली से प्रदूषण तो होता है लेकिन यह बात भी सत्य है प्रदूषण की वजह हमारी दिपावली नहीं है वो मात्र छोटा सा माध्यम है जिसके चलते प्रदूषण का सारा का सारा ठीकरा दिपावली पर फोड़ दिया जाता है जो कहीं तक ठीक प्रतीत होता है लेकिन असल वजह की ओर प्रदूषण संस्थान निगाह नहीं रखते ।
प्रदूषण की मार भारत में चरणबद्व तरीके से साल दर साल बड़ी है जिसकी असल वजह है निरंतर पेड़ों को काटना, गाड़ीयों का बढ़ना और लगातार बढ़ रही जनसंख्या और उनको रोजगार देने हेतु बढ़ रही प्रदूषित निकाय वाली फेक्ट्रियां जो लगातार प्रतिबंध के बावजूद भी प्रदूषण का स्तर बढ़ा रही हैं जिनके चलते आज स्वांश संबधित बिमारियां होती जा रहीं हैं और श्वांस घात, बेहरापन जैसी बीमारियांे की भी संभावनाएं तेजी से बढ़ी हैं यदि प्रदूषण रोकने के लिए कोई कार्य किया जाए तो सबसे पहले रफतार पर प्रतिबंध लगाना पड़ेगा जिससे की सारे मसले सुलझ जाएं।
परंतु इन सबके तद्उपरांत भी इस कार्य को न तो सरकारें करने में रूचि लेती दिख रही हैं और न ही जनता को इस में कोई रूचि ही दिखती है लेकिन महत्वपूर्ण त्यौहारों के सामने आने पर सभी संस्थाएं, लोग इनमें रूचि लेने लगते हैं लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं की दिपावली के शुभ अवसर पर प्रदूषण की मार कई गुणा कर बढ़ जाती है जिससे आम जनता से लेकर खास जनता तक को परेशानियों को झेलना पड़ता है जो वाकैई में एक पर्यावरण के लिए जहरीला दंश है जिसके चलते समाज में पर्यावरण संरक्षण के कई प्रोग्राम भी चलते रहते हैं जिनकी कार्य शैली और कथनी में जमीन आसमान का अंतर दिखता है जो एक विशेष मौके पर ही आता है
-Sohan Singh