क्या है बाजार ?
बाजार वह व्यवस्था जहां वस्तु को खरीदा व बेचा जाता है और उपभोक्ता और निर्माता में सीधा संवाद स्थापित करके बाजारी अर्थव्यवस्था को सुचारू बनाया जाता है जहां पर उवभोक्ता को भगवान माना जाता है और उसकी उपयोगी हर वस्तु को वहां पर उसके लिए रखा जाता है जिसे वह क्रय करना चाहता है जिससे निर्माता और उपभोक्ता मे सीधे तौर पर व्यवहार बनाता है जिसके फलस्वरूप उपभोक्ता की संतुष्टि को ध्यान में रख कर वस्तु को क्रय किया जाता है।
बाजार विभाजन
बाजार में उपभोक्ताओं की एक सामान मांग रखने वाले समूह को विभाजित करने की प्रक्रिया को बाजार विभाजन कहते है आसान शब्दों में कहें तो उपभोक्ताओं की मांगो के अनुसार किये गए विभाजन को बाजार विभाजन कहा जाता है जिसके अंतगर्त उपभोक्ता को अपनी मांग के अनुसार बाजार से वस्तु का क्रय करके संतुष्ठि प्राप्त होती हैं।
अलग- अलग कार्यक्लापों में बंटा उपभोक्ता बाजार
भौगोलिक दृष्टि से देखें तो बाजार निर्माता, बाजार को अपनी इच्छा अनुसार विभाजित कर सकता है जिसमें राष्ट्र ,राज्य, देश ,शहर और मौसम आदि सम्मिलित हो सकते हैं। भौगोलिक विभाजन, जनसंख्या और भौगोलिक दृष्टि दोनों की सूचना रखता जिसके कारण वह कंपनी की रुपरेखा अच्छी कर सकें। उदाहरण के तौर पर बारिश के मौसम में निर्माता बारिश से बचने के लिए छाता बेचता है और सर्दी के मौसम में ऊनी कपड़े बेचता है जिसकारण से वह किसी भी मौसम में अपनी पकड़ बाजार में बनाए रखता है चाहे वह सर्दी हो या गर्मी हो वह दोनों मौसमों के हिसाब से वस्तु को बेचता है। हर राज्य का रहन सहन अलग होता है इसलिए उत्पादक को उपभोक्ता की रूचि और राज्य की भौगोलिक दृष्टि को समझते हुए और उनकी जरुरतों को नजर में रखते हुए ही वस्तु को बेचना चाहिए।
उनके कुछ इस प्रकार के भौगोलिक दृष्टिकोण हैं
देश- भारत, श्री लंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, अमेरिका, यूरोप, चीन इत्यादि।
प्रदेश क्षेत्र- उतर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम
शहर के आकार- बड़ा शहर (जनसंख्या चालीस लाख से भी ज्यादा), मध्यम शहर (दस लाख से ज्यादा पर 40 लाख से कम), छोटा शहर (पाँच लाख से ज्यादा )
घनत्व- शहर, गावँ, उपनगर
जलवायु- उतरी, दक्षिणी
जनसंख्या के आधार पर विभाजन
बाजार का विभाजन जनसंख्या के आधार पर किया जा सकता है जिसमें उम्र, पेशा, पढ़ाई, लिंग आदि, महत्व रखते हैं जिसके लिए हमारे देश से उच्च उदाहरण किसी और देश का नहीं हो सकता क्योंकि हमारा देश युवाओं का देश कहलाता है जिसमें औसतन उम्र 16 से 60 के बीच की ही पाई जाती हैं जिसके कारण बाजार का विभाजन भी 16 से 60 के युवा ग्राहकों के समूह को मद्दे नजर रख कर ही किया जाता है ताकि उत्पादक अपने उत्पादों को ज्यादा से ज्यादा मात्रा में जनमानस तक पहुंचा सकें।
जिनको हम कुछ निम्न श्रेणियों में बांट सकते हैं जो इस प्रकार हैंः-
उम्र- 6 वर्ष से नीचे, 6 से 11 वर्ष, 12 से 19 वर्ष, 20 से 34 वर्ष, 35 से 49 वर्ष, 50 से 64 वर्ष और 65 वर्ष से ऊपर।
लिंग- पुरुष, स्त्री
परिवार के सदस्य- एक से दो, तीन से चार, या पाँच से अधिक।
परिवार जीवन चक्र- जवान, अकेला, शादीशुदा, शादीशुदा पर कोई बच्चे नहीं, शादीशुदा और बच्चे इत्यादि।
आमदनी- वंचित रहने वाले (90,000 रुपये से कम),चाहत रखने वाले (90,000 से 2 लाख) जिज्ञासा रखने वाले (21 लाख से 91 लाख) भारत से बाहर रहने वाले (10 लाख से ऊपर)
मनोविज्ञान विभाजन
उपभोक्ता की सोच पर निर्भर करने वाले विभाजन को मनोविज्ञान विभाजन कहा जा सकता है जिसमें उपभोक्ता की पसंद ना पसंद एक दूसरे से अलग होती है जिसके रहते बाजार में ग्राहक अपनी पसंद की वस्तु को ही क्रय करता है जो सही मायने में उपभोक्ता की रूचि वाली होती है और एक ही समय में दो उपभोक्ता एक समान वस्तु का क्रय नहीं करते बल्कि दो अलग-अलग वस्तु का क्रय एक ही समय में अपनी रूचि के हिसाब से करते हैं जिनमें खाने की वस्तु से लेकर पहनने के कपड़े तक हो सकते हैं जो उनकी मनो स्थिति को स्पष्ट करते हैं कि वह किस वस्तु को अपने लिए अच्छा समझते हैं और किसको छोड़ देते हैं जिससे उपभोक्ता की मनोस्थिति का पता विक्रेता को हो जाता है और उसकी रूचि की वस्तु को बाजार में भारी मात्रा में उपलब्ध करता है और मुनाफा कमाता है।
व्यवहार/ उपयोग वर्गीकरण - बाजार का वर्गीकरण इस आधार पर किया जा सकता है कि उपभोक्ता किसी उत्पाद विशेष का उपयोग कितनी बार या कितनी भारी मात्रा में करते हैं। जिससे उसका व्यवहार और उसके द्वारा उपयोग की गई वस्तु का वर्गीकरण किया जा सकता है। जिनको हम निम्न श्रेणी में बांट सकते हैं जो इस प्रकार हैः-
अवसर- नियमित अवसर, खास अवसर, अवकाश अवसर, ऋतुनिष्ट अवसर।
लाभ- गुण, सेवा, किफायती, सुविधा, गति इत्यादि।
प्रयोगकर्ता दर- कम प्रयोगकर्ता, मध्य प्रयोगकर्ता, मजबूत प्रयोगकर्ता।
प्रयोगकर्ता स्तर- कोई प्रयोगकर्ता नहीं,पुरानेप्रयोगकर्ता,सामर्थ्य प्रयोगकर्ता।
वफादारी स्तर- कुछ भी नहीं,माध्यम स्तर,मजबूत स्तर और पूर्णतया।
ज्ञात स्तर- बेखबर,अवगत,सूचित,रूचि रखनेवाले,इच्छा करनेवाले,खरीदने का इरादा रखनेवाले।
उत्पाद की ओर रवैया- उत्साहयुक्त,सकारात्मक,नकारात्मक,जैसे तैसे, शत्रुतापूर्ण।
लाभ से विभाजन
उपभोक्ता या ग्राहकों के लाभ के अनुसार भी विभाजन किया जा सकता है, उपभोक्ता की वजह से ही व्यापारी बाजार में अपना गुजारा कर रहे है अगर ग्राहकों को लाभ नहीं होता तो वो विभाजन ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाता कंपनियां ग्राहकों को सिर्फ कम दाम पर उत्पाद देकर ही नहीं बल्कि उन्हें ग्राहकों के घर तक पहुंचाकर भी उससे लाभ कमा सकती हंै।
सांस्कृतिक विभाजन
ग्राहकों को उनकी सांस्कृति में विभाजित करना ही सांस्कृतिक विभाजन कहलाता है, सांस्कृति एक विरासत के तौर पर कार्य करती है जिससे उपभोक्ता का लगाव जुड़ा होता है जिसके चलते उसके व्यवहार का पता लगाया जा सकता है, जब निर्माता को ग्राहकों की सांस्कृतिक सोच और लगाव को परख लेता है तो वह उसी हिसाब और उसकी रूचि को ध्यान में रख कर बाजार को सजाता है उदाहरण के लिए दिपावली के अवसर पर उपभोक्ता को सजावट और मिठाईयों की खरीदारी ही करनी होता है तो निर्माता बाजार में उसी त्यौहार के हिसाब से समान रखता है जिससे उपभोक्ता को वह संतुष्ट कर सके और अपनी बाजार में पेंठ भी कायम कर सके और वह अपना उत्पादन जारी कर रख सकता है संस्कृति विभाजन से निर्माता अपना संदेश उपभोक्ता तक उन तक सही से पहुँचाने में सफल रहता हैं।
बाजार विभाजन के लाभ,
जब निर्माता लाभ कमाने को बाजार मे उतरता है तो उसे बाजार में उपभोक्ता की रूचि के हिसाब से बाजार में वस्तुएं रखनी होती है वस्तुओ की मांग कितनी और कहाँ पर उसे विक्रय करना है का पता रहता है तो निर्माता उस हिसाब से अपनी विनिर्माण की विधि बदल देता है और जिन वस्तुओ की उपभोक्ता को मांग हैं वह सिर्फ उन्हीं वस्तुओं को बाजार में स्थान देगा जिससे की उसे ज्यादा लाभ हो सके और उपभोक्ता को उसकी रूचि के हिसाब से वस्तु मिल सके ।
विशेषज्ञता
विशेषज्ञता से तात्पर्य यह कि निर्माता जब बाजार में उतरता है तो वह अपनी विनिर्माण वस्तुओ की मांगो के हिसाब से उन्हें भारी मात्रा में खरीदता है या बनाता है/बनवाता है जिसमें वह उच्चलाभ के लिए वस्तुओं में नई तकनीकी का इस्तेमाल करके उनकी खूबियों को बढ़ा देता है जिससे होता यह है कि उपभोक्ता उसी वस्तु को खरीदता है जो और से अलग दिखती है। यदि हम किफायती निर्माता कि बात करें तो वह विभाजित समूह के ग्राहकों की मांगो के अनुसार ही उत्पाद करता है जिससे वह वस्तुओं को किफायती दाम में बना सकता है इससे उपभोक्तो को कम लागत में अच्छी वस्तुऐं क्रय करने को मिल जाती है। ज्यादा लाभ कमाने के लिए निर्माता मांगो के अनुसार अपनी वस्तुओ का उत्पादन करता है तो वो अन्य खर्चे बचा पाता है और उस बचत को किसी और उपयोग में लाता हैं जिससे उसे और अधिक लाभ प्राप्त होता है जिसमें उसकी समझ और उसकी विशेषज्ञता का भी पता लगता है कि निर्मात बाजार मांग को लेकर क्या सोचता है।
संसाधनों का उपभोक्ता को नजर में बनाए रख कर किया गया उपयोग
बाजार में निर्माता संसाधनों को उपभोक्ता की रूचि के हिसाब से उन वस्तुओ की मांगो का उत्पादन करता है जिसके लिए वह कच्चा माल भी उसी हिसाब से खरीदता है, क्योंकि कच्चा माल उपभोक्ता की रूचि को ध्यान में रखकर खरीदा जाता है जिससे उपभोक्ता की मांग को पूरा किया जा सके और निर्माता का उसके सामान और उपभोक्ता की रूचि बाजार में बनी रहे जिससे की निर्माता उस कच्चे माल को उसकी सर्वश्रेष्ठ श्रेणी का उपयोग कर सकेे ।
लक्ष्य निर्धारण
लक्ष्य निर्धारण का सीधे तौर पर आशय है कि उपभोक्ता को केन्द्र बिन्दू में रखा जाए जिससे की बाजार विभाजन का सही तरीके से निर्धारण किया जाए तब बाजार को उत्पाद के जरूरत के अनुसार बांट दिया जाता है उसके तद्उपरान्त ही लक्षित किया जाता है इसी प्रक्रिया को ही लक्ष्य निर्धारण कहा जाता है दसरे शब्दों में कहें तो विभाजित समूह के ग्राहकों को एक या एक से अधिक क्षत्रों के खंडो में आकर्षण और मूल्यांकन से दर्ज करने की विधि को लक्ष्य निर्धारण कहा जाता है।
उपभोक्ता के लिए बाजार के विभाजन
1. बाजार का आकार
निम्न बातों को ध्यान में रखें तो बाजार का आकार भी उपभोक्ताओं के लिए बहुत ही आवश्यक होता है जिससे उपभोक्ता और निर्माता दोनों ही प्रभावित होते हैं जो स्वाभाविक भी है क्योंकि किसी बाजार की भव्यता और उपभोक्ताओं की उपस्थिति उसके आकार के माध्यम से ही मापी जाती है कि बाजार कितना फल सकता है और कितना उपभोक्ता को संतुष्ट कर सकता है जिसमें उसकी आवश्यकता के हिसाब से कितने वस्तुओं को निर्मात विक्रय के लिए रखता है जिससे की बाजार का आर्कषण उपभोक्ता के निगाहों में बना रहता है जोकि बाजार की उपलब्धि स्पष्ट दिखाता है।
2. विकास दर में बाजार
बाजार में उसके विकास की खासी अहमियत होती है क्योंकि बाजार की विकास दर ही उपभोक्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करती है यदि बाजार की विकास दर सही नहीं है तो निर्माता परेशान रहता है जिससे होता यह कि वह उपभोक्ता की संतुष्टि के हिसाब से वस्तुओं का क्रय नहीं कर पाता जो एक हिसाब से नाहि उपभोक्ता के लिए सही है और नहीं ही निर्माता के लिए ही सही है इसलिए बाजार की विकास दर का मानक उपभोक्ता को ही माना जाता है यदि बाजार सुचारू रूप से अपनी विकास दर पर चल रहा है तो बाजार के खर्चे में कमी आएगी जिससे की उसकी विकास दर बढ़ेगी। जिसका सीधा लाभा उपभोक्ता और निर्माता को ही होगा।
3. बाजार में प्रतियोगिता
बाजार की प्रतियोगिता उसकी कार्य शैली को दर्शती है जिसमें निर्माता लाभ प्राप्त करने हेतु अपनी रणनितियों को एक निरंतर समय पर बदलता रहता है जिससे की उसको लाभ हो और उसके द्वारा उपभोक्ता को भी लाभ हो लेकिन इस में अपवाद की गुंजाईश भी अधिक हो जाती है जिसमें प्रतियोगिता के लिए निर्माता आपस में भिड़ जाते है जिनका लाभ उपभोक्ता को ही होता है ।
4. वर्तमान में उपभोक्ता की बाजार में उपलब्ध अच्छे समान के प्रति वफादारी
वर्तमान समय में बाजारों के अंतर्गत उपभोक्ता अच्छे समान के लिए भटकता है उसे अच्छा और उच्च गुणवता वाला समान उपलब्ध हो जाता है तो उसको वह ब्रांड किसी भी कीमत में चाहिए होता है जिसके लिए वह अच्छी किमत भी देने को तैयार हो जाता है जिसमें निर्माता का खर्च कम हो जाता है और समान को की उच्चता बढ़ जाती है और उपभोक्ता की वफारदारी भी उस समाने के लिए बढ़ जाती है जिससे बाजार में समान की वेल्यू बढ़ जाती है।
लक्ष्यों निर्धारण के साथ बाजार के नैतिक विकल्प
बाजार हमारे समाज की बहुत बड़ी और विचारशील व्यवस्था है जिसके अतंगर्त नैतिक विकल्प का भी दायरा होना सुनिश्चित है जिसके माध्यम से लक्ष्य चयन होना अनिवार्य होना चाहिए इसमें कोई भी अनुचित साधन नहीं अपनाना चाहिए जिससे की समाज को नुकसान हो।
उदाहरण के विज्ञापन में बच्चों से संबंधित उत्पाद में बच्चों को एक शक्तिशाली या शक्तिमान होने का दावा नहीं करना चाहिए क्योंकि कई सूरतों मंे बच्चों पर इस विज्ञापन को बुरा प्रभाव भी हो सकता है और बच्चा उसकी नकल भी उतार सकता है जो उसके लिए हानिकारक साबित हो सकता है। इसलिए विज्ञापन के लिए नैतिक विकल्प को ध्यान में रखकर ही लक्ष्य निर्धारण करना आवश्यक है।
विभाजन का परस्पर सबंध
हर कंपनी के अपने बिक्री बल होते हैं और वो उनके लिए एक निश्चित लागत लेकर चलती है वो अपने निर्माण समाग्री में कई और उत्पादको को जोड़ने की क्षमता रखती है जिसके फलस्वरूप वह अपनी निजी निश्चित लागत को कम कर सके।
कंपनी के उद्देशय और संसाधन
कंपनी अपने क्षेत्र में उपभोक्ताओं का ध्यान रखती है और बेहतर संसाधनों के माध्यम से उच्चतम क्वालिटी के मूल्य की उपभोक्ता को देने की कोशिश करती है जिसमें उसमें संसाधनों की कमी न मात्र होती है जिससे वह ज्यादा लाभ कमा सकती और बाजार में अपनी स्थिति भी मजबूत कर सकती है जिसके चलते उसे आगे चलकर लाभ को कमा सकती है और अपनी पकड़ कर भी बाजार पर मजबूत कर सकती है।
लक्ष्य निर्धारित बाजार की रणनीतियां
किसी भी व्यक्ति विशेष या वस्तु विशेष के लिए लक्ष्य रखना अत्यन्त आवश्यक होता है यदि हम बाजार की बात करें तो बाजार की रणनितियां मात्र लाभ को ध्यान में रख कर बनाई जाती हैं लक्ष्य भी लाभ को ध्यान में लेकर किया जाता है जिसमें बाजार को किसी एक क्षेत्र में विभाजित किया रहता है जिसमें उत्पादक हर प्रकार की वस्तु को लेकर चलता है जिससे वह उपभोक्ता को बाजार में आसानी से खींच सके और अपनी वस्तु के माध्यम से अत्याधिक लाभ ले सके जिसमें उत्पादक को किसी और क्षेत्र/बाजार/ खंड की विशेष रचना नहीं करनी होती और वह उस एक क्षेत्र के माध्यम से उपभोक्ताओं में अपनी पकड़ बना कर अपना लक्ष्य साधता है।
चयन करने की क्षमता
कंपनी अपने द्वारा निर्धारित प्रत्येक खंडो/बाजारों में अलग से व्यापार के लिए बाजारों के प्रभाव को उपयुक्त रूप से चयन करती हैै जिससे उपयुक्त खंड या बाजार कंपनी का लक्ष्य उसकी वस्तु को उपभोग करने के लिए उपभोक्ता को अपना लक्ष्य बनातें है जिससे यह बाजार थोड़ा मंहगा होता है क्योंकि इस क्रम में उत्पादतक को उपभोक्ता की पसंद पर काम करने का मौका नहीं मिलता जिससे की उत्पादतक को उसकी पंसद का पता नहीं रहता।
संपूर्ण बाजारी आवरण
संपूर्ण बाजारी आवरण एक ऐसी प्रक्रिया जिसमंे हर उत्पाद के लिए अलग अलग खंड दिये होते हैं जिसमें उपभोक्ता को अपने हिसाब से जरूरतमंद चीजों को खरीदने की आजादी होती है जिसमें उपभोक्ता को एक अधिक गुणवता वाली वस्तु का चयन करने की आजादी होती है जिसमें बाजार का स्वरूप उपभोक्ता की जरूरती समानों से भरा होता है जिसे वो इस व्यवस्था के माध्यम से आसानी से प्राप्त करते हैं।
वस्तु विशेषज्ञता
इस प्रक्रिया के अंतगर्त निर्माता बाजार में अलग अलग खंडों को विभाजित कर एक जैसा ही उत्पाद बेचते है जिसमें उत्पादक एक ही तरह की सोच विचार रखने वाले उपभोक्ताओं को अपना लक्ष्य बनाता है जिसके कारण से यह और बाजारों से सस्ता होता है।
बाजार विशेषज्ञता
इस प्रक्रिया के अंतर्गत उपभोक्ताओं को ध्यान में न रखकर बाजार में हो रहे उत्पादन को ध्यान में रखा जाता है जिसमें अलग अलग खंड बना दिये जाते हैं और उनके माध्यम से ही उपभोक्ता को लक्ष्य किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप बाजार का स्वरूप निखरता है और हर प्रकार की वस्तु की उपलब्धता उपभोक्ता को स्वंय ही आर्कषित करती है जो बाजार को एक नई परिभाषा देती नजर आती है।
लक्षित बाजार को चयन करने की रणनीति
इस रणनीति के अंतगर्त बाजार के उस दृष्टिकोण को देखा जाता है जिसमे बाजार एक समूह के रूप में हो जिसके अंतगर्त बिना किसी विभाजन रणनिति को केवल उत्पादक इस्तमाल कर सकता है जिसके अंतगर्त छोटा बाजार आता और उसके उत्पादक भी बहुत कम होते हैं और उपभोक्ता ज्यादा होते हैं। जिसमें की उपभोक्ता को चयन का अधिकार न मात्र ही होता है और उत्पादक अपनी मनमानी भी कर सकता है क्योंकि उपभोक्ता के पास और कोई विकल्प नहीं है।
एक लक्ष्य पर ही ध्यान केंद्रित करना
इस लक्ष्य को ध्यान करने से तात्र्पय यह ही कि बाजार की सर्वोच्च इकाई के चयन करने पर ध्यान केंद्रित करना। जहाँ पर खरीदारी के प्रयास ही किये जाते हैं जिसमें कंपनी एक क्षेत्र या खंड को समझने में ध्यान देती है जिसमें उत्पादक सिर्फ उस एक विशेष क्षेत्र की मांगों और जरुरतो को जानने में ज्यादा ध्यान देता है जिसमें उसे अत्यधिक उपभोक्ता प्राप्त हो सकें और उनमें वह अपनी सफल रणनीतियांे से अपनी पेंठ बना सकें।
अत्याधिक क्षेत्र लक्ष्य निर्धारण
इस लक्ष्य निर्धारण का प्रयोग तब किया जाता है जब दो या दो से अधिक अच्छी कंपनियां या बाजार हों जिसमें उनके विकास के लिए अलग अलग रणनीतियां बनाई जाती है जिससे की अत्याधिक उपभोक्ताओं द्वारा लाभ लिया जा सके उन्हें उनके मुताबिक बाजार में वस्तु उपलब्ध कराई जा सके जिससे की निर्माता को लाभ हो और बाजारी पृष्ठभूमि निखरे।
बाजार की कमजोरियां
छोटी-छोटी कंपनियां अपने व्यापार को लेकर बहुत सारा पैसा खर्च करती हैं और लगातार प्राथमिक अनुसधांन कराती रहती हैं जिससे की वह जान सके कि बाजार में उपभोक्ता किस समाना के लिए ज्यादा सोचता है और किस उत्पाद को ज्यादा क्रय करता है जिसके लिए वह कंपनी अनुसंधान एजेंसी को किराए पर लेेती जिसके लिए वह लाखों रूपये खर्च कर देती है।
लक्षित बाजार उपभोक्ता को पहचानने में समय लेता है जिसके लिए उसे अनुसंधान और विश्लेषण के जैसी प्रक्रिया का सहारा लेना होता है मिले डेटा माध्यम से उपभोक्ता रूचि को समझते हुए विज्ञापन बनाता है जो अत्याधिक मंहगा होता है।
जब उत्पादकर्Ÿाा अपने उत्पाद को बाजार में उपभोक्ताओं की मांगो और जरूरतों के हिसाब से बांटता है जिसमें वह उन्ही उपभोक्ताओं को ध्यान में रखता है जो उसके उत्पाद की मांग रखते हैं जिसके लिए वह बाकि के बचे उपभोक्ताओं को नजरअंदाज कर देता है।
बाजार में चल रही छोटी-छोटी कंपनियां उस समूह को अपना लक्ष्य बनाती है जिनका संख्या बल ज्यादा हो और कम पढ़े-लिखे हों और कौन किस वस्तु को कितना पसंद कर रहा हैं और किस वस्तु को ज्यादा महत्व दे रहा है इस आधार पर उनकी सेवन की जांच करके एक सूची तैयार करती हैं जिसके माध्यम से वह उसी वस्तु को बाजार में उनके लिए उपलब्ध करा सकें।
मूल्य निर्धारण क्या है
मूल्य निर्धारण एक ऐसी प्रक्रिया है जो वस्तुओं या सेवाओं की अंतिम या अस्थायी बिक्री मूल्य निर्धारित करने और श्रेणि तैयार करने से संबंधित है। मूल्य निर्धारण किसी व्यवसाय के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य होता है। जब उत्पाद में निर्भय होकर निर्णय किए जा रहे हों तो उद्यम रणनीतिक स्तर पर निर्णय करता है कि वह उस उत्पाद के जिसे वो बाजार में उपभोक्ताओं के उतारना चाहता है मूल्य को उच्च या कम रखे। मूल्य निर्धारण की रणनीतियों का मूल्यांकन करने की इस प्रक्रिया में अक्सर व्यवसायियों को बहुत परेशानियां उठानी पड़ती हैं। जिसमें वे लाभ की आशा में कीमत बहुत कम नहीं करना चाहते जिसमें उन्हें डर रहता है कि यदि वे कीमत बहुत अधिक रखेंगे तो उपभोक्ता उनके प्रतिद्वंद्वियों के पास चले जाएंगे। एक ऐसी कीमत का निर्धारण मुश्किल हो सकता है जो कि उपभोक्ताओं और आपके लिए बिल्कुल सही रहे। लेकिन यह आपके व्यवसाय की सफलता के लिए एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली कदम है।
निर्धारण प्रक्रिया की स्थिति
बाजार में स्पष्टता होनी चाहिए कि वस्तुए बाजार में उपस्थित उपभोक्ता को पंसद आएगी या नहीं। वस्तु के उत्पाद की विशेषता का एक मापदंड मापा होना चाहिए जिससे कि वह उत्पाद के आंतरिक विशेषता को अंकित करें जो उपभोक्ता को सुनिश्चित करे।
बाजार के अंतगर्त उपभोक्ता द्वारा खरीद को नजर में रख कर यह जानकारी एकत्रित करें कि प्रत्येक वस्तु उत्पाद पर वह क्या सोच रखते हैं उनकी पसंद क्या है़ ? इन कुछ प्रश्नों को आधार बनाकर उपभोक्ता के विचारों को जाने।
उत्पाद को उपभोक्ता तक पंहुचाने के लिए उत्पाद का स्थान निर्धारण आवश्यक है जिससे की उपभोक्ता वस्तु उपभोग के लिए उस स्थान पर आसानी से विचर सके।
विशेषता और वस्तुआंे का मिश्रण बाजार को उपभोक्ता के लिए अत्याधिक रोचक बना देता है इसलिए उत्पाद वस्तुओं की विशेषता और मिश्रण का खास ध्यान रखें जिससे उपभोक्ता को एक वस्तु के अलग अलग मिश्रण मिल सकंे।
बाजार की दृष्टि से वस्तु का मूल्य निर्धारण
मूल्य निर्धारण का सीधा संबंध बाजार में वस्तु के उत्पादन पर निभर्र करता है कि क्या उत्पाद किया जा रहा है जिसमे कंपनी किसी वस्तु का एक मुल्य निर्धारित कर बाजार में उतार कर मुनाफा कमाती है जिसके क्रमशः तीन घटक लाभ कमाने हेतू उपयोगी सिद्ध होते हैं 1. बाजार 2. निर्माण लागत 3. प्रतियोगिता । मूल्य निर्धारण अर्थशास्त्र के नजरिये से आर्थिकी के विŸाीय माॅडलिंग का मौलिक तत्व है जो कंपनी के लिए आय पैदा करते हैं जो खरीद और बिक्री आदेशों पर कीमतें लागू करने की हस्तचालित या स्वचालित प्रक्रिया है, जो कुछ कारकों पर आधारित है 1.निश्चित राशि, 2. माल की मात्रा, 3. प्रोत्साहन या बिक्री अभियान, 4.विशिष्ट विक्रेता बोली, 5. लदान और चलान की तारीख जिसमें आदेश, संयोजन, स्वचालित प्रणाली और अनुरक्षण की आवयकता होती है जो मूल्य निर्धारण में हुई गलतियों को कम करती है जिसे उपभोक्ता तभी खरीदता है जब उत्पादक गुणवता वाला हो और जिसमें उसकी खरीद की इच्छा साफ झलकती हो और उस उत्पाद खरीदने की उसमें क्षमता मौजूद हो। यही कारण बाजार में मूल्य निर्धारण को अति महत्वपूर्ण बना देता है।
उत्पादन की क्षमता द्वारा मूल्य निर्धारण
मूल्य-निर्धारण, विचार-विमर्श ही पहला कदम है, जिसके अंतगर्त सेवा या उत्पाद के लिए क्या कीमत ली जाए यह प्रश्न उठता, जिसमें विक्रेता द्वारा यह प्रश्न अनिवार्य होता है कि ग्राहकों को विक्रेता द्वारा प्रदान किए जा रहे उत्पादों, सेवाओं और अन्य अप्रत्यक्ष चीजें उपभोक्ता के लिए क्या मूल्य रखती हैं। जिसका उत्पादन एक निश्चित मात्रा में बाजार में आया है क्या कीमत रखी जाए जिससे की उपभोक्ता उत्पाद की ओर आकर्षित हो और ज्यादा से ज्यादा लाभ उत्पन्न हो।
मूल्य-निर्धारण के कई प्रश्न जो बहुत जरूरी होते हैं
1. हम लाभ अधिकतमकरण मूल्य-निर्धारण का उपयोग करते हैं?
2. मूल्य कैसे निर्धारित किए जाए ?
3. क्या लागत-लाभ मूल्य-निर्धारण, मांग आधारित या मूल्य आधारित मूल्य-निर्धारण, प्रतिलाभ दर मूल्य-निर्धारण, या प्रतिस्पर्धी अभिसूचक है ?
4. क्या एक मूल्य-निर्धारण हो या एक से अधिक ?
5. क्या विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में कीमतें परिवर्तित होनी चाहिए, जो धरातल मूल्य-निर्धारण के रूप में संदर्भित होता हों ?
6. क्या मात्रा छूट दी जानी चाहिए ?
7. प्रतियोगियों द्वारा क्या कीमतें लगाई जा रही हैं?
8. जब आप उच्च मूल्य-निर्धारण की रणनीति का उपयोग करते हैं तो प्रवेश मूल्य-निर्धारण रणनीति क्या होगी ?
9. मूल्य द्वारा किसी छवि को उभारना चाहते हैं?
10. क्या मनोवैज्ञानिक मूल्य-निर्धारण का प्रयोग हो सकता है ?
11. ग्राहक संवेदनशीलता के लिए मूल्य स्टीकर और लोच के मुद्दे कितने महत्वपूर्ण हैं ?
12. क्या वास्तविक समय के अंतगर्त मूल्य-निर्धारण का प्रयोेग किया जा सकता ह ै?
13. क्या कीमत पक्षपात या आय प्रबंधन समुचित है ?
14. क्या उत्पाद तालिका के लिए पहले से ही मूल्य अंक मौजूद हैं ?
15. क्या खुदरा मूल्य के रख-रखाव, मूल्य सांठ-गांठ, या कीमत पक्षपात पर कानूनी प्रतिबंध मौजूद किये जाएं ?
16. क्या अंतरण मूल्य-निर्धारण का लिहाज किया जाना चाहिए ?
17. हम मूल्य निर्धारण में कितने लचीले हो सकते हैं ?
भली प्रकार से चयनित कीमत
जितना ग्राहक भुगतान करने के लिए तैयार हैं। आर्थिक संदर्भ में, यह वही मूल्य है जो उपभोक्ता के अधिकांश अधिशेष को निर्माता को अंतरित करता है। एक अच्छा मूल्य-निर्धारण वह होगा जो एक मूल्य तल (जिसके नीचे संगठन को हानि हो सकती है) और मूल्य सीमा (मूल्य जिसके परे संगठन बिना मांग की स्थिति का अनुभव करे) के बीच संतुलन स्थापित करता है।
वस्तु कीमत क्या होनी चाहिए
इसके तीन कार्यों द्वारा कीमत चयनित की गई।
1. कंपनी के वित्तीय लक्ष्यों की प्राप्ति कितनी हो।
2. बाजार की वास्तविकताओं को उपभोक्ताओं को नजर में रखकर तय करना।
3. उत्पाद की गई वस्तु के पक्ष को व्यापार मिश्रण में अन्य उत्पादों के साथ सुसंगत किया जा सकता है।
4. कीमतें प्रयुक्त वितरण चैनल के प्रकार, प्रयुक्त प्रोत्साहनों के प्रकार और उत्पाद की गुणवत्ता से प्रभावित होती है
5. किसी विक्रय की जाने वाली वस्तु का उत्पादन महंगा हो, तो उसकी कीमत उपभोता की अपेक्षा से ऊंची होंगी और उत्पाद व्यापक विज्ञापन और प्रचार अभियानों द्वारा समर्थित होगा।
6. उत्पाद की गुणवत्ता, वितरकों द्वारा ऊर्जावान विक्रय प्रयास के लिए कम कीमत एक व्यवहार्य विकल्प हो सकता है
7. विक्रेता के पक्ष में देखें तो एक प्रभावी कीमत वह कीमत है जो अधिकतम कीमत के बहुत निकट हो।
माल का मूल्य निर्धारण
सामान्यत विभिन्न माल के संबंध में केंद्रीय उत्पाद शुल्क उसके मूल्य आधार पर होता है अर्थात शुल्क का निर्धारण उस माल के निर्धारण योग्य मूल्य के प्रतिशत के रूप में किया जाता है इसलिए यह पता लगाना महत्वपूर्ण हो जाता है कि माल के मूल्य का निर्धारण कैसे किया जाए। माल का मूल्य निर्धारण केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिनियम, 1944 के अनुसार निम्नलिखित तीन आधारों पर किया जा सकता है
1. क्रय-विक्रय मूल्य - क्रय विक्रय की प्रक्रिय मूल्य निर्धारण का आम तरीका है। अधिकतर उत्पादों में उसको बेचने के लिए कुछ शुल्क रखा जाता है जो वस्तु के वास्तविक मूल्य (कीमत) के भुगतान के रूप में जाता है तब जब इसे खरीददार को बेचा जाएगा। इसका अर्थ है कि राशि जिसमें व्यापार के लिए विक्रेता और क्रेता के बीच समव्यवहार में लेनदेन किया जाता है, वह उस वस्तु का निर्धारित योग्य मूल्य हो जाता है। ऐसे मामले में लेन देन मूल्य के लिए निर्धारण के प्रयोजन से कुछ अनिवार्य अपेक्षाएं पूरी की जाती हैं। यदि उपर्युक्त अपेक्षाओं में से किसी एक की पूर्ति नहीं की जाती है तो लेन देन मूल्य निर्धारणीय मूल्य नहीं होगा और ऐसे मामलें में मूल्य इस प्रयोजन के लिए अधिसूचित मूल्य निर्धारण नियमों के अंतर्गत निर्धारित किया जाएगा।
2. शुल्क मूल्य - केंद्र सरकार किसी वस्तु का शुल्क मूल्य का निर्धारण अधिसूचना के द्वारा कर सकती है। निर्धारित किए गए प्रशुल्क मूल्य पर शुल्क देय होता है।
3. खुदरा विक्रय मूल्य- केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिनियम 1944 के निबंधनों में मूल्य अधिकतम खुदरा कीमत पर आधारित होता है। यह अधिसूचित वस्तुओं के लिए प्रयोज्य है। इस संबंध में जारी अधिसूचना शुल्क की राशि के निर्धारण के लिए निर्धारणीय मूल्य के लिए अनुमत होने वाली छूट की सीमा विनिर्दिष्ट करती है। केंद्र सरकार ऐसे माल को निविर्दिष्ट कर सकती है जिनके संबंध में मूल्य छूट को घटाकर माल पर घोषित खुदरा बिक्री कीमत मानी जाएगी। ये प्रावधान उन माल के लिए प्रयोज्य है जिनके संबंध में पैकेज पर खुदरा विक्रय कीमत की घोषणा करने की आवश्यकता है। यह तोल और माप अधिनियम, 1976 या उसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अधीन आता है।
वस्तु का प्रभावी मूल्य
वस्तु के प्रभावी मूल्य के अंतगर्त कंपनी को छूट, प्रचार और अन्य प्रोत्साहन राशि के लेखांकन के बाद हासिल हुए मूल्य को ही वस्तु का प्रभावी मूल्य कहते हैं जिसमें वस्तु की छूट उसके प्रचार और उसके बेचने हेतू प्रोत्साहित धन का लेखा जोखा होता है।
वस्तु की मूल्य व्यवस्था
मूल्य व्यवस्था विक्रेता सभी उत्पाद के लिए सीमित संख्या में कीमतों का इस्तेमाल करता है। यह परंपरा पुरानी दुकानों पर शुरू की गई थी जहां हर चीज का दाम 5 या 10 सेंट होता था। इसके पीछे तर्क यह है कि ये राशियां संभावित उपभोक्तओं द्वारा उत्पादों के संपूर्ण रेंज के लिए उपयुक्त मूल्य अंकों के रूप में देखी जाती हैं। जिससे की वस्तु की स्थिति का आकलन उपभोक्ता के पक्ष में बैठे।
हानि अगुआ
एक हानि अगुआ वह उत्पाद है जिसकी कीमत उसके परिचालन मार्जिन से नीचे निर्धारित की गई होती है। जिसमें उस उत्पाद के विक्रय पर नुक्सान परिणत होता है जिसको मध्य नजर रखते हुए उत्पादक के निम्न दाम के उत्पाद उपभोक्ताओं/ग्राहकों को दुकान की ओर आकर्षित करेगा और उनमें से कुछ उपभोक्ता अन्य, उच्च मार्जिन वाली वस्तुएं खरीदेंगे।
प्रवर्तन मूल्य-निर्धारण
प्रवर्तन मूल्य-निर्धारण उस उदाहरण को संदर्भित करता है जहां मूल्य-निर्धारण विपणन मिश्रण का प्रमुख तत्व है।
मूल्य-गुणवत्ता संबंध
मूल्य-गुणवत्ता उपभोक्ताओं की उस धारणा को दिखाती हैं जिसमें वस्तु के दाम उसकी अच्छी गुणवत्ता के संकेत हैं। जिसमें विश्वास उन जटिल उत्पादों के लिए ज्यादा होता हैं जिनका परीक्षण मुश्किल है जब तक कि उनको इस्तमाल में न लाया गया हो। उत्पाद में जितनी विशिष्टताएं होंगी उतना ही अधिक उपभोक्ता उसके मूल्य पर निर्भर रहेगा और वे अधिक मूल्य/प्रीमियम आदि का भुगतान करने के लिए तैयार रहेगा।
मांग आधारित मूल्य-निर्धारण
मांग आधारित मूल्य निर्धारण ऐसी पद्धति है जिसमें उपभोक्ता की मांग, आधारित माने गए मूल्य पर ही खरीदारी करती है। जिसका केन्द्र बिन्दु उच्च कीमत, कीमत पक्षपात और आय प्रबंधन, मूल्य अंक, मनोवैज्ञानिक मूल्य-निर्धारण, बंडल मूल्य-निर्धारण, प्रवेश मूल्य-निर्धारण, मूल्य व्यवस्था, मूल्य-आधारित मूल्य-निर्धारण, भू और प्रीमियम मूल्य-निर्धारण, मूल्य-निर्धारण आदि घटक हैं जो लागत, बाजार, प्रतियोगिता, बाजार स्थिति, उत्पाद की गुणवत्ता के मध्य नजर उसकी मांग को बढ़ाते हैं।
बहुआयामी मूल्य-निर्धारण
इस निर्धारण के अंतगर्त एक से अधिक संख्याओं के उपयोग द्वारा उत्पाद या सेवा का मूल्य-निर्धारण किया जाता है। इसकी कीमत के अंतगर्त एकल मौद्रिक राशि शामिल नहीं होती। बल्कि विभिन्न आयाम शामिल होते हैं (जैसे, मासिक भुगतान, भुगतानों की संख्या और तत्काल भुगतान)। अनुसंधान ने दर्शाया है कि यह अभ्यास उपभोक्ताओं की मूल्य संबंधी जानकारी को समझने और संसाधित करने की क्षमता को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित कर सकता है जिसके अंतगर्त मूल्य भी प्रभावित होगा।
मूल्य संवेदनशीलता के सिद्धांत
1. संदर्भ मूल्य प्रभाव- किसी उत्पाद के लिए क्रेता की मूल्य संवेदनशीलता वस्तु के विकल्पों की तुलना में उत्पाद की कीमत को ऊपर बढ़ाती है। बोधगम्य विकल्प खरीदार के द्वारा अवसर, तथा अन्य कारकों के कारण बदल सकते हैं।
2. कठिन तुलना प्रभाव- उपभोक्ता को बाजार में कोई ऐसी वस्तु खरीदनी हो जो ब्रेडीड होती है तो उसकी कीमत कुछ भी हो लेने के लिए तैयार रहते हें लेकिन एक से अधिक ब्रेंड बाजार में हों तो उपभोक्ता को कई और विकल्प मिल जाते हैं जिसमें उन्हें तुलना करना कठिन हो जाता है जिसको कठिन तुलना प्रभाव भी कहते है जिसके चलते उपोक्ता हमेशा दोराहे पर रहता है कि क्या खरीदों और क्या छोड़ों।
3. अंतरण लागत प्रभाव- आपूर्तिकर्ताओं को बदलने के लिए खरीदार द्वारा जितना अधिक उत्पाद विशिष्ट निवेश करना पड़े, खरीदार कीमत के प्रति उतना ही कम संवेदनशील हो जाता है जब उसे विकल्पों में से चयन करना हो
4. मूल्य-गुणवत्ता प्रभाव- खरीदार कीमत के प्रति कम संवेदनशील होते हैं जब ऊंचे दाम उच्च गुणवत्ता का संकेत देते हैं। जिन उत्पादों के लिए यह प्रभाव विशेष रूप से प्रासंगिक है, उनमें शामिल हैं। छवि उत्पाद, विशेष उत्पाद और गुणवत्ता के लिए कम से कम संकेत सहित उत्पाद।
5. व्यय प्रभाव- खरीदार कीमत के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं जब खरीदार की उपलब्ध आय या बजट का अधिक प्रतिशत व्यय करना हो।
6. अंत लाभ प्रभाव- यह प्रभाव उस संबंध को संदर्भित करता है जो किसी खरीद का समग्र लाभ के साथ हो और दो भागों में विभाजित किया जाता है व्युत्पन्न मांग में खरीदार अंतिम लाभ की कीमत के प्रति जितना अधिक संवेदनशील होते हैं, उतना ही ज्यादा वे उन उत्पादों की कीमत के प्रति होंगे जिसका इस लाभ में योगदान है। मूल्य अनुपात लागत किसी विशिष्ट घटक के लिए हिसाब में लिए गए अंतिम लाभ की लागत के कुल प्रतिशत को संदर्भित करता है जो अंतिम लाभ उत्पन्न करने में मदद करें। अंतिम लाभ की कुल लागत का जितना कम किसी घटक का अंश होगा, खरीदार घटक की कीमत के प्रति उतना ही कम संवेदनशील होंगे।
7. साझा लागत- प्रभाव खरीदी मूल्य का जितना कम अंश खरीदार को अपने लिए चुकाना पड़े, वे कीमतों के प्रति उतना ही कम संवेदनशील होंगे।
8. निष्पक्षता प्रभाव- खरीदार किसी उत्पाद की कीमत के प्रति उतना ही अधिक संवेदनशील होंगे, जब खरीदी के संदर्भ में मूल्य उनके द्वारा उचित या तर्कसंगत मानी गई सीमा से अधिक हो।
9. फ्रेमिंग प्रभाव- खरीदार कीमतों के प्रति उस समय अधिक संवेदनशील हो जाते हैं जब वे कीमत को पूर्वनिश्चित लाभ की अपेक्षा हानि मानें और मूल्य संवेदनशीलता अधिक होगी जब कीमत बंडल के हिस्से के रूप में नहीं, बल्कि अलग से चुकाई जाए।
आॅन लाईन बाजार
आॅन लाईन बाजार की परिभाषा आज हमारे समाज की एक हक्कीत हैं जो पिछले कुछ वर्षों में उभर कर सामने आई है जिसमें घर बैठकर तरह तरह के समान, वस्तु, खाने की चीजें आदि हम बड़ी आसानी से खरीद सकते हैं जिन्हें हम बिगेर बाजार जाए घर पर मंगा सकते हैं और उनका इस्तेमाल कर सकते है भारत में ऑनलाइन शॉपिंग का ट्रेंड बड़े जोरो शोरो से चल रहा है। टोपी से लेकर पैरो की जुराबों तक, छोटे से फोन से लेकर बड़े से मकान तक सब कुछ बिक रहा है हमारी युवा पीढ़ी तो सबकुछ ऑनलाइन ही खरीदारी कर रही है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की स्कीम डिजिटल इंडिया से जहां आम जनता को एक नया प्लेटफार्म मिला है वही दूसरी और जनता ने भी इसे स्वीकार किया है जिससे आने वाले समय में ऑनलाइन काम-काज में बढ़ोतरी होगी और जो वर्तमान में देखने को मिल भी रहा है जिसके कारण आॅफ लाईन बाजारों पर संकट के बादल छाने लगे हैं जो स्वाभाविक भी है।
भारत विश्व पटल पर बहुत बड़ा बाजार है जिसमें अथाह संभावनाएं व्यापारियों को दिखती हंै जिसके कारण ऑनलाइन खरीद-फरोख्त में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है जिसके कारण बाजार में अब चोरी की और नकली वस्तुओं की भी भरमार होने लगी। भारत में आॅनलाइन खरीद-फरोख्त का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन इसका लाभ उपभोक्ता को न होकर उत्पादककर्ता उठा रहे हैं। कुछ लोग और कंपनियां उपभोक्ताओं से सीधे तौर पर धोखा कर रही हैं। कारोबार बढ़ने के लिए कंपनियां बाजार में क्रमशः नकली वस्तुओं के लेन-देन को बढ़ावा दे रही हैं नकली व चोरी की वस्तुएं बेचने वालों ने ऑनलाइन बाजार को अपने मुनाफे का नया रास्ता बना लिया है। जिससे वो आॅनलाईन बाजार के सहारे ऐसी वस्तुएं बेचते हैं जिन्हें लाखों ग्राहक इस्तेमाल करते हैं एक ठोस कानून का अभाव ही ऑनलाइन कारोबार में उपभोक्ताओं को अवैध व्यापार का शिकार बना रहा है
आॅन लाईन ठगी से बचने के लिए कानून की मांग
भारतीय बाजार पृष्ठ भूमि को यदि हम स्थल स्तर पर देखें तो उपभोक्ता मोल भाव करके और वस्तु को परख के विक्रेता से उसके मूल्य की मांग करता है जिसमें भी विक्रेता कही न कहीं उसे ठग ही लेता है इसी प्रकार से वर्तमान में आॅन बाजार की स्थिति भी समकक्ष उससे भी खराब है जिसमें उपभोक्ता समान मात्र वेवसाईट पर ही पंसद करता है जिसमें न उसे मोल भाव की ही इजााजत होती है और न ही समान को परख ही सकता है जिसमें उपभोक्ता हर बार ठगा जाता है जिसके लिए रिटेलर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (आरएआई) अब ऑनलाइन बाजार में नकली वस्तुओं की लेन-देन में वृद्धि के मुद्दे पर भी सक्रिय हुई। लेकिन कोई कानून न होने के अभाव में ई-कॉमर्स कंपनियां नकली वस्तुओं की बिक्री की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती हैं वह कहते हैं, 70 फीसदी उनभोक्ता विक्रेता के तौर पर इन कंपनियों के नाम ही जानते हैं। लेकिन यह कंपनियां सामान नकली होने की सूरत में उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेतीं। इसका खामियाजा मात्र उपभोक्ताआंे को ही उठाना पड़ता है।
पिछले कुछ सालों में भारत में इंटरनेट का खूब प्रसार हुआ है। बड़े शहरों से लेकर छोटे-छोटे गांवों तक हर जगह लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं और लाभान्वित हो रहे हैं जिसके कारण इंटरनेट के इस्तेमाल के साथ ऑनलाइन शॉपिंग भी खूब बढ़ी है और लोग बाजार में जाने की बजाय ऑनलाइन सामान खरीदने में दिलचस्पी ले रहे हैं। इसकी दो वजह हैं एक तो ऑनलाइन सामान में छूट ज्यादा मिलती है और दूसरा समय की बचत होती है। भारत में ऑनलाइन खरीदारी तो जोर-शोर से की जा रही है लेकिन इस बीच ऑनलाइन चोरी भी खूब बढ़ी है जिसके शिकार कई लोग हुए हैं। इसके बावजूद भी कईयों को लाभ और हानि भी उठानी पड़ी है ई-कॉमर्स साइटों पर जालसाजी कई स्तरों पर होती है। ट्रांजेक्शन से डिलिवरी तक लोग ठगे जाते हैं। चूंकि लोगों को ऑनलाइन ट्रांजेक्शन व सामान के खरीद फरोख्त की कम जानकारी होती है। इसलिए कई लोग तो आवाज ही नहीं उठाते। ऑनलाइन खरीदारी के लाभ व हानि और जालसाज कंपनियों से कैसे बचें, आइए जानते हैं।
ऑनलाइन शॉपिंग के लिए पांच बातें याद रखना जरूरी -
इंटरनेट से ऑनलाइन शॉपिंग करने से पहले हमे ये पता होना जरुरी है की ऑनलाइन शॉपिंग करने के लिए हमारे पास क्या क्या होना चााहिए।
1. कंप्यूटर, टेबलेट, मोबाइल। (आपके पास जो भी हो )
2. ईमेल आईडी (ऑनलाइन शॉपिंग वाली साइट पर साइन उप करने के लिए)
3. मनी-पैसा (सामान खरीदने के लिए)
4. क्रेडिट कार्ड-डेबिट कार्ड (भुगतान करने के लिए)
5. पता (एड्रेस) (सामान रिसीव करने के लिए )
ऑनलाइन शॉपिंग के लाभ -
सुविधा
ऑनलाइन शॉपिंग कही भी किसी भी वक्त की जा सकती है। ऑनलाइन शॉपिंग बस कुछ ही मिनट में हो जाती है। ऑनलाइन शॉपिंग करने के लिए न हमें कही लाइन मे खड़ा होना पड़ता है और न ही हमें ज्यादा समय लगता है हम आसानी से अपने लिए शॉपिंग कर सकते है।
बेहतर कीमतें
ऑनलाइन शॉपिंग में प्रोडक्ट की कीमत काफी अच्छी और कम होती है। कई ऑनलाइन दूकानें डिस्काउंट कूपन भी देती है।
पैसे की बचत
जब हम किसी दुकान से सामान खरीदेंगे तो जाहिर है कि दुकानदार भी उस सामान पर हमसे 10-20 रुपए का मुनाफा कमाएगा। ऑनलाइन शॉपिंग करने से दुकानदार का बेनिफिट काम हो जाता है और कंपनी सीधे तौर पर सामान हमारे घर भेज देती है ।
अच्छा और सस्ता सामान
बाजार में दुकानदार कई बार हमे नकली सामान दे देते हंै। ऑनलाइन शॉपिंग करने से हमे ओरिजिनल सामान ही मिलेगा अगर समान असली न हुआ तो हम उस पर कानूनी कार्यवाही भी कर सकते हैं ।
30 दिन तक सामान वापिस करने की सुविधा
ऑनलाइन सामान खरीदने के बाद अगर आपको वो सामान पसंद न आये तो आप उसे 30 दिन से पहले वापिस भी कर सकते हैं । जबकि दुकान से खरीदा हुआ सामान दुकानदार वापिस नहीं करता है।
पेमेंट सामान घर पहुंचने के बाद होता है
जब आप ऑनलाइन शॉपिंग करते हो तो आपको उसका पेमेंट सामान घर आने के बाद में करना होता है । इससे आप अपने सामान को अच्छी तरह चेक करने का मौका भी मिल जाता है ।
पूरा सामान एक आर्डर से
बाजार में हमे एक एक सामान के लिए के दुकानों पर जाना पड़ता है पर ऑनलाइन शॉपिंग से हम सारा सामान घर बैठे माँगा सकते है ।
महंगा सामान होने का डर समाप्त
बाजार में हमे डर रहता है की कही कोई हमे कोई सस्ता सामान महंगा नहीं दे दे । पर ऑनलाइन सामान खरीदने पर ये डर नहीं रहता । क्योंकि हमारे सामान की जिम्मेदारी सीधा कंपनी की होती है न कि दुकानदार की और जो कंपनी सबसे सबसे सस्ता दे हम उसे सेलेक्ट कर सकते है
ज्यादा किस्म के सामान उपलब्ध
ऑनलाइन शॉपिंग में कई सारे किस्म के सामान और कई सारे ब्रांड्स होते है। हम कोई भी प्रोडक्ट जो हमें पसंद आए उन्हें सेलेक्ट कर सकते है।
मूल्य की तुलना
ऑनलाइन शॉपिंग में हर एक सामान को दूसरे सामान से आसानी से कंपेयर कर सकते है और प्रोडक्ट के कीमत की तुलना भी दूसरे प्रोडक्ट से कर सकते है। और ऑनलाइन शॉपिंग के जरिये हम अपने दोस्तों और रिश्तेदारो को आसानी से गिफ्ट भेज सकते है।
ऑनलाइन शॉपिंग के नुकसान -
खुद ढंग से प्रोडक्ट को देख नही पाते
अगर आप उन लोगो में से है जो प्रोडक्ट को अच्छे से देख कर और छू कर प्रोडक्ट खरीदते है तो आप ऐसा ऑनलाइन शॉपिंग में नही कर सकते है।
प्रोडक्ट आने में समय लगता है
अगर आप कोई भी प्रोडक्ट दुकान से लेते है तो आपको कोई प्रोडक्ट उसी वक्त मिल जाता है और आप उसका इस्तेमाल उसी समय से करने लग जाते है लेकिन ऑनलाइन शॉपिंग में प्रोडक्ट लेने के बाद आपको उसका इंतजार करना पड़ता है। प्रोडक्ट कम से कम 2 से 3 दिन में आता है और कभी-कभी प्रोडक्ट पहुचने में उससे भी ज्यादा समय लग जाता है।
प्रोडक्ट वापस करना महंगा हो सकता है
कई सारे रिटेलर शिपिंग की कीमत वापस नही करते है और कई रिटेलर प्रोडक्ट एक्सचेंज करने की ज्यादा कीमत लेते है।
किसी अज्ञात विक्रेता से लेनदेन
ऑनलाइन शॉपिंग करते समय अगर आपके प्रोडक्ट में कोई भी दिक्कत आई तो अज्ञात विक्रेता जिनसे आप पहली बार ऑनलाइन शॉपिंग कर रहे है वो आपकी मदद करेंगे या नही आपको नही पता होता है।
कीमत में शिपिंग चार्जेज जुड़े है या नही देख लें
ऑनलाइन शॉपिंग करते समय जब भी कोई प्रोडक्ट आप आर्डर करते है तो उसकी पूरी कीमत देख लें की आपको उस प्रोडक्ट के कितनी कीमत देनी है और उसमे शिपिंग चार्जेज देने है या नही यह भी देख लें।
रहना है सावधान-
इंटरनेट सिक्यूरिटी कर होना जरूरी
इंटरनेट पर खरीदारी करते वक्त इंटरनेट सिक्युरिटी बेहद जरूरी है। जब आप इंटरनेट पर खरीदारी कर रहे हों तो किसी भरोसे वाली साइट पर ही खरीदारी करें। क्योंकि अगर आप किसी अनजान साइट पर लाॅगइन करते हैं तो हो सकता है कि आपके एकाउंट के रूपए अगले कुछ घंटों में सफाचट हो जाएं। चूंकि वह अनजान साइट है ऐसे में आप क्लेम का अधिकार भी खो देंगे। याद रखें कि अगर आप ऑनलाइन लाॅगइन करते हैं तो अपने क्रेडिट कार्ड व नेटबैंकिंग का पासवर्ड समय-समय पर बदलते रहें जिससे आप ठगी से बचे रहंे।
कहीं आपने ऑनलाइन नकली सामान तो नहीं खरीद लिया
ई-कॉमर्स पोर्टल में कई हजार वेंडर्स (सामान बेचने वाले) होते हैं जो अपने प्रोडक्ट को बेचते हैं। ऐसे में अगर आप किसी ब्रांड वाली वस्तु को सस्ते दामों में खरीद रहे हैं तो उसे पूरी तरह से जांच परख लें। चूंकि ऑनलाइन कई महंगे ब्रांडेड प्रोडक्ट को सस्ते दामों में बेचने वाली बात सामने आती है। कई बार ई-कॉमर्स साइटें नकली माल को उपभोक्ता को पकड़ा देती हैं। इसलिए वस्तु को खरीदने के पहले किसी दूसरी वेबसाइट में उसका रेट देखें और उसके बाद खरीदने का फैसला करें।
कंपनी की शर्तों को जाने
ई-कॉमर्स साइट 500 से ज्यादा खरीदारी पर डिलिवरी को फ्री रखती हैं जिसे उपभोक्ता एक बड़ी सुविधा के रूप में देखता है। लेकिन कभी कभार फ्री डिलिवरी के साथ शर्तें भी लिखी रहती हैं, जिसे उपभोक्ता अहमियत नही देते और उसको पढ़ते भी नहीं है। जिसके कारण उपभोक्ता को अनजाने में अतिरिक्त पैसे चुकाने पड़ते हैं। चूंकि उपभोक्ता को लुभाने के लिए ये चार्ज शुरू में नहीं बताए जाते। साथ ही यह भी देख लें कि कंपनी वॉरंटी दे रही है कि नहीं, अधिकतर मौकों पर ई-कॉमर्स साइटों में खूब धांधली देखने को मिलती है।
डिलिवरी के वक्त रखें खुद को सावधान
पिछले दिनों बातें निकलकर सामने आई थीं कि लोगों ने ऑनलाइन लैपटॉप ऑर्डर किया और जब उन्होंने घर में जाकर पैकेट खोला तो उसमें दो बड़े बड़े पत्थर निकले। वहीं एक व्यक्ति ने ऑनलाइन जूते ऑर्डर किए थे जब उसने पैकेट खोला तो पता चला कि जूतो के सोल में मिट्टी लगी थी, मतलब जूते पहले इस्तेमाल किए जा चुके थे। इसके लिए यह ध्यान रखें जब डिलिवरी बॉय आपका सामान देने आए तो उसे तुरंत जाने ना दें बल्कि उसके सामने ही सामान का पैकेट खोलें और जांचे। अगर आपको कोई गड़बड़ी मालूम पड़ती हैं तो डिलिवरी बॉय के सामने ही उस सामान का स्नैपशॉट ले और वीडियो बनाएंे। ऐसे में जब आप सामान का क्लेम करेंगे तो आपके केस को मजबूती मिलेगी और आप केस जल्दी जीत सकेंगे।
शरीरिक नुकसान भी होता है आॅन लाईन शाॅपिंग से-
सिरदर्द की समस्या
ऑनलाइन शॉपिंग करना जितना सुगम और आसान प्रतीत होता है उतना ही ये हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक भी साबित हो रहा है। एक रिसर्च के अनुसार ऑनलाइन शॉपिंग करने वाले लोगों में अक्सर सिर दर्द और डिप्रेशन का रोग पाया जाता है। ऑनलाइन शॉपिंग करते वक्त जब किसी इंसान को कोई सामान इतना पसंद आ जाता है कि उसकी तुलना में उन्हें कुछ अच्छा नहीं लगता और बाद में वो देखते हैं कि ये ड्रेस उनके बजट से बाहर है या आउट ऑफ स्टॉक है तो वो लोग काफी हद तक परेशान होने लगते हैं। परेशानी का ये स्तर कई बार इतना बढ़ जाता है कि सीधा हमारे स्वास्थ्य पर हावी होने लगता है।
अच्छा सामान दिमाग पर हावी होने लगता
कई मामले ऐसे भी सामने आए हैं जिसमें लोग अपनी मनपसंदीदा ड्रेस, जूलरी या फिर किसी अन्य सामान को किसी कारण वश ना खरीद पाने का अफसोस कई दिनों तक मनाते हैं। इस चीज का हमारे दिमाग पर उस वक्त ज्यादा असर पड़ता है जब हम सोते हैं। रातभर जब सपने में हमें वही चीज दिखाई देती है और सुबह उठकर हम उसे अपने पास नहीं देखते तो दिमाग की मांसपेशियों पर काफी असर पड़ता है। जिससे सिर दर्द और डिप्रेशन का खतरा शुरू हो जाता है।
डिप्रेशन में आ जाना
इसी तरह से कई बार हम ऑनलाइन शॉपिंग करते वक्त धोखाधड़ी का शिकार भी हो जाते हैं। तमाम प्रयासों के बावजूद जब हमारा पैसा या सामान हमें नहीं मिल पाता तो उस स्थिति में डिप्रेशन में जाने का ज्यादा खतरा बढ़ जाता है। क्योंकि जब किसी इंसान का मेहनत का पैसा बिना किसी वजह से व्यर्थ होता है तो दिल और दिमाग दोनों पर गहरी चोट लगती है।
बीपी बढ़ना
ऑनलाइन शॉपिंग से शरीर में बीपी के स्तर में उतार-चढ़ाव होना, नींद ना आना, बेचेनी होना और सिर भारी होना जैसे लक्षण देखे जाते हैं। कई बार तो ऐसे हादसो से निकलने के लिए इंसान खुद को ही नुकसान पहुंचा लेता है। इसलिए जब भी ऑनलाइन शॉपिंग करें सोच समझ कर और शांतिपूर्वक करें।
-सोहन सिंह