जातिगत आरक्षण की आग
लेकिन वर्तमान में कुछ मामले ऐसे उत्पन्न किए गये हंै जिससे की संविधान पर सवाल उठाये जा सके। सबसे ज्यादा उठाया जाने वाला मामला जातिगत आरक्षण है जिसको लेकर समाज आज भी बंटा हुआ है और राजनेता इस मुद्दे पर राजनीति करने से गुरेज तक नहीं करते हैं और जाति को इस प्रकार प्रयोग में लाते हैं जिससे उनके वोट बैंक मजबूत रहें। जो भारतीय जातिगत व्यवस्था को न तो खत्म होने दे रहें हैं और नाहिं उनका खात्मा ही कर रहें हैं जिसका सीधा अर्थ यही निकलता है कि राजनेता अपनी राजनीति को चमकाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं चाहें वह देशहित में हो या देशाहित में हो। वह यह कतई नहीं चाहते की जाति का भेद सुलझे बल्कि वह उसे और पैचिदा बना देते हैं अपनी गत रणनीतियों और गलत भाषणों के द्वारा, जो कई मायनों में देश को अपने आप में जलाता है और रोटियां वो सेकते हैं। शहरों में जातिगत आग कम है लेकिन गांव देहात में लोग अब तक जल रहे हैं जो बहुत ही असहनीय है।
अभिव्यक्ति की आजादी को गलत लाभ।
संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी का राजनेता गलत लाभ उठा कर सर्वाेच्च पद पर बैठे व्यक्तियों पर टीका टिप्पणी करते नजर आ जाते हैं जिसका सीधा अर्थ निकाला जा सकता है कि वे कितने अभिव्यक्त हैं अपनी आजादी के प्रति। एक प्रकार से देखा जाये तो अभिष्कत होकर लोग अपनी व्यथा को अभिव्यक्ति का नाम दे कर एक दूसरे पर किचड़ उछालने से बाज नहीं आते हैं यदि कोई इस पर कार्यवाही करना चाहे तो अभिव्यक्ति के उस अनुच्छेद 19 (1) की दुहाई देते हैं जिसमें अभिव्यक्ति की आजादी दी गई है।
गत वर्ष जेनयू जैसे संस्थान ने, अभिव्यक्ति की आजादी का भर पूर लाभ उठाया था जिसके कारण वे मीडिया से लेकर सरकार की नजरों में अपनी जगह बना पाये जो एक हद तक अमानविय क्रियाकलाप था। जिसमें अपने ही देश की कथनी करनी पर सवाल उठाये गये थे जो बेहद शर्मसार करने वाले थे लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी को मध्य रखकर अपने ही देश के खिलाफ देश विरोधी नारों से जेनयू गूंज गया था जो दुर्भाग्य पूर्ण था जिनका समर्थन देश को तोड़ना था और आंतकवादियों गतिविधियों को बढ़ना था जिसने राजनैतिक व्यक्तियों के लिए राहें खोल दी और वे खुद को साबित करने के लिए देश के खिलाफ नारों को सही साबित करने में जुट गये थे जिसके कारण कई पार्टियों ने अभिव्यक्ति की आजादी की जिम्मेदारी को भी नकार दिया था वह समय भारतीयों के लिए बहुत कष्टकारी था, जिन विद्यार्थीयों ने अभिव्यक्ति की आजादी की धज्जियां उड़ाई थी उन पर प्रशासन की लाठी चल नहीं पाई और वे अभिव्यक्ति की चादर लपेट कर देश को तोड़ने में आज भी पीछे नहीं हैं जो कहीं हद तक देश के साथ गद्दारी ही है और इनके समर्थन में वे पार्टियां है जिनमें अनपढ़-गवार नेता ही बैठे हैं जिन्हें अपना स्वार्थ दिखता है।
अभिव्यक्ति के नाम पर देश से कटता हुआ कश्मीर
पिछले दिनों जो कुछ भी कश्मीर में हुआ वो बेहद शर्मनाक है। अपने ही देश की सेना पर पत्थरबाजी वो अभिव्यक्ति के नाम पर देश से विद्रोह कहां तक ठीक है ये प्रश्न सर्वव्यापी हो गया है जिसको लेकर राजनीति चर्म पर है रोजना टीवी पर लाताड़बाजी और गालीगलूज वाली भाषा से देश स्तब्ध है लेकिन कश्मीर में जो कुछ भी हो रहा है सेना के साथ वह भी असहनीय है जो अभिव्यक्ति के नाम से ही अपना नाम उंचा करते हैं वो यह भी नहीं सोचते किसको नुकसान पहंुचा रहे हैं और किस का समर्थन कर रहें हैं। आंच लगाने से लेकर पत्थर मारने तक में वो अभिव्यक्ति को ही देखते हैं जिसके कारण सेना पर पत्थबाजी कर सकें लेकिन वो यह भूल जाते हैं कि भारत सशक्त देश है जिसकी सेना विश्व की न. 1 सेना में आती है। बरहाल आंतकीवादियों की सोच से लेकर राजनेताओं की सोच ने वहां के जनमानस के रगों को आजादी की वह दुर्भावना भर दी है जो अब निकाली मुश्किल है जिससे वह लोग अपने ही बच्चों का स्कूल, खेलने का मैदान तक छीनने को राजी है और अपने ही देश के खिलाफ नारेबजी में व्यस्त हैं जिनको लेकर विश्व मंच पर भी राजनेताओं को लताड़ खानी पड़ी है लेकिन अभिष्क्त व्यक्ति आजादी नहीं चाहता बल्कि अभिव्यक्ति से अपने भारत के साथ खड़ा रहना चाहता जो कुछ लोगों को पसंद नहीं है।
बरहाल सरकारों को एक नए अनुच्छेद में 19 (1) में बदलाव करना ही चाहिए जिससे की अभिव्यक्ति की आड़ में जेनयू और कश्मीर जैसे कांड न दोहरायें जा सके जो संपूर्ण भारतीय समाज पर धब्बा हैं।
-सोहन सिंह