Wednesday, 28 February 2018

अभिव्यक्ति की आड़ में ये क्या हो रहा...

सन् 1947 में भारत आजाद हुआ था और देश के पहले राष्ट्रपति डाॅ राजेन्द्र प्रसाद थे और पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को बनाया गया था। उस दौरान देश के संविधान निर्माता डाॅ भीमराव अम्बेडकर द्वारा रचित संविधान पारित किया गया जो 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया जिसको लागू होते इस दिन को गणतंत्र का नाम दे दिया गया और अभिव्यक्ति की आजादी भी दी गई क्योंकि यह संविधान प्रजातंत्र को समक्ष रखकर लिखा गया था जिसमें कई ऐसे अनुच्छेद लिखे गए जिनके द्वारा आम जनमानस का जीवन सरल हो सके और  उन्हें किसी की तानाशाही न झेलनी पड़े।
जातिगत आरक्षण की आग 
लेकिन वर्तमान में कुछ मामले ऐसे उत्पन्न किए गये हंै जिससे की संविधान पर सवाल उठाये जा सके। सबसे ज्यादा उठाया जाने वाला मामला जातिगत आरक्षण है जिसको लेकर समाज आज भी बंटा हुआ है और राजनेता इस मुद्दे पर राजनीति करने से गुरेज तक नहीं करते हैं और जाति को इस प्रकार प्रयोग में लाते हैं जिससे उनके वोट बैंक मजबूत रहें। जो भारतीय जातिगत व्यवस्था को न तो खत्म होने दे रहें हैं और नाहिं उनका खात्मा ही कर रहें हैं जिसका सीधा अर्थ यही निकलता है कि राजनेता अपनी राजनीति को चमकाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं चाहें वह देशहित में हो या देशाहित में हो। वह यह कतई नहीं चाहते की जाति का भेद सुलझे बल्कि वह उसे और पैचिदा बना देते हैं अपनी गत रणनीतियों और गलत भाषणों के द्वारा, जो कई मायनों में देश को अपने आप में जलाता है और रोटियां वो सेकते हैं। शहरों में जातिगत आग कम है लेकिन गांव देहात में लोग अब तक जल रहे हैं जो बहुत ही असहनीय है।
अभिव्यक्ति की आजादी को गलत लाभ।
संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी का राजनेता गलत लाभ उठा कर सर्वाेच्च पद पर बैठे व्यक्तियों पर टीका टिप्पणी करते नजर आ जाते हैं जिसका सीधा अर्थ निकाला जा सकता है कि वे कितने अभिव्यक्त हैं अपनी आजादी के प्रति। एक प्रकार से देखा जाये तो अभिष्कत होकर लोग अपनी व्यथा को अभिव्यक्ति का नाम दे कर एक दूसरे पर किचड़ उछालने से बाज नहीं आते हैं यदि कोई इस पर कार्यवाही करना चाहे तो अभिव्यक्ति के उस अनुच्छेद 19 (1) की दुहाई देते हैं जिसमें अभिव्यक्ति की आजादी दी गई है।
गत वर्ष जेनयू जैसे संस्थान ने, अभिव्यक्ति की आजादी का भर पूर लाभ उठाया था जिसके कारण वे मीडिया से लेकर सरकार की नजरों में अपनी जगह बना पाये जो एक हद तक अमानविय क्रियाकलाप था। जिसमें अपने ही देश की कथनी करनी पर सवाल उठाये गये थे जो बेहद शर्मसार करने वाले थे लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी को मध्य रखकर अपने ही देश के खिलाफ देश विरोधी नारों से जेनयू गूंज गया था जो दुर्भाग्य पूर्ण था जिनका समर्थन देश को तोड़ना था और आंतकवादियों गतिविधियों को बढ़ना था जिसने राजनैतिक व्यक्तियों के लिए राहें खोल दी और वे खुद को साबित करने के लिए देश के खिलाफ नारों को सही साबित करने में जुट गये थे जिसके कारण कई पार्टियों ने अभिव्यक्ति की आजादी की जिम्मेदारी को भी नकार दिया था वह समय भारतीयों के लिए बहुत कष्टकारी था, जिन विद्यार्थीयों ने अभिव्यक्ति की आजादी की धज्जियां उड़ाई थी उन पर प्रशासन की लाठी चल नहीं पाई  और वे अभिव्यक्ति की चादर लपेट कर देश को तोड़ने में आज भी पीछे नहीं हैं जो कहीं हद तक देश के साथ गद्दारी ही है और इनके समर्थन में वे पार्टियां है जिनमें अनपढ़-गवार नेता ही बैठे हैं जिन्हें अपना स्वार्थ दिखता है।
अभिव्यक्ति के नाम पर देश से कटता हुआ कश्मीर 
पिछले दिनों जो कुछ भी कश्मीर में हुआ वो बेहद शर्मनाक है। अपने ही देश की सेना पर पत्थरबाजी वो अभिव्यक्ति के नाम पर देश से विद्रोह कहां तक ठीक है ये प्रश्न सर्वव्यापी हो गया है जिसको लेकर राजनीति चर्म पर है रोजना टीवी पर लाताड़बाजी और गालीगलूज वाली भाषा से देश स्तब्ध है लेकिन कश्मीर में जो कुछ भी हो रहा है सेना के साथ वह भी असहनीय है जो अभिव्यक्ति के नाम से ही अपना नाम उंचा करते हैं वो यह भी नहीं सोचते किसको नुकसान पहंुचा रहे हैं और किस का समर्थन कर रहें हैं। आंच लगाने से लेकर पत्थर मारने तक में वो अभिव्यक्ति को ही देखते हैं जिसके कारण सेना पर पत्थबाजी कर सकें लेकिन वो यह भूल जाते हैं कि भारत सशक्त देश है जिसकी सेना विश्व की न. 1 सेना में आती है। बरहाल आंतकीवादियों की सोच से लेकर राजनेताओं की सोच ने वहां के जनमानस के रगों को आजादी की वह दुर्भावना भर दी है जो अब निकाली मुश्किल है जिससे वह लोग अपने ही बच्चों का स्कूल, खेलने का मैदान तक छीनने को राजी है और अपने ही देश के खिलाफ नारेबजी में व्यस्त हैं जिनको लेकर विश्व मंच पर भी राजनेताओं को लताड़ खानी पड़ी है लेकिन अभिष्क्त व्यक्ति आजादी नहीं चाहता बल्कि अभिव्यक्ति से अपने भारत के साथ खड़ा रहना चाहता जो कुछ लोगों को पसंद नहीं है।
बरहाल सरकारों को एक नए अनुच्छेद में 19 (1) में बदलाव करना ही चाहिए जिससे की अभिव्यक्ति की आड़ में जेनयू  और कश्मीर जैसे कांड न दोहरायें जा सके जो संपूर्ण भारतीय समाज पर धब्बा हैं।
                                                                                                                 -सोहन सिंह

Wednesday, 21 February 2018

भारतीय जनता को रहना होगा तैयार

कहने को तो हमारा देश आजाद है लेकिन आजादी उन तबकों तक ही सीमित है जो अपने आप को भारत का सिरमौर मानते जिनके एक इशारे पर जनता क्या राजनेता भी नतमस्तक हो जाते हैं जिनके लिए लोकतंत्र की परिभाषा भी बदल दी जाती है। लेकिन सवाल यह कि ये व्यवस्थायें उन चंद लोगों के लिए क्यों बदल जाती हैं जो वह कहते उसको सुनकर हमारे हुकमरान नतमस्तक हो कर क्यों हां में हां मिलाते हैं क्यों उनके लिए नए दरवाजें खोलते हैं।
कुछ वर्ष पहले तक भारत देश में राजनेता घोटाले बाज थे पर अब हमारे व्यापारी देश के कर्णधार देश को लूट कर देश में  फरार हो रहें हैं इस में सबसे पहला नाम तो विजय माल्या का आता है जो हमारे भारत की बैंकों को 11000 करोड़ को चूना लगा कर विदेशी धरती पर भारत की खून पसीने की कमाई को लूटा रहा है जिसका न तो वो हिसाब दे सकता है और न ही हमारी सरकार उस से ंिहसाब मांगने की स्थिति में नजर आती है लगातार हो रही किवायतों के बाद भी विजय माल्या किसी भी न्यूज चैनल पर भारत की जनता और भारत की बैंक प्रणाली पर उंगली उठाता नजर आता र्है जिसे देख कर आम जनता का खून तो खोलता है लेकिन सरकार में बैठे नुमांइदें क्यों कोई प्रतिक्रिया नहीं देते, लगातार इस तरह के गमन, घोटाले सरकार के सामने आ रहें हैं फिर भी सरकार उन घोटालों की धुरी तक नहीं पंहुच पाई  क्या उसकी वाणिज्य प्रणाली में सेंध लग गई है, और उनकी सूचनात्मक प्रतिक्रिया भी खत्म हो सी गई। जिसका एक ताजा उदाहरण कुछ दिन पहले ही आया है नीरव मोदी के रूप में, नीरव मोदी पेशे से तो हीरा व्यापारी है लेकिन संपर्क सूत्र इसके बहुत उंचे हैं तभी यह सुर्खियों में छाया हुआ है जिस तरह हजारों करोड़ का लोन भारतीय बैंकों ने विजय माल्या हो दिया था उसी कड़ी में नीरव मोदी भी जुड़ गया है जिसको 110000 करोड़ तो नहीं बल्कि 33000 करोड़ का लोन पास किया गया है जिसको लेकर वह विदेश भाग गया है। लेकिन अब सवाल यह उठता यह है कि बैंको को 11000 करोड़ के घोटाले से नसीहत सही ढंग से प्राप्त नहीं हुई थी जिसका प्रणाम है वर्तमान में ताजा 33000 करोड़ का घोटाला जिससे बैंको की स्पष्ट रूप से लापरवाही देखी जा सकती है।
वहीं अगर हम भारतीय गरीब जनता और किसानों की बात करें तो बैंको की प्रणाली साफतौर पर आदेश देती है कि जितना कर्ज लिया है उसका 12 प्रतिशत की दर से ब्याज देना अनिवार्य है लेकिन वो कौन से मामले जिनमें व्यापारी वर्ग को ये करोड़ों का कर्ज दे देते हैं, और उनसे इनकी मांगने की हिम्मत तक नहीं होती। वहीं दूसरी ओर भारतीय गरीब जनता की जमीन जायदाद तक कब्जा कर लेते हैं जिनका आर्थिक बोझ इतना ज्यादा होता है कि उसके तले दब कर गरीब आत्मदाह तक कर लेता हैं लेकिन बैंकों की कार्य प्रणाली जस की तस काम करती है और उसके जाने के बाद भी उसके परिवार से उस कर्ज की पाई पाई वसूलती है जो उस परिवार के लिए बहुत ही कष्टदायक होता है। लेकिन इस तरह कर्ज वसूली यह उन लोगों पर नहीं करते जो हजारों-करोड़ का कर्ज लेकर देश से फरार हो जाते हैं और विदेश में बैठ कर भारतीय बैंकों को धमकाते हैं कि अगर ‘‘हिम्मत है तो हमसे कर्ज लेकर दिखायें’’ यह शब्द भारत के उस बड़े व्यापारी के हैं जो इस समय देश का हजारों करोड़ का कर्ज लेकर देश से फरार है और हमारे बैंक बस हाथ पर हाथ रख कर प्रशासन की ओर देख रहें हैं और हमारे देश के नेता एक दूसरे पर ही किचड़ उछाल रहें हैं कि किस की सरकार में नीरव मोदी ने कर्ज लेना प्रारंभ किया था जो बहुत ही शर्मनाक है।
इसका सीधा अर्थ यह भी निकाला जा सकता है कि यदि नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे देश के गद्दार व्यापारियों ने अपने हिस्से की रकम बैंको को अदा नही की तो बैंक वह रकम हमारे उपर टैक्स लगाकर या अन्य ओर कोई कर लगाकर भारतीय जनता से ही वसूलेगी जो पुराने जामने की कर व्यवस्था का ही अंग होगी जिसके लिए भारतीय जनता को तैयार रहना होगा। जिस तरह के हालात है उस तरह से तो अनुमान यही लगाया जा सकता है कि सरकार नीरव मोदी और विजय माल्या को देश में लाने में सक्षम नहीं है और नाहिं हमारे बैंक इतना बोझ उठाने में सक्षम जिसकी भरपाई वो हम लोगों पर ‘‘कर’’ लगा कर ही करने वाली है।

                                                                                                         -Sohan Singh