Tuesday, 30 June 2015

राजनीतिकरण मे आम आदमी

 आम आदमी, नाम से राजनीतिकरण करना, और उसी नाम को राजिस्टर करवा कर पार्टी नियुक्त करना काफ़ी कठिन काम है और उसी पार्टी को दिल्ली की सत्ता का सपना दिखा , उसे आस्तित्व में लाना, ये उससे भी कठिन काम है,
  लेकिन इन सब बातों का अब कोई महत्व प्रतीत नही होता क्युंकि अब आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता मैं भारी बहुमत से प्रवेश कर चुकी है बहुत सारे वादो के साथ, परंतु आम आदमी पार्टी को दिल्ली की सत्ता में आये हुए करीब 5 माह से आधिक समय बीत गया है और पिछले दिनो उन्होने दिल्ली विधानसभा में दिल्ली का बजट भी निर्धारित किया है, लेकिन क्या ये बजट दिल्ली को मंहगाई से उभार पायेगा ? इस प्र्श्न का उत्तर भविश्य के गर्भ में है,
       लेकिन अपने को पाक साफ़ कहने वाली आम आदमी का पिछले  5 माह का कार्यकाल काफ़ी विवादित रहा है
 जो उनके वायदों की कार्यशैली के खिलाफ़ होकर काम कर रहा है,
साफ़तौर से से.अब आम आदमी को समझ आ रहा है, अब आम आदमी पार्टी अब आम नही रही बल्कि .vvip calture से well standred हो गई है,  (पिछले दिनो तालकटोरा स्टेडियम में इसकी इक झलक देखने को मिली थी)
     पह्ले स्वयं को आम आदमी कहने वाले अरविंद केजरीवाल ( मुख्य मंत्री, दिल्ली) अब जनता से मुखातिब भी नही होते क्युंकि वो भी भारतीय जनता पार्ट और कांग्रेस के तहरीज पे कायल हो गये है,
       आपसी पार्टी का कलह . उनकी इस डुगियत की पोल खोलता है, और तो और मिडिया पर बरस अपना सच छुपाता नजर आता है, जिसकी बयानगी उनकी स्वयं की कार्यशैली चीख- चीख कर कह रही है,
   इनकी कार्यशैली की कुछ विशेषतायें----
1.   आपसी कलह मनमुटाव
2.    मन्त्रियों की लगातार हो रही पोल खोल
3.    विवदित बयान बाजी,
4.     धारना प्रदशन और पुलिसिया झडपें,
3.     किसानो को उकसा आत्महात्या को मजबोर करना
4.      स्वयं भी गंदी राजनित कर और पार्टियों में अपना नाम आंकित कराना
5.   स्वयं को पाक बता औरों पर लालछन,
         कई ऐसी खामियां आ गई है , राजनीतिकरण होने के बाद आम आदमी पार्टी में, जो आम जनता के साथ खिलवाड सा प्रतीत होती हैं,
                                                                                                 प्रस्तुति- सोहन सिंह

Friday, 5 June 2015

धर्मशाला में हुआ था बलत्कार,


दलितो और आर्थिक स्थिति से कमजोर तबकों के अधिकार की जहां बात आती हैं वहां सरकार के नुमांईदे कनी काटते क्युं नज़र आते हैं, क्या उनेह उन लोगों की दशा दिखती नही जो 21 वी सदी के , भारत में अपने मान समान को आज भी तलाश रहे हैं और लगातार संघर्ष कर रहे  हैं,
ताजा वकया हिमाचल प्रदेश का हैं, जहां पर (धर्मशाला) इक लड़की का बेदर्दी से प्रतिकार किया जिसमें राजनेताओं के बिगडेल लड़के एक असहाय और समाज के निम्न तबके से आई हुई लड़की का बलात्कार करते हैं, और प्रशास्निक आधिकारी और पुलिस वाले मूक दर्शक की भांति ये सब देखते हैं,
जहां बात उस लड़की को इंसाफ दिलाने की आती है तो सारा का सारा दोष उस लड़की पर  मढ कर केस बंद कर दिया गया है,
क्या उसका  कसुर ये था की वह निम्न तबके से है या ये था की वह एक लड़की है, उस पर नाहि पुलिस वालो को रहम आया नाहि , मिडिया के चर्चित आखबारों को, उनहोने एक पहराग्राफ कि खबर छाप कर उसके बाद उस लड़की की कोई सुद न ली,
  और तो गुनहगार वही लड़की बताइ जा रही है, जिसके साथ अन्याय हुआ है, क्या 21वी सदी की पढी लिखी जमात ये हैं, जो एक और निर्भया पर ह्त्यचार होते देख रही है,  या इस मोके में हैं की इस तरह की निर्भया और बनती रहे, .
      दोस्तों मिडिया ने अपनी तरफ़ से जितना किया वो काफ़ी है, अब हमें इंसान होने के नाते सोचना है की अब और नही, अब तो जागना होगा,