Friday, 28 June 2013

भारत के मूल की बात

परिवार की परिभाषा  भारत में गढी. और बंढी् जाती है क्‍योंकि भारत ही विश्‍व का पहला देश है जिसने रिश्‍तों के मायने समझे और समस्‍त विश्‍व को समझाये क्‍योंकि भारत में ही अपने अपनों को अपनाते है और गैरों को भी वही अपनाते हैं यहां पे हर उस व्‍यक्ति का आदर होता है जो अतिथी बनकर आता है और भारत से विभिन्‍न-विभिन्‍न तरह की यादें अपने साथ समेट कर ले जाता है जो उसे शायद ही पूरे विश्‍व में कहीं  ओर मिले ं जो हमारे भारत का अमुल्‍य  शिष्‍टाचार है  इसी शिष्‍टाचार के कारण हम पूरे विश्‍व में प्रसिद्व हैं ओर पूरा विश्‍व हमें मानता है
   भारत की अमुल्‍य संपदा उसके मूल है जिनके सहारे वो जी रहा है लेकिन आज विश्‍व तेजी के  साथ बढ रहा जो भारत के उन मूल को चिढा्ता सा नजर आता है जो उसके अंग हैं और उन अंगों से बिछौहा कर वो अपना सर्बस्‍व लुटा  देगा लेकिन आज भारत के  वो मूल कहीं खो रहें है जिनके सहारे से हम लोग जी रहे है आज की युवा पीढी उन मुल्‍यों को नकारती सी नजर आती है जो कभी हम भारतीयों की पहचान थी वो हमारा भाईचारा ओर अपनत्‍व की भावना वो आज की युवा पीढी को चुभते हैं लेकिन फिर भी हम हमारी संस्‍कृति को बचाने की दृढ शक्ति को बनाए हुए है अपने मूल से हमें समझौता कतई पंसद नहीं ह्रै चाहै उसके लिए हमें कुछ भी करना पढे हम अभी भी एक जुट होकर अपने प्रयासों को कयास दे रहें है और अपने मूल की परिभषा को दूसरा नाम दे रहे है जो आधुनिकता से भरा हो और उसमें हमारे मूल भी कहीं गुम न हो और वो उन में बस सके जो परिवार से जुडें हो
    लेकिन आज पश्चिमी सभ्‍यता हम पर और हमारे परिवार पर हावी है जिसके एक झोंके ने सब कुछ बदल सा दिया है लेकिन  सभ्‍य समाज की जब भी बात होती है तो हम भारतियों को ही प्रथम पंक्ति में खडा किया जाता है क्‍योंकि इस आधुनिकता में हम कितने ही आधुनिक क्‍यों न हो गए हो लेकिन हमने अपने मूल को बचाने का रास्‍ता खोज लिया है युवा कितने भी भटक गए हों लेकिन डगर उनकी घूम फिरके  उनके घर तक आती है

लेकिन युवा शक्ति को समझना होगा कि हम  भारतीय है हम चाहे कितने भी बदल जाए लेकिन हृदय हमारा सदैव परोपकारी रहेगा चाहे हम विदेश में रहें या देश्‍ा में हम अपने मूल को छुपाने की कोशिश तो बहुत करते है लेकिन वो कभी न कभी अपना परोपकारी हृदय से सोच विचार अपनी दृष्टि को दिशा दे ही देते है क्‍योंकि उस युवा का हृदय भारतीय है क्‍योंकि भारत सभी धर्मो का अग्रणी है जहां बौद्व ने जन्‍म लिया, जहां पीर-पैगबंर हुए वहां पर संस्‍कृति को बचाना ही आज के युवाओं का उददेश्‍य होना चाहिए



Wednesday, 26 June 2013

त्रासदी के महौल्‍ल में बेशर्म नेता

केदार नाथ में जहां वातावरण में इतनी त्रासदी  फैली हुई है वहीं दुसरी ओर दिल्‍ली में चुनावी प्रक्रिया कि त्रासदी राजनीति गलियारों में फैली हुई है कैदार नाथ कि त्रासदी को देखें तो मुर्दे भी रो पडे लेकिन हमारी सरकार के कुछ नेता इतने बेशर्म हो गए है वो इस त्रासदी को चुनावी एजंडा समझकर उनको अपने चुनाव में अपना रहे हैं लेकिन वो ये भूल गये है कि हमारी जनता सब समझ रही है जिसे ये नेता बेवकूफ समझ कर उन पर राजनीत करने से बाज नहीं आ रहे है केदार नाथ में हुई त्रासदी में मदद करने कि बजाय ये उसका मखूल उडा रहे है लेकिन राजनेता कहां अपनी हरकतों से बाज आने वाले है इनके लिये चाहे कोई भी त्रासदी हो वो सिर्फ ओर सिर्फ राजनीत ही करना जानते है चाहे वो देश में व्‍यापत संकट का हो या किसी एक जन का हो उन्‍हे तो अपना फायदा,उस मुददे के अंदर नजर आना चाहिए, उसके लिये वो साम दाम दंड भेद तक के आंकडे लगा देगे चाहे वो किसी भी परिस्थिति के हों
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Thursday, 20 June 2013

प्रक़ति का रोष

दिल्‍ली में हरियाणा से छोडा गया पानी , दिल्‍ली को निगलने को तैयार दिख रहा है,हालात तब है ऐसे जब दिल्‍ली में बारिश नहीं हो रही है यदि दिल्‍ली में इस दोरान बारिश हो रही होती तो न जाने कितने लोगों की जान माल को हानि होती लेकिन हानि तो अभी भी हो रही है यमुना किनारे बसी उन कालोनियों को, उन खेतों को जिससे एक किसान की जीविका जोडी होती है उस घर को जिसे आम आदमी एक-एक पैसा जोड कर बनाता है और उस यातायात को जिससे लाखों लोग अपनी जीविका कमाने के लिए निकलतें है लेकिन इन सब के बावजूद भी एक तबका ऐसा है जो अपनी राजनैतिक इच्‍छा शक्ति का गुलाम बने बैठा है मात्र वो आश्‍वासन ही देता दिखता है हर बार,इंतजामों के हावाले से कहता नजर आता है कि हम तैयार है हर आपदा के लिये लेकिन हकीकत  के इरादे कुछ ओर होते हैं जो आम से लेकर खास को भी अपने अंदर समेटने का इरादा रखता है बरहाल दिल्‍ली में कुदरत ने अभी सितम ढाना शुरू ही कहां किया है अभी तो मात्र  नमूना ही पेस किया है जब ये हालात है पंरतू इसके विपरीत देखें,तबाही का मंजर, तो हम उत्‍तराखण्‍ड को कभी भी नहीं भुला पांएगे, उत्‍तराखण्‍ड 21 वीं सदी का एक ऐसा तबाही वाला क्षेत्र बन गया है जिसमें 2013 की सबसे बडी त्रासदी हुई है लेकिन व्‍यवस्‍था के नाम पर यहां भी प्रशासन का कमजोर इरादों वाला  रव्‍वैया दिखता है
    लकिन जब बात त्रासदी की आती है तो कुदरत से बढा बलवान कोई नहीं दिखता चाहे वो मानव हो या दानव हो सब छोटे से कद के दिखते हैं लेकिन यहां सोचने वाली बात यह है कि कुदरत बार-बार इस तरह से क्‍यों बिगड रही है यदि आध्‍यात्मिक पंडाओं क‍ि सुने तो लगता है कि मानव धर्म ही इन आपदाओं का कारण है और आत्‍याधुनिक विज्ञान की सुने तो लगता है कि पर्यावरण का शोषण मानव से ज्‍यादा कोई जीव नहीं कर रहा , मानव अपने आपको अत्‍याधुनिक बनाने की धुन में निरंतर नए प्रयोग में व्‍यस्‍त  है और पर्यावरण का शोषण कर रहा है शायद यही कारण है पर्यावरण्‍ा का आम-आदमी, खेत-खलियानों, पशु-पक्षियों, से नाराज होने का ा
      जिसका विध्‍वंशक रूप हम लोग उत्‍तराखण्‍ड में हुई तबाही के इस मंजर को देख कर लगा सकते है जिससे आदमी रूपी भगवान  बच भी नहीं पा रहा है  लगता तो ऐसा ही है कि विज्ञान और आध्‍यातम एक है लकिन आध्‍यातम और विज्ञान एक हों लेकिन सच्‍च तो यही है कि इस तबाही के मंजर से कैसे निपटा जाएा
 क्‍या ये विज्ञान का विध्‍वंसक रूप है या मानव के बढते पापों का बोझ ये धरती अब उठा नहीं पा रही है या हमारी सरकार का ढुलमुल रव्‍वैये के कारण ये सब घट रहा है जिसको नहीं घटना चाहिये था
बरहाल कारण कोई भी हो तबाही तो अपना खेल,खेल ही रही है चाहें वो बाढ के रूप में हो या भूकंप के रूप में हो ा

       

Monday, 3 June 2013

नशाखोरी का अड्डा

नशाखोरी का अड्डा बनता जा रहा है दिल्‍ली का लाल किला, आए दिन देखने में आ जाएगा कि नशा करने वाले  लोगो किस तरह सड्को पर पडे् रहतें है न उनको अपनी कोई सुध होती है नाहिं वो किसी ओर की सुध करते है वो राह चलते लोगों को लूट लेते है और तो और उनकी जान भी ले लेते है इस नशे के फेरे में बच्‍चे भी फंस गए है बढे तो नशा करते ही हैं लेकिन उन से चार कदम आगे वो छोटे बच्‍चे है जो आनाथ हैं जिनका घर का कोई पता नहीं  जो अपने आप को इस दुनिया का अभिशाप समझते हैं ा वो अपनी इस नशाखोरी को पूरा करने के लिये चलती बसों में चढ जाते हैं और बसों में चल रही उन सवारियों कि जेब काट लेते हैं जो अपने गंतव्‍य तक जाने को तत्‍पर रहती है लेकिन  उसी दौरान जेब कट जाती है और काटने वाले हमारे देश के भविष्‍य होते हैं 
 लेकिन वो ये कहां समझ पाते है उनका भरन पोषण ही उस कुलशित समाज में हुआ जो दूसरों की जान लेकर अपना पेट भरता है उन्‍हें आगे चलकर अपने लिए किसी जरूरत मंद को ही तो लुटना है 
    कुछ लोगों का ता ये तक कहना है कि इन बच्‍चों को इस नशाखेारी से छुटकारा दिलाने के लिए,इन्‍हें नशाखोरी केन्‍द्र में भरती करा देना चाहिए लेकिन ये वो नहीं जानते कि एक बार नशाखोरी की आदत लग जाए तो इतनी आसानी से नहीं छोटती है फिलहाल इस सरकार और हमारे पास इनका  कोई इलाज नहीं है इनसे अगर हमें बचना है तो हमको ही सावधान रहना होगा तभी हम लोग अपने आप और अपने सगे जनो को सुरक्ष्रित पा सकेगें