परिवार की परिभाषा भारत में गढी. और बंढी् जाती है क्योंकि भारत ही विश्व का पहला देश है जिसने रिश्तों के मायने समझे और समस्त विश्व को समझाये क्योंकि भारत में ही अपने अपनों को अपनाते है और गैरों को भी वही अपनाते हैं यहां पे हर उस व्यक्ति का आदर होता है जो अतिथी बनकर आता है और भारत से विभिन्न-विभिन्न तरह की यादें अपने साथ समेट कर ले जाता है जो उसे शायद ही पूरे विश्व में कहीं ओर मिले
ं जो हमारे भारत का अमुल्य शिष्टाचार है इसी शिष्टाचार के कारण हम पूरे विश्व में प्रसिद्व हैं ओर पूरा विश्व हमें मानता है
भारत की अमुल्य संपदा उसके मूल है जिनके सहारे वो जी रहा है लेकिन आज विश्व तेजी के साथ बढ रहा जो भारत के उन मूल को चिढा्ता सा नजर आता है जो उसके अंग हैं और उन अंगों से बिछौहा कर वो अपना सर्बस्व लुटा देगा लेकिन आज भारत के वो मूल कहीं खो रहें है जिनके सहारे से हम लोग जी रहे है आज की युवा पीढी उन मुल्यों को नकारती सी नजर आती है जो कभी हम भारतीयों की पहचान थी वो हमारा भाईचारा ओर अपनत्व की भावना वो आज की युवा पीढी को चुभते हैं लेकिन फिर भी हम हमारी संस्कृति को बचाने की दृढ शक्ति को बनाए हुए है अपने मूल से हमें समझौता कतई पंसद नहीं ह्रै चाहै उसके लिए हमें कुछ भी करना पढे हम अभी भी एक जुट होकर अपने प्रयासों को कयास दे रहें है और अपने मूल की परिभषा को दूसरा नाम दे रहे है जो आधुनिकता से भरा हो और उसमें हमारे मूल भी कहीं गुम न हो और वो उन में बस सके जो परिवार से जुडें हो
लेकिन आज पश्चिमी सभ्यता हम पर और हमारे परिवार पर हावी है जिसके एक झोंके ने सब कुछ बदल सा दिया है लेकिन सभ्य समाज की जब भी बात होती है तो हम भारतियों को ही प्रथम पंक्ति में खडा किया जाता है क्योंकि इस आधुनिकता में हम कितने ही आधुनिक क्यों न हो गए हो लेकिन हमने अपने मूल को बचाने का रास्ता खोज लिया है युवा कितने भी भटक गए हों लेकिन डगर उनकी घूम फिरके उनके घर तक आती है
लेकिन युवा शक्ति को समझना होगा कि हम भारतीय है हम चाहे कितने भी बदल जाए लेकिन हृदय हमारा सदैव परोपकारी रहेगा चाहे हम विदेश में रहें या देश्ा में हम अपने मूल को छुपाने की कोशिश तो बहुत करते है लेकिन वो कभी न कभी अपना परोपकारी हृदय से सोच विचार अपनी दृष्टि को दिशा दे ही देते है क्योंकि उस युवा का हृदय भारतीय है क्योंकि भारत सभी धर्मो का अग्रणी है जहां बौद्व ने जन्म लिया, जहां पीर-पैगबंर हुए वहां पर संस्कृति को बचाना ही आज के युवाओं का उददेश्य होना चाहिए
भारत की अमुल्य संपदा उसके मूल है जिनके सहारे वो जी रहा है लेकिन आज विश्व तेजी के साथ बढ रहा जो भारत के उन मूल को चिढा्ता सा नजर आता है जो उसके अंग हैं और उन अंगों से बिछौहा कर वो अपना सर्बस्व लुटा देगा लेकिन आज भारत के वो मूल कहीं खो रहें है जिनके सहारे से हम लोग जी रहे है आज की युवा पीढी उन मुल्यों को नकारती सी नजर आती है जो कभी हम भारतीयों की पहचान थी वो हमारा भाईचारा ओर अपनत्व की भावना वो आज की युवा पीढी को चुभते हैं लेकिन फिर भी हम हमारी संस्कृति को बचाने की दृढ शक्ति को बनाए हुए है अपने मूल से हमें समझौता कतई पंसद नहीं ह्रै चाहै उसके लिए हमें कुछ भी करना पढे हम अभी भी एक जुट होकर अपने प्रयासों को कयास दे रहें है और अपने मूल की परिभषा को दूसरा नाम दे रहे है जो आधुनिकता से भरा हो और उसमें हमारे मूल भी कहीं गुम न हो और वो उन में बस सके जो परिवार से जुडें हो
लेकिन आज पश्चिमी सभ्यता हम पर और हमारे परिवार पर हावी है जिसके एक झोंके ने सब कुछ बदल सा दिया है लेकिन सभ्य समाज की जब भी बात होती है तो हम भारतियों को ही प्रथम पंक्ति में खडा किया जाता है क्योंकि इस आधुनिकता में हम कितने ही आधुनिक क्यों न हो गए हो लेकिन हमने अपने मूल को बचाने का रास्ता खोज लिया है युवा कितने भी भटक गए हों लेकिन डगर उनकी घूम फिरके उनके घर तक आती है
लेकिन युवा शक्ति को समझना होगा कि हम भारतीय है हम चाहे कितने भी बदल जाए लेकिन हृदय हमारा सदैव परोपकारी रहेगा चाहे हम विदेश में रहें या देश्ा में हम अपने मूल को छुपाने की कोशिश तो बहुत करते है लेकिन वो कभी न कभी अपना परोपकारी हृदय से सोच विचार अपनी दृष्टि को दिशा दे ही देते है क्योंकि उस युवा का हृदय भारतीय है क्योंकि भारत सभी धर्मो का अग्रणी है जहां बौद्व ने जन्म लिया, जहां पीर-पैगबंर हुए वहां पर संस्कृति को बचाना ही आज के युवाओं का उददेश्य होना चाहिए



