दिल्ली में हरियाणा से छोडा गया पानी , दिल्ली को निगलने को तैयार दिख रहा है,हालात तब है ऐसे जब दिल्ली में बारिश नहीं हो रही है यदि दिल्ली में इस दोरान बारिश हो रही होती तो न जाने कितने लोगों की जान माल को हानि होती लेकिन हानि तो अभी भी हो रही है यमुना किनारे बसी उन कालोनियों को, उन खेतों को जिससे एक किसान की जीविका जोडी होती है उस घर को जिसे आम आदमी एक-एक पैसा जोड कर बनाता है
और उस यातायात को जिससे लाखों लोग अपनी जीविका कमाने के लिए निकलतें है
लेकिन इन सब के बावजूद भी एक तबका ऐसा है जो अपनी राजनैतिक इच्छा शक्ति का गुलाम बने बैठा है मात्र वो आश्वासन ही देता दिखता है हर बार,इंतजामों के हावाले से कहता नजर आता है कि हम तैयार है हर आपदा के लिये लेकिन हकीकत के इरादे कुछ ओर होते हैं जो आम से लेकर खास को भी अपने अंदर समेटने का इरादा रखता है बरहाल दिल्ली में कुदरत ने अभी सितम ढाना शुरू ही कहां किया है अभी तो मात्र नमूना ही पेस किया है जब ये हालात है पंरतू इसके विपरीत देखें,तबाही का मंजर, तो हम उत्तराखण्ड को कभी भी नहीं भुला पांएगे, उत्तराखण्ड 21 वीं सदी का एक ऐसा तबाही वाला क्षेत्र बन गया है जिसमें 2013 की सबसे बडी त्रासदी हुई है लेकिन व्यवस्था के नाम पर यहां भी प्रशासन का कमजोर इरादों वाला रव्वैया दिखता है
लकिन जब बात त्रासदी की आती है तो कुदरत से बढा बलवान कोई नहीं दिखता चाहे वो मानव हो या दानव हो सब छोटे से कद के दिखते हैं लेकिन यहां सोचने वाली बात यह है कि कुदरत बार-बार इस तरह से क्यों बिगड रही है यदि आध्यात्मिक पंडाओं कि सुने तो लगता है कि मानव धर्म ही इन आपदाओं का कारण है और आत्याधुनिक विज्ञान की सुने तो लगता है कि पर्यावरण का शोषण मानव से ज्यादा कोई जीव नहीं कर रहा , मानव अपने आपको अत्याधुनिक बनाने की धुन में निरंतर नए प्रयोग में व्यस्त है और पर्यावरण का शोषण कर रहा है शायद यही कारण है पर्यावरण्ा का आम-आदमी, खेत-खलियानों, पशु-पक्षियों, से नाराज होने का ाजिसका विध्वंशक रूप हम लोग उत्तराखण्ड में हुई तबाही के इस मंजर को देख कर लगा सकते है जिससे आदमी रूपी भगवान बच भी नहीं पा रहा है लगता तो ऐसा ही है कि विज्ञान और आध्यातम एक है लकिन आध्यातम और विज्ञान एक हों लेकिन सच्च तो यही है कि इस तबाही के मंजर से कैसे निपटा जाएा
क्या ये विज्ञान का विध्वंसक रूप है या मानव के बढते पापों का बोझ ये धरती अब उठा नहीं पा रही है या हमारी सरकार का ढुलमुल रव्वैये के कारण ये सब घट रहा है जिसको नहीं घटना चाहिये था
बरहाल कारण कोई भी हो तबाही तो अपना खेल,खेल ही रही है चाहें वो बाढ के रूप में हो या भूकंप के रूप में हो ा
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