स्टार प्लस चैनल पर , नए और अनूठे अंदाज में शुरू हुआ कार्यक्रम ‘‘महाभारत’’ । जोकि पूर्ण रूप से आकर्षक और भव्य सैट से सजाया हुआ है सही मायनों में तो ये काबिले तारीफ है कि इस कलेवर के साथ महाभारत उसके दर्शको को देखने को मिल रही है जो अपनी जमीन को तलाशती हुई लडी गई थी।
जितना आकर्षक इसका सैट है उतना ही आकर्षक इसके संवाद भी है क्योंकि इस महाभारत के अंतर्गत उस समाज के प्रति दिखाया और सुनाया गया संवाद जो आज भी अपनी जमीन तलाश रहा है, के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट करता है
सर्व प्रथम संवाद एकलव्य और गुरू द्रोणाचर्य के बीच दिखया गया है जो शिक्षा-दिक्षा के लिए गुरू द्रोण की मूर्ति बनाकर उनके आगे अपनी शिक्षा गृहण कर रहा था लेकिन उसके मन में इच्छा ने जन्म लिया कि गुरू द्रोण से ही शिक्षा क्यों न ली जाए लेकिन गुरू द्रोण को उसकी क्षमता को देख कर ये लगा कि यदि इस वनराज पुत्र ने यदि मेरे से शिक्षा ली तो ये विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुधर बन जाएगा और अर्जुन को श्रेष्ठ बनाने की मेरी प्रतिज्ञा अधूरी रह जाएगी लेकिन उनकी प्रतिमा के समक्ष अपना ज्ञान प्राप्त कर रहे एकलव्य से उन्होने उनका अंगूठा ही मांग लिया।
दूसरा संवाद कर्ण का है वो विश्व के श्रेष्ठ धनुधारी बनने की इच्छा लिए गुरू द्रोण के पास जाता है लेकिन गुरू द्रोण उसकी उससे जाति पूछते है जब कर्ण अपना परिचय देते है तो अपने अपको सूत पुत्र कहते है यह जानकर गुरू द्रोण , कर्ण को अपना शिष्य बनाने से इंकार कर देते हैं , जब कर्ण उनसे पुंछता है कि आप मुझे शिक्षा क्यों नहीं दे सकते तो वो कहते है कि तुम एक सूत पुत्र हो तो कर्ण क्रोद्ध के आवेश में द्रोणचार्य को खरी खोटी कहकर गुरू द्रोण के गुरू परशोराम के पास जाते है वहां भी जाति का प्रश्न उनके साथ जाता है गुरू परशोराम ने भी सर्वप्रथम उनकी उनकी जाति पूंछी ।लेकिन यहां कर्ण को असत्य का मार्ग चुनना पडा और गुरू परशोराम को, स्वंय को ब्रहामण कुल का कहा । और वहीं से उनकी शिक्षा-दिक्षा शुरू हुई लेकिन अंतत; गुरू परशोराम को उनकी जाति पता चल ही गई और उन्होने आर्श्ीवाद रूपी श्राप में उनके कठिन समय में उनके द्वारा पाया गया ज्ञान भोल जाने का श्राप दे दिया । इसी श्राप के कारण अंत में उनकी पराजय भी हुई।
कुल मिलाकर कहा जाए तो अनुसूचित जाति के लोगो के साथ सर्वण कुल हमेशा से ही अन्याय करता आया है जो महाभारत के कर्ण और एकलव्य प्रंसग में दिखता है
स्टार प्लस पर शुरू हुई इस महाभारत में कर्ण और एकलव्य का जो संवाद दिखाया गया है वो प्रंशसा का पात्र , इन प्रंसगों के द्वारा उस कुठित समाज की कुंठा को सामने लाया गया है जो अपने समक्ष किसी शुद्र समाज की प्रतिभाओं को दबाता है और अपने आप श्रेष्ठ दिखाने के लिए अपने द्वारा नित नए नियमों को गढ.ता है जिससे शुद्र समाज को दबाया जा सके।
इन्ही नियमो को तोडने हेतू डा भीम राव आम्बेडकर ने अपना संपूर्ण जीवन को झौंक दिया और एक नारा दिया संघर्श करो,संगठित रहो, शिक्षित बनो
और अपने समाज की तमाम परेशानियों को देखते हुए संविधान को एक नया रूप दिया ।
जितना आकर्षक इसका सैट है उतना ही आकर्षक इसके संवाद भी है क्योंकि इस महाभारत के अंतर्गत उस समाज के प्रति दिखाया और सुनाया गया संवाद जो आज भी अपनी जमीन तलाश रहा है, के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट करता है
सर्व प्रथम संवाद एकलव्य और गुरू द्रोणाचर्य के बीच दिखया गया है जो शिक्षा-दिक्षा के लिए गुरू द्रोण की मूर्ति बनाकर उनके आगे अपनी शिक्षा गृहण कर रहा था लेकिन उसके मन में इच्छा ने जन्म लिया कि गुरू द्रोण से ही शिक्षा क्यों न ली जाए लेकिन गुरू द्रोण को उसकी क्षमता को देख कर ये लगा कि यदि इस वनराज पुत्र ने यदि मेरे से शिक्षा ली तो ये विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुधर बन जाएगा और अर्जुन को श्रेष्ठ बनाने की मेरी प्रतिज्ञा अधूरी रह जाएगी लेकिन उनकी प्रतिमा के समक्ष अपना ज्ञान प्राप्त कर रहे एकलव्य से उन्होने उनका अंगूठा ही मांग लिया।
दूसरा संवाद कर्ण का है वो विश्व के श्रेष्ठ धनुधारी बनने की इच्छा लिए गुरू द्रोण के पास जाता है लेकिन गुरू द्रोण उसकी उससे जाति पूछते है जब कर्ण अपना परिचय देते है तो अपने अपको सूत पुत्र कहते है यह जानकर गुरू द्रोण , कर्ण को अपना शिष्य बनाने से इंकार कर देते हैं , जब कर्ण उनसे पुंछता है कि आप मुझे शिक्षा क्यों नहीं दे सकते तो वो कहते है कि तुम एक सूत पुत्र हो तो कर्ण क्रोद्ध के आवेश में द्रोणचार्य को खरी खोटी कहकर गुरू द्रोण के गुरू परशोराम के पास जाते है वहां भी जाति का प्रश्न उनके साथ जाता है गुरू परशोराम ने भी सर्वप्रथम उनकी उनकी जाति पूंछी ।लेकिन यहां कर्ण को असत्य का मार्ग चुनना पडा और गुरू परशोराम को, स्वंय को ब्रहामण कुल का कहा । और वहीं से उनकी शिक्षा-दिक्षा शुरू हुई लेकिन अंतत; गुरू परशोराम को उनकी जाति पता चल ही गई और उन्होने आर्श्ीवाद रूपी श्राप में उनके कठिन समय में उनके द्वारा पाया गया ज्ञान भोल जाने का श्राप दे दिया । इसी श्राप के कारण अंत में उनकी पराजय भी हुई।
कुल मिलाकर कहा जाए तो अनुसूचित जाति के लोगो के साथ सर्वण कुल हमेशा से ही अन्याय करता आया है जो महाभारत के कर्ण और एकलव्य प्रंसग में दिखता है
स्टार प्लस पर शुरू हुई इस महाभारत में कर्ण और एकलव्य का जो संवाद दिखाया गया है वो प्रंशसा का पात्र , इन प्रंसगों के द्वारा उस कुठित समाज की कुंठा को सामने लाया गया है जो अपने समक्ष किसी शुद्र समाज की प्रतिभाओं को दबाता है और अपने आप श्रेष्ठ दिखाने के लिए अपने द्वारा नित नए नियमों को गढ.ता है जिससे शुद्र समाज को दबाया जा सके।
इन्ही नियमो को तोडने हेतू डा भीम राव आम्बेडकर ने अपना संपूर्ण जीवन को झौंक दिया और एक नारा दिया संघर्श करो,संगठित रहो, शिक्षित बनो
और अपने समाज की तमाम परेशानियों को देखते हुए संविधान को एक नया रूप दिया ।