Wednesday, 27 November 2013

नय अंदाज की विचार धारा की महाभारत

स्टार प्लस चैनल पर , नए और अनूठे अंदाज में शुरू हुआ कार्यक्रम ‘‘महाभारत’’ । जोकि पूर्ण रूप से आकर्षक और भव्य सैट से सजाया हुआ है सही मायनों में तो ये काबिले तारीफ है कि इस कलेवर के साथ महाभारत उसके दर्शको को देखने को मिल रही है जो अपनी जमीन को तलाशती हुई लडी गई थी।
जितना आकर्षक इसका सैट है उतना ही आकर्षक इसके संवाद भी है क्योंकि इस महाभारत के अंतर्गत उस समाज के प्रति दिखाया और सुनाया गया संवाद जो आज भी अपनी जमीन तलाश रहा है, के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट करता है
सर्व प्रथम संवाद एकलव्य और गुरू द्रोणाचर्य के बीच दिखया गया है जो शिक्षा-दिक्षा के लिए गुरू द्रोण की मूर्ति बनाकर उनके आगे अपनी शिक्षा गृहण कर रहा था लेकिन उसके मन में इच्छा ने जन्म लिया कि गुरू द्रोण से ही शिक्षा क्यों न ली जाए लेकिन गुरू द्रोण को उसकी क्षमता को देख कर ये लगा कि यदि इस वनराज पुत्र ने यदि मेरे से शिक्षा ली तो ये विश्‍व का सर्वश्रेष्‍ठ धनुधर बन जाएगा और अर्जुन को श्रेष्‍ठ बनाने की मेरी प्रतिज्ञा अधूरी रह जाएगी लेकिन उनकी प्रतिमा के समक्ष अपना ज्ञान प्राप्त कर रहे एकलव्य से उन्‍होने उनका अंगूठा ही मांग लिया।
दूसरा संवाद कर्ण का है वो विश्‍व के श्रेष्‍ठ धनुधारी बनने की इच्छा लिए गुरू द्रोण के पास जाता है लेकिन गुरू द्रोण उसकी उससे जाति पूछते है जब कर्ण अपना परिचय देते है तो अपने अपको सूत पुत्र कहते है यह जानकर गुरू द्रोण , कर्ण को अपना शिष्‍य बनाने से इंकार कर देते हैं , जब कर्ण उनसे पुंछता है कि आप मुझे शिक्षा क्यों नहीं दे सकते तो वो कहते है कि तुम एक सूत पुत्र हो तो कर्ण क्रोद्ध के आवेश में द्रोणचार्य को खरी खोटी कहकर गुरू द्रोण के गुरू परशोराम के पास जाते है वहां भी जाति का प्रश्‍न उनके साथ जाता है गुरू परशोराम ने भी सर्वप्रथम उनकी उनकी जाति पूंछी ।लेकिन यहां कर्ण को असत्य का मार्ग चुनना पडा और गुरू परशोराम को, स्वंय को ब्रहामण कुल का कहा । और वहीं से उनकी शिक्षा-दिक्षा शुरू हुई लेकिन अंतत; गुरू परशोराम को उनकी जाति पता चल ही गई और उन्होने आर्श्‍ीवाद रूपी श्राप में उनके कठिन समय में उनके द्वारा पाया गया ज्ञान भोल जाने का श्राप दे दिया । इसी श्राप के कारण अंत में उनकी पराजय भी हुई।
  कुल मिलाकर कहा जाए तो अनुसूचित जाति के लोगो के साथ सर्वण कुल हमेशा से ही अन्याय करता आया है जो महाभारत के कर्ण और एकलव्य प्रंसग में दिखता है
स्टार प्लस पर शुरू हुई इस महाभारत में कर्ण और एकलव्य का जो संवाद दिखाया गया है वो प्रंशसा का पात्र , इन प्रंसगों के द्वारा उस कुठित समाज की कुंठा को सामने लाया गया है जो अपने समक्ष किसी शुद्र समाज की प्रतिभाओं को दबाता है और अपने आप श्रेष्‍ठ दिखाने के लिए अपने द्वारा नित नए नियमों को गढ.ता है जिससे शुद्र समाज को दबाया जा सके।
इन्ही नियमो को तोडने हेतू डा भीम राव आम्बेडकर ने अपना संपूर्ण जीवन को झौंक दिया और एक नारा दिया संघर्श करो,संगठित रहो, शिक्षित बनो
और अपने समाज की तमाम परेशानियों को देखते हुए संविधान को एक नया रूप दिया ।

Tuesday, 19 November 2013

वाह रे.......हम ओर हमारा समाज।

हम और हमारा समाज । ये है हम लोगों का कहना कि समाज के लिए ही हम है समाज चार वर्णो से संयोजित है । और उन चार वर्णो में भी बहुत असमानता है। और समान सिर्फ उसमें हम ही लोग है जिनको समाज सूत्रधार माना जाता है और हमी से समाज की पहचान होती है ।
फिर भी वर्णों की गिनती में आना वाले सबसे नीचा वर्ण ही समाज का से शोषित वर्ग है आज बदलते हुए भारत के साथ समाज भी बदल रहा है सिर्फ एक ही चीज नहीं बदल रहीं वो है वर्ण व्‍यवस्‍था ।इस बदलाव में सबसे ज्‍यादा वही समाज है जो हमेशा से शोषित होता रहा है लेकिन इस बदलाव के बाद भी हम लोग जाति सूचक जैसे शब्‍दो में विश्‍वास रखते है और किसी दलित उभरती हुई प्रतिभा को दबाने की पुरजोर कोशिश करते है लेकिन वो दब नहीं पाती ।जिसके कारण समाज उसे आज भी उसी रूप में देखता है जिसे उन्‍होने उसे उनके पूर्वजों के रूप में देखा । लेकिन इस व्‍यवस्‍था में कही हम उन दलित समाज के युवको के मौके को छिनने में पीछे नहीं हैं जिन्‍‍होने अपने आपको साबित किया है कि अब हमें कोई नहीं दबा सकता । लेकिन इस विशाल भारत की हकीकत यही है कि आज के बदलते भारत मे सबसे ज्‍यादा प्रतिभावान लोग दलित, पिछडें वर्ग और आदिवासी क्षेत्र से आते है जिन्‍होने भारत जैसे विशाल देश का नाम सर्वोपरि रखा है जिनमें इतिहास के नायक ज्‍योति राव फूले और डा भीम राव अम्‍बेडकर है जिन्‍हों के पद चिन्‍हो के द्वारा इस समाज को उसकी जमीन मिली जहां से उसने सोचना शुरू किया और अपने आप में परिर्वतन किया ।वर्तमान में इसी समाज के युवा ही हर प्रकार की सरकारी सेवा मे निहीत है लेकिन फिर भी इनको इनकी जाति से जाना जाता है ।
और शास्‍त्रों में लिखा है इंसान उसके कर्मो से जाना जाएगा नाकि उसके वर्ण। लेकिन शास्‍त्रों को बदलने की पूरी कवायद चल रहीं है 

बरहाल कुछ भी हो दलित समाज हमेशा से भारत पर छाया रहा है और आगे भी योहि छायेगा
लेकिन अब उसके सोचने का नजरिया बदल गया है अब समाज को इसी समाज के लोगो को ही बदलना होगा और अपना स्‍थान सुनिश्चित करना होगा कि आने वाली दलित पीढी इस पीढा से दो-चार न हो।

Wednesday, 13 November 2013

काग्रेस का चुनावी रिर्पोट कार्ड,

 इस बार का चुनाव कुछ खास है क्‍योंकि इस बार कांग्रेस की लगातार तीन साल की जीत का सवाल है कि अब की बार कांग्रेस या कोई ओर ।

 कांग्रेस का प्रोगेसिंग कार्ड देंखे तो कांग्रेस  ने दिल्‍ली को तो कई नई चीजों से अवगत कराया है और दिल्‍ली की विकास की गति को निरंतर बनाये रखा है लेकिन कांग्रेस शासन में 15 साल रही है उस लिहाज से देखा जाए तो कही विकास दर धीमी दिखाई सी पडती है ।कि इतने साल सता में रहने के बाद भी विकास दर की  दरों में कहीं वही समरूपता देखने को मिल रहीं है जो उसे उस समय की तुलना में कहीं थोडा सा ज्‍यादा है लेकिन वो वर्तमान समय के हिसाब से नाकाफी नहीं हैं। क्‍योंकि विकास  की रफतार को जन्‍म दर की रफतार के समरूप रखना होगा । तभी जाकर ही सही ढंग से विकास सम्‍भव होगा

   ले‍किन जहां काग्रेस की विकास दर को देख तो विकास दर तो काफी धीमे दिखाई पडती है लेकिन वहीं काग्रेस के खाते में घोटालों की विकास दर, पिछले 15 सालों में बढी है जो पिछने 05 सालों में 85% की तीव्र दर से बढी है जिसका सीधा असर कांग्रेस कर प्रोगेसिंग रिर्पोट पर पडा है जिसका असर पिछले कुछ दिनों से काग्रेस के मुख्‍यालयों में भली-भांति देखा जा सकता । जिसके कारण्‍ा से रोज एक नया मंत्री मंडल चुना जाता है और बदला जाता है

 काग्रेस की सत्‍ता में मंहगाई दर की बात करे तो मंहगाई की विकास दरों ने तो सारी दरों को पीछे छोड अपना ही एक नया ही रिकार्ड जोड दिया । जो आम आदमी को तो आसुओं से रूला गई । काग्रेस तो कहती ही रह गई की हम मंहगाई दर को कांट्रोल कर लेगे । लेकिन मंहगाई दर ने ही कांग्रेस को कांट्रोल कर लिया । मंहगाई ने तो अपना एक नया रिकार्ड बना दिया जो, शायद आने वाले कई सालों में भी नहीं टूटेगा और कांग्रेस को सत्‍ता से निकलवा देगा ।

     काग्रेस के पक्ष में फिलहाल एक बात जाती दिख रही है वो सरकारी नौकरियां करने वाले लोगो को ''मंहगाई दर का भत्‍ता देना ''

 क्‍योंकि सरकारी नौकरी करने वालों का वेतनमान कांग्रेस ने ,इन 15 सालों में 65% से भी अधिक गति से बढाया है  और मंहगाई भत्‍ता भी अलग से दिया है जो आम आदमी को उसने कभी नहीं दिया । उसने प्राइवेट कंपनियों को तो दिशा निर्देश दिए लेकिन उन पर कार्यो करने को नहीं कहा ।जिससे प्राइवेट नौकरी करने वाले व्‍यक्तियों का वेतन नहीं बढा। वहीं दूसरी ओर मंहगाई ऐसी बढी जैसे कि किसी जंगल में आग तेजी से बढती है ।इस कारण से आम आदमी को आत्‍मा हत्‍या करने को मजबूर होना पढा ।

जहां कांग्रेस कर चौतरफा आलोचना हो रहीं है और उसे इस बार सत्‍ता में नहीं लाने कि कावायद चल रही है वहीं दूसरी ओर सरकारी नौकरी वाले लोग काग्रेंस को पूर्ण बहुमत से जीत दिलाने कि कोशिश्‍ा में लगे हैं।

     ब‍रहाल कुछ भी हो कांग्रेस जीते या हारे, हर हाल में पिसेगा तो आम आदमी ही जो अपने आपको कॉमन मैन कहता है और हमेशा ही पिसता है

Friday, 8 November 2013

दिल्‍ली में बसों में भीड

बसाें के धक्‍के और बसों में होती गाली गलोज, मजाक-2 में उडाते लोग मखौल,झगडा होने पर कह देना '' यार मैं तो मजाक कर रहा था तू तो बुरा मान गया''

    ये बात कर रहा मैं अपनी रोज मर्रा की जिन्‍दगी की कैंसे-2 लोग बसों में मिलते हैं और उनमें से कुछ से तो ऐसा याराना हो जाता है कि टूटता ही नहीं। लेकिन दूसरी और बसों में ऐसे भी लोग टकराते है मानो कि अपनी पत्‍नी से पीडित हों और पत्‍नी का गुस्‍सा बस में सफर कर रहे लोंगो को अपनी पत्‍नी समझ कर उतार रहा हो । कुछ लोग तो ऐसे होते है जो अपने स्‍टैंड से चढते है तो मानो कि मुंह में गोंद लेकर मुंह का चिपका लिया हो न किसी से बोलना और नाहि किसी से कोई मतलब वक्‍त पढने पर वो सबसे बोलते है कि भाई सीट के एक कोने पर हमें भी बिठा लो हम भी बहुत दूर जाएगें। ऐसे स्‍वार्थी लोग बसाें में बहुत मिलते है और दिल्‍ली की बसों में तो ऐसे लोग तो रेज में पढे मिल जाएगें जिनको अपना ही स्‍वार्थ साधना आता है
  ओर कई युवा तो ऐसे होते है बस खाली पढी हो फिर भी सफर करेंगे तो गेट पर ही लटक कर, उनसे कहो कि भाई उपर आ जा कही कोई हादसा न हो जाए तो उनका जबाब होता है कि नही होगा , अगर हो भ्‍ाी गया तो मैं ही तो भगवान के पास जाउगा । उस समय बस मैं बैठे लोग उन्‍हें समझाते भी है, बस उनका एक ही कहना होता है कि अंकल आप बेवजाह डरा रहे हो कुछ नहीं होगा
           कुछ बुढापे मैं लोग बोखला भी जाते है, कुछ  व्रद्व लोग तो ऐसे मिलते है जो लोगो कि सीट तो ले लेते है लेकिन जब वो उन्‍हे अपना बेग पकडने को कहता है तो कहते है ंकि अपना समान खुद ही संभालो ।उस समय इतना क्रोद्व आता है वो वही जानता है जिसके साथ ये होता है पर लोगो काे अब समझ आ गया कि बुढापे में लोग सठीया जाते है तो कोइ उन्‍हे कुछ भी नहीे कहता

        बसाें मे सफर करते समय आप को कुछ शकसियत ऐसी मिलेगी जाे एक बार अड गयी तो अपकी तो छुटटी ही कर देगी। हां मैं यहां उन लडकियों कि बात कर रहा हूं जो अपने को ऐसे दिखाती है जिन्‍हे देख कर भई लडको ओर आदमियों कि भी हिम्‍मत नहीं होती कि उनसे कुछ कह भी दे । क्‍योंकि भई आजकल तो लडकियों का जमाना है तो भल्‍ला कोई उन्‍हें क्‍या कह सकता है किसी में इतनी हिम्‍मत है लेकि इसके विपरीत लडकियों में हिम्‍मत है अपने से बडे जनो से बहस करने कि , उन्‍हें झाडने कि आप मुझे जानते नहीं है'' और मुझे धक्‍का क्‍यों दे रहे हो बदतमीज,, इस तरह के शब्‍दो से ल‍डकियं स्‍वागत करती हैं आजकल के आदमियों का, वो ये नहीं देखती कि किस परिस्थिति में, में धक्‍का लगा हैं उनको और झगडा शुरू कर देती है
 कुछ झगडों मे तो बात पुलिस तक भी पंहु जाती है लेकिन कुछ लोग भी एेसे मिल जाएगे बसों में जो खुद जानबुझ कर ल‍डकियों के उपर गिरते है ,, उनसे पुंछने पर वो कहते है भई माल है इस मारे गिरे उसके उपर । जिससे उसकी उस विक्रति का पता चलता है जो वो महिलाओं और लडकियों के बारे में सोचता है

        बरहाल ये कहा‍नी दिल्‍ली की उन बसों कि है जो अपने आप पर गर्व करती है कि हम से अच्‍छा कोई नहीं , लेकिन ये काफी है क्‍या


        ओर यहीं पर में अपनी बातो को विराम देता हूं अौर एक सोचने आैर इस पर कुछ करने के बारे में छोड कर जाता हूं ।