Friday, 8 November 2013

दिल्‍ली में बसों में भीड

बसाें के धक्‍के और बसों में होती गाली गलोज, मजाक-2 में उडाते लोग मखौल,झगडा होने पर कह देना '' यार मैं तो मजाक कर रहा था तू तो बुरा मान गया''

    ये बात कर रहा मैं अपनी रोज मर्रा की जिन्‍दगी की कैंसे-2 लोग बसों में मिलते हैं और उनमें से कुछ से तो ऐसा याराना हो जाता है कि टूटता ही नहीं। लेकिन दूसरी और बसों में ऐसे भी लोग टकराते है मानो कि अपनी पत्‍नी से पीडित हों और पत्‍नी का गुस्‍सा बस में सफर कर रहे लोंगो को अपनी पत्‍नी समझ कर उतार रहा हो । कुछ लोग तो ऐसे होते है जो अपने स्‍टैंड से चढते है तो मानो कि मुंह में गोंद लेकर मुंह का चिपका लिया हो न किसी से बोलना और नाहि किसी से कोई मतलब वक्‍त पढने पर वो सबसे बोलते है कि भाई सीट के एक कोने पर हमें भी बिठा लो हम भी बहुत दूर जाएगें। ऐसे स्‍वार्थी लोग बसाें में बहुत मिलते है और दिल्‍ली की बसों में तो ऐसे लोग तो रेज में पढे मिल जाएगें जिनको अपना ही स्‍वार्थ साधना आता है
  ओर कई युवा तो ऐसे होते है बस खाली पढी हो फिर भी सफर करेंगे तो गेट पर ही लटक कर, उनसे कहो कि भाई उपर आ जा कही कोई हादसा न हो जाए तो उनका जबाब होता है कि नही होगा , अगर हो भ्‍ाी गया तो मैं ही तो भगवान के पास जाउगा । उस समय बस मैं बैठे लोग उन्‍हें समझाते भी है, बस उनका एक ही कहना होता है कि अंकल आप बेवजाह डरा रहे हो कुछ नहीं होगा
           कुछ बुढापे मैं लोग बोखला भी जाते है, कुछ  व्रद्व लोग तो ऐसे मिलते है जो लोगो कि सीट तो ले लेते है लेकिन जब वो उन्‍हे अपना बेग पकडने को कहता है तो कहते है ंकि अपना समान खुद ही संभालो ।उस समय इतना क्रोद्व आता है वो वही जानता है जिसके साथ ये होता है पर लोगो काे अब समझ आ गया कि बुढापे में लोग सठीया जाते है तो कोइ उन्‍हे कुछ भी नहीे कहता

        बसाें मे सफर करते समय आप को कुछ शकसियत ऐसी मिलेगी जाे एक बार अड गयी तो अपकी तो छुटटी ही कर देगी। हां मैं यहां उन लडकियों कि बात कर रहा हूं जो अपने को ऐसे दिखाती है जिन्‍हे देख कर भई लडको ओर आदमियों कि भी हिम्‍मत नहीं होती कि उनसे कुछ कह भी दे । क्‍योंकि भई आजकल तो लडकियों का जमाना है तो भल्‍ला कोई उन्‍हें क्‍या कह सकता है किसी में इतनी हिम्‍मत है लेकि इसके विपरीत लडकियों में हिम्‍मत है अपने से बडे जनो से बहस करने कि , उन्‍हें झाडने कि आप मुझे जानते नहीं है'' और मुझे धक्‍का क्‍यों दे रहे हो बदतमीज,, इस तरह के शब्‍दो से ल‍डकियं स्‍वागत करती हैं आजकल के आदमियों का, वो ये नहीं देखती कि किस परिस्थिति में, में धक्‍का लगा हैं उनको और झगडा शुरू कर देती है
 कुछ झगडों मे तो बात पुलिस तक भी पंहु जाती है लेकिन कुछ लोग भी एेसे मिल जाएगे बसों में जो खुद जानबुझ कर ल‍डकियों के उपर गिरते है ,, उनसे पुंछने पर वो कहते है भई माल है इस मारे गिरे उसके उपर । जिससे उसकी उस विक्रति का पता चलता है जो वो महिलाओं और लडकियों के बारे में सोचता है

        बरहाल ये कहा‍नी दिल्‍ली की उन बसों कि है जो अपने आप पर गर्व करती है कि हम से अच्‍छा कोई नहीं , लेकिन ये काफी है क्‍या


        ओर यहीं पर में अपनी बातो को विराम देता हूं अौर एक सोचने आैर इस पर कुछ करने के बारे में छोड कर जाता हूं ।

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