Tuesday, 19 November 2013

वाह रे.......हम ओर हमारा समाज।

हम और हमारा समाज । ये है हम लोगों का कहना कि समाज के लिए ही हम है समाज चार वर्णो से संयोजित है । और उन चार वर्णो में भी बहुत असमानता है। और समान सिर्फ उसमें हम ही लोग है जिनको समाज सूत्रधार माना जाता है और हमी से समाज की पहचान होती है ।
फिर भी वर्णों की गिनती में आना वाले सबसे नीचा वर्ण ही समाज का से शोषित वर्ग है आज बदलते हुए भारत के साथ समाज भी बदल रहा है सिर्फ एक ही चीज नहीं बदल रहीं वो है वर्ण व्‍यवस्‍था ।इस बदलाव में सबसे ज्‍यादा वही समाज है जो हमेशा से शोषित होता रहा है लेकिन इस बदलाव के बाद भी हम लोग जाति सूचक जैसे शब्‍दो में विश्‍वास रखते है और किसी दलित उभरती हुई प्रतिभा को दबाने की पुरजोर कोशिश करते है लेकिन वो दब नहीं पाती ।जिसके कारण समाज उसे आज भी उसी रूप में देखता है जिसे उन्‍होने उसे उनके पूर्वजों के रूप में देखा । लेकिन इस व्‍यवस्‍था में कही हम उन दलित समाज के युवको के मौके को छिनने में पीछे नहीं हैं जिन्‍‍होने अपने आपको साबित किया है कि अब हमें कोई नहीं दबा सकता । लेकिन इस विशाल भारत की हकीकत यही है कि आज के बदलते भारत मे सबसे ज्‍यादा प्रतिभावान लोग दलित, पिछडें वर्ग और आदिवासी क्षेत्र से आते है जिन्‍होने भारत जैसे विशाल देश का नाम सर्वोपरि रखा है जिनमें इतिहास के नायक ज्‍योति राव फूले और डा भीम राव अम्‍बेडकर है जिन्‍हों के पद चिन्‍हो के द्वारा इस समाज को उसकी जमीन मिली जहां से उसने सोचना शुरू किया और अपने आप में परिर्वतन किया ।वर्तमान में इसी समाज के युवा ही हर प्रकार की सरकारी सेवा मे निहीत है लेकिन फिर भी इनको इनकी जाति से जाना जाता है ।
और शास्‍त्रों में लिखा है इंसान उसके कर्मो से जाना जाएगा नाकि उसके वर्ण। लेकिन शास्‍त्रों को बदलने की पूरी कवायद चल रहीं है 

बरहाल कुछ भी हो दलित समाज हमेशा से भारत पर छाया रहा है और आगे भी योहि छायेगा
लेकिन अब उसके सोचने का नजरिया बदल गया है अब समाज को इसी समाज के लोगो को ही बदलना होगा और अपना स्‍थान सुनिश्चित करना होगा कि आने वाली दलित पीढी इस पीढा से दो-चार न हो।

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