Wednesday, 13 September 2017
कौन कहता है हिंन्दी का कद छोटा है।।
हिन्दी तो विश्वव्यापी अग्रणी की वक्ता है।।
चंद सफरनामें और खबरों का गढ़ मोटा है।
कौन कहता है हिन्दी का कद छोटा है।।
वर्तनी, युग्म, शब्द सखा सब।
राग, तम्य्, सरस रस, सब श्रोता है।।
हिन्दी को स्वर, तालु, कंठ सबने परखा है।
कौन कहता है हिन्दी का कद छोटा है।।
स्वंम में सारा संसार समाये ।
खुद जननी खुद मां कहलाए।।
जिसने बोलियों की सीमाओं को खुद में समेटा है।
कौन कहता है हिन्दी का कद छोटा है।।
सबको समान इसने देखा है ।
भेदभाव की कटुता को झेला है।।
अडगी रहकर पथ पर सबको इसने रौंदा है।
कौन कहता है हिन्दी का कद छोटा है।।
वातस्लय सदा भर अपने में ।
आंचल में छुपाया सबको है।।
कण कण में ज्ञान की ज्योत जलाई है।
हिन्द की इसने की अुगावाई है।।
कौन कहता है हिंन्दी का कद छोटा है।।
सोहन सिंह
Monday, 11 September 2017
दम नही है विपक्ष में
2014 से अब तक भारत सरकार विरोधी पार्टियों का आकलन करें तो कही न कही विरोधी घुटने के बल दिख रहे हैं जिनका कद सरकार से कहि ज्यादा छोटा है, लगातार झटपटाहट ही उनकी हार को दर्शाती है। पिछले दिनों के सफरनामे पर रोशनी डाले तो है सरकार विरोधी दल मुँह के बल गिरे हैं जो भारत सरकार की उपलब्धी गिनी जा सकती है जिसके चलते विभिन्न दलों ने नीतिगत रास्ता छोड़ कर अनीति और षडयन्त्र का रास्ता चुना है। जिसके कारण पिछले कुछ दिनों में भारत में हिंसक घटनाएं घटी जिसके केंद्र में कहीं न कही सम्पूर्ण विपक्ष था उसके उपरान्त भी सरकार को घेर सकने में विफल रहा जो उसका गिरते आत्म विश्वास को दर्शाती है जिसके चलते बिहार में महागठबंधन बनाया गया और सम्पूर्ण विपक्ष एक जुट होकर लड़ा और जीता भी लेकिन कुछ ही समय के बाद लालू की घोटाले वाली छवि और राहुल गांधी की दूरदर्शिता मे कमी का फायदा अमित शाह ने उठाया और बिहार में सभी दलों को मुँह के बल चित करके दल को तोड़ देने में सफल रहे जिसके चलते बिहार में एन डी ए की सरकार का रास्ता साफ हुआ और मुख्यमंत्री नीतीश ने रातों रात योजना बना कर अगली ही सुबह दूसरे दल के साथ सरकार बना डाली और एक बार फिर अन्य दल मुँह तांकते रह गए। कुछ ऐसा ही गुजरात मैं भी देखने को मिला जिसमे अहमद पटेल ने अपनी सीट बचाने के लिए अपने विधायको को बंदी बना लिया था उन्हें डर था कि अमित शाह उन्हें भी न खरीद लें।बरहाल पटेल ने अपनी लाज बचा ली थी लेकिन जीत का अंतर बहुत ही कम था । इससे पहले भी राज्य चुनाव में भाजपा ने ही बाज़ी मारी थी । 5 राज्य के चुनाव में से 4 राज्य में अपनी सरकार कूटनीतिक तरीके से बनाई थी जिसका श्रेय भी अमित शाह को ही जाता है जिनको विपक्ष का कातिल तक कह दिया गया था जो सही मायने मे विपक्ष की बूकलाहट ही थी जिसके चलते ग्वालियर में किसानों को भड़काना सरकारी सम्पति को नुकसान पहुचाना इत्यादि किया गया जिसका सच बाद मे सब के सामने खुल कर आया और विपक्ष की किरकिरी तक हुई लेकिन विपक्ष ने फिर भी हत्यार नही डाले, हाल फिलहाल के गौरी लंकेश की हत्या के मुद्दे को राहुल ने भुनाने की बहुत कोशिश की लेकिन यहां भी भारत की जनता का विश्वास मत न पा सके क्योकि कर्नाटक में कांग्रेस का ही शासन है और कांग्रेस न बिगर चांज किये सीधा मोदी जी को ही कटघर में ला खड़ा किया जिनका ये दाव उल्टा पड़ गया और खुद ही राहुल गांधी इससे किनारा करते दिखे।
कुल मिलाकर विपक्ष हर मोर्चे पर सरकार को घेरने में विफल रहा और अपनी रही सही साख भी गवा दी।
-सोहन सिंह
दम नही है विपक्ष में
2014 से अब तक भारत सरकार विरोधी पार्टियों का आकलन करें तो कही न कही विरोधी घुटने के बल दिख रहे हैं जिनका कद सरकार से कहि ज्यादा छोटा है, लगातार झटपटाहट ही उनकी हार को दर्शाती है। पिछले दिनों के सफरनामे पर रोशनी डाले तो है सरकार विरोधी दल मुँह के बल गिरे हैं जो भारत सरकार की उपलब्धी गिनी जा सकती है जिसके चलते विभिन्न दलों ने नीतिगत रास्ता छोड़ कर अनीति और षडयन्त्र का रास्ता चुना है। जिसके कारण पिछले कुछ दिनों में भारत में हिंसक घटनाएं घटी जिसके केंद्र में कहीं न कही सम्पूर्ण विपक्ष था उसके उपरान्त भी सरकार को घेर सकने में विफल रहा जो उसका गिरते आत्म विश्वास को दर्शाती है जिसके चलते बिहार में महागठबंधन बनाया गया और सम्पूर्ण विपक्ष एक जुट होकर लड़ा और जीता भी लेकिन कुछ ही समय के बाद लालू की घोटाले वाली छवि और राहुल गांधी की दूरदर्शिता मे कमी का फायदा अमित शाह ने उठाया और बिहार में सभी दलों को मुँह के बल चित करके दल को तोड़ देने में सफल रहे जिसके चलते बिहार में एन डी ए की सरकार का रास्ता साफ हुआ और मुख्यमंत्री नीतीश ने रातों रात योजना बना कर अगली ही सुबह दूसरे दल के साथ सरकार बना डाली और एक बार फिर अन्य दल मुँह तांकते रह गए। कुछ ऐसा ही गुजरात मैं भी देखने को मिला जिसमे अहमद पटेल ने अपनी सीट बचाने के लिए अपने विधायको को बंदी बना लिया था उन्हें डर था कि अमित शाह उन्हें भी न खरीद लें।बरहाल पटेल ने अपनी लाज बचा ली थी लेकिन जीत का अंतर बहुत ही कम था । इससे पहले भी राज्य चुनाव में भाजपा ने ही बाज़ी मारी थी । 5 राज्य के चुनाव में से 4 राज्य में अपनी सरकार कूटनीतिक तरीके से बनाई थी जिसका श्रेय भी अमित शाह को ही जाता है जिनको विपक्ष का कातिल तक कह दिया गया था जो सही मायने मे विपक्ष की बूकलाहट ही थी जिसके चलते ग्वालियर में किसानों को भड़काना सरकारी सम्पति को नुकसान पहुचाना इत्यादि किया गया जिसका सच बाद मे सब के सामने खुल कर आया और विपक्ष की किरकिरी तक हुई लेकिन विपक्ष ने फिर भी हत्यार नही डाले
हाल फिलहाल के गौरी लंकेश की हत्या के मुद्दे को राहुल ने भुनाने की बहुत कोशिश की लेकिन यहां भी भारत की जनता का विश्वास मत न पा सके क्योकि कर्नाटक में कांग्रेस का ही शासन है और कांग्रेस न बिगर चांज किये सीधा मोदी जी को ही कटघर में ला खड़ा किया जिनका ये दाव उल्टा पड़ गया और खुद ही राहुल गांधी इससे किनारा करते दिखे।
कुल मिलाकर विपक्ष हर मोर्चे पर सरकार को घेरने में विफल रहा और अपनी रही सही साख भी गवा दी।
Saturday, 9 September 2017
साज़िस है भारत मे अपनी जनसंख्या बढ़ाने की।
मयम्मार से भगाये गए मुस्लमान आज भारत से शरण मांग रहे हैं और भारत को रक्षित मान रहे हैं अपने लिए। मयम्मार जो इनका आपना देश है वहां से इन्हें क्यों भगाया जा रहा है कभी भी किसी ने शायद ही इस पर विचार किया हो। लेकिन भारत की ओर ये फ़टी आंखों से देख रहे हैं क्योंकि भारत आने वाले समय में विश्व को एक नई परिभाषा देने जा रहा है चरित्र और कामयाबी की जिसके चलते वो अपनी अर्थव्यवस्था को सुद्रण बना रहा है। हर प्रकार की तैयारी में निपूर्ण हो रहा है जिसके कारण हर प्रकार की विलासिता उसके पक्ष में है जिसे देख रोहिंग्या मुस्लमान आकर्षित हो रहे हैं। पाकिस्तान तो इनके अपने लोगों का मुल्क है क्यों ये वहां जाना नही चाहते क्योंकि ये भारत में बस कर भारत को तबाह करना चाहते हैं। अपना जनसँख्या बम्म भारत पर फोड़ना चाहते हैं जिसमे कही न कही साज़िश की बो आती है। 1947 के बंटवारे में मुस्लमानो को भारत में रूक कर बहुत बड़ी गलती की थी जिसका भुगतान आतंकवादी गतिविधियां हैं। लगातार इनकी बढ़ती जनसँख्या और अब ये रोहिंग्या मुस्लमान भारत में घुसने की फिरॉक में हैं जिसमें कही न कही भारत का बहुत बड़ा नुकसान करने की कोई साज़िश सी प्रतीत होती है। जिससे भारत को सतर्क रहने की जरुरत है। ऐसा ही कुछ 1971 में हुआ था जब भारत में बांग्लादेशी मुस्लमानो को घुसने की जगह दी गई थी जो आज भारत के हर हिस्से में मिल जाते है सरकार के अल्टीमेटम के बाद भी ये बांग्लादेशी मुस्लमान यहां से जाने का नाम नही ले रहे हैं और लगतार कोई न कोई आतंकी, मारपीट जैसीं बातो को लेकर अपना एजेंडा साफ तौर पर दिखाते रहते हैं कि समर्द्ध भारत को किस तरह ये खाक में मिलाना चाहते हैं, ये वो लोग है जो जिस थाली में खाते है उसी में छेद करते हैं। इसलिए इनसे जितना सावधान रहा जाए उतना ही लाभदायक है। रोहिंग्या मुस्लमान यदि भारत में घुसने में कामयाब रहे तो भारत की अर्थव्यवथा के साथ भारतीय संस्कृति को नष्ट कर देंगे जिसकी भरपाई भारत सरकार कभी न कर सकेगी। इसलिए इनसे जितनी दूरी बनाई जाए उतना ही अच्छा होगा भारतीय संस्कृति और यहां के लोगों के लिए।