Monday, 22 July 2013

उन से नाता तोड चुका हूं

इस समाज की परछाई को 
छोड चला इस रूसवाई को 
राहों की बेगानी डगर में 
चला होकर मगन मैं
साथ न लिया किसी को मैने 
अकेला ही सफर करने चला मैं 
राहों कि इस बेगानी डगर में 
इस समाज की परछाई को छोड चला मैं
समय से पहले इन राहों का मुख मोड चला मैं 
क्‍योंकि यादों क‍ि बारातों से उब गया हूं 
उन भटकती यादों की राहों को भूल गया हूं 
राहों के शूल कि चुभन में मगन हुआ हूं 
सारी तकलीफ से अब दूर हुआ हूं 
अब रक्‍त का संचार हुआ हैं 
इन खुली वादियों से प्‍यार हुआ है 
अब नहीं देखना चाहता मुडकर 
उन बधाओं को जो रूककर कह रही 
मुड जा अपनी राहों में 
जिनको अब मैं छोड चुका हूं 
उन राहों से नाता तोड चुका हूं
इस समाज की परछाई को मैं छोड चुका हूं 
नहीं मैं जाना चाहता उन जिनको मैं भूल चुका 
अब उन से नाता तोड चुका हूं..............
                      अब उन से नाता तोड चुका हूं..................
                                  अब उन से नाता तोड चुका हूं...................




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